Q.01. महाभारत के महत्त्व पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिए।
Ans ⇒ महाभारत का महत्त्व (Importance of the Mahabharata) – महाभारत केवल कौरव-पाण्डवों के संघर्ष की कथा ही नहीं किंतु भारतीय संस्कृति और हिन्दू धर्म के विकास का ङ्केप्रदर्शक एक विशाल कोष है। इसमें उस समय के राजनैतिक, धार्मिक, दार्शनिक और ऐतिहासिकआदर्शों का अमल्य संग्रह है।
महाभारत की इस सक्ति में लेशमात्र भी संदेह नहीं है कि वह सर्व प्रधान काव्य, सब. दर्शनों का सार, स्मति. इतिहास और चरित्र-चित्रण की खान तथा पंचम वेद है। मानव जीवन का कोई ऐसा भाग या समस्या नहीं जिस पर इसमें विस्तार से विचार नहीं किया गया हो। शांति पर्व और अनुशासन पर्व तो इस दृष्टि से लिखे गए हैं। इसलिए महाभारत का यह दावा सर्वथा सत्य है कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के विषय में जो इनमें कहा गया है कि वह ठीक है। जो इनमें नहीं है, वह कहीं नहीं।
इसके अतिरिक्त ऋग्वेद के पश्चात् यह संस्कृत साहित्य का चमकता ग्रंथ है। विस्तार में कोई काव्य इनकी समता नहीं कर सकता। यूनानियों का इलियड (Iliad) और औडेसी (Odyssey) मिलाकर इसका आठवाँ भाग है। इसका सांस्कृतिक महत्त्व इसी तथ्य में स्पष्ट है कि हिन्दू धर्म का सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ भगवद्गीता इसी का अंश है।
आलोचना (Criticism) – इस कथा के अतिरिक्त महाभारत में और भी कहानियाँ मिलती हैं। जो काल्पनिक-सी होती है। यद्यपि महाभारत भी रामायण की भाँति पूर्णतया सत्यता पर आधारित नहीं है तथापि हम इसे अनैतिहासिक नहीं कह सकते। हस्तिनापुर इन्द्रप्रस्थ आदि ऐतिहासिक नगर है। वैदिक साहित्य में कौरवों का नाम तो कई बार आता है परन्तु पांडवों का कोई उल्लेख नहीं मिलता है।
इससे अनुमान लगाया जाता है कि पांडव कौरवों के संबंधी न होकर बाहर से आने वाली आक्रमणकारी रहे होंगे।
Q.02. महाभारत कालीन भारतीय स्त्रियों की स्थिति पर टिप्पणी लिखिए।
Ans ⇒ महाभारतकालीन स्त्रियाँ (Women of Mahabharat-age) –
(a) महाभारत काल में घरेलू तथा संन्यासिनियों दोनों तरह की स्त्रियों का विवरण प्राप्त है। रामायण में अत्रि मुनि की पत्नी. अनुसूइया का उल्लेख प्राप्त है। इसी ग्रंथ में ‘शबरी’ एक अन्य चर्चित साध्वी है। शबरी महान कृषि मातंग की शिष्या थी तथा पंपा झील के किनारे उसकी कटिया होती थी। घरेलू स्त्रियों में कौशल्या, सुमित्रा, कैकेयी तथा सीता एवं दासी के रूप में मंथरा का उल्लेख मिलता है।
(b) महाभारत में अनेक महिलाओं का उल्लेख प्राप्त होता है। उदाहरणार्थ सुलभा एक महान विदुषी थी। उपयुक्त वर पाने के लिए उसने संन्यास ले लिया तथा ज्ञान आदान-प्रदान के लिए वह . सर्वत्र घूमती रही। गांधारी, कुंती एवं द्रौपदी आदि घरेलू महिलाओं के सुविदित उदाहरण हैं।
(c) राजा ऋतध्वज की सहचरी ‘मंदालसा’ पुराणों की चर्चित नारियों में एक हैं। वह एक ही साथ विदुशी, संत, नारी तथा कर्त्तव्यशील पत्नी थी। पुराणों की एक और संत नारी महान ऋषि प्रजापति कर्दम की पत्नी और भारतीय दर्शन की संख्या पद्धति के प्रजेता कपिल मुनि की माँ ‘देवहुति’ है। एक घरेलू जीवन व्यतीत करने वाली नारी होने के बावजूद भी अपने ज्ञानी पति एवं पुत्र के साथ शास्त्रार्थ एवं आध्यात्मिक विषयों पर विचारों का आदान-प्रदान इस क्षेत्र में अद्वितीय प्राप्तियों का प्रतीक है।
Q.03. कौरव और पांडव कौन थे ? उनके बंधुत्व संबंध कैसे बदल गये थे ?
Ans ⇒ कौरव और पांडव दोनों एक ही परिवार के सदस्य और दो चचेरे भाइयों के समूह थे। वे एक राज्य परिवार अथवा राजवंश से संबंधित थे जो कुरु वंश कहलाता था। महाभारत हमें सूचना देता है कि इन दोनों समूहों में बंधुत्व का संबंध बड़ा भारी परिवर्तित हो गया। महाभारत दोनों समूह के मध्य भूमि के एक भू-भाग के एक टुकड़े पर संघर्ष का उल्लेख करता है और उसके लिए दोनों समूहों में परस्पर युद्ध हुआ।
Q.04. द्रोण कौन था ?
Ans ⇒ द्रोणा (द्रोणाचार्य) कुरु शहजादों का गुरु था। वह एक ब्राह्मण था उसने सभी, कौरव और पांडव राजकुमारों को धनुर विद्या सिखलाई। कहा जाता है कि इस महान गुरु ने अर्जुन को यह वायदा किया था कि दुनिया में कोई भी उसके समान कुशल धनुर्धारी नहीं होगा।
Q.05. एकलव्य कौन था ?
Ans ⇒ एकलव्य एक वन में रहने वाला निषाद नामक जनजाति से संबंधित युवक था। महाभारत में उसका नाम द्रोणाचार्य से उसके संबंधों के कारण प्रसिद्धि प्राप्त कर सका। कहा जाता है कि एकलव्य को धनुष बाण चलाने की शिक्षा पाने का बड़ा चाव था। वह गुरु द्रोणाचार्य के पास गया लेकिन उन्होंने स्वयं को कुरुशाही परिवार के प्रति समर्पित बताकर उसे धनुष बाण चलाने की शिक्षा देने से मना कर दिया। एकलव्य दिल से द्रोणाचार्य को अपना गुरु मान चुका था। वह उनकी मृद प्रतिभा के समक्ष प्रतिदिन आदर करने के उपरांत रोजाना अभ्यास करने लगा। उसने एक दिन पांडव के एक कुत्ते के भोंकने को बंद करने के लिए ठीक उसके मुंह में उस जगह कई तीर मारे जहाँ वह स्वान बोल रहा था। उसके मुँह में लगे बाणों को देखकर अर्जन को आश्चर्य हआ । वह द्रोण को एकलव्य के पास ले गये। एकलव्य ने स्वयं को उन्हीं का शिष्य बताया और उनके कहने सहर्ष दाहिने हाथ का अंगठा दे दिया। द्रोणाचार्य को भी यह विश्वास नहीं था कि एकलव्य इतना अधिक गुरुभक्त हो चुका था कि वह अपनी धनुष बाण की प्राप्त कुशलता को दाहिने हाथ का अंगूठा देकर त्याग देगा। जो भी हो इस घटना के बाद एकलव्य उतनी कशलता से बाण नहीं छोड़ सका जिनता कि वह पहले छोड़ता था।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubt please let me know