Bihar board class 11th Hindi Solution पद्खंड chapter - 5 भारत – दुर्दशा

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Bihar board class 11 Hindi book solution  padyakhand chapter - 5 Saransh , (सरांश  )

कक्षा - 11वी  पद्खंड अध्याय - 5 

                 भारत – दुर्दशा                 

लेखक : भरतेन्दु हरिश्चन्द्र


भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की युग चेतना भारत-दुर्दशा कविता में स्पष्टतः व्यक्त हुई है। देश की गुलामी उन्हें बहुत खटकती थी। वे देश की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक दुर्दशा का कारण गुलामी को मानते थे। देश की दुर्दशा का विस्तृत चित्रण करने के लिए उन्होंने 'भारत-दुर्दशा' नाटक की रचना की। उसी नाटक से यह गीत लिया गया है। भारतेन्दु अपने देश के तमाम लोगों को देश की दुर्दशा पर रोने के लिए आमंत्रित करते हैं। उनसे देश की दुर्दशा नहीं देखी जाती है, दुर्दशा से उत्पन्न पीड़ा को झेल नहीं पाते हैं। अतः वे लोगों को आमंत्रण देते हैं :

"रोवहु सब मिलिकै आवहु भारत भाई। हा हा । 
 भारत दुर्दशा न देखी जाई।"

इसके पश्चात् वे देश के अतीतकालीन गौरव और वर्त्तमान दुर्दशा की तुलना करते हुए दुर्दशा के के प्रति लोगों के मन में करुणा उत्पन्न करने की चेष्टा करते हैं। उनके अनुसार ईश्वर ने जिसे सबसे पहले सभ्य बनाया, सबसे पहले धन और बल दिया, सबसे पहले विद्या देकर विद्वान बनाया वही भारत आज सबसे पीछे चला गया है। जो अग्रणी था वह पिछलग्गू बन गया है। भारतेन्दु देखते हैं कि जिस देश में राम, कृष्ण तथा युधिष्ठिर जैसे नीतिज्ञ और त्यागी महात्मा पैदा हुए, हरिश्चन्द्र जैसे दानी तथा बुद्ध जैसे महान पुरुष पैदा हुए, भीम तथा अर्जुन जैसे वीर पैदा हुए वहाँ आज मूढ़ता, अविद्या और कलह का साम्राज्य है। जहाँ देखो वहाँ दुःख ही दुःख फैला हुआ है।

भारतेन्दु की दृष्टि में दुर्दशा और पतन का एक कारण आपसी लड़ाई है। यह लड़ाई कई तरह की है। सबसे बड़ी लड़ाई धार्मिक है। वैदिक धर्म माननेवालों की जैनों-बौद्धों से लड़ाई थी। इस आपसी कलह के कारण लोगों ने विदेशी आक्रमणकारी यवनों को न्योता देकर बुलाया। उन लोगों ने विद्या, धन आदि समस्त भौतिक वस्तुओं तथा पुस्तेक आदि बौद्धिक ज्ञान-सम्पदा का नाश कर दिया। अब चारों तरफ आलस्य, कुमति और कलह का अँधेरा छाया है। सब लोग अंधे-लंगड़े तथा दीन-हीन बने विलख रहे हैं। जो लोग रेल, तार, डाक आदि की सुविधाओं को देखकर अंग्रेजों के प्रशंसक थे उन लोगों को भारतेन्दु बताना चाहते हैं कि सुविधा और लाभ के आधार पर गुलामी को श्रेष्ठ बताना मूर्खता है। उनकी दृष्टि में अंग्रेज सुख-सामान की बड़ी कीमत हमसे वसूल रहे हैं। हमारे देश का सारा धन विदेश जा रहा है। ऊपर से महँगाई, रोग आदि का विस्तार हो रहा है। रोज नये-नये टैक्स लगाकर विपत्ति बढ़ाई जा रही है। इन सबके कारण लोग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। इस तरह इस कविता में भारतेन्दु ने अतीत के गौरव की पृष्ठभूमि पर वर्त्तमान की दुर्दशा का चित्र प्रस्तुत कर देशवासियों को इस दुख की हार्दिक अनुभूति करने हेतु आमंत्रित किया है।

'भारत दुर्दशा' कविता का कथ्य या प्रतिपाद्य

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है यह कविता भारत की दुर्दशा का वर्णन करती है। जिस समय यह कविता लिखी गयी देश को अंग्रेजों ने गुलान बना रखा था। गुलामी के कारण देश का आर्थिक शोषण हो रहा था और चारों तरफ अशिक्षा, कुरीति, अंधविश्वास और मूढ़ता का अन्धकार फैला था। जो लोग इस दशा से क्षुब्ध थे वे सबकी जड़ में गुलामी को मानते थे। अतः गुलामी के विरुद्ध स्वर उठाने के साथ-साथ अशिक्षा और कुसंस्कार से लड़ने के लिए समाज-सुधार आवश्यक मानते थे। समाज को विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व देनेवालों की यह चेतना साहित्य के माध्यम से भी दीप-स्तंभ की तरह मार्गदर्शन कर रही थी। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र समाज को पथ दिखाने वाले साहित्यकार थे। उन्होंने भारत-दुर्दशा, नील देवी आदि अनेक नाट्य रचनाओं के माध्यम से समाज-सुधार तथा राष्ट्रीयता की चेतना जाग्रत करने का प्रयास किया है। यह गीत भारत-दुर्दशा नाटक से लिया गया है। इसमें अतीत की गौरवशाली पृष्ठभूमि पर तत्कालीन गुलाम भारत की दुर्दशा का मार्मिक वर्णन किया गया है।

इस कविता के तीन बिन्दु हैं। – प्रथम है भारत के अतीत की सूचना, दूसराहै  – वर्त्तमान भारत की दुर्दशा और तीसरा है - इस दुर्दशा पर भारतवासियों को रोने के लिए आमंत्रण। अतीत काल के प्रसंग में भारतेन्दु जी ने इस कविता में राम, युधिष्ठिर, वासुदेव, सर्याति, शाक्य, हरिश्चन्द्र, भीम तथा अर्जुन का नाम लिया है। राम के माध्यम से कवि रामराज्य के सुशासन की याद दिलाना चाहता है। वासुदेव अर्थात् कृष्ण के माध्यम से दुष्टों के विनाश हेतु महाभारत रचाने की क्षमता बतलाकर अंग्रेजों को भगाने हेतु जगाना चाहता है। युधिष्ठिर के माध्यम से सत्य और धर्म की महिमा बताना चाहता है। भीम और अर्जुन देश की वीरता के प्रतीक हैं। उनकी याद दिलाकर कवि देश के सोये अथवा मुर्दा हो गये पौरुष को जगाना चाहता है। हरिश्चन्द्र की याद दानशीलता के प्रसंग में आयी है तो शाक्य अर्थात् बुद्ध अपनी करुणा और अहिंसा के लिए याद किये गये हैं। इन सब महापुरुषों के माध्यम से कवि बताना चाहता है कि हम सर्वगुणसम्पन्न थे और इसीलिए जगद्गुरु कहे जाते थे, सबसे श्रेष्ठ थे, सबमें अग्रणी थे। वर्त्तमान के प्रसंग में कवि यह दिखाना चाहता है कि हम अशिक्षित हैं, गरीब हैं तथा अंग्रेजों की दृष्टि में असभ्य और गँवार हैं। हम आलस्य, कलह, कुमति और अन्धविश्वासों से भरे हैं, हम लगातार अवनति की ओर बढ़ रहे हैं। हमारा निरन्तर पतन हो रहा है। कवि 'अब सबके पीछे सोई परत लखाई' कहकर देश के पिछड़ेपन का एहसास कराता है। अर्थात् अतीत में हम अग्रणी थे आज अपनी मूर्खता और आलस्यवृत्ति के कारण निस्तेज होकर पिछलग्गू ही नहीं गुलाम हो गये हैं। अपने ही घर में एक विदेशी के नौकर हैं।

तीसरा बिन्दु है इस दुर्दशा की प्रतिक्रिया से उत्पन्न पोड़ा। इस पीड़ा को राष्ट्रस्तरीय विस्तार देते हुए कवि समस्त भारतवासियों को रोने के लिए आमंत्रण देता है। रुदन का लाक्षणिक अर्थ में प्रयोग है। रोना का अर्थ है सोचना, विचारना, दुखी होना और इसके प्रतिकार का उपाय सोचना। दूसरे शब्दों में, यह देश की गुलामी पर सोचने और गुलामी दूर करने के उपाय सोचने का निमंत्रण है। चूँकि देश गुलाम था और देश-प्रेम को देश द्रोह माना जाता था इसलिए उस जमाने के सभी कवियों ने सीधे अपनी बातें प्रत्यक्षतः न कहकर प्रकारान्तर से कहने का प्रयास किया है। उनका लक्ष्य है अंग्रेजों के शासनिक कोप से बचते हुए जनता को प्रबुद्ध और जाग्रत करना ताकि देश की आजादी के लिए संघर्ष किया जा सके।

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Bihar board class 11 Hindi book solution padyakhand  chapter - 5 Objective (स्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर )


 (1) 'भारत दुर्दशा' कविता में वासुदेव किसे कहा गया है ? 

(क) कृष्ण 

(ग) धरती के देवता 

(ख) कृष्ण के पिता 

(घ) कंस के बहनोई 

उत्तर – क

(ii) 'भारत दुर्दशा' कविता में शाक्य शब्द किसका सूचक है ? 

(क) शकों को 

(ख) समर्थ का 

(ग) गौतम बुद्ध 

(घ) किसी का नहीं। 

उत्तर – ग

(iii) भारतेन्दु के अनुसार देश का धन विदेश कौन ले जा रहे ? 

(क) राजा महाराजा 

(ख) अंग्रेजों 

(ग) विदेश जाने वाले 

(घ) व्यापारी 

उत्तर – ग

(iv) भारत की दुर्दशा किसको नहीं देखी जाती है ? 

(क) भारतेन्दु को 

(ख) अंग्रेजों को 

(ग) भारत भाई को 

(घ) भारत के लोगों को 

उत्तर – क

(v) भारतेन्दु के अनुसार अंघ-पंगु  और दीन हीन होकर कौन विलख रहे हैं ?

(क) भारतेन्दु स्वयं 

(ख) भारत के लोग

(ग) अंधे लंगड़े  

(घ) अंग्रेज

उत्तर – ख्

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Bihar board class 11 Hindi book solution padyakhand chapter - 5 Very Short Quetion (अतिलघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर )


(1) भारतेन्दु किस कोटि के कवि हैं ? 

उत्तर-भारतेन्दु प्राचीन और नवीन की संधि-भूमि पर स्थित देशभक्त कवि हैं। 

(2) अंग्रेज राज सुख साज सजे सब भारी का क्या अर्थ है ? 

उत्तर-अंग्रेजों के शासन-काल में भारत विज्ञान से प्राप्त सुविधाओं का वचिंत हुआ।

 
(3) विश्व में सबसे पहले सभ्यता का विकास कहाँ हुआ ? 

उत्तर-भारतेन्दु के अनुसार विश्व में सबसे पहले सभ्यता का विकास भारत में हुआ। 

(iv) भारत के समय भारत में किन चीजों के कारण अंधेरा छाया था ?

उत्तर-भारतेन्दु के समय आलस्य, कुमति और कलह का अंधेरा छाया था। 

(v) भारत भाई से भारतेन्दु का तात्पर्य क्या है ? 

उत्तर-भारत भाई से तात्पर्य भारत के लोगों से है। भारतेन्दु ने उन्हें भाई कहकर संबोधित किया है।

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Bihar board class 11 Hindi book solution Padyakhand chapter - 5  Short Quetion (लघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर )


प्रश्न - 1. कवि सभी भारतीयों को किसलिए आमंत्रित करता है और क्यों ? 

उत्तर- कवि सभी भारतीयों को रोने के लिए आमंत्रित करता है। क्योंकि उसे भारत की दुर्दशा नहीं देखी जा रही है। -

प्रश्न-2. कवि के अनुसार भारत कई क्षेत्रों में आगे था, पर आज पिछड़ चुका है। पिछड़ने के किन कारणों का कविता में संकेत किया गया है ?

 उत्तर- भारत के पिछड़ने के निम्नलिखित कारणों का भारतेन्दु जी ने उल्लेख किया है– 

(i) वैदिकों, बौद्धों और जैनों ने धार्मिक मतान्तर के कारण आपस में लड़ने के क्रम में प्रतिशोधवश एक दूसरे के ज्ञान ग्रंथों को नष्ट कर दिया।

(ii) राजाओं ने आपसी कलह के कारण एक दूसरे को समाप्त करने हेतु यवनों यानी मुसलमानों को आमंत्रित किया, अवसर दिया और अन्ततः स्वयं भी नष्ट हो गये। 

(iii) इसके कारण आलस्य, कुमति, कलह और अविद्या का अन्धकार फैला और सब अंधे या पंगु हो गये। इस तरह फूट और वैर विरोध से उत्पन्न मूढ़ता ने भारत को पछाड़ दिया। 

प्रश्न-3. अब जहँ देखहु तहँ दुःखहि दुःख दिखाई। - हा हा ! भारत दुर्दशा न देखि जाई। इन पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए।

उत्तर-ये पंक्तियाँ भारत दुर्दशा नामक भारतेन्दु रचित नाटक से गृहीत हैं। इन पंक्तियों में भारतेन्दु यह बताना चाहते हैं कि कलह, वैर विरोध और मूर्खता के कारण हम पराधीन हो गये। पराधीनता के कारण एक तो हमारी उन्नति बन्द हो गयी, दूसरे विदेशी शासक हमारा आर्थिक, नैतिक भौतिक सब तरह से शोषण करने लगे। अपने वर्त्तमान समय में भारतेन्दु जब चारों तरफ दृष्टि दौड़ाते हैं तो उन्हें हर दृष्टि से दुःख और उत्पीड़न ही दिखाई पड़ता है। सामाजिक बिखराव आर्थिक दुर्गति, रोजगार की शून्यता तथा टैक्स देने, मार खाने, अपमानित होने का ही सर्वत्र माहौल है। अंग्रेज भारतीयों को पशु समझ कर व्यवहार कर रहे थे। इसलिए वे कहते हैं कि सर्वत्र दुःख ही दुःख नजर आता है। अत: हे भारत के प्रबुद्ध, समझदार राष्ट्रचेता हम सब अपने देश की दुर्दशा पर रोयें। क्योंकि अब यह दुर्दशा देखी नहीं जाती है। यहाँ केवल रोने की बात नहीं है, प्रकारान्तर से दुख से मुक्ति का उपाय सोचने के लिए प्रयत्न की बात भी छिपी है। -

प्रश्न 4. भारतीय स्वयं अपनी इस दुर्दशा के कारण हैं। कविता के आधार पर उत्तर दीजिए।

उत्तर-भारतीय स्वयं अपनी दुर्दशा के लिए उत्तरदायी हैं। वे अपनी ही करनी का फल भोग रहे हैं। यह मन्तव्य सही है। कारण यह है कि भारत एक सभ्य, ज्ञान सम्पन्न और अनेक गुणों से मंडित देश था। यह पशु मानवीं का देश नहीं राम, कृष्ण, बुद्ध महावीर और भीम, अर्जुन, भीष्म शिवि, दधीचि जैसे वीरों, ज्ञानियों, ऋषियों तथा त्यागियों का देश था। इसे विकास नहीं करना था, केवल अपनी विरासत की रक्षा करने हुए सबल बने रहना था। लेकिन आपसी फूट, कलह और अहंकार के कारण आपस में लड़कर शक्ति का नाश किया। विदेशियों को बुलाकर अदूरदर्शिता का परिचय दिया और इन कारणों से स्वाधीनता से हाथ धोना पड़ा। परतंत्रता चाहे मुसलमानी शासन के रूप में आयी चाहे अंग्रेजी शासन के रूप में, उसी ने सब छीन लिया। अतः अपने पतन के लिए ये स्वयं जिम्मेदार रहे।

प्रश्न-5. लरि बैदिक जैन डुबाई पुस्तक सारी, करि कलह बुलाई जवनसैन पुनि भारी॥-इन पंक्तियों का क्या आशय है ?

उत्तर-इन पंक्तियों में प्रथम का आशय यह है कि धार्मिक मोर्चे पर वैदिकों-जैनों ने आपस में लड़कर एक दूसरे के ग्रंथों को या तो नष्ट किया या विकृत किया जिससे ज्ञान की गंगा सूखती दूसरे का आशय है कि आम्भीक जैसे गांधार नरेश यवनों के हाथों बिक गये तो जयचन्द ने पृथ्वीराज को परास्त करने के लिए मुहम्मद गोरी को बुलाया और उसने बारी-बारी से दोनों को समाप्त कर भारत का शासन हथिया लिया। इस तरह यवनों की सेना को न्योता देकर बुलाने के कारण सत्ता और स्वाधीनता दोनों से हाथ धोना पड़ा।

प्रश्न-6. 'सबके ऊपर टिक्कस की आफत' से कवि ने क्या कहना चाहा है ? 

उत्तर-पराधीनता के कारण भारतीयों का आर्थिक शोषण सर्वाधिक हुआ। मुगलकाल में औरंगजेब जैसे कट्टर मुसलमानों ने हिन्दुओं पर धार्मिक कर जजिआ टैक्स लगाया। जिसे न देने पर तरह-तरह के अत्याचारों से पीड़ित किया। इसी तरह अंग्रेजों ने तरह-तरह के टैक्स लगाकर आर्थिक दोहन किया। यहाँ टिक्कस से तात्पर्य टैक्स से है।

प्रश्न- 7. अंग्रेजी शासन सारी सुविधाओं से युक्त है, फिर भी यह कष्टकर है, क्यों ?

उत्तर-अंग्रेजों ने यद्यपि आवागमन की सुविधा के लिए रेल, तार, डाक आदि की व्यवस्था की। शिक्षा के प्रसार हेतु स्कूल खोले। इनसे भारतीयों को भी लाभ मिला। लेकिन ये सुविधाएँ शासन को और मजबूत करती गयीं। भारतेन्दु सुविधा से ज्यादा स्वाधीनता के समर्थक थे। वे देख रहे थे कि देश का सारा धन विदेश जा रहा है। हम कमाते हैं और अंग्रेज हमारे धन पर मौज मनाते हैं। इसलिए वे अंग्रेजों द्वारा सज्जित सुविधाओं से न प्रसन्न थे और न गुमराह| प्रश्न-8. कविता का सरलार्थ अपने शब्दों में लिखें। उत्तर-देखें कविता का सारांश।

प्रश्न-9. निम्नलिखित उद्धरणों की सप्रसंग व्याख्या करें– 

(क) रोबह सन मिलि कै आवहु भारत भाई।
       हा हा । भारत-दुर्दशा न देखि जाई। 

(ख) अंगरेज राज सुख साज सजे सब भारी।
पै धन विदेश चलि जात इहै अति ख्वारी।।

उत्तर-  निचे दिए गऐं व्याख्या अंश को देखें 

प्रश्न-10. स्वाधीनता आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में इस कविता की सार्थकता पर विचार कीजिए।

उत्तर - स्वाधीनता आन्दोलन के परिप्रेक्ष्य में यह कविता जागरण गान का महत्त्व रखती है। भारतेन्दु के जमाने में स्वाधीनता आन्दोलन प्रारंभ हुआ था। समस्या देश को जगाने की थी लेकिन अंग्रेजी दमन चक्र का पूरा भय था। अतः शब्दों की लपेट द्वारा व्यंजना के सहारे संदेश पहुँचाना उचित मार्ग था। इसमें रोने के लिए बुलाया गया है। लेकिन अर्थ मात्र रोने तक नहीं विचारने और करने तक प्रसरित है। तभी तो इस कविता की अगली कड़ी के रूप में मैथिली शरण गुप्त ने

लिखा – 

हम कौन थे, क्या हो गये, और क्या होंगे अभी 
आओ विचारें आज मिलकर ये समस्याएँ सभी। 
तथा प्रसाद जी ने सीधे न्योता दिया – 

हिमाद्रि तुंग शृंग से 
प्रबुद्ध शुद्ध भारती 
स्वयं प्रभा समुज्ज्वला 
स्वतंत्रता पुकारती। : 

निष्कर्षतः हम कहना चाहते हैं कि राष्ट्रचेता की उद्घोषणा करने वाली यह भारतेन्दु की कविता है।

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Bihar board class 11 Hindi book solution padyakhand chapter - 5  Hindi  Grammar  (भाषा की बात )


प्रश्न- 1. निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखें -

ईश्वर – ईश, परमात्मा, ब्रह्म, भगवान
रोग –  बीमारी, अस्वस्थता, गद दृश्य, छवि छटा -
दिन - दिवा, दिवस
दीन - गरीब, निर्धन, विपन्न
राज – राज्य शासन
कलह – विवाद, झगड़ा
अविद्या –  अज्ञता, मूढ़ता
कुमति - कुबुद्धि, दुर्मति

प्रश्न-2. निम्नलिखित शब्दों का वाक्य प्रयोग द्वारा लिंग-निर्णय करें -

दुर्दशा (स्त्री०) - मुझसे देश की दुर्दशा देखी नहीं जाती। -

विद्या (स्त्री०) – मेरी विद्या सफल हुई।

दुःख (पु.) –  मेरा दुःख वर्णनातीत है।

पुस्तक (स्त्री०) –  मोहन की पुस्तक चोरी हो गयी।

धन (पु०) –  हरि का सारा धन चोर ले गया। 

सुख (पु.) –  मुझे जीवन में अपार सुख मिला है। ह

बल (पु.) –  नुमान जी का बल अथाह था। 

मूढ़ता (स्त्री०) –   अपने पुत्र की मूढ़ता से परेशान हूँ।

विद्याफल (पु.) – मैं उसे जीवन में विद्याफल प्राप्त हुआ है।

आफत (स्त्री०) –  सब पर आफत आयी हुई है।

महंगी (स्त्री०) - ऐसी महंगी कभी नहीं देखी। 

आलस (पु०) - तुम्हारा आलस करना ठीक नहीं। 

प्रश्न-3. निम्नलिखित शब्दों के विपरीतार्थक शब्द लिखें : 


दुर्दशा = सुदशा

रूप = कुरूप 

विद्या = अविद्या

कलह = मेल

कुमति = सुमति

विदेश = स्वदेश


प्रश्न-4. संज्ञा के विविध भेदों के उदाहरण कविता से चुनें। 

व्यक्तिवाचक जातिवाचक भाववाचक समूहवाचक द्रव्यवाचक





प्रश्न-5. इन शब्दों का संधि विच्छेद करें

युधिष्ठिर = युधि + स्थिर

हरिचंदरू = हरिचंद + अरू 

यद्यपि = यदि + अपि 

युगोद्देश्य = युग + उद्देश्य 

प्रोत्साहन = प्र + उत्साहन

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Bihar board class 11 Hindi book solution Padyakhand chapter - 5  Hindi  Grammar  (व्यख्या )



(i) रोवहु सब ......... भारत दुर्दशा न देखी जाई।

प्रस्तुत पंक्तियाँ भारतेन्दु रचित 'भारत-दुर्दशा' कविता से ली गयी हैं। यहाँ भारतेन्दु ने देश की दुर्दशा का कारुणिक चित्रण करते हुए लोगों के मन में सुप्त देश-प्रेम को जगाने का प्रयास किया है। कवि कहता है कि हे भारत के भाइयो ! आओ, सब मिलकर रोओ ! अब अपने प्यारे देश की दुर्दशा नहीं देखी जाती। इस देश को ईश्वर ने दुनिया के सभी देशों से पहले बलवान-धनवान बनाया और सबसे पहले सभ्यता का वरदान दिया। यही देश सबसे पहले रूप-रस-रंग में भींगा अर्थात् कला-चेतना से सम्पन्न हुआ। इसको सौन्दर्य-बोध तथा रस-बोध प्राप्त हुआ। इसने सबसे पहले विभिन्न विधाओं को प्राप्त कर अपने को ज्ञान-सम्पन्न बनाया लेकिन दुख है कि वही देश आज इतना पिछड़ गया है कि पिछलग्गू बनकर भी चलने लायक नहीं है। सब मिलाकर भारतेन्दु प्रस्तुत पंक्तियों में कहना चाहते हैं कि जो देश सभ्यता, कला-कौशल तथा वैभव में अग्रणी और सम्पन्न रहा वही आज गुलामी के कारण पिछड़कर दीन-हीन बन गया है। आज इसकी दुर्दशा नहीं देखी जाती। देखते ही मन पीड़ा और ग्लानि से भर जाता है। 

(ii) जहँ राम युधिष्ठिर............... भारत-दुर्दशा न देखी जाई।

'भारत दुर्दशा' कविता से ली गयी प्रस्तुत पंक्तियों में भारतेन्दु देश के लोगों को गौरवशाली अतीत की याद दिलाकर प्रेरणा भरना चाहते हैं। वे कहते हैं कि इस देश में राम, युधिष्ठिर, वासुदेव कृष्ण, सर्याति, शाक्य, बुद्ध, दानी हरिश्चन्द्र, नहुष तथा ययाति जैसे प्रसिद्ध सम्राट हुए। यहाँ भीम, कर्ण, अर्जुन जैसे पराक्रमी योद्धा हुए। इन लोगों के कारण देश में सुशासन, सुख और वैभव का प्रकाश फैला रहा। उसी देश में (पराधीनता के कारण) आज सर्वत्र दुःख ही दुख छाया है। उपर्युक्त पंक्तियों के माध्यम से भारतेन्दु यह बताना चाहते हैं कि अतीत में हम सुख और समृद्धि के शिखर पर विराजमान थे, जबकि आज हम दुःख और पतन के गर्त में गिरकर निस्तेज हो गये हैं। इस पतन का कारण गुलामी ही समझना चाहिए।

(iii) लरि बैदिक जैन डुबाई भारत दुर्दशा न देखी जाई।

भारत दुर्दशा की इन पंक्तियों में भारतेन्दु जी ने यह बताना चाहा है कि प्राचीन काल में भारत के लोगों ने धर्म के नाम पर लड़ाई की और द्वेषवश विदेशियों को आमंत्रण देकर बुलाया उसी के परिणामस्वरूप हम अन्ततः गुलाम हो गये।कवि का मत है कि वैदिक मत को माननेवालों और जैन मत को मानने वालों ने आपस में लड़कर सारे ग्रंथों को नष्ट किया। फिर आपसी कलह के कारण यवनों की सेना को बुला लिया। उन यवनों ने इस देश को सब तरह से तहस नहस कर दिया। मारकाट और ग्रंथों को जलाने के कारण सारी विद्या नष्ट हो गयी तथा धन लूट लिया। इस तरह आपसी कलह के कारण यवनों द्वारा पादाक्रान्त होने से बुद्धि, विद्या, धन, बल आदि सब नष्ट हो गये। आज उसी का कुपरिणाम हम आलस्य, कुमति और कलह के अंधेरे के रूप में पा रहे हैं। कवि इस दशा से विचलित होकर कहता है हा ! हा ! भारत दुर्दशा, न देखी जाई।"

(iv) अंगरेजराज सुख साज दुर्दशा न देखी जाई।

भारत दुर्दशा की प्रस्तुत पंक्तियों में भारतेन्दु जी ने अंग्रेजी राज की प्रशंसा करने वालों को मुँहतोड़ उत्तर दिया है। उनके समय में देश गुलाम था और अनेक लोग अंग्रेजी पढ़-लिखकर तथा अंग्रेजियत को अपनाकर अपने देश को हेय दृष्टि से देख रहे थे। भय अथवा गुलाम स्वभाव अथवा 'निज से द्रोह अपर से नाता" की मनोवृत्ति के कारण लोग अंग्रेजों के खुशामदी हो गये थे। अंग्रेजों ने देश पर शासन की पकड़ मजबूत रखने और अपने तथा शासन-व्यापार की सुविधा के लिए रेल, डाक, आदि की व्यवस्था की। दोयम दरजे के नागरिक के रूप में इन सुविधाओं का लाभ भारतीयों को भी मिल रहा था। अतः वे अंग्रेजी राज के प्रशंसक थे। भारतेन्दु सच्चाई उजागर करते हुए कहते हैं कि यह सच है कि अंग्रेजी राज में सुख-सामानों में भारी वृद्धि हुई है। लेकिन इससे क्या, अंग्रेज हमारा शोषण कर धन एकत्र करते हैं और अपने घर इंगलैंड भेज देते हैं। इस तरह वे मुनाफा से अपना घर भर रहे हैं और हम शोषित हैं। ऊपर से महँगाई रोज बढ़ रही है। नित नये टैक्स लगाये जा रहे हैं जिसके फलस्वरूप हमारा दुख दिन-प्रतिदिन दूना होता जा रहा है। अतः यह शासन सुविधा के नाम पर हमारा शोषण कर रहा है और हम दुर्दशाग्रस्त हो रहे हैं।


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