Class 12th History ( कक्षा-12 इतिहास लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 4
Q.01. महाजनपद युग की राजनीति विशेषताएँ लिखिए।
Ans ⇒ आरंभिक भारतीय इतिहास में छठी शताब्दी ई० पू० को एक महत्वपूर्ण परिवर्तनकारी काल माना जाता है। इस काल को प्रायः आरंभिक राज्यों, नगरों के लोहे के बढ़ते प्रयोग और सिक्कों के विकास के साथ जोड़ा जाता है। इसी काल में बौद्ध तथा जैन सहित विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं का विकास हुआ। बौद्ध धर्म और जैन धर्म के आरंभिक ग्रंथों में महाजनपद नाम से सोलह राज्यों. का उल्लेख मिलता है। यद्यपि महाजनपदों के नाम की सूची तथा ग्रंथों में एक समान नहीं है, लेकिन वज्जि, मगध, कोशल, कुरू, पाञ्चाल, गांधार और अवन्ति जैसे. नाम प्रायः मिलते हैं। इससे यह. स्पष्ट है कि उक्त महाजनपद महत्वपूर्ण महाजनपदों में गिने जाते होंगे।
अधिकांश महाजनपदों पर राजा का शासन होता था, लेकिन गण और संघ के नाम से प्रसिद्ध राज्यों में कई लोगों का समूह शासन करता था, इस तरह का प्रत्येक व्यक्ति राजा या राजन कहलाता था।
Q.02. मिलिन्द पन्नाह पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
Ans ⇒ मिलिन्दपन्नाह – यह बौद्ध ग्रंथ में बैक्ट्रियन और भारत के उत्तर पश्चिमी भाग पर शासन करने वाले हिन्दू यूनानी सम्राट मैनेण्डर एवं प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु नागसेन के संवाद का वर्णन किया गया है। इसमें ईसा की पहली दो शताब्दियों के उत्तर-पश्चिम भारतीय जीवन के झलक देखने को मिलती है।
Q. 03. छठी शताब्दी में ई० पू० से चौथी शताब्दी ई० पू० की अवधि के नगरीकरण को भारत का द्वितीय नगरीकरण क्यों कहा जाता है ?
Ans ⇒ भारत का पहला नगरीकरण हड़प्पा की संस्कृति के साथ प्रारम्भ हुआ और 1500 ई० पू. के लगभग आर्यों द्वारा देश में प्रमुखता प्राप्ति के साथ ही के समय समाप्त हो गया। आर्य लोग ग्रामीण थे। जब हड़प्पा संस्कृति के नगर एक-एक करके नष्ट हो गये तो फिर अगले 1500 वर्ष तक नगर विलुप्त रहे।
ईसा की छठी शताब्दी में बौद्ध काल में पुनः नगरों का श्रीगणेश हुआ। अत: छठी शताब्दी ई. पू. से चौथी शताब्दी ई. पू. तक बौद्ध काल को भारत का अद्वितीय नगरीकरण काल कहा जाता है।
Q.04. प्राचीन भारतीय समाज की जाति व्यवस्था को संक्षेप में समझाइए।
Ans ⇒ संभवतः आप ‘जाति’ शब्द से परिचित होंगे जो एक सोपानात्मक सामाजिक वर्गीकरण को दर्शाती है। धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों में एक आदर्श व्यवस्था का उल्लेख किया गया था। ब्राह्मणों का यह मानना था कि यह व्यवस्था, जिसमें स्वयं उन्हें पहला दर्जा प्राप्त है, एक दैवीय व्यवस्था है। शूद्रों और ‘अस्पृश्यों’ का सबसे निचले स्तर पर रखा जाता था इस व्यवस्था में दर्जा संभवतः जन्म के अनुसार निर्धारित माना जाता था।
अपनी मान्यता को प्रमाणित करने के लिए ब्राह्मण बहुधा ऋग्वेद के पुरुषसूक्त मंत्र को उद्धृत करते थे जो आदि मानव पुरुष की बलि का चित्रण करता है। जगत के सभी तत्व जिनमें चारों वर्ण शामिल हैं, इसी पुरुष के शरीर से उपजे हो बाह्मण उसका मुँह था, उसकी भुजाओं से क्षत्रिय निर्मित हुआ।
समय उसकी जंघा थी, उसके पैर से शूद्र की उत्पत्ति हुई ।
Q.05. मनुस्मृति में यद्यपि आठ प्रकार के विवाहों की स्वीकृति दी गई है लेकिन इस धर्मसूत्र में उल्लिखित पहली, चौथी, पाँचवीं और छठी विवाह पद्धतियों का विवरण और उल्लेख दीजिए।
Ans ⇒ मनुस्मृति और चार प्रमुख प्रकार के विवाह (Manusmriti and Four Main type of Marriages) – यहाँ मनुस्मृति से पहली, चौथी, पाँचवीं और छठी विवाह पद्धति का उद्धरण दिया जा रहा है
पहली – कन्या का दान, बहमल्य वस्त्रों और अलंकारों से विभूषित कर उसे वेदज्ञ वर को दान दिया जाये जिसे पिता ने स्वयं आमंत्रित किया हो।
चौथा – पिता वर-वधू युगल को यह कहकर संबोधित करता है कि तुम साथ मिलकर अपने दायित्वों का पालन करो।” तत्पश्चात् वह वर का सम्मान कर उसे कन्या का दान करता है।
पांचवां – वर को वधू की प्राप्ति तब होती है जब वह अपनी क्षमता व इच्छानुसार उसके बांधवों को और स्वयं वधू को यथेष्ट धन प्रदान करता है।
छठा – स्त्री और पुरुष के बीच अपनी इच्छा से संयोग “जिसकी उत्पत्ति काम से है।”
Q.06. श्रेणी अथवा गिल्ड की व्याख्या कीजिए। गिल्ड के सदस्यों द्वारा कौन-कौन से कार्य किये जाते थे ?
Ans ⇒ प्राचीन काल में जो लोग एक ही प्रकार का व्यवसाय करते थे अथवा व्यवहार संबंधी . (आंतरिक या बाह्य या दोनों प्रकार के) में व्यस्त रहते थे वे कभी-कभी स्वयं को गिल्ड अथवा श्रेणियों में संगठित कर लेते थे।
गिल्ड या श्रेणियों के कार्य –
(i) श्रेणियों के सदस्य अपने साधनों को इकट्ठा कर लेते थे। जो भी धन अपनी शिल्प कलाओं या व्यापार के द्वारा अर्जित करते थे। वह अपने प्रमुख शहर में सूर्य देवता के मंदिर निर्माण पर खर्च करते थे।
(ii) श्रेणियों को सदस्य अपनी अतिरिक्त पूँजी धन आदि को मंदिरों के पास रख देते थे जो समय-समय पर उन्हें व्यवसाय और व्यापार जारी रखने या उनके विकास या विस्तार के लिए निवेश करने के लिए धनराशि देने की व्यवस्था करते थे।
(iii) यह अभिलेख जटिल सामाजिक प्रक्रियाओं की झलक देता है तथा श्रेणियों के स्वरूप के विषय में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। हालाँकि. श्रेणी की सदस्यता शिल्प में विशेषज्ञता पर निर्भर थी। कुछ सदस्य अन्य जीविका भी अपना लेते थे। इस अभिलेख से यह भी ज्ञात होता है कि सदस्य एक व्यवसाय के अतिरिक्त और चीजों में भी सहभागी होते थे।
(iv) श्रेणियाँ या गिल्ड समुदायों के इतिहास का लेखा-जोखा हमें कम ही प्राप्त होता है किन्तु कुछ अपवाद होते हैं जैसे मंदसौरा (मध्य प्रदेश) से मिला अभिलेख (लगभग पाँचवीं शताब्दी ईस्वी)। इसमें रेशम के बुनकरों की एक श्रेणी का वर्णन मिलता है जो मूलतः लाट (गजरात) प्रदेश के निवासी थे. और वहाँ से मंदसौर चले गये थे, जिसे उस समय दशपुर के नाम से जाना जाता था। यह कठिन यात्रा उन्होंने अपने बच्चों और बांधवों के साथ सम्पन्न की। उन्होंने वहाँ के राजा की महानता के बारे में सुना था। अतः वे उसके राज्य में बसना चाहते थे।
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