बंगला फिल्मों के शलाका पुरुष सत्यजीत राय विश्व सिनेमा के महान निर्देशकों के बीच एक दुर्लभ विभूति थे। महान जापानी फिल्मकार अकीरा कुरासावा के अनुसार 'सत्यजीत राय की फिल्में न देखने का मतलब है दुनिया में रहते हुए सूर्य या चन्द्रमा को न देखना।' ऐसे महान फिल्मकार ने फिल्मों पर अनेक निबन्ध लिखे हैं। उन निबन्धों का अनुवाद योगेन्द्र चौधरी ने 'चलचित्र : कल और आज' शीर्षक से प्रकाशित किया है। यह निबन्ध वहीं से लिया गया है। इसमें सत्यजीत राय ने बहुत ही सरल ढंग से फिल्म बनाने की प्रक्रिया और उससे संबंधित पारिभाषिक शब्दों का परिचय दिया है। निबन्ध का प्रारम्भ इस प्रश्न से हुआ है कि चलचित्र शिल्प है या नहीं। जो लोग चलचित्र को शिल्प नहीं मानते हैं वे इसे पाँच शिल्पों से मिश्रित पंचमेली बेढब वस्तु मानते हैं। सत्यजीत राय ने इस विवाद को समाप्त करने के लिए शिल्प के बदले भाषा शब्द का प्रयोग किया है। उनके अनुसार बिम्ब और शब्द (साउण्ड) के संयाग से जो भाषा बनती है उसी से चलचित्र की रचना होती है। यदि इस भाषा की कुशलता फिल्मकार में न हो तो अच्छे कथ्य वाली फिल्म भी दुर्बल हो जाता है। सत्यजीत राय मानते हैं कि चलचित्र में विभिन्न साहित्य-विधाओं का लक्षण होता है, लेकिन वह पँचमेल और बेढब नहीं। उनके अनुसार “नाटक का द्वन्द्व, उपन्यास का कथानक एवं परिवेश वर्णन, संगीत की गति एवं छन्द, पेन्टिंग की प्रकाश छाया की व्यंजना-इन सारी वस्तुओं को चलचित्र में स्थान मिल चुका है, परन्तु बिम्ब और ध्वनि की भाषा पूर्णतया एक स्वतंत्र भाषा है। उनके कहने का तात्पर्य यह है कि नाटक, उपन्यास, संगीत तथा चित्र के उपादानों के सहारे जो बात नहीं व्यक्त हो सकती है वह बात फिल्म में बिम्ब और ध्वनि के द्वारा कही जाती है। यही वह तत्त्व है जो एक ही कथ्य को कई भंगिमाओं में प्रस्तुत कर सुन्दर को सुन्दरतर और प्रभावशाली बना देता है। बिम्ब से उनका तात्पर्य मानचित्र से नहीं है, बल्कि चित्र के अर्थ और अभिप्राय से है। जब अवाक् फिल्म बनते थे तो वहाँ चित्र ही अर्थ को व्यक्त करते थे। उनको देखकर बिम्ब का अभिप्राय समझा जा सकता है। ध्वनि बिम्ब का परिपूरक होता है और दोनों मिलकर कथ्य को व्यक्त करते हैं। अत: कान और आँख दोनों को सजग रखकर ही चलचित्र की भाषा समझी जा सकती है। किसी दृश्य में यदि ध्वनि नहीं होती है तो वहाँ उसका न होना ही अभिव्यक्ति का कारण हो जाता है। चलचित्र के शिल्प को स्पष्ट करने के बाद सत्यजीत राय ने चलचित्र के निर्माण कार्य की प्रक्रिया से पाठकों को परिचित कराया है। यों तो चलचित्र की कई कोटियाँ होती हैं लेकिन उनमें सर्वाधिक प्रचलित और लोकप्रिय कोटि कथात्मक चलचित्र की है। सत्यजीत राय ने उसी को आधार बनाकर निर्माण-प्रक्रिया को स्पष्ट किया है। उनके अनुसार चलचित्र-निर्माण के तीन भाग होते हैं।
चलचित्र नाट्य का समग्र फलक है। बिम्ब और ध्वनि के माध्यम से वह परदे पर व्यक्त होता है। इसी फलक (कैनवास) को आधार बनाकर अभिनेता आदि सारे रंगकर्मी निर्देशक के निर्देशानुसार सामूहिक रूप में कार्य करके चलचित्र को साकार और सजीव बनाते हैं। सत्यजीत राय मानते हैं कि निर्देशन कुशल हो और नाट्य विषय भी महत्वपूर्ण हो, तभी चलचित्र सफल होता है। दुर्बल निर्देशन और कथ्य का घटियापन दोनों फिल्म को कमजोर बनाते हैं। सत्यजित राय के अनुसार चलचित्र में यंत्रों का प्रयोग महत्त्वपूर्ण है। यंत्रों के बिना चलचित्र का निर्माण हो ही नहीं सकता। यह तो निर्विवाद है कि कैमरे का आविष्कार होने के बाद ही फिल्मों का निर्माण हुआ। उसके पहले फिल्म की सत्ता सोची ही नहीं जा सकती। शूटिंग से लेकर प्रदर्शन तक चलचित्र का सारा संसार यंत्रों से ही निर्मित और परिचालित होता है। शूटिंग में कैमरा और शब्द-यंत्र की सहायता ली जाती है। फिल्माये गए दृश्यों को उभारने के लिए प्रयोगशाला में यंत्रों की सहायता लेनी पड़ती है। लिये गए चित्रों और रिकॉर्ड किए गए संवादों के टुकड़ों को 'मूविओला' नामक यंत्र की सहायता से चयन किया जाता है और कैंची से काटकर सम्पादन किया जाता है। पार्श्व संगीत भी शब्द-यंत्र की सहायता से रिकार्ड किया जाता है। तैयार फिल्म को सिनेमाघरों में दिखने के लिए भी प्रोजेक्टर और जेनेरेटर आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है। निष्कर्ष यह कि सारा रंगकर्म यंत्रों के माध्यम से प्रस्तुत होकर ही दर्शकों का मनोरंजन करता है। फिल्म देखने पर यह बात सामने आती है कि फिल्म के अधिकतर दृश्यों को तोड़-तोड़कर कई दृष्टिकोणों से दिखाया जाता है। इन तोड़े गए खण्डों को 'शॉट्स' कहा जाता है। एक ही दृश्य को तोड़-मोड़कर कई रूपों में दिखाने की यह रीति चलचित्र-शिल्प का अपना मौलिक ढंग है जो उसकी विशेष पहचान सूचित करता है। सत्यजीत राय मानते हैं कि चलचित्र-निर्माण का कोई निश्चित और बना-बनाया सिद्धान्त या फार्मूला नहीं होता। निर्देशक की क्षमता, योग्यता और सूझबूझ के अनुसार एक ही कहानी भिन्न-भिन्न रूपों में प्रस्तुत होकर भिन्न-भिन्न प्रभाव उत्पन्न करती है। अत: चलचित्र की महत्ता उसके निर्माता की क्षमता का सूचक होती है। चलचित्र में चमत्कार और विशिष्टता लाने के लिए कई प्रकार के यात्रिक कौशलों का सहारा लिया जाता है। चलचित्र के यांत्रिक चमत्कारों का पता दर्शकों को न चले, इस पर निर्देशक को ध्यान देना पड़ता है। चमत्कारों को छिपाकर रखने में बहुत कुछ सहायता सम्पादन की जीवन्तता से मिलती है। सत्यजीत राय ने चलचित्र निर्माण से संबंधित जिन बारीक तत्त्वों और विशेषताओं का उल्लेख किया है उसको उन्होंने अपनी प्रसिद्ध फिल्म 'पथेर पांचाली' के उदाहरण और विश्लेषण से समझाया है। इसमें उनकी प्रतिभा और अनुभव दोनों की छाप स्पष्ट है और किसी भी निर्देशक के लिए मार्ग दर्शक भी है। निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि यह एक प्रामाणिक निबन्ध है जिसके सहारे चलचित्र निर्माण से संबंधित पर्याप्त जानकारी जिज्ञासु व्यक्तियों को प्राप्त हो सकती है।
Class 11 Hindi Book Solution
Bihar board class 11 Hindi book solution chapter - 5 Objective Question (वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर )
(1) सत्यजित राय ने किस भाषा में फिल्में बनायी थी?
Ans - बंगला
(ii) चलचित्र मौलिक निबन्ध या अनुवाद ?
Ans - अनुवाद
(iii) सत्यजित राय ने शिल्प के बदले किस शब्द का प्रयोग किया है?
Ans - भाषा
(iv) चलचित्र शिल्प पँचमेल बेढब वस्तु है या मौलिक ?
Ans - मौलिक
(v) पथेर पंचाली किसकी रचना है ?
Ans - विभूतिभूषण वंद्योपाध्याय
(vi) पथेर पंचाली किस विधा की रचना है?
Ans - उपन्यास
(vii) पथेर पांचाली किस भाषा का उपन्यास है ?
Ans - बंगला
(viii) चलचित्र कार्य को कितने पर्यायों में बाँटा गया है ?
Ans- तीन
(ix) सत्यजित राय चलचित्र की आलोचना में किन दो तत्त्वों को महत्व देते हैं?
Ans - बिम्ब और ध्वनि
(x) चलचित्र संगीत से क्या लेता है ?
Ans - गति और छन्द
Class 11 Hindi Book Solution
Bihar board class 11 Hindi book solution chapter - 5 Very Short Quetion (अतिलघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर )
प्रश्न-1. चलचित्र को शिल्प की मर्यादा न देने वाले लोग क्या कहते हैं?
उत्तर–चलचित्र को शिल्प की मर्यादा न देने वाले लोग मानते हैं कि यह पाँच तरह के शिल्प-साहित्य से मिश्रित एक पचमेली बेढब वस्तु है। इसकी अपनी निजी सत्ता नहीं है।
प्रश्न-2. चलचित्र किन शिल्प साहित्यों से अपने निर्माण का तत्व लेता है?
उत्तर-चलचित्र उपन्यास से कथानक एवं परिवेश-वर्णन तथा नाटक से द्वन्द्व लेता है। यह संगीत से गति और छन्द तथा पेन्टिंग से प्रकाश और छाया की व्यंजना होता है।
प्रश्न-3. क्या चलचित्र विभिन्न कला-रूपों का मिश्रण है?
उत्तर चलचित्र नाटक, उपन्यास, संगीत तथा पेन्टिंग से अपने निर्माण की सामग्री अवश्य लेता है लेकिन अपनी प्रकृति और विशेषता के अनुसार उतना ही लेता है जितना उसके निर्माण में सहयोगी होता है। इन सबके योग से उसका जो रूप बनता है वह मौलिक होता है। अत: इसे विभिन्न कलाओं का मिश्रण मानना उचित नहीं है।
प्रश्न--4. चलचित्र में कथ्य का महत्त्व होता है या निर्देशन कौशल का ?
उत्तर- चलचित्र में दोनों का महत्त्व होता है। कथ्य कमजोर होने पर उत्कृष्ट निर्देशन से भी कोई लाभ नहीं होता इसी तरह केवल महत्त्वपूर्ण कथ्य होने भर से कोई श्रेष्ठ चलचित्र नहीं बन जाता। यहाँ उत्तम कथ्य के उत्तम निर्देशन से ही उत्तम परिणाम पाया जाता है।
Class 11 Hindi Book Solution
Bihar board class 11 Hindi book solution chapter - 5 Short Quetion (लघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर )
प्रश्न-1. क्या लेखक ने चलचित्र को शिल्प माना है ? चलचित्र को शिल्प माननेवाले इस पर क्या आरोप लगाते हैं ?
उत्तर- चलचित्र को लेखक ने शिल्प माना है लेकिन विवाद से अलग होने के लिए भाषा शब्द का प्रयोग किया है। चलचित्र को शिल्प न मानने वाले दो बातें कहते हैं। प्रथम चलचित्र की निजी सत्ता नहीं है। द्वितीय यह पाँच तरह के शिल्प-साहित्य से मिश्रित पँचमेल बेढब वस्तु है।
प्रश्न-2. चलचित्र एक भाषा है। यह किन दो चीजों के संयोग से बनती है। लेखक ने इस भाषा के प्रयोग में किस चीज की अपेक्षा रखी है और क्यों ?
उत्तर- लेखक ने शिल्प के बदले भाषा का प्रयोग किया है और इसे दो चीजों के संयोग से निर्मित माना है-बिम्ब और ध्वनि। लेखक के अनुसार चित्र जब अर्थवान होता है तब बिम्ब कहलाता है। अतः चलचित्र में एक-एक चित्र की सत्ता एक वाक्य की तरह होनी चाहिए और उनके संयोजन से पूरा कथ्य व्यक्त होना चाहिए। ध्वनि के द्वारा आँख और कान दोनों का अभिप्राय समझ में आये। अतः कविता में जो काम व्यंजना-शक्ति करती है वह चलचित्र में ध्वनि द्वारा होना चाहिए।
प्रश्न-3. चलचित्र में विभिन्न शिल्प-साहित्यों के लक्षण किस प्रकार समाहित हैं?
उत्तर- चलचित्र में सत्यजित राय ने विभिन्न शिल्प-साहित्य के लक्षणों का समावेश माना है। उनके अनुसार चलचित्र नाटक से द्वन्द्व या संघर्ष तत्त्व लेता है। उपन्यास से कथानक और वातावरण लेता है। संगीत से वह गति और छन्द लेता है तथा पेंटिंग से प्रकाश और कला लेता है। इन तत्त्वों के उचित अन्वय से चलचित्र का तनमन निर्मित होता है।
प्रश्न-4. चलचित्र-निर्माण-कार्य को मोटे तौर पर किन पर्यायों में विभक्त किया जाता है ? प्रत्येक का संक्षिप्त परिचय दें।
उत्तर-चलचित्र के निर्माण कार्य को तीन पर्यायों में विभक्त किया जाता है-
- (i) सिनेरिओ
- (ii) शूटिंग तथा
- (iii) एडिटिंग तथा
- (iv) सिनेरिओ इनमें किसी कथानक का नाट्य रूपान्तर करत हुए उसे दृश्यों और संवादों में परिणत किया जाता है। इसे 'चलचित्र नाट्य' कह सकते हैं। कथानक और सिनेरिओ के अनुसार एक तो लोकेशन का चुनाव किया जाता है या सेट्स का निर्माण किया जाता है। दूसरे नाट्य में आये चरित्रों के अनुसार अभिनेताओं से अभिनय कराया जाता है तथा उनका कैमरे तथा साउण्ड रेकार्डिंग मशीन के द्वारा चित्र लिया जाता है और संवाद रेकार्ड किये जाते हैं।
- (iv) एडिटिंग में अलग-अलग लिए गये चित्रों को चलचित्र की कथा के अनुसार क्रमबद्ध करके संयोजन
- (v) शूटिंग में चलचित्र के किया जाता है।
प्रश्न-5. शॉट्स किसे कहते हैं ?
उत्तर- फिल्म में अधिकतर अंश को एक ही दृष्टिकोण से न दिखाकर अलग-अलग दृष्टिकोणों से तोड़-मरोड़कर दिखाया जाता है। इस तरह एक अंश को कई कोणों से, विभिन्न ढंग से दिखाना शॉट्स कहलाता है। यह वैचित्र्य के लिए नहीं होता है। यह चलचित्र के शिल्प का एकमहत्त्वपूर्ण ढंग है।
प्रश्न-6. 'पथेर पांचाली' किनका उपन्यास है ? पाठ में “पथर पांचाली' के जिस कथा अंश का उल्लेख है, उसका सारांश लिखें।
उत्तर-'पथेर पांचाली' बंगला के प्रसिद्ध उपन्यासकार विभूतिभूषण बंद्योपाध्याय की आप कृति है। पाठ में समीक्षा हेतु जो अंश लिया गया है उसमें नायक हरिहर वर्षधर बार बाहर से अपने घर लौटा आ रहा है। वह घर के निकट आकर दीवार पर झुके बाँस के बारे में प्रतिक्रिया मगन्न करता भीतर आता है। पत्नी से यहाँ का कुशल समाचार पूछता है और बच्चों को उपस्थित न पाकर उनके बारे में पूछता है। पत्नी सर्वजया उसके हाथ की भारी गठरी उतार कर कमर के अन्दा ५ आती है। वह पत्नी की ओर गंभीरता से न देखकर अपनी ही भावना में है। वह प्रत्यक्ष कर रह है कि बच्चे दौड़ते हुए आगे और पूछेगे-बाबूजी इसके अन्दर क्या है? वह बेटी के लिए लाये सामानों की चर्चा करता है तथा पत्नी को चकला-बेलना लाने की बात बताता है। । अकुलाहट और प्यार के साथ वह पुनः बच्चों के विषय में जिज्ञासा करता है और अब सर्वजया अपने पर काबू नहीं रख पाती है वह रोते हुए बताती है कि बिटिया दुर्गा चल बसी। लाया है।
प्रश्न-7. चलचित्र में हरिहर अपने घरवालों के लिए कौन-कौन-सी चीजें लाता है।
उत्तर- चलचित्र में हरिहर तीन चीजें दिखाता है। पत्नी की फर्माइश की आदेशानुसार दो चीज । एक सड़क के मेले से लक्ष्मीजी का पट शीशे में मढ़वाकर लाया है। दूसरा कटहल का चकला-बेलना और तीसरा बेटी दुर्गा के लिए साड़ी।
प्रश्न-8. दुर्गा की मृत्यु किस कारण से हुई ?
उत्तर- चैत की प्रथम वर्षा में भीगने से दुर्गा बीमार पड़ी थी। वही बीमारी उसकी मृत्यु का कारण बनी।
प्रश्न-9. हांडी के ढक्कन का उठना-गिरना किस बात को दिखाने में सहायक हुआ है? इसे 'क्लोज अप' में क्यों दिखाया गया है ?
उत्तर- हाँड़ी का ढक्कन ऊपर-नीचे होने के द्वारा सर्वजया के रुद्ध और शोकदाध मन की सटीक उपमा दी गयी है। हाँड़ी का उठना-गिरना तथा सर्वजया की उदास दृष्टि को निकट से न दिखाने पर उसकी व्यथा की गहराई को समझना दर्शकों के लिए कठिन होगा-यह सोचकर 'क्लेन अप' का उपयोग किया गया है। खुले मैदान की प्रसारता के बाद 'क्लोज अप' का प्रयोग एक ही करुण स्वर में छन्द का वैविध्य लाने में सहायक हुआ है। 4
प्रश्न-10. शंख की चूड़ी के कंपन से क्या महसूस करा दिया गया है?
उत्तर-शंख की चूड़ी के कम्पन मानो सर्वजया के वक्ष का कम्पन है। इसके द्वारा दुख की अधिकता से उत्पन्न जड़ता को हल्का तोड़ा गया है। दूसरे हरिहर पुकार रहा है अत: यह कायल उस स्वर की ओर मुखातिब होने का हल्का प्रयत्न है।
प्रश्न-11. सर्वजया का पानी ढालना, पीढ़ा ले आना, अंगोछा ले आना, खड़ाऊँ ले आना-ये सभी कार्य-व्यापार दर्शकों पर कैसा प्रभाव छोड़ते हैं ? और क्यों ?
उत्तर- जया का लम्बा कार्य-व्यापार दर्शकों को अधीर बनाने के लिए है। वे इस. इधर-उधर के टालमटोल से और व्याकुल हो जाते हैं कि देखें सर्वजया किस तरह हृदय-विदारक समाचार हरिहर को सुनाती है।
प्रश्न--12. सर्वजया की रुलाई की आवाज का अंकन किस तरह किया गया और इसमें क्या सावधानी रखी गई?
उत्तर-रुलाई में एक वीभत्सता होती है। इससे बचने के लिए उपाय किए गये हैं। प्रथम सर्वजया दाँतों से साड़ी को काटती हुई बैठ जाती है। फलत: रुलाई के कारण होनेवाली चेहरे की विकृति साड़ी से थोड़ा ढंक जाती है। दूसरे आवाज की वीभत्सता को ढंकने के लिए स्वाभाविक स्वर की जगह तार शहनाई के तार सप्तक अर्थात् उच्च स्वर में पटदीप राग से एक करुण स्वर की अभियोजना की गयी है। इन दोनों उपायों से वीभत्सता भी घटी है और करुणा भी घनीभूत हुई है।
प्रश्न-13. सत्यजित राय ने चलचित्र को 'भाषा' कहा है। क्या आप ऐसा मानते हैं ? क्या स्वयं सत्यजित राय 'भाषा' के अनुरूप बिंब ( इमेज ) और शब्द ( साउंड ) का संयोजन चलचित्र के निर्देशन में कर पाते हैं ? अपना मत दें।
उत्तर- सत्यजित राय ने जिसके लिए भाषा का प्रयोग किया है उसके लिए सही शब्द शिल्य ही है। चलचित्र-निर्माण का शिल्प या तकनीक भाषा जिस रूढ अर्थ में प्रयुक्त होती है उस देखते हुए यहाँ भाषा शब्द भ्रामक है। बिम्ब और ध्वनि भाषा का एक अंग है। पूरी भाषा बड़ी सत्ता हाती है। अत: उन्हें चलचित्र शिल्प को मर्यादा न देनेवालों की चिन्ता किये बिना शिल्प का प्रयोग करना चाहिए। उन्होंने ‘पथेर पांचाली' का उदाहरण देते हुए प्रत्येक बिन्दु का जो विश्लेषण किया है उस देखकर कहा जा सकता है कि वे चलचित्र के निर्देशन में बिम्ब और ध्वनि का सटीक उपयोग करते हैं 'पथेर पांचाली' की ख्याति से यह बात सिद्ध है।
प्रश्न-14. पाठ के आधार पर निम्नलिखित पारिभाषिक शब्दों के अर्थ स्पष्ट करेंएडिटिंग, शॉट्स, लांग शॉट, मिडशॉट, क्लोज अप, टिल्टिंग, फॉरवर्ड, पैनिंग. डिजॉल्व, फेड आउट, शूटिंग, मूविओला, पार्श्व संगीत, ट्रक बैक, ट्रक फॉरवर्ड।
उत्तर- पारिभाषिक शब्द
(i) एडिटिंग : शूटिंग द्वारा खंड-खंड रूप में ली गयी तस्वीरों को कथा के अनुसार क्रमबद्ध सजाना, अनावश्यक अंशों को काट हटाना और यांत्रिक कौशलों के सहारे फिल्म को समग्र और प्रभावशाली रूप देना 'एडिटिंग' कहलाता है। :
(ii) शॉट्स : चलचित्र में नाट्य के किसी एक अंश को तोड़-मरोड़कर कई कोणों से उसकी तस्वीरें ली जाती हैं। इसका लक्ष्य प्रभावशाली दृश्य चुनने के लिए कई विकल्पों का निर्माण करना होता है। इन्हीं लिए गये भिन्न-भिन्न चित्रों को 'शॉट्स' कहते हैं।
(iii) लौंग शॉट : दूर के दृश्य या किसी व्यक्ति के सिर से पैर तक का जब एक चित्र लिया जाता है तो इसे 'लौंग शॉट' कहते हैं। इसमें आकृतियाँ तो सब आती है लेकिन किसी अंश की बारीकी उजागर नहीं होती है।
(iv) मिडशॉट : वह चित्र जो एकदम निकट भी नहीं हो और दूर भी न हो। बीच का हो तो वह 'मिड शॉट' कहलाता है। अगर एक आदमी का उदाहरण लें तो उसका सिर से पैर तक का चित्र 'लौंग शॉट' कहलायेगा। सिर से लेकर कटि तक का चित्र हो तो 'मिड शॉट' से लिया गया चित्र होगा। यदि केवल चेहरे या आँखों की बारीकी. दिखाना होगा तो 'क्लोज अप' में शॉट लिया जायेगा।
(v) क्लोज अप : जब चित्र में किसी अंग अथवा दृश्य की बारीकी दिखानी होती है या भाव को साकार करना होता है तो निकट से तस्वीर ली जाती ताकि बारीकी स्पष्ट हो। यह निकट से लिया गया शॉट 'क्लोज अप' कहलाता है।
(vi) टिल्टिंग : फिल्मी कैमरे में उसकी आँख को ऊपर नीचे, अगल-बगल घुमाकर चित्र लेने की व्यवस्था रहती है। जब कैमरे की आँख ऊपर-नीचे की जाती है तो इस क्रिया का 'टिल्टिंग' कहते हैं।
(vii) पैनिंग : किसी दृश्य की अगल-बगल का चित्र लेने के लिए जब कैमरे की आँख के अगल-बगल घुमाया जाता है तो इस क्रिया को 'पैनिंग' कहते हैं।
(viii) फेड आउट : ‘फेड आउट' का अर्थ होता है पूर्ण विराम। यह वहाँ होता है जहाँ शूटिंग क्रम का एक अध्याय पूरी तरह समाप्त हो जाता है।
(ix) डिजॉल्व : चलचित्र में जहाँ एक चित्र धीरे-धीरे विलुप्त होता है और दूसर उभरता है तो इस क्रिया को डिजॉल्व कहते हैं। इसमें मुख्य विशेषता दृश्य का धीरे-धीरे विलुप्त होना है। यही :
(x) शूटिंग : चलचित्र में कथा के नाट्य रूप का अभिनय अभिनेताओं द्वारा परिवेश (लोकेशन) या निर्माण सेट्स' की पृष्ठभूमि में किया जाता है और इस अभिनय का चित्र कैमरे द्वारा लिया जाता है और संवादों की रिकार्डिंग की जाती है। इसी अभिनय का चित्रांकन, शूटिंग कहलाता है।
(xii) पार्श्व संगीत : अभिनय के प्रभाव को तीव्र करने या वातावरण निर्माण के लिए जो संगीत पार्श्व से दिया जाता है उसे 'पार्श्व संगीत' कहते हैं। इसमें गायक या वाद्ययन्त्र दिखाये नहीं जाते हैं बल्कि केवल उनका स्वर सुनाई पड़ता है।
(xiii) मूविओला : 'मूविओला' वह यन्त्र है जिसको बार-बार चलाकर, लिये गये शॉट्स में से अच्छे और आवश्यक शॉट का चुनाव ‘एडिटिंग' के क्रम में किया जाता है।
(xiv) टूक फारवार्ड : चित्र लेने के क्रम में जब किसी निश्चित दृश्य का चित्र लेने के बदले कैमरा की आँख आगे बढ़कर उस दृश्य से संबंधित चित्र लेने लगता है तो इसे 'ट्रक फारवार्ड' कहते हैं, जैसे कैमरा अगर दूध दुहाने के लिए रंभाती गाय पर टिका है और अगर वह आगे बढ़कर दूहने के लिए आते किसान का चित्र लेने में बढ़ जाय तो यह दृश्य ट्रक फारवार्ड होगा।
(xv) टूक बैक : जब कैमरा किसी चित्र की शूटिंग कर पुराने दृश्य पर लौट आता है तो इस लौटने को 'ट्रक बैक' कहते हैं। उदाहरणार्थ कैमरा दूध दुहाने के लिए रंभाती गाय का चित्र ले रहा है। वह यदि दूहने के लिए आते किसान की ओर चला जाता है तो यह 'ट्रक फारवार्ड' होगा और यदि वहाँ से चित्र लेकर पुन: गाय पर आ जाय तो यह पहले स्थान पर वापस आना 'ट्रक बैक' कहलायेगा।
(xvi) फॉरवर्ड : जब कैमरा की आँखें अपने पूर्व स्थित स्थान से आगे बढ़कर किसी दूरागत या दूर स्थित वस्तु का चित्र लेते हैं तो इसे 'फॉरवर्ड' कहते हैं।
प्रश्न-15, पाठ में किन प्रसंगों में 'क्लोज अप' का प्रयोग किया गया ? इसके प्रयोग की क्या आवश्यकता थी ?
उत्तर- 'पथेर पांचाली' से लिये गये अंश में उन्होंने तीन बार क्लोज अप का प्रयोग किया है। पहले 'क्लोज अप' में सर्वजया के वेदनविकल किन्तु रुद्ध मन की दशा व्यक्त करने के लिए 'क्लोज अप' का प्रयोग किया गया है। इसके बिना उसकी वेदना को समझना मुश्किल क्षण क्लोज अप' वहाँ है जहाँ देर से जड़वत् बैठी सर्वजया हरिहर की आवाज सुनकर जहाँ सचेत होती है। गाय से हाथ सटे थे अत: चूड़ी चिपक गयी थी। निकट से दिखाने पर ही चूड़ी का खिसकना दिखाया जा सकता था। अत: 'क्लोज अप' का प्रायेग सही है। तीसरे 'क्लोज अप' में दुर्गा के लिए लायी गयी धारीदार साड़ी की धारियों को दिखाना भी अभीष्ट है। इसलिए यहाँ भी 'क्लोज अप' का प्रयोग उचित है।
Class 11 Hindi Book Solution
Bihar board class 11 Hindi book solution chapter - 5 Grammar (भाषा की बात )
प्रश्न-1. निम्नलिखित शब्दों का वचन पहचानें और उनका वचन परिवर्तित करें
- उत्तरकलाइयाँ-कलाई (एकवचन)
- चीजें-चीज - (एकवचन)
- धोती-धोतियाँ, - धोतियों (बहुवचन)
- साड़ी-साड़ियाँ, - साड़ियों (बहुवचन)
- तस्वीरें तस्वीर - (एकवचन)
- गहराई-गहराइयाँ, - गहराइयों (बहुवचन)
- टोकरी-टोकरियाँ, - टोकरियों (बहुवचन)
प्रश्न-2. निम्नलिखित के प्रत्यय बताएँ
चित्रत्व, निश्चिंतता, सार्थक, स्वाभाविक, आंगिक, वीभत्सता, अवहेलना
Ans -
- चित्रत्व - त्व
- निश्चिन्तता - ता
- सार्थक - अक
- स्वाभाविक - इक
- वीभत्सता - ता
- आंगिक - इक
- अवहेलना - ना
प्रश्न-3. निम्नलिखित वाक्यों से कोष्ठक में दिए गए निर्देश के अनुरूप पद चुनें –
- (क) सर्वजया साड़ी को कसकर पकड़ती है। (कर्मकारक)
- (ख) सर्वजया रोती हुई फर्श पर लेट जाती है। (क्रिया)
- (ग) चैत की प्रथम वर्षा में भींगने के कारण दुर्गा बीमार पड़ती है। (विशेषण)
- (घ) सर्वजया बिना कुछ बोले सीढ़ी की ओर बढ़ जाती है। (संज्ञा)
- (ङ) उसके गले की आवाज सुनकर सर्वजया कमरे से बाहर निकलकर आई। (संयुक्त क्रिया)
उत्तर-
- (क) सर्वजया साड़ी को कसकर पकड़ती है। (साड़ी को)
- (ख) सर्वजया रोती हुई फर्श पर लेट जाती है।-लेट, जाती, है
- (ग) चैत की प्रथम वर्षा में भींगने के कारण दुर्गा बीमार पड़ती है। (प्रथम, बीमार)
- (घ) सर्वजया बिना कुछ बोले सीढ़ी की ओर बढ़ जाती है। (बढ़ जाती है)
- (ङ) उसके गले की आवाज सुनकर सर्वजया कमरे से बाहर निकलकर आयी। (निकलकर आयी)
प्रश्न-4. निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द लिखें –
संदेह, ध्वनि, भंगिमा, परिवेश, अवहेलना, अवलंबन, दुर्बल, यंत्र, निर्वाचन, व्यापक, परिवर्तन, अंगोछा, हतप्रभ, ऋतु, सुविधा, उपलब्धि, प्रारम्भ, तस्वीर।
उत्तर–
- संदेह – दुविधा
- ध्वनि– आवाज
- भौगमा– ढंग, मुद्रा
- परिवेश – वातावरण
- अवहेलना –उपेक्षा
- अवलम्बन – सहारा
- दुर्बल – कमजोर
- यंत्र-मशीन
- निर्वाचन-चुनाव
- व्यापक- विस्तृत
- परिवर्तन-बदलाव
- अंगोछा-तौलिया
- हतप्रभ – अवाक्
- मौन-चुप्पी
- सुविधा-आराम
- ऋतु-मौसम
- आग्रह-अनुरोध
- उपलब्धि-प्राप्ति
- प्रारम्भ-शुरू
- तस्वीर-चित्र
Class 11 Hindi Book Solution
Bihar board class 11 Hindi book solution chapter - 5 (व्याख्या )
(i) जहाँ शिल्पी नहीं है, वहाँ शिल्प के उपकरण रहें तो भी उत्पत्ति की कोई संभावना नहीं है।
सत्यजित राय लिखित निबन्ध 'चलचित्र' से गृहीत इस कथन में चलचित्र के प्रसंग में शिल्पी का महत्त्व बतलाया गया है। यहाँ शिल्पी से तात्पर्य सिनेमा को साकार करने वाले निर्देशक की उस समझदारी से है जिसके द्वारा कोई फिल्म साकार होती है। इसमें कहने का आशय यह है कि शिल्प के उपकरण हों लेकिन उसका उपयोग करनेवाला दक्ष न हो तो उपकरण से कोई लाभ नहीं हो सकता है। अतः प्रभावशाली कथ्य के साथ दक्ष शिल्पी भी होना चाहिए जो अपनी दक्षता के बल पर शक्तिशाली
(ii) बिम्ब और ध्वनि की भाषा, दिखाने और सुनाने से परे जिसकी कोई अभिव्यक्ति नहीं है, पूर्णतया एक स्वतंत्र भाषा है। फलस्वरूप कथ्य एक ही हो तो भी भंगिमा में अन्तर आना जरूरी है। यही कारण है कि अन्यान्य शिल्प साहित्यों के लक्षण रहने पर भी चलचित्र अनन्य है।कथ्य को शक्तिशाली ।
सत्यजित राय लिखित 'चलचित्र' निबन्ध से ली गयी। इन पंक्तियों में बताया गया है कि चलचित्र की भाषा बिम्ब और ध्वनि की भाषा होती है। यह किसी अन्य रचना-विधा में नहीं होती है। । इसका लक्ष्य एक ही होता है दिखाने और सुनाने के द्वारा पूर्ण अभिव्यक्ति। दिखाने या कहने के कोण निर्देशक के व्यक्तित्व के अनुसार निर्मित होते हैं। फलतः कथ्य एक रहने पर भी कहने का ढंग बदल जाता है और उसके कारण प्रभाव भी बदल जाता है। यह अभिव्यक्ति का ढंग या भौगमा चलचित्र में विशेष महत्त्व रखती है। इसकी विशिष्टता पर चलचित्र की सफलता निर्भर करती है। सत्यजित राय का मन्तव्य है इसी विशेषता के कारण अन्यान्य शिल्प-साहित्यों के लक्षण से युक्त होने पर भी चलचित्र किसी दूसरे के समान नहीं है, अनन्य है। शिल्प-साहित्य का लेखक ने बार-बार प्रयोग किया है। इससे उसका तात्पर्य है साहित्य के अन्य रूप, यथा कहानी, उपन्यास, नाटक आदि की वह विशेषता जिसके कारण उनकी स्वतंत्र पहचान होती है।
(iii) बिम्ब यहाँ मात्र चित्र ही नहीं, वाङमय चित्र भी है। अर्थात् चित्र का चित्रत्व ही आदि-अन्त नहीं है, जैसा चित्र कला में होता है। यहाँ प्रमुख होता है चित्र का अर्थ। एक-एक चित्र एक-एक वाक्य हुआ करता है और समस्त चित्रों के लिखने से कथ्य पूरा होता है। चलचित्र के निर्वाक युग में भी चित्र अर्थ वहन करते रहे हैं। उनकी भाषा संलाप निरपेक्ष हुआ करती थी। प्रस्तुत गद्यांश 'चलचित्र' शीर्षक निबन्ध से उद्धृत है। इसके लेखक सत्यजित राय हैं। राय साहब ने फिल्म की भाषा के दो लक्षण बताये हैं-बिम्ब और ध्वनि (इमेज और साउण्ड)। यहाँ बिम्ब को उन्होंने स्पष्ट किया है। उनके अनुसार बिम्ब मात्र चित्र नहीं है। वह चित्र से अधिक है। चित्र का आदि-अंत चित्रत्व है जो चित्र कला का क्षेत्र है। बिम्ब चित्र से आगे बढ़कर अर्थ की व्यंजना करता है। वे इसे स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि प्रत्येक चित्र एक-एक वाक्य की तरह होता है। उन समस्त चित्रों के मिलने से कथ्य पूरा होता है। चित्रकला में चित्रों का ऐसा संयोजन या अन्वय नहीं होता है। वे इसे और स्पष्ट करते हुए ठोस बात कहते हैं कि जब मूक सिनेमा का प्रारम्भ हुआ था तब चित्र होता था लेकिन वह आज की तरह सवाक् न होकर निर्वाक हुआ करता था। फिर भी वह कथ्य को व्यक्त कर देता था। वहाँ मौन ही भाषा बनकर उभरता था। अत: वहाँ भाषा थी मगर वह संलाप या बातचीत नहीं करती थी, यह विशेषता सिनेमा में चित्रों के चित्रत्व के कारण नहीं उनके बिम्बत्व के कारण आती थी। अतः सिनेमा चित्र की भाषा नहीं, अर्थयुक्त चित्र यानी बिम्ब की भाषा है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubt please let me know