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Class 11 Hindi Book Solution
Bihar board class 11 Hindi book solution chapter - 11 Saransh , (सरांश )
कक्षा - 11वी गद्यखंड अध्याय - 11
भोगे हुए दिन
लेखक : मेहरुनिसा परवेज
भोगे हुए दिन कहानी का अध्ययन करते हुए अनायास मुझे शिवपूजन सहाय रचित 'कहानी का प्लाट' शीर्षक कहानी की ये पंक्तियाँ स्मरण हो आती है।" अमीरी की कब्र पर पनपी हुई गरीबी की घास बड़ी जहरीली होती है।'' इस कहानी के नायक शांदा साहब अमीर भले ही न हों लेकिन उनके पास एक लम्बा चौड़ा घर है, शायर के रूप में राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठा है, इकबाल जैसे शायर की दोस्ती है और शायरी का वह सम्मोहन है कि उनके नाम से ही मुशायरों में भीड़ जुट जाती थी। यह ख्याति और प्रतिष्ठा भी एक प्रकार की अमीरी ही है, कम से कम इतना स्पष्ट है कि वे गरीब न थे। ऐसे शायर शांदा साहब आज मात्र आर्थिक गरीबी की ही मार नहीं झेल रहे हैं, अप्रतिष्ठा, उपेक्षा और अभाव तीनों की मार झेल रहे हैं। शमीम संभवतः एक युवा शायर है जिसने जगदलपुर में आयोजित एक मुशायरे में उनको बुलाया था और बुजुर्ग होने के नाते उनकी सुख-सुविधा का ध्यान रखकर अपने घर टिका लिया था। यही औपचारिक सम्बन्ध घनिष्ठता का कारण बना और आज वह अपने किसी उद्देश्य से, जो स्पष्ट नहीं है, उनसे मिलने आया है। यही शमीम के आगमन के साथ कहानी प्रारंभ होती है। शादा साहब उससे तपाक से मिलते हैं। वे अपनी बेगम से "अपना जगदलपुर वाला शमीम" कहकर परिचय देते हैं जो सूचित करता है कि उससे स्नेह करते हैं। शमीम उनके साथ भीतर जाने तथा वहाँ ठहरने के दौरान शांदा साहब के परिवेश और जीवन का बारीकी से अवलोकन करता है। दरवाजे के आगे लकड़ियों का ढेर और तराजू टंगा है। शांदा साहब की बातों से ज्ञात होता है कि यह लकड़ियों का टाल उन्हीं का है। यानी भारत का एक अतिप्रसिद्ध शायर बुढ़ापे में लकड़ियाँ बेच कर अपना पेट पालता है। लकड़ी बेचने का काम कभी स्वयं शांदा साहब कभी उनकी आठ साल की नतिनी और कभी दस साल का नाती करते हैं। नाती और नतिनी उनकी इकलौती विधवा पुत्री फातमा की संतानें हैं जो पति की मृत्यु के बाद बच्चों के साथ नैहर में रहती है। वह एक उर्दू प्रायमरी स्कूल में शिक्षिका है और स्कूल से छूटने पर घर आती है तथा पर्स और छाता थमा कर उल्टे पाँव लौटकर ट्यूशन पढ़ाने जाती है तो नौ बजे रात में लौटती है शादा साहब का घर पुराना है। वह मरम्मत और पोचारा से वंचित है। एक विपन्नता भरी उदासी उसे घेरे हुए है। वह घर कहीं से भी हँसता हुआ प्रतीत नहीं होता। शांदा साहब को स्वयं पानी भरना पड़ता है। उनकी भारी-भरकम देह काम नहीं करती। वे छड़ी के सहारे किसी तरह चलते हैं। फिर भी उन्हें सब कुछ करना पड़ता है। अभिप्राय यह कि उनके पास बुढ़ापे का सहारा कोई मर्द नहीं है। एक विधवा बेटी और दो नाती-नतिनी के दुर्बल सहारे पर गाड़ी घिसट रही है। गिनती के लिए उनके पास आय के तीन साधन हैं – बेटी का वेतन, टाल की आय तथा सौ रुपया सरकारी वजीफा या वृत्ति। लेकिन ताब छाप चाय की पुड़िया तरकारी के लिए मात्र दो अंडे, आदि के उल्लेख से स्पष्ट है कि यह आय अपर्याप्त है। शांदा साहब अगर साधारण आदमी होते या किसी गहरे आघात से गरीब बने होते तो हम शायद उतनी कारूणिक स्थिति अनुभव नहीं करते। लेकिन एक शायर का लकड़ी बेचना पड़े फारसी बेचे तेल' से भी ज्यादा मार्मिक व्यंग्य है। मगर शांदा साहब इनसे जितने दुखी नहीं हैं उससे ज्यादा दु:खी अपनी पूछ न होने से है। एक समय था जब उर्दू शायरी में उनका जलवा था। दिल्ली-बम्बई तक पूछ थी, रेडियो वाले दौड़ते रहते थे और लोग उन्हें सुनने के लिए मुशायरों में आते थे। उन्होंने एक से एक प्रसिद्ध शायरों की रचनाओं में गलतियाँ निकाली। वे प्रसिद्ध शायर इकबाल के दोस्त थे। उनकी सैकड़ों चिट्ठियाँ उनके पास है। सब मिलाकर वे शायरी के एक समृद्ध अतीत के स्वामी हैं। लेकिन अब स्थिति यह है कि बाहर तो क्या, स्वयं नागपुर के मुशायरों में भी उन्हें नहीं बुलाया जाता। नयी पीढ़ी के शायरों को उनका नाम तक पता नहीं। वे जीवित हैं या मृत यह जानना तो बाद की बात है। उनके निम्न कथन से उनके भीतर निरन्तर उबलती व्यथा साकार हो जाती है 'शायर को उस वक्त जाना चाहिए जब लोग उसे पसन्द करते हों, उसके दीवाने हों।" यह दुख तब दूना हो जाता है जब हम यह जान पाते हैं कि इतने बड़े शायर की अब तक शायरी की एक भी किताब नहीं छप सकी है। प्रकारान्तर से शांदा साहब यह कहना चाहते हैं कि शायर चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, एक दिन उसकी पूछ का सूरज डूब जाता है। यदि वह समय पर भर जाता है तो उसका कीर्ति शिखर उसे अमर बना देता है। यदि वह दीर्घायु होता है तो बूढ़ा होने पर न केवल उसकी पूछ घट जाती है अपितु वह उपेक्षा का दंश झेलता है और गुमनामी की जिन्दगी के कारण जीते जी मृत हो जाता है। यही दुर्भाग्य शांदा साहब का है। ऊपर से कोढ़ में खाज की तरह गरीबी है और बुढ़ापे में सहारा देने के नाम पर एक विधवा पुत्री और नाती। यह विडम्बना उनके प्रति न केवल शमीम के मन में करूणा भर देता है अपितु पाठक के मन को भी झकझोर देता है
जिन जिन देखे वे कुसुम गयी सो बीति बहार।
अब अली रही गुलाब की अपत कँटीली डार।
शांदा साहब ने अपनी शायरी के जो दिन भोगे वे बहार के दिन थे। आज बुढ़ापे में वे जो दिन भोग रहे हैं वे पतझर के दिन हैं। वर्तमान की विपन्नता के बीच अतीत के सुख, सम्मोहन और उत्कर्ष की स्मृति-काँटे की तरह चुभती है। एक शायर के लिए "पूछ न होना" विस्मृत कर दिया जाना मौत से भी भयावह है। इसका कारण यह है कि शायर केवल ख्याति के लिए, यश के लिए, मरने के बाद भी याद किये जाने के लिए लिखता है। उसे धन और भौतिक सुख की उतनी परवाह नहीं होती जितनी ख्याति की। वह यशस्वी होना चाहता है। शांदा साहब का कीर्तिकलश उनके जीवन काल में ही विस्मृति की मिट्टी में दफन होता जा रहा है। उन्हें कोई याद तक नहीं करता। लोग उनके पास आते, सुनते, दाद देते तो वे हँस-हँसकर अपनी जिन्दगी काट लेते, बुढ़ापे का एहसास तक न होता। लेखिका मेहरुन्निसा परवेज बड़ी संवेदनशील कहानीकार हैं। उन्होंने शायर के विपन्न जीवन को निकट से देखा है, उसकी भावना को पीड़ा को समझा है तथा उसे बड़ी सटीक वाणी में व्यक्त किया है। शांदा साहब के मकान की श्रीहीनता, उदासी भरे वातावरण, जीविका के साधन की अल्पता तथा बेटी फातमा के जीवन संघर्ष को इस तरह पूरक ढंग से चित्रित किया है कि वे जो व्यक्ति चित्र मिलकर शांदा साहब के समग्र चित्र में परिणत हो गये हैं। कहानी की भाषा, सरल, वाक्य छोटे लेकिन बड़े ही अर्थ व्यंजक हैं। वातावरण का चित्र प्रस्तुत करने में लेखिका को सर्वाधिक सफलता मिली है। करुणा उत्पन्न कर शादा साहब के प्रति पाठक को सहानुभूतिशील बना देना कहानी की भाषा क्षमता का प्रमाण है। शांदा साहब के भोगे हुए स्वर्णिम अतीत की पृष्ठभूमि में वर्तमान की विपन्नता भरी साँझ को प्रस्तुत कर लेखिका ने शीर्षक को सार्थक कर दिया है।
शब्दार्थ : लकड़ी = यहाँ तात्पर्य छड़ी से है। बावर्ची खाना जाफरी परदा, घेरा पायरी बरामदा, चबूतरा। रसोई घर,
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Bihar board class 11 Hindi book solution chapter - 11 Objective (स्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर )
(1) भोगे हुए दिन किस विधा की रचना है ?
(क) उपन्यास
(ख) निबन्ध
(ग) कहानी
(घ) रिपोर्ताज
उत्तर – ग |
(2) शांदा साहब क्या हैं?
(क)-शायर
(ख) इंजीनियर
(ग) व्यापारी
(घ) अध्यापक
उत्तर – क |
(3) शांदा साहब किस शहर के वासी हैं ?
(क) दिल्ली
(ख) बम्बई
(ग) नागपुर
(घ) पटना
उत्तर – ग |
(4) इकबाल कौन थे?
(क) वकील
(ख) शायर
(ग) मंत्री
(घ) अफसर
उत्तर – ख |
(v) शांदा / इकबाल किस भाषा के शायर हैं ?
(क) उर्दू
(ख) हिन्दी
(ग) भोजपुरी
(घ) फारसी
उत्तर – क |
(vi) शमीम कहाँ का रहनेवाला है ?
(क) मेरठ
(ख) जगदलपुर
(ग) लखनऊ
(घ) भोपाल
उत्तर – ख |
(vii) फातमा क्या काम करती है ?
(क) अध्यापन
(ख) कटाई सिलाई
(ग) लकड़ी की बिक्री
(घ) कुछ नहीं
उत्तर – क |
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Bihar board class 11 Hindi book solution chapter - 11 Very Short Quetion (अतिलघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर )
(i) शांदा साहब से शमीम का क्या रिश्ता है ?
उत्तर-एक मुशायरे में शांदा साहब को शमीम ने अपने यहाँ टिकाया बुजुर्ग समझकर। इसी अवसर के कारण परिचय हुआ जो आत्मीयता पूर्ण सम्बन्ध में बदल गया।
(ii) शांदा साहब के मकान की दशा कैसी है ?
उत्तर-शांदा साहब का मकान पुराना है, बेमरम्मत है। उसे देखने पर लगता है कि अजीब तरह की उदासी ने उसे घेर रखा है।
(iii) शमीम कौन है?
उत्तर-शमीम जंगदलपुर का रहने वाला है। वह भी संभवतः शायर है, युवा शायर। वह शांदा साहब से परिचित है और उनका आदर करता है।
(iv) शांदा साहब कैसे शायर हैं ?
उत्तर-शांदा साहब हिन्दुस्तान के पुराने शायरों में से हैं। मुशायरे में उनके नाम से लोग जमा हो जाते थे। वे और इकबाल एक दूसरे के घनिष्ठ थे। वे उच्च कोटि के शायर हैं।
(v) फातमा कौन है ?
उत्तर-फातमा शांदा साहब की विधवा पुत्री है जो पति के मरने के बाद अपने दोनों बच्चों के साथ पिता के पास रहती है, वह एक स्कूल शिक्षिका है। ।
(vi) शांदा साहब सन्दूक में से क्या निकाल कर शमीम को दिखाते हैं।
उत्तर-उसमें इकबाल साहब द्वारा शांदा साहब को लिखे गये थे जो दोनों की घनिष्ठता और आत्मीयता को व्यक्त करते हैं।
(vii) शांदा साहब क्यों मर जाना चाहते हैं ?
उत्तर-शांदा साहब जीवित हैं मगर उनकी पूछ समाप्त हो गयी है, नयी पीढ़ी उनका नाम तक नहीं जानती। अपने शहर नागपुर के मुशायरे में भी लोग उन्हें नहीं बुलाते हैं। इसलिए वे मर जाना चाहते हैं।
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Bihar board class 11 Hindi book solution chapter - 11 Short Quetion (लघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर )
प्रश्न-1. जावेद और सोफिया इस कहानी के प्रमुख पात्र हैं। इनका परिचय आप अपने शब्दों में दें।
उत्तर-जावेद और सोफिया दोनों एक ही सिक्के दो पहलू हैं। दोनों की उम्र क्रमशः दस साल और सात साल है। लेकिन समय ने दोनों को समझदार बना दिया है। जावेद घर का काम करता । वह लकड़ी के टाल पर भी बैठता है और बाजार का काम भी निबटाता है। वह शालीन व्यवहार का लड़का है और मेहमानों के सत्कार के गुण उसमें हैं। वह अपने नाना की विवशता और गरीबी तथा माँ के जी तोड़ परिश्रम को भी अनुभव करता है। सोफिया को समय ने परिपक्व कर दिया है। वह टाल पर बैठती है, लकड़ी तौलती है, घर के काम करती है, झाडू लगाती है और संकोचशील तथा सुन्दर है। उसके विषय में शमीम की टिप्पणी है -- मुझे आश्चर्य हो रहा था, सात साल की लड़की को भी समय ने कितना निपुण बना दिया है।
प्रश्न-2. पुरानी बातें शांदा साहब को क्यों पीड़ा दे रही थीं ?
उत्तर-जो व्यक्ति अच्छे दिन जी लेता है उसे बुरे दिन ज्यादा पीड़ा देते हैं। एक समय था जब शांदा साहब की शायरी की धूम थी। हर तरफ पूछ ही पूछ थी। पैसे भी आते थे और यश भी मिलता था। लेकिन आज न जवानी है, न शायरी में पूछ और न पैसे। जिन्दगी अमीरी की कब्र पर पनपी गरीबी की प्यास की तरह जहरीली हो गयी है। यही विषमता उनकी पीड़ा का कारण है।
प्रश्न-3, कहानी में शमीम की भूमिका का वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर-शमीम की स्थिति विचित्र है। शादा साहब का कथन है शमीम, मुझे अफसोस है कि तुम्हारे लिए कुछ न कर सका।' इससे लगता है कि वह कुछ उम्मीद लेकर शांदा साहब के पास आया था। यह उम्मीद लेखिका ने स्पष्ट नहीं किया है। वह शायर है, शायद कुछ आर्थिक सहायता मांगने या कहीं काम लगवा दने की आशा से आया था। लेकिन यहाँ शांदा साहब की बुरी आर्थिक स्थिति और टूटी मनःस्थिति देखकर वह हतप्रभ रह गया। वह पूरी कहानी में दुविधाग्रस्त है-क्या करें क्या न करे। वह दो दिन रहता है और दो दिनों के अनुभव को मूल्यवान मानता है। इस परिवार के लोगों की क्षण-क्षण जीने की कला से अभिभूत है। वह जीवन के अनेक खट्टे-मीठे अनुभव लेकर लौटता है।
प्रश्न--4. “हमलोग तो और नंगे हो गए हैं। बेटा मैंने अपनी इन आँखों से दो दौर देखे हैं। इस कथन का आशय स्पष्ट करते हुए बताएँ कि यहाँ किन दो दौरों की चर्चा है ।
उत्तर- दो दौरों से शादा साहब का तात्पर्य अतीत और वर्तमान से है। पहला दौर अतीत था जब उनके पास यौवन था। शायरी की प्रतिभा थी और उस शायरी के कारण यश और पैसे दोनों मिल रहे थे। अत: जिन्दगी सुख से भरी थी।
दूसरा दौर वर्तमान का है। अब वे बूढ़े हैं, गरीब हैं और उनकी शायर वाली पहचान समाप्त हो गयी है। उनका नाम तक नहीं जानते। अब कहीं से मुशायरे में भाग लेने के लिए आमंत्रण नहीं आता है। आय के सारे स्रोत भी सूख गये हैं। बढ़ती महँगाई और पाँच जनों का खर्च। एक शायर का परिवार लकड़ी बेचे, बकरियाँ पाले इससे दु:खद क्या हो सकता है।
प्रश्न-6. 'और मैं सोच रहा था अगर आज इकबाल होते तो !' इस कथन का क्या अभिप्राय है ? अगर आज इकबाल होते तो क्या होता ! अपनी कल्पना से उत्तर दें।
उत्तर-इकबाल से शांदा साहब का मैत्री सम्बन्ध था। आत्मीयता थी। शमीम का सोचना है कि इकबाल होते तो शायद उनकी दुरवस्था में मदद करते। शायद शायरी के क्षेत्र में भी उनकी गुमनामी नहीं होती। और एक शायर लकड़ियाँ बेचने से बच जाता।
प्रश्न-7. कहानी के शीर्षक ‘भोगे हुए दिन' की सार्थकता पर विचार करें।
उत्तर- कहानी के शीर्षक का विचार यदि शांदा साहब की दृष्टि से करें तो यह उनके भोगे हुए शानदार अतीत को सूचित करता है। शादा साहब का वर्तमान दु:खद है बुढ़ापा और गरीबी के कारण जबकि सामान्यत: अच्छी आर्थिक स्थिति वाले शांदा साहब उच्च कोटि के शायर होने के कारण ख्याति का सुख भोग चुके हैं। अत: यह उनके भोगे हुए दिन की कहानी है।शमीम की दृष्टि से विचार करें तो उसने शांदा साहब के यहाँ जो दो दिन बिताये उन दो दिनों में शादा साहब की दशा के साथ जो भावात्मक साझीदारी अनुभव की उसे उसने कथा का रूप दिया लेकिन यह अर्थ गौण है। मुख्य अर्थ में यह शांदा साहब के द्वारा भोगे हुए जीवन का मार्मिक चित्र है।
उत्तर-जावेद स्कूल जाता है और सोफिया घर पर पढ़ती है। इसका दो कारण हो सकता है। एक आर्थिक अभाव के कारण खर्च न करने की स्थिति, द्वितीय सोफिया लड़की है अतः उसका पढ़ना जरूरी नहीं। जैसे तैसे थोड़ा पढ़ ले यही बहुत है। लेकिन दोनों ही कारणों से लड़के और लड़की की शिक्षा में भेदभाव करना अनुचित है।
प्रश्न-9. 'भोगे हुए दिन' कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-भोगे हुए दिन कहानी का कथ्य एक शायर की जिन्दगी पर आधारित है। शांदा साहब एक शायर है। उनसे कुछ सहयोग की अपेक्षा लेकर एक युवक शायर शमीम उनके यहाँ आता है और लगभग तीन दिन वहाँ ठहरता है। आने के साथ वह देखता है कि शायर शांदा साहब गर्मजोशी से उसका स्वागत करते हैं। शमीम उनके घर की दशा और सदस्यों के रोजनामचे का निरीक्षण करता है। विधवा बेटी कठोर परिश्रम करती है। नानी और नतनी लकड़ी बेचते हैं। और शांदा साहब स्वयं पर अत्याचार करते हुए घर के काम करते हैं। यों हर सदस्य हर पल संघर्ष करता हुआ जीवन जी रहा है, आर्थिक अभाव से लड़ रहा है। शांदा साहब शमीम का प्रयोजन जानते हैं। वे उसके लिए कुछ न कर पाने की विवशता हेतु अफसोस व्यक्त करते हैं। लेखिका इसी बहाने शांदा साहब के अतीत की खुशियाली और वर्तमान की विपन्नता को अंकित करने का अवसर निकालकर असली बात कह देती है। शांदा साहब अपने जमाने के मशहूर शायर थे। पैसा और यश दोनों से खुशहाल शादा साहब के सुख का ओर छोर नहीं था। लेकिन धीरे-धीरे बुढापे ने आ घेरा। आय भी घट गयी और पूछ भी। अब वे मुशायरे में नहीं बुलाये जाते। आर्थिक विपन्नता से जूझने के लिए एक शायर बकरियाँ पाल रहा है, लकड़ी बेच रहा है। स्कूल जाने वाले बच्चे घर का कामकाज कर रहे हैं। उनका सोचना है कि शायर जब अपनी बुलन्दी पर हो तभी उसे मर जाना चाहिए। गुमनामी में जीना मौत से भी बदतर है। अतीत के सुख की स्मृति उनके विपन्न और बेसहारा जीवन को और पीड़ा दायक बना रही है। इसी विसंगति का मार्मिक चित्रण इस कहानी का केन्द्र है।
प्रश्न-10. 'सात साल की लड़की को भी समय ने कितना निपुण बना दिया था।' इस पंक्ति की सप्रसंग व्याख्या करें।
उत्तर- भोगे हुए दिन से गृहीत इस कथन में शमीम का अनुभव व्यक्त हुआ है। वह जिस समय से आया है शांदा साहब के घर के प्राणियों की गतिविधियाँ का बारीक अवलोकन कर रहा है। सात साल की लकड़ी सोफिया शांदा साहब की नतनी है। वह टाल पर बैठी लकड़ी बेच रही है। लकड़ी को तराजू पर चढ़ाने, वजन करने तथा ग्राहकों से व्यवहार करने में वह सिद्धहस्त हो गयी है। उसका काम करने का तरीका सात साल की उम्र के बच्चे जैसा नहीं अनुभवी व्यक्ति का है। इसी तरह घर के कामकाज को वह जिस गंभीरता से करती है उससे यह स्पष्ट है वह घर की परिस्थिति, आर्थिक अभाव, नाना का बुढ़ापा और माँ का स्कूल के बाद ट्यूशन करके खर्च चलाने का जो संघर्ष है उसने उसके मन से बालपन की चपलता और अनुभवहीनता को विदा कर एक प्रौढ़ तथा जवाबदेह लड़की बना दिया है।
प्रश्न-11. 'इस घर का हरेक प्राणी एक-एक क्षण को जीना जानता है।' इस कथन का क्या अर्थ है, स्पष्ट करें।
उत्तर-शमीम ने तीन दिनों में अनुभव किया है कि बूढ़े शांदा साहब से लेकर सात साल की सोफिया तक सभी जीवन जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। सबको मालूम है कि उन्हें कौन-कौन काम करना है और कौन कौन काम वे कर सकते हैं। फलत: वे बिना निर्देश आदेश के स्वेच्छा से सतत काम में लगे रहते हैं। खेलना, लापरवाही, समय गँवाना, अवहेलना करना आदि तत्व उनके जीवन से विदा हो गये हैं। इसी व्यवस्थित जीवनचर्या और हर क्षण को काम करके सार्थक बनाते चलने के स्वभाव को देखकर शमीम ने टिप्पणी की है कि इस घर का हरेक प्राणी एक-एक क्षण को जीना जानता है।
प्रश्न-12. ‘तराजू के एक पल्ले पर धूप थी, दूसरे में आम की परछाईं पड़ी थी। आम की परछाई वाला पल्ला नीचे था, मानो धूप और परछाई दोनों से तौला जा रहा हो।' यह एक बिंब है। इसका अर्थ शिक्षक की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-ये पंक्तियाँ भोगे हुए दिन शीर्षक कहानी से ली गयी हैं। शांदा साहब के घर के सामने लकड़ियाँ तौलने के लिए तराजू आम के पेड़ से लटकी है। यह महज संयोग है कि ढलते दिन के कारण सूरज की किरणें तराजू के एक पलड़े पर पड़ रही है और दूसरा पलड़ा आम की छाँह में है। इस तरह एक अजीब बिम्ब बनता है एक पलड़े पर धूप दूसरे पलड़े पर छाँह। कहानी लेखिका उत्प्रेक्षा अलंकार के सहारे कहना चाहती है कि ऐसा लगता है मानो धूप और छाँह तौले जा रहे हैं। इस तोल में छाँह का पलड़ा भारी है। यह नीचे झुका है। यदि छाँह को जीवन की साँझ का प्रतीक मानें और इसका सम्बन्ध शांदा साहब की जिन्दगी से जोड़ें तो छाँह का झुका पलड़ा शांदा साहब के जीवन की ढलती साँझ, उनके शायर जीवन के अवसान और उनके वैभव भो अतीत के विपरीत विपन्न वर्तमान को सूचित करता है।
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Bihar board class 11 Hindi book solution chapter - 11 Hindi Grammar (भाषा की बात )
प्रश्न-1. निम्नलिखित वाक्यों में मिश्र वाक्य और संयुक्त वाक्य चुनें तथा उन्हें सरल वाक्य में बदलें –
उत्तर–
(क) जावेद मेरे सामने से निकला और लड़की के पास गया।
- (i) जावेद मेरे सामने से निकला।
- (ii) जावेद लड़की के पास गया।
(ख) मैंने देखा, पीछे की दालान सूनी है।
- (i) मैंने पीछे की ओर देखा।
- (ii) पीछे की दालान सूनी थी।
(ग) जावेद अंदर चला गया, लौटा तो गेहूँ का पीपा उठाए आया।
- (i) जावेद अन्दर चला गया।
- (ii) जावेद गेहूँ का पीपा उठाये लौटा।
प्रश्न-2. निम्नलिखित मुहावरों का वाक्य-प्रयोग द्वारा अर्थ स्पष्ट करेंगहरी साँस लेना, नंगा होना, गला भर आना, करवटें बदलना
उत्तर -
- गहरी साँस लेना (दुख व्यक्त करना) = शांदा साहब गहरी साँस लेकर बोले।
- नंगा होना (वास्तविकता व्यक्त हो जाना) = महँगाई ने अच्छों अच्छों को नंगा कर दिया है।
- गला भर आना (भावावेश के मारे बोल न पाना) = अपनी बात कहते कहते कवि जी का गला भर आया।
- करवटें बदलना (बेचैनी व्यक्त करना) – मैं पिताजी की बातों से मैं पिताजी की बातों से इतना व्यथित था कि रात भर करवटें बदलता रहा।
- नीचे देखना (लज्जित होना) = सोफिया झेंप कर नीचे देखने लगी।
- आँखों में बातें पढ़ना (आँखों की भाषा पढ़ लेना) = मैंने सोफिया की आँखों में बहुत सी बातें पढ़ ली।
- अब = अब एक पहर दिन शेष था।
- अगर = अगर आज इकबाल होते तो ?
- तो = अगर आज इकबाल होते तो
- भी = अब भी कुछ काम शेष था।
- बस = बस किसी तरह जी रहा हूँ।
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