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Class 11 Hindi Book Solution
Bihar board class 11 Hindi book solution padyakhand chapter - 4 Saransh , (सरांश )
कक्षा - 11वी पद्खंड अध्याय - 4
पद – सहजोबाई
लेखक : सहजोबाई
सहजोबाई उस भावधारा की कवयित्री हैं जो सगुण-निर्गुण में भेद नहीं करता है। इनका समय मध्य युग अर्थात् भक्तिकाल है। उनकी रचनाओं का संग्रह 'सहज प्रकाश' के नाम से प्रकाशित है। इसमें सगुण-निर्गुण-सम्बन्धी विचार, नामजप की महिमा तथा भक्ति-भाव का वर्णन है। सहजोबाई के काव्य की मुख्य चेतना प्रेम है। यह प्रेम तीन रूपों में व्यक्त हुआ है। प्रथम ईश्वर के प्रति समर्पण भाव, द्वितीय गुरु के प्रति अपूर्व भक्ति भाव। इस अपूर्व अनुपम भक्ति भाव का सबसे बड़ा प्रमाण निम्न पंक्तियाँ हैं
'राम तजूँ पै गुरु न बिसारूँ।
गुरु के सम हरि कूँ न निहारूँ।।
" तृतीयतः उन्होंने मानव-मात्र के प्रति प्रेम-भाव प्रकट किया है, सदाचार-सत्संग आदि की महिमा का गान किया है। उनकी कविताओं में संसार के प्रति पूर्ण विरक्ति का भाव मिलता है। सहजोबाई आजन्म ब्रह्मचारिणी रहीं तथा गुरु के प्रति समर्पण भाव रहा। उनके गुरु चरणदास जी थे जो मध्ययुगीन निर्गुणमार्गी साधना-क्षेत्र के महत्त्वपूर्ण साधक थे।सहजोबाई की अभिव्यक्ति में एक तर्कपूर्ण संगति मिलती है जो किसी भी विषय के प्रति उनके स्पष्ट ज्ञान और गहरी अनुरक्ति का प्रमाण है। कबीरदास जी ने गुरु और गोविन्द दोनों की तुलना करते हुए गुरु को श्रेष्ठ माना है। उनके इस दृष्टिकोण का अनुगमन सभी निर्गुणमार्गी भक्तों में मिलता है। सहजोबाई ने इस मान्यता को बड़े ही तर्कपूर्ण ढंग से समझाया है। वे बतलाती हैं कि हरि ने जन्म दिया मगर गुरु ने मुक्ति मंत्र सिखलाकर बार-बार जन्म लेने की व्यथा से मुक्त किया। ईश्वर ने शरीर की पाँच इन्द्रियों-आँख, कान, नाक, मुँह और मन द्वारा संसार के प्रति घोर आसक्ति रखने के पंक में ढकेल दिया जिसके कारण मानव-जीवन लोभ, मोह, मद, मत्सर आदि षड्विकारों का केन्द्र बना रहता है जो पग-पग पर दुःख देता है। गुरु ज्ञान के द्वारा इस मोह और आसक्ति से मुक्ति प्रदान करता है। इसलिए गुरु श्रेष्ठ हैं। ईश्वर अज्ञानताजनित भ्रम, आसक्ति, विकार तथा अहंकार का अन्धकार देकर हमें संसार में फंसा देता है ताकि हम उससे दूर रहें, उसे पाने में असमर्थ रहें। इसके विपरीत गुरु अन्धकार और भ्रम दूर कर हमारे हाथ में ज्ञान का वह दीपक थमा देता है जिसके प्रकाश में हम ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग देख पाते हैं। सारांशतः ईश्वर की कृपा से हमें गुरु नहीं मिलता है लेकिन गुरु की कृपा से ईश्वर मिल जाता है। अतः गुरु ही श्रेष्ठ हैं। सहजोबाई इसीलिए गुरु चरणों में न्योछावर होती हैं -
"चरनदास पर तन मन बारूँ।
गुरु न तजूँ हरि को तजि डारूँ।।"
सहजोबाई निर्गुणमार्गी होते हुए भी अनुरागिनी हैं। उनके अनुराग की अभिव्यक्ति कृष्ण के माध्यम से हुई है। वे कृष्ण में अपने ईश्वर की छवि देखती हैं। उनकी रूप माधुरी का वर्णन करने में उनका बालरूप प्रबल हो उठता है। कृष्ण कभी नटवर मदन मनोहर रूप में उनके भाव लोक में आते हैं तो कभी बाल रूप में ठुमक-ठुमक कर चलते हुए ताता थेई करके नृत्य करते हैं। उनकी पैंजनी झुनुक-झुनुक कर बजती है और सहजो उन पर रीझ जाती हैं। अतः उनकी एकमात्र इच्छा
'चरन दास सहजो हिय अन्तर
भवन करौ जित रहौ सदाई।।'
सहजोबाई की कविताएँ सरलता और सहजता से युक्त हैं। उनका नाम भी सहज है, साधना भी सहज और अभिव्यक्ति भी सहज। वे कहती हैं\
"साध मिले हरि ही मिले मेरे मन परतीति।
सहजो सूरज धूप ज्यों जल पाले की रीति।"
सहजो जीवन की वास्तविकता से भागती नहीं हैं। वे मानती हैं कि यह विश्व कर्म-प्रधान है और कर्मफल मिलता ही है। लेकिन गुरु-कृपा से यदि सत्कर्म की लगन लग जाय, ईश्वर के चरणों में प्रीति हो जाये तो अपकर्म से उत्पन्न पाप हों ही नहीं। अत: वे सगुणमार्गी भक्तों की तरह पूरी तरह समर्पण-भाव से ईश्वर की कृपा हेतु प्रार्थना करती हैं
"कर्म विचारौ तौ नहीं छूटौं
जो छूटौं तो दया तुम्हारी।"
शब्दार्थ :
बिथुराई = बिखरी हुई, अलक = बुलाक = नाक में पहना जानेवाला आभूषण, हलत - सना है, पाँच चोर - पंचेन्द्रिय, आँख, कान, नाक, मुँह, मन-लई - लिया, , गेरी - डालना, फँसाना, मर्म - भ्रम, पै - पर, किन्तु। केश,
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Bihar board class 11 Hindi book solution padyakhand chapter - 4 Objective (स्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर )
(i) सहजोबाई जाल किसे मानती है ?
(क) कुटुम्ब
(ख) धागा से बना
(ग) धन
(घ) पद-प्रतिष्ठा
उत्तर – क |
(ii) चरणदास किसके गुरु थे?
(क) सहजोबाई
(ख) कबीरदास
(ग) रैदास
(घ) किसी के नहीं।
उत्तर – क |
(iii) सहजोबाई के गुरु कौन थे ?
(क) कबीरदास
(ख) नानक
(ग) चरणदास
(घ) रैदास
उत्तर – ग |
(iv) सहजोबाई किसकी उपासिका हैं ?
(क) राम
(ख) रश्मि
(ग) दुर्गा
(घ) निर्गुण ब्रह्म
उत्तर – घ |
(v) सहजोबाई को आत्मरूप का दर्शन किसने कराया ?
(क) गुरु
(ख) ईश्वर
(ग) कृष्ण
(घ) कबीर
उत्तर – क |
(vi) सहजोबाई के पद में 'नटवर' शब्द किसके लिए आया
(क) गुरु
(ख) निर्गुण ब्रह्म
(ग) कृष्ण
(घ) राम
उत्तर – ग |
(vii) 'बुलाक' आभूषण कहाँ पहना जाता है ?
(क) कान
(ख) नाक
(ग) हाथ
(घ) पाँव
उत्तर – ख |
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Bihar board class 11 Hindi book solution padyakhand chapter - 4 Very Short Quetion (अतिलघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर )
(1) सहजोबाई गुरु को हरि से श्रेष्ठ क्यों मानती है ?
उत्तर-उनकी दृष्टि में ईश्वर ने अपने को छिपाने के लिए प्रपंचों का सृजन किया है जबकि गुरु उन प्रपंचों को ज्ञान के प्रकाश से काटकर भक्त को ईश्वर से मिला देता है, अत: गुरु ईश्वर से श्रेष्ठ है।
(ii) ईश्वर ने जीव को अपने से अलग रखने और छिपाने के लिए क्या-क्या किया है ?
उत्तर-ईश्वर ने पंचेन्द्रिय रूपी पाँच चोर साथ लगा दिया है रोग और भोग में उलझाया है, कुटुम्बियों के रूप में ममता का जाल देकर उलझाया है तथा कर्म-फल का भ्रम पैदा किया है।
(iii) गुरु ने क्या किया है ?
उत्तर-गुरु ने जन्म-मरण के आवागमन से मुक्ति दिलाई है। ममता का बन्धन काटा है। योग और आत्मज्ञान दिया है तथा ज्ञान रूपी दीपक के प्रकाश में ईश्वर के दर्शन कराये हैं।
(iv) पाँच चोर से कवयित्री का क्या तात्पर्य है?
उत्तर-पाँच चोर से तात्पर्य पंच ज्ञानेन्द्रियों - आँख, कान, नाक, मुँह और मन से है जो व्यक्ति को संसार के प्रति आसक्त बनाते हैं।
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Bihar board class 11 Hindi book solution Padyakhand chapter - 4 Short Quetion (लघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर )
प्रश्न- 1. सहजोबाई के मन में उनके आराध्य की कैसी छवि बसी हुई है ?
उत्तर-सहजोबाई के मन में उनके आराध्य की बाल छवि बसी हुई है। यह बाल छवि नटवर कृष्ण की है। उनके मुकुट की लटकन में सहजो का मन अटका हुआ है। उनके कानों में कुंडल है, अलकें बिखरी हैं तथा नाक में बुलकी नामक आभूषण है। वे कभी ठुमुक-ठुमुक कर धरती पर चलते हैं, कभी बाँह उठाकर कोई चतुराई करते हैं और कभी ताता थेई करके नाचते हैं। सब मिलाकर कृष्ण के नृत्यशील सौन्दर्य की छवि सहजोबाई के मन में बसी है।
प्रश्न-2. सहजोबाई ने किससे सदा सहायक बने रहने की प्रार्थना की है ?
उत्तर-सहजोबाई ने नटवर नागर श्री कृष्ण से सदा सहायक बने रहने की प्रार्थना की है।
प्रश्न-3. झुनक झुनक नूपुर झनकारत पंक्तियों का सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-इन पंक्तियों की प्रथम पंक्ति कृष्ण की बाल छवि का एक लघुचित्र है जिसमें पैरों को थिरका कर नूपुर को झनकारने और ताता थेई करके नाचते हुए देखने वालों को रिझाने का वर्णन है। देखनेवालों में भक्त सहजो भी हैं।
दूसरी पंक्ति में सहजो ने अपने गुरु के प्रति अपनी प्रीति और निष्ठा व्यक्त करते हुए उन्हें हृदय में सदा विराजने का आग्रह किया है। 'चरण दास सहजो हिय अन्तर 'के दो अर्थ हैं – प्रथम चरण दास सहजोबाई के हृदय में विराजते हैं। दूसरा अर्थ है कि उसकी गुरुभक्ति इतनी प्रामाणिक है कि गुरु चरणदास सहज अर्थात् स्वाभाविक रूप से सहजो के हृदय में विराजते हैं। झुनक झुनक तथा थेई थेई में शब्द की आवृत्ति है लेकिन अर्थ एक ही है। अतः वीप्सा अलंकार है। सहजो के दो अर्थ हैं - सहजोबाई और सहजा। अतः इसमें श्लेष अलंकार है।
प्रश्न-4. सहजोबाई ने हरि से उच्च स्थान गुरु को दिया है। इसके लिए वे क्या-क्या तर्क देती हैं ?
उत्तर-सहजोबाई ने गुरु को हरि से श्रेष्ठ मानने हेतु निम्नलिखित तर्क दिये हैंने
(i) हरि ने जन्म दिया। गुरु ने ज्ञान द्वारा मुक्ति का मार्ग दिखाकर पुनः जन्म लेने की पीड़ा से मुक्त कर दिया।
(ii) हरि ने पाँच चोर अर्थात् पंचेन्द्रियों से प्राप्त सांसारिक आसक्ति दी। गुरु ने इससे मुक्ति दिलाई।
(iii) हरि ने सगे संबंधियों के जाल में आबद्ध कर दिया। गुरु ने ममता के इस जाल से मुक्ति दिलाई।
(iv) ईश्वर ने तन देकर रोग और भोग में उलझा दिया। गुरु ने योग साधना सिखलाकर इनसे मुक्ति दिला दी।
(v) हरि ने बन्धन-मुक्ति तथा कर्म का भ्रमजाल दिया। गुरु ने ज्ञान का दीपक दिखाकर सारे
भ्रमों से मुक्ति दिलाई। इन सब कारणों से हरि की तुलना गुरु श्रेष्ठ हैं।
प्रश्न-5. कवि का किन पाँच चोरों की ओर संकेत है ? गुरु उससे कैसे बचाते हैं ?
उत्तर-पाँच चोरों से तात्पर्य पंच ज्ञानेन्द्रियों से है। ये पंच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं - आँख, कान, नाक, मुँह और मन। इन पाँचों के कारण ही संसार के प्रति आसक्ति होती है। अत: ये चोर हैं। इन चोरों से बचने के लिए कवि हमें आत्मज्ञान देकर सांसारिक आसक्ति से त्राण दिलाते हैं।
प्रश्न-6. 'हरि ने कर्म भर्म भरमायो' पंक्तियों की व्याख्या करें।
उत्तर-इन पंक्तियों में सहजोबाई ने दो तत्त्वों पर विचार किया है। प्रथम यह कि हरि ने तन देकर कर्म के बन्धन में बाँध दिया। इससे ज्ञान दूर हो गया। फलतः जीवन में कर्मन्य विकृतियों के कारण भ्रम की स्थिति बनती रही। सद्-असद् कर्मों का भेदक विवेक नष्ट होता रहा। कर्मन्य आसक्ति से जीवन घिरा रहा। गुरु ने आत्मरूप का बोध कराकर आत्मदर्शन कराया। इससे कर्मजन्य भ्रम मिट गया। आत्म ज्ञान से कैसे कर्मजन्य भ्रम मिटता है इसे कबीर के निम्न दोहे से समझा जा सकता है।
तेरा साई तुज्झमे ज्यों पुहुपन में बास।
कस्तूरी का मिरग ज्यों फिरि फिरि ढूँढै घास।
कर्म का भ्रम मृग के भ्रम की तरह होता है। मृग की नाभि से कस्तूरी की गंध आती है। लेकिन मृग अपनी ओर न ध्यान देकर घास में ढूँढ़ता फिरता है। स्पष्टतः आत्मज्ञान के अभाव से कर्मजन्य भ्रम जीवन को भ्रान्त बनाते हैं।फिर हरि ने मुझसे आत्मरूप छिपा लिया। “जो आत्मा है वही परमात्मा है" यह ज्ञान ही आत्मज्ञान है, आत्मरूप है। इसका बोध अर्थात्, अभेदज्ञान ही मुक्ति है। ईश्वर ने तन और तनजन्य ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा इस आत्मरूप को ढँक दिया, हमें अन्धकार में डाल दिया। गुरु ने ज्ञानदीप के प्रकाश से अन्धकार दूर कर आत्मरूप का दर्शन करा दिया। इस तरह गुरु ने आत्मरूप का दर्शन कराया और हरि ने आत्मदर्शन को अवरोधक तत्त्वों से आवृत कर अहित किया। अतः हरि की तुलना में अधिक हितकारी होने के कारण गुरु श्रेष्ठ हैं।
प्रश्न-7. पठित पद में सहजोबाई ने गुरु पर स्वयं को न्योछावर किया है। वह पंक्ति लिखें।
उत्तर-पठित पद की जिस पंक्ति में सहजो ने अपने को गुरु पर न्योछावर किया है वह इस प्रकार है
चरनदास पर तन मन वारूँ।
गुरु न तजूँ हरि कू तजि डारूँ।
प्रश्न-8. पठित पद के आधार सहजोबाई की गुरुभक्ति का मूल्यांकन करें।
उत्तर-सहजोबाई भक्त कवयित्री हैं। उनकी भक्ति का केन्द्र गुरु भक्ति है। उनका मानना है कि गुरु को पा लेने पर उसकी कृपा से ईश्वर भी प्राप्त हो जाते हैं। अतः वे हरि के बदले गुरु के चरणों में ही अधिक अनुराग रखती हैं। उनकी गुरु भक्ति अनन्य है। भक्त कवियों में उनकी पहचान गुरु भक्ति के लिए है। वे गुरु को हर तरह से परमात्मा से श्रेष्ठ मानती हैं। उनका मानना है कि ईश्वर ने तन दिया, कर्म का बंधन दिया, षड्विकार दिये, सांसारिक आसक्तियाँ दीं। पंच ज्ञानेन्द्रिय रूप में पाँच चोर साथ लगा दिया और आत्मज्ञान को अज्ञान के अन्धकार से ढक दिया। इस तरह ईश्वर ने अपने तक पहुँचने के मार्ग में विविध प्रकार के काँटे ही बिछाए ताकि भक्त उन तक न पहुँच सके। इसके विपरीत गुरु ने सारे काँटों को बीना और परमात्मा तक पहुँचने के मार्ग को ज्ञान दीप से प्रकाशित कर दिया। अतः मेरे निर्माण का सारा श्रेय गुरु को है, हरि तो अंधकार में ढकेलने वाला है। इसलिए वे एक तो गुरु पर अपना तन मन न्योछावर करती हैं
चरनदास परं तन मन वारूँ।
और दूसरे कहती हैं - गुरु न तजूँ हरि को तजि डारूँ।
निष्कर्षतः सहजो की गुरुभक्ति अद्वितीय है, उनकी दृढ़ता और दो टूक शब्दों में हरि को नकार कर गुरु को अंगीकार करने का संकल्प सराहनीय है।
पद के आस-पास
प्रश्न-2. क्या सहजोबाई निर्गुण भक्त कवियित्री हैं ? सगुण और निर्गुण भक्ति में क्या अंतर है ?
\उत्तर- भारतीय चिन्ताधारा में ईश्वर या ब्रह्म या परमात्मा को दो तरह के शब्दों द्वारा कहा गया है। प्रथम यह कि वह रस रूप गंध आदि से ग्राह्य वस्तुओं की भाँति इन्द्रियग्राह्य है। द्वितीय वह अनन्त, अगोचर, अजन्मा, अरूप और अज्ञेय है। इन दोनों के कारण ईश्वर के स्वरूप की दो अवधारणाएँ विकसित हुई - निर्गुण और सगुण गुण की अवधारणा यह है कि गुण-तीन होते हैं - सत्त्व, रज और तम। यह माना गया है कि ईश्वर इन तीनों गुणों के अधीन नहीं है, ये तीनों गुण ही उसके अधीन हैं। इसलिए वह गुणातीत या गुणों से परे माना जाता है। चूँकि वह गुणों से निसर्ग या परे है अतः निर्गुण है। जब वह संसार के कल्याणार्थ गुणों के माध्यम से प्रकट होता है तो कोई रूप ग्रहण करता है। यही रूप सगुण है। इसीलिए तुलसीदास सगुण-निर्गुण में भेद नहीं मानते हैं।
अतः जब ईश्वर को निर्गुण, निराकार अरूप मानकर उसकी भक्ति की जाती है तो उसे निर्गुण भक्ति कहते हैं। हिन्दी कविता में कबीर, सहजो, चरनदास, मलूक दास, नानक, दादू पीपा आदि सैकड़ों भक्त मिलते हैं जो निर्गुण ईश्वर के उपासक हैं। ये मूर्ति नहीं पूजते हैं, विधि-विधान नहीं मानते हैं और ईश्वर के द्वारा की गयी लीनाओं और उनकी कथाओं से परहेज करते हैं। इसके विपरीत जो लोग मूर्ति पूजते हैं, ईश्वर के सगुण रूप के अन्तर्गत अवतार लेने और लोक कल्याण के हेतु लीला करने की बात मानते हैं। श्रवण कीर्त्तन आत्मनिवेदन आदि के रूप में नवधा भक्ति करते हैं। सहजोबाई निर्गुण-भक्त कवि हैं। वे सगुण भक्त माने जाते हैं। राम और कृष्ण के जितने उपासक हैं वे सगुणमार्गी भक्त हैं।
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Bihar board class 11 Hindi book solution padyakhand chapter - 4 Hindi Grammar (भाषा की बात )
प्रश्न- 1. पठित पदों में अनुप्रास अलंकार है। ऐसे उदाहरणों को छाँटकर लिखें।
उत्तर-अनुप्रास अलंकार के उदाहरण मदन, मनोहर, झलक अलक, नाक बुलाक, धरत धरनि, रोग भोग, भर्म तथा तन मन।
प्रश्न-2. 'भौंह चलाना' का क्या अर्थ है ?
उत्तर-भौंह चलाना का अर्थ है भौंहों की गति के सहारे भावों को व्यक्त करना।
प्रश्न-3. पठित पदों से अलग 'आई' प्रत्यय से पाँच शब्द बनाएँ।
उत्तर-आई प्रत्यय वाले शब्द - बिथुराई, चतुराई, रिझाई, चलाई, सफाई
प्रश्न-4. कर्म भर्म, रोग भोग में कौन सा समास है ?
उत्तर-(i) कर्म भर्म-इसका विग्रह होगा कर्म जन्य भ्रम। अतः इसमें मध्य पद लोपी समास (ii) रोग-भोग - रोग भोग का विग्रह होगा - रोग और भोग। अतः इसमें द्वन्द्व समास है
प्रश्न-5. इनका शुद्ध रूप लिखें -
नृत, गुर, हरियूँ, बेरी, भर्म, आतम उत्तर-नृत नृत्य; गुर = गुरु, हरिकूँ = हरि को, बेरी = बेड़ी, भर्म = भ्रम, आतम आत्म या आत्मा।
प्रश्न-6. पठित पदों से क्रिया पद चुनिए।
उत्तर- क्रियापद अटकी, चलाई, धरत, उठाय, करत, झनकारत, रहौ, विसारू, निहारू, दियो, छुटाहीं, गेरी, काटी, मुरझायो, भरमायौ, लखायौ, छिपायौ, दिखायो, लाये, मिटाये, वारूँ, डारू, तजूँ।
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Bihar board class 11 Hindi book solution Padyakhand chapter - 4 Hindi Grammar (व्यख्या )
(i) मुकुट लटक अटकी.....................बिथुराई।
सहजोबाई ने प्रस्तुत पंक्तियों में सगुण रूप ईश्वर श्री कृष्ण के सौंदर्य का वर्णन किया है। उनके अनुसार कृष्ण के माथे का शोभाशाली मुकुट और उसमें लगे लटकन मेरे मन में अटक गये हैं। अर्थात् मेरा मन कृष्ण के सौन्दर्य पर रीझ गया है। उनका शरीर नृत्य कर रहा है। चंचल स्वभाव के कारण हर समय गतिशील लगता है जो अपनी लयात्मकता के कारण नृत्य करता हुआ प्रतीत होता है। ऐसे नटवर श्री कृष्ण का मदन अर्थात् कामदेव के समान मनोहर रूप मन को मुग्ध कर लेता है। उनके कानों में पड़ा कुंडल डोलने पर कौंधता है और छितरायी हुई केश-राशि की शोभा मन को मुग्ध कर देती है।
(ii) नाक बुलाक हलत करत चतुराई।
\सहजोबाई ने प्रस्तुत पंक्तियों में नटवर श्री कृष्ण की आंगिक शोभा का वर्णन किया है। इसमें नाक में धारण किये गये बुलाक का वर्णन है जिसमें मुक्ताहल अर्थात् मोती जड़े हुए हैं। उनके मनोरम ओठ विशिष्ट सुन्दर ढंग से मटकते हैं और भौंहों की भंगिमा सौन्दर्य की छवि बिखेरती है। वे तुमुक-तुमुक कर धरती पर पैर रखते हैं अर्थात् चलते हैं और हाथों को उठा-उठाकर विभिन्न मुद्राओं के द्वारा भाव-चातुर्य व्यक्त करते हैं। अर्थात् उनके हस्त-परिचालन के माध्यम से विविध भावों की भी अभिव्यक्ति होती है। वह कोरा हस्तपरिचालन नहीं होता है। यहाँ कवयित्री ने कृष्ण के आभूषण तथा उनके औठ, भौंह, पग, हाथ आदि की गति मुद्रा का सजीव चित्र खींचा है।
(iii) झुनुक झुनुक नूपुर झनकारत रहौ सदाई।
श्री कृष्ण चलते हैं तो पैरों के नूपुर बजते हैं। इससे उनके बाल-मन को आनन्द आता है। अत: वे जान-बूझकर नूपुर को झनकारते चलते हैं। इससे वातावरण में लयबद्ध झनकार उत्पन्न होती है। यह सुनने वालों का मन मोह लेता है। इतना ही नहीं कृष्ण ताता थेई की मुद्रा में नाचते भी हैं और उनका नृत्य मन को मोह लेता है। सहजोबाई कहती हैं कि मैं तुम्हारे चरणों की दासी हूँ, तुम मेरे हृदय में निवास करो और सदा मुझ पर कृपा रखो। इन पंक्तियों में 'चरणदास' शब्द का दो अर्थों में प्रयोग हुआ है। प्रथम चरणों का दास और द्वितीय सहजोबाई के गुरु चरणदास। अत: के यहाँ श्लेष अलंकार है।
(iv) हरि ने मोर्चे आप छिपायौ.............................. हरि कूँ तजि डालें।
चौपाई छन्द में रचित प्रस्तुत पंक्तियों में सहजोबाई कहती हैं कि पंच ज्ञानेन्द्रिय, भोग, रोग, कर्म परिवार, धन आदि सांसारिक आकर्षण के अनेक प्रपंचों के द्वारा ईश्वर ने एक परदा जैसा हमारे और अपने बीच डाल दिया और अपने को छिपाया, ताकि हम उसे प्राप्त नहीं कर सकें। सहजो की दृष्टि में उपर्युक्त तत्त्व अंधकार के परदे की तरह थे जिसके कारण हम ईश्वर को देखने में असमर्थ रहे। तब गुरु ने ज्ञान का दीपक जलाकर इस अन्धकार को दूर कर दिया और ईश्वर के दर्शन करा दिया फिर हरि से हमें जोड़कर हमारे लिए मुक्ति रूपी गति ले आये। इस प्रकार गुरु ने ईश्वर द्वारा फैलाए सारे प्रपंचों को मिटा दिया जिससे हमारा अज्ञानजनित भ्रम दूर हो गया। मैं अपने गुरु चरणदास पर तन-मन न्योछावर करती हूँ। मैं ऐसा ज्ञान देनेवाले गुरु को नहीं तनँगी, अगर ईश्वर और गुरु में से किसी एक को छोड़ना होगा तो ईश्वर को ही छोडूंगी। सहजोबाई के इस कथन का अभिप्राय यह है है कि गुरु की कृपा से ईश्वर मिल जाता है लेकिन ईश्वर की कृपा से गुरु नहीं। यदि ईश्वर को छोड़ भी दूंगी ते उनकी कृपा से पुनः प्राप्त कर लूँगी, कवयित्री ने चरण की दासी और गुरु चरणदास इन दो अर्थों में 'चरणदास' शब्द का प्रयोग किया है अत: इसमें श्लेष अलंकार है।
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