Bihar board class 11th Hindi Solution पद्खंड chapter - 3 पद – मीराबाई

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Bihar board class 11 Hindi book solution  padyakhand chapter - 3 Saransh , (सरांश  )

कक्षा - 11वी  पद्खंड अध्याय - 3  

                 पद – मीराबाई                 

लेखक :  मीराबाई 

राजस्थान की कोकिला कही जाने वाली मीरा बचपन से ही कृष्ण की थी। युवावस्था में उसका विवाह मेवाड़ के राजा परिवार में हुआ मगर वह दुर्भाग्यवश विधवा हो गयी, पति थे तो भक्तिभाव में बाधा नहीं डालते थे, मगर देवर शासक हुए तो साधु-संगति, भजन-कीर्तन में बाधा आने लगी, कुल मर्यादा और राजसी शान के नाम पर विष का प्याला तक दिया गया। लेकिन मीरा तो कृष्ण की दीवानी थी, जितनी बाधा आती उतनी ही दृढ़ता से कृष्ण की अनुरागिनी बनती जाती। पाठ्य ग्रंथ में दिये गये दोनों पदों में मीरा ने कृष्ण के साथ अपने अनन्य प्रेम का आख्यान किया है। प्रथम पद में मीरा कहती है कि हे प्रियतम ! तुम भले ही मुझसे प्रीति तोड़ लो, लेकिन मैं कभी नहीं तोडूंगी। क्योंकि, तुम तो किसी और से भी प्रीति जोड़ लोगे, लेकिन मैं किसके संग जोदूँगी ? अभिप्राय यह कि कृष्ण के पास तो विकल्प है कि उनके पास अनेक प्रेमिकाएँ हैं, मगर मीरा के पास तो कोई विकल्प नहीं है। वह किसी अन्य से प्रेम नहीं कर सकती। दूसरे शब्दों में मीरा एकनिष्ठ भाव से केवल कृष्ण से प्रेम करती है। मीरा के लिए कृष्ण एकमात्र आश्रय हैं और वह उन्हीं पर आश्रित है। इस तरह के निर्भरतामूलक सम्बन्ध को आधार-आधेय सम्बन्ध कहते हैं। कृष्ण मीरा के लिए आधार हैं अतः उनके बिना मीरा का अस्तित्व ही नहीं है। इस भाव को वह कई उदाहरणों द्वारा स्पष्ट करती है। उसके लिए कृष्ण यदि तरुवर हैं तो वह उस पर निवास करने वाली चिड़िया है। कृष्ण यदि सरोवर हैं तो वह उसमें निवास करने वाली मछली, यदि वे पहाड़ हैं तो मीरा उस पर उगने वाली घास। यदि वे चाँद हैं तो मीरा उनकी चकोरी। यदि वे मोती हैं तो वह धागा। यदि वे सोना हैं तो सोने से महिमा पाने वाला सोहागा। इस तरह मीरा कहती है कि हे ब्रजवासी, कृष्ण तुम मेरे ठाकुर हो अर्थात् स्वामी हो, देवता हो, आराध्य हो और मैं तेरी दासी हूँ, सेविका हूँ।

इस पद के निष्कर्ष रूप में भी मीरा ने अपने को कृष्ण की दासी घोषित किया है। दासी का काम होता है अपने स्वामी की सेवा। दूसरे पद का स्वर इसी प्रीतिपूर्ण सेवा की भावना व्यक्त करता है। मीरा चूँकि कृष्ण की सेविका है अत: उसका आश्रय-स्थल स्वामी का आवास है। अतः वह कहती है कि मैं गिरिधर कृष्ण के घर जाती हूँ। गिरिधर मेरे सच्चे प्रेमी हैं। वे अनन्य सुन्दर हैं। अत: मैं देखते ही उनके सौन्दर्य पर मुग्ध होकर उनकी रूप-माधुरी में खो जाती हूँ। मीरा अपने को कृष्ण की पत्नी-तुल्य सेविका मानती है। अतः रात भर उनकी सेवा में उपस्थित रहती है। रात होते ही उठकर उनकी सेवा में चली जाती है और भोर होने पर ही उठकर आती है। इस तरह वह रात भर उनकी सेवा में तन्मय भाव से लगी रहती है। केवल रात ही की बात नहीं, दिन में भी वह प्रिय के साथ खेलती रहती है और इस तरह वह रात-दिन प्रेमिका सेविका' के रूप में सेवा करती रहती है। प्रिय जिस ढंग से रीझता है उसी ढंग से रिझाती है। प्रिय जो पहनाता है वही पहनती है, जो खिलाता है वही खाती है। क्योंकि, उसका लक्ष्य है अपने को सभी प्रकार से समर्पित कर प्रियतम को खुश रखना। मीरा अपनी प्रीति के विषय में बतलाती है कि मेरी उनकी प्रीति पुरानी है। मैं एक पल भी उनसे अलग होकर नहीं रह सकती हूँ। मैं उनकी इतनी अनुगता हूँ कि वे जहाँ बैठावें वहीं बैटू और यदि मुझे बेच देने से उन्हें सुख मिले में बिक जाने के लिए भी तैयार हूँ। निष्कर्षतः मीरा कहना चाहती है कि मेरे कृष्ण नागर हैं, गँवार नहीं, वे सब कुछ समझते हैं अर्थात् मेरी प्रीति की गहराई और निष्ठा समझते हैं। अत: मैं बार-बार उन पर न्योछावर होती हूँ अर्थात् अपने को समर्पित करती हूँ। अभिप्राय यह कि मीरा का प्रेम समर्पित भाव की प्रेमिका पत्नी का प्रेम है। वह अपने को कृष्ण की दासी जैसी प्रेमिका मानती है। भक्ति की परिभाषा में कहा गया है- 'भज् सेवायाम्।' यानी प्रीतिपूर्वक सेवा करना, और “सा परानुरक्तिरीश्वरे" अर्थात् ईश्वर में परम अनुरक्ति ही भक्ति है। इस तरह दोनों अर्थों को मिला देने पर स्पष्ट होता है कि “परम अनुरक्ति के साथ अपने आराध्य की सेविका की भाँति सेवा करना ही भक्ति है। भक्ति में समर्पण सर्वोपरि है। मीरा की भक्ति में समर्पण, सेवा और परम अनुराग तीनों का समावेश है। अतः उसकी प्रीति शुद्ध भक्ति-भाव की है।

शब्दार्थ

पद –  जो तुम तोड़ो पिया मैं नहीं तोडूं 

तोसों = तुमसे, पॅखिया = पक्षी, मछिया = मछली,चारा = घास चंदा = चन्द्रमा, चकोरा चकोर पक्षी जिसके बारे में किंवदन्तियां हैं कि वह चाँद से प्रेम करता है। सोहागा = एक पदार्थ  जो सोने को शुद्ध करने के काम आता है। ठाकुर = स्वामी, आराध्य, ईश्वर। 

पद मैं गिरिधर के घर जाऊँ

उणकी - उनकी, पुराणी = प्राचीन, तितही - वहीं, म्हाँरो = मेरा, रैण = रात्रि।

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Bihar board class 11 Hindi book solution padyakhand  chapter - 3 Objective (स्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर )


(1) मीरा किसकी उपासिका थी?

(क) कृष्ण 

(ख) राम 

(ग) निर्गुण 

(घ) किसी की नहीं। 


उत्तर – घ\

(2) मीरा ने 'पिया' शब्द का प्रयोग किसके लिए किया है ? 

(क) अपने पति 

(ख) कृष्ण 

(ग) साधु 

(घ) किसी के लिए नहीं। 

उत्तर – घ

(3) मीरा ने ठाकुर किसे कहा है ? 

(क) पति 

(ख) देवर 

(ग) कृष्ण 

(घ) हजाम 

उत्तर – घ

(4) मीरा के गिरिधर कौन हैं ? 

(क) पहाड़ उठाने वाले 

(ख) पत्थर तोड़ने वाले 

(ग) कृष्ण

(घ) कोई नहीं 

उत्तर – घ


(5) मीरा के कृष्ण कैसे हैं ? 

(क) नागर 

(ख) अनाड़ी 

(ग) गवार 

(घ) कुछ नहीं

उत्तर – घ


(6) मीरा ने कृष्ण को क्या माना है ? 

(क) प्रियतम 

(ख) देवता

(ग) मित्र

(घ) शत्रु

उत्तर – घ

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Bihar board class 11 Hindi book solution padyakhand chapter - 3 Very Short Quetion (अतिलघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर )


(1) मीरा कृष्ण से प्रीति क्यों तोड़ना नहीं चाहती है ? 

उत्तर-मीरा की दृष्टि में कृष्ण के समान सर्व रूप-गुण सम्पन्न कोई दूसरा पुरुष है ही नहीं में जिससे वह प्रीति कर सके। इसलिए कृष्ण उसके लिए विकल्पहीन पुरुष हैं। 

(ii) मीरा ने किन उपमानों के सहारे अपने और कृष्ण के सम्बन्ध को व्यक्त किया है ? 

उत्तर मीरा ने सरोवर और मछली, पेड़ और पक्षी, पर्वत और घास, चन्द्रमा और चकोर, मोती और धागा तथा सोना और सुहागा जैसे उपमानों द्वारा अपने और कृष्ण के सम्बन्ध को व्यक्त किया है?

(iii) कृष्ण के प्रति मीरा किस भाव से समर्पिता है ?

\उत्तर-मीरा ने कृष्ण को अपना प्रेमी और पति माना है। स्वभावतः उसने अपने को प्रेमिका के रूप में रखा है। लेकिन उसके प्रेमिका रूप में पली जैसा समर्पण और दासी जैसा सेवा-भाव मिला हुआ है। एक वाक्य में वह पूर्णत: समर्पिता और सेविका प्रेमिका है जो कृष्ण को खुले शब्दों में पति मानती है।

(iv) मीरा के कृष्ण कैसे व्यक्ति हैं ? 

उत्तर-मीरा के कृष्ण नागर हैं, रक्षक हैं और सच्चे प्रियतम हैं

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Bihar board class 11 Hindi book solution Padyakhand chapter - 3  Short Quetion (लघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर )



प्रश्न-1. मीरा अपने सच्चे प्रीतम के साथ किस तरह रहने को तैयार हैं ? 

उत्तर-मीरा अपने प्रियतम के अनुकूल आचरण करते हुए रहने को तैयार हैं। वे जो पहनावेंगे वह पहनेगी, जो देंगे वही खायेगी और जहाँ बैठावेंगे वहीं बैठेगी। दूसरे शब्दों में वह अपनी सारी व्यक्तिगत इच्छाओं का परित्याग कर प्रियतम के इच्छानुसार चलेगी। इस अनुगमन का एक मात्र है। कारण कृष्ण के प्रति मीरा का अनुराग प्रश्न-

2. मेरी उण की प्रीत पुराणी, उण बिन पल न रहाऊँ" का आशय स्पष्ट करें। 

उत्तर-मीरा भारतीय धारणा के अनुसार जन्म जन्मान्तरों के सम्बन्ध में आस्था रखती हैं। इस कारण वह मानती है कि कृष्ण उसके जनम-जनम के प्रियतम हैं। यदि मीरा को प्रेमिका न मानकर आत्मा और कृष्ण को परमात्मा मानें तो भी यह सम्बन्ध शाश्वत है। इसलिए मीरा अपने प्रेम को पुरातन अर्थात् शाश्वत मानती है और उनसे एक पल भी विलग नहीं रह पाने की बात कहती है।

प्रश्न-3. कृष्ण के प्रीत तोड़ने पर भी मीरा प्रीत तोड़ने को तैयार नहीं है। क्यों ?

उत्तर-मीरा अपने तथा कृष्ण के बीच आधार-आधेय सम्बन्ध मानती है। यदि वह पक्षी है तो कृष्ण तरूवर। वह मछली है तो कृष्ण सरोवर। यदि कृष्ण पर्वत हैं तो वह उस पर उगी घास है। इस तरह वह कई उपमानों के सहारे बताना चाहती है कि उसका अस्तित्व कृष्ण पर आश्रित है। कृष्ण से सम्बन्ध तोड़ने पर उसका अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। इसलिए वह कृष्ण से अपना सम्बन्ध तोड़ने अर्थात् उनसे प्रेम तोड़ने के लिए तैयार नहीं है।

प्रश्न-4. मीरा ने कृष्ण के लिए कौन-कौन सी उपमाएँ दी हैं ? वे कृष्ण की तुलना में स्वयं को किस रूप में प्रस्तुत करती हैं ?

उत्तर-मीरा ने अपने प्रथम पद में कई उपमानों का प्रयोग किया है। इन उपमानों में कृष्ण आधार तत्त्व हैं तथा मीरा उन पर आश्रित है। इसे आधार-आधेय सम्बन्ध कहते हैं जहाँ आधार के बिना आधेय का अस्तित्व ही नहीं रहता। ये उपमान इस प्रकार हैं

कृष्ण  –  मीरा

तरुवर – पक्षी

सरोवर – मछली 

गिरिवर – घास 

चंद्रमा – चकोर 

मोती – धागा 

सोना – सोहागा 

ठाकुर–  दासी 


प्रश्न-5. 'तुम मेरे ठाकुर मैं तेरी दासी' में 'ठाकुर' का क्या अर्थ है ? 

उत्तर-ठाकुर शब्द का यहाँ दो अर्थ है - स्वामी या पति तथा ईश्वर। उत्तर प्रदेश राजस्थान में क्षत्रिय लोग अपने को ठाकुर कहते हैं। मीरा क्षत्राणी थी और कृष्ण को प्रियतम या पति मानती थी। अत: ठकुरानी के प्रिय पति होने के कारण कृष्ण ठाकुर हैं। बंगाल में ठाकुर देवता या ईश्वर को कहा जाता है। कृष्ण परमात्मा, भगवान या ईश्वर हैं इसलिए वे ठाकुर हैं। .

प्रश्न-6. पठित पद के आधार पर मीरा की भक्ति भावना का परिचय अपने शब्दों में दें।

 उत्तर-भक्ति का अर्थ होता है - प्रीतिपूर्वक सेवा। मीरा कहती है - गिरिधर म्हारो साँचो प्रीतम। इससे स्पष्ट है कि वह कृष्ण से प्रेम करती है, अपने को कृष्ण की प्रेमिका मानती है। पुनः वह कहती है "तुम मेरे ठाकुर मैं तेरी दासी" इससे ज्ञात होता है कि वह सेविका है। इस तरह मीरा के कथन से भक्ति की दोनों शर्ते पूरी होती हैं। अत: मीरा भक्त है। वह बार बार कृष्ण के प्रति प्रेम निवेदित करती है। कृष्ण और गिरिधर शब्दों से यह स्पष्ट है। मीरा कृष्ण को अपना प्रियतम या पति मानती है - "जा के सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।" अत: कृष्ण के प्रति मीरा का प्रेम दाम्पत्य भाव का प्रेम है। भक्तिशास्त्र के ग्रंथों में इसे सम्बन्ध रूपा भक्ति का 'कान्ता भक्ति' नामक भेद कहा गया है। मीरा की भक्ति भावना का दो पक्ष महत्त्वपूर्ण है। प्रथम यह कि वह पूर्ण समर्पिता प्रेमिका है। वह स्पष्ट कहती है कि वे जो पहनावेंगे, जो खिलावेंगे, जैसे रखेंगे वैसे ही रहूँगी। अपनी सारी इच्छाएँ उनके चरणों में समर्पित हैं। दूसरी बात यह कि मीरा अपने तथा कृष्ण में आधार-आधेय सम्बन्ध मानती है। अतः उसका दृढ़मत है कि कृष्ण के बिना मेरा कोई अस्तित्व नहीं है। इसलिए कृष्ण से कहती है कि कृष्ण भले ही मुझसे प्रेम तोड़ लें लेकिन मैं उनसे प्रेम नहीं तोडूंगी। जो तुम तोड़ो पिया मैं नहीं तोडूं। मीरा की भक्ति में कृष्ण के प्रति रूपासक्ति है। उनकी रूप माधुरी देखकर ही मीरा प्रेम दीवानी बनी और लोकलाज की परवाह किये बिना उनकी हो गयी। वह सतत् कृष्ण के साथ रहना चाहती है तथा उन्हें रिझाना चाहती है। अत: उसकी भक्ति में अनुराग, समर्पण और दिनरात उनकी सेवा में लगी रहने वाली तन्मयता है। मीरा की भक्ति में कृष्ण के प्रति रूपासक्ति है। उनकी रूप माधुरी देखकर ही मीरा प्रेम दीवानी बनी और लोकलाज की परवाह किये बिना उनकी हो गयी। वह सतत कृष्ण के साथ रहना चाहती है तथा उन्हें रिझाना चाहती है। अत: उसकी भक्ति में अनुराग, समर्पण और दिनरात उनकी सेवा में लगी रहनेवाली तन्मयता है।

प्रश्न-7. "गिरिधर म्हारो साँचो, प्रीतम' यहाँ साँचो विशेषण का प्रयोग मीरा ने क्यों किया है?

उत्तर-मीरा ने साँचा प्रीतम में साँचो विशेषण का प्रयोग समझबूझ कर किया है। मीरा भक्त है। भक्त लौकिक प्रेम को नश्वर तथा घटने बढ़नेवाला मानता है। हर आस्तिक व्यक्ति अपने जीवन का अंतिम लक्ष्य ईश्वर को पाना मानता है। भक्त भी भगवान के साथ तदाकार होना चाहता है। मीरा के जीवन का चरम लक्ष्य कृष्ण हैं। उनके चरणों में आश्रय को मीरा त्रिविध ज्वाला मानती है। इसी कारण कृष्ण मीरा के सच्चे प्रियतम हैं।

प्रश्न-8, मीरा की भक्ति लौकिक प्रेम का ही विकसित रूप प्रतीत होती है। कैसे? यह दोनों पदों के आधार पर स्पष्ट करें।

उत्तर-मीरा के भौतिक जीवन में प्रेम की वैसी कोई विशिष्ट कहानी नहीं है जैसी तुलसीदास, और उनकी पत्नी रत्ना के विषय में प्रसिद्ध है। उनके विषय में प्राप्त सामग्री के अनुसार बचपन में किसी कृष्ण भक्त, साधु के पास कृष्ण की मोहक मूर्ति देखकर वे उसे पाने के लिए मचल गयीं और साधु ने उन्हें वह मूर्ति दे दी। वे उस मूर्ति की पूजा करने लगी। इससे उनके मन का भक्ति-संस्कार प्रकट होता है। बाद में भोजराज से व्याह होने पर सात वर्षों तक दाम्पत्य जीवन रहा। संभव है, इसी दाम्पत्य का प्रभाव उनके भक्ति भाव पर पड़ा होगा और पति के मरने के बाद कृष्ण को अपने जीवन का आधार मान लिया होगा। वैधव्य का सहारा होने के कारण या कृष्ण की सुन्दरता पर रीझने के कारण उनकी भक्ति में दम्पत्ति भाव विकसित हुआ होगा। उनके वर्णन में कृष्ण को पति मानना, समर्पित पत्नी की भाँति सेवा करना, उनके अनुकूल आचरण करना, उनके साथ सेज पर सोना, उनके साथ क्रीड़ा करना, रूप माधुरी पर रीझना, पत्नी धर्म का  निर्वाह करना आदि ऐसी बातें हैं जो उनके प्रेम को लौकिक मोहकता प्रदान करती है। यद्यपि भौतिक प्रेम के आध्यात्मिक उन्नयन का कोई स्पष्ट प्रमाण उनके जीवन की घटना से नहीं मिलता है लेकिन अभिव्यक्ति में मांसलता के स्पर्श के आधार पर उनकी भक्ति को लौकिक प्रेम का उन्नयन माना जा सकता है।

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Bihar board class 11 Hindi book solution padyakhand chapter - 3  Hindi  Grammar  (भाषा की बात )


प्रश्न-1. मैं, म्हारो, उण आदि सर्वनाम हैं। दिए गए पदों से सर्वनामों को चुनकर लिखें।


1. दिये गये पदों में जो, तोसों, कौन, तुम, मैं, हम, म्हारो, वा के, ताही, सो सोई, मेरी, उण शब्द सर्वनाम हैं।

प्रश्न-2. प्रथम पद में मीरा ने कृष्ण और अपने लिए कुछ उपमान या अप्रस्तुत दिए हैं, उन्हें अलग-अलग लिखें।

उत्तर-उपमान के रूप में निम्न शब्द आए हैं – 

कृष्ण – मीरा 

तरुवर – पक्षी 

सरोवर–  मछली 

गिरिवर – चारा 

चंदा – चकोर

मोती – धागा

सोना – सोहागा 

ठाकुर – दासी


प्रश्न-3. मीरा के इन पदों में भक्ति रस है, भक्ति रस का स्थाई भाव ईश्वर विषयक रति है। अन्य रसों की सूची उनके स्थाई भावों के साथ बनाए।


रस – स्थायी भाव 

श्रृंगार –  रति या प्रेम

वीर –  उत्साह

रौद्र – क्रोध 

भयानक – भय 

वीभत्स – जुगुप्सा

हास्य – हास 

अद्भुत –  विस्मय आश्चर्य  

करुण – शोक 

वात्सल्य –  वत्सलता


प्रश्न-4. निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची लिखें – 


रात, दिन, प्रभु, तरू, तालाब, चन्द्रमा, सोना 

उत्तर – 

रात – निशा, रजनी – 

दिन - दिवस, दिवा प्र

भु - ईश्वर, स्वामी 

तरू – वृक्ष, पेड़

तालाब – तड़ाग, पोखर

सोना - हेम, कनक

चन्द्रमा –  शशि, मयंक 


प्रश्न-5. मीरा की भाषा ब्रज मिश्रित राजस्थानी है। ये दोनों हिंदी क्षेत्र की उपभाषाएँ हैं।  बिहार प्रदेश में कितनी उपभाषाएँ वाेली जाती है। उनकी सूची क्षेत्रवार बनाएँ


उत्तर- बिहार में उपभाषाएँ

1. वज्जिका – मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, पूर्वी चम्पारण, समस्तीपुर, वैशाली

2. भोजपुरी - छपरा, गोपालगंज, सीवान, भोजपुर, सासाराम 

3. मैथिली – दरभंगा, मधुबनी

4. अंगिका –  भागलपुर, पूर्णिया, मधेपुरा

 5. मगही – पटना, मोकामा, नालन्दा, गया 


 

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Bihar board class 11 Hindi book solution Padyakhand chapter - 3  Hindi  Grammar  (व्यख्या )



(i) जो तुम तोड़ो, पिया ..........................................कौन संग जोडूं ॥ 

व्याख्या के लिए दी गयी पंक्तियाँ राजस्थान कोकिला मीरा द्वारा रचित हैं। इन पंक्तियों में मीरा कहती हैं कि हे कृष्ण, तुम मेरे प्रियतम हो, मैं तुमसे प्रेम करती हूँ। तुम पर मेरा अधिकार नहीं है अतः तुम चाहो तो मुझसे अपनी प्रीति तोड़ ले सकते हो। लेकिन मैं तुमसे प्रीत नहीं तोडूंगी। अगर तुमसे प्रीत तोड़ लूँ तो जोदूंगी किससे ? अर्थात् तुम्हारे सिवा मेरा कोई नहीं है। अतः तुम करो या न करो मगर मैं तो तुमसे ही प्रीति करूँगी, क्योंकि तुम्हारे सिवा दूसरा कोई ऐसा नहीं है जिससे मैं प्रेम कर सकूँ। मीरा ने अलग भी कहा है – मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई। अत: ये पंक्तियाँ कृष्ण के प्रति मीरा के अनन्य प्रेम को व्यक्त करती हैं।

(ii) तुम भये तरुवर...................... हम भये सोहागा।

प्रस्तुत पंक्तियों में मीरा कृष्ण से अपनी अनन्य प्रीति का निवेदन करती कहती हैं कि कृष्ण तुम तरुवर हो और मैं उस पर आश्रय पाने वाली चिड़िया। तुम सरोवर हो तो मैं उसमें रहने वाली मछली जो तुमसे अलग होते ही तड़प-तड़प कर मर जायेगी। तुम पर्वत हो तो मैं उस पर उगने वाली घास। तुम चन्द्रमा हो तो मैं चकोर। तुम मोती तो मैं धागा। तुम सोना हो तो मैं सोहागा। अभिप्राय यह है कि उक्त अनेक उदाहरणों के सहारे मीरा ने कृष्ण के साथ अपनी उस भक्ति का परिचय दिया है जो निर्भरा भक्ति कहलाती है। इसमें भक्त भगवान को अपना आधार मानता है जिसके बिना उसका अस्तित्व ही नहीं होता।

(iii) मीरा कहे प्रभु........................तेरी दासी। 

इन पंक्तियों में मीरा कहती है कि हे व्रज में निवास करने वाले मेरे प्रभु ! तुम मेरे ठाकुर हो और मैं तुम्हारी दासी अर्थात् मुझमें तुममें स्वामी-सेविका वाला प्रेम है। इन पंक्तियों में मीरा का अभिप्राय सामान्य दासी कहने से नहीं है वह बताना चाहती है कि वह कृष्ण की ऐसी प्रिय पत्नी है जो दासी की तरह पूर्ण समर्पण भाव से अपने स्वामी की सेवा करती है और उसी में सुख मानती है।

(iv) मैं गिरिधर के घर जाउँ ............................ लुभाउँ । 

प्रस्तुत पक्तियाँ मीरा द्वारा रचित पद से ली गयी हैं। यहाँ मीरा द्वारा अपने प्रियतम कृष्ण के पास जाने का उल्लेख किया गया है। मीरा कहती है कि कृष्ण मेरे सच्चे प्रियतम हैं। वे अत्यन्त सुन्दर हैं। उनकी रूप माधुरी मोहक है। अत: मैं देखते ही उन पर लुब्ध हो जाती हूँ। जिस तरह भ्रमर फूल पर सतत मैंडराता रहता है उसी तरह मैं उनकी रूप माधुरी के सम्मोहन में सतत् उन्हीं के समीप रहना और उनकी रूप माधुरी निहारते रहना चाहती हूँ।

(v) रैण पड़े तब ही उठ जाऊँ........................... ताही रिझाऊँ।

मीरा द्वारा रचित "मैं गिरिधर के घर जाऊँ" पद से गृहीत इन पंक्तियों में प्रस्तुत ने यह बताने ने की चेष्टा की गई है कि वह कृष्ण के सौन्दर्य और प्रेम की दीवानी है। अत: एक पल भी अलग रहना उसे स्वीकार नहीं। यही कारण है कि जैसे ही रात होती है उनकी सेवा में चली जाती और भोर होने पर ही उनसे अलग होती है। दिन में भी उनके साथ खेलती रहती हूँ। इस तरह चाहे दिन हो या रात मैं आठो पहर उन्हीं के साथ खेलती या सेवा में रहती हूँ। वे जैसे रीझते हैं उसी तरह उन्हें रिझाती हूँ। उन्हें जो पसन्द है वही आचरण करती हूँ और इस तरह एक आज्ञाकारिणी प्रेमिका या पत्नी के रूप में मैं सेविका धर्म का तन्मयता से पालन करते हुए उनकी प्रसन्नता पाने के लिए प्रयत्न करती रहती हूँ।

(vi) जो पहिरावै सोई पहिलं पल न रहाऊँ।

मीरा ने अपने पद की प्रस्तुत पंक्तियों में अपने पूर्ण समर्पण भाव को व्यक्त किया है। वह पूरी तरह अनुगता और सेवापरायण दासी है। वह पति रूप श्री कृष्ण से कोई अपेक्षा नहीं करती। उसमें पाने की नहीं देने की लालसा है। अत: आदर्श सेविका की तरह वह कहती है कि वे जो पहनाते हैं वही पहनती हूँ जो देते हैं वही खाती हूँ। मेरी उनसे प्रीत पुरानी है। मैं उनसे अलग एक पल भी नहीं रह सकती हूँ। मीरा के इस कथन से यह बात स्पष्ट है कि मीरा ने भक्त होने के बाद अपने समस्त राजकीय संस्कारों का त्याग कर दिया था। खाने-पहनने की रुचि, भूल कर जो मिलता था वही प्रभु प्रसाद समझकर खा लेती थी और जो भी वस्त्र मिल जाता था उससे तन हुँक लेती थी।

(vii) जहाँ बैठावें तितही बैलूं बार बार बलि जाऊँ। .

अपने पद की प्रस्तुत पंक्तियों में मीरा ने कृष्ण के प्रति अपना समर्पण भाव व्यक्त किया है। वह कृष्ण के प्रेम में दीवानी है। अत: जीवन के सारे क्रियाकलाप, सुख-दुःख को कृष्ण की इच्छा का प्रसाद मानकर सादर स्वीकार करती है। वह कृष्ण को अपना नियामक और प्रेरक मानती है और कहती है कि वे जहाँ बैठाते हैं वहीं बैठी रहती हूँ। यदि वे मुझे बेच दें तो उनकी खुशी के लिए मैं सहर्ष बिक जाऊँगी। मेरे प्रभु गिरिधर हैं अर्थात् पर्वत भी उठाकर संकट से रक्षा करने में समर्थ हैं। वे नागर हैं अर्थात् शिष्ट, सभ्य, संस्कारवान और चतुर  हैं। अतः मैं बार-बार उन पर अपने को न्योछावर करती हूँ।

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