Class 12 Hindi Chapter -4 - Saransh , Objective Question and Subjective Question Answer | Bihar board examination |

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अध्याय - 4 - अर्धनारीश्वर सरांश   (रामधारी सिंह ‘दिनकर’ )
                              
                                                  -
दिनककर जी जितने बड़े कवि है उतने ही अच्छे चिन्तक और आलोचक भी । उनकी गद्य कृतियों में काव्ष् की भूमिका , अर्द्धनारीष्वर , संस्कृति के चार अध्याय , शुद्ध कविता की खोज आदि के अध्ययन से यह तथ्य प्रमाणित है । 
प्रस्तुत निबंध में दिनकर जी ने इस तथ्य का प्रतिपादन किया है कि संसार में कटुता - कोलाहाल की वृद्धि का कारण स्त्री - पुरूश  के जीवन व्यापार को पूरक रूप में देखने के बदले स्वतंत्र रूप में देखने की प्रवृत्ति है । यदि हम संसार का सुख - शांति चाहते है तो उसका एक मार्ग स्त्री पुरूश को समरूप में पूरक बनाना नितान्त आवश्यक है । 
निबंध का प्रारंभ भारतीय वाड्.मय में प्राप्त शिव के अर्धनारीश्वर रूप के निवेचन से होता है । लेखक का पक्ष है कि यह कल्पाना शिव और शक्ति के बीच पूर्ण समन्वय दिखाने को निकाली गयी होगी , किन्तु इसकी सारी व्याप्तियाँ यहाँ तक नहीं रूकती । दिनकर जी इसमें यह जोड़ते है कि अर्द्धनारीश्वर की कल्पना में कुछ इस बात का भी संकेत है कि नर नारी पूर्ण रूप से समान है और उनमें से एक के गुण दूसरे के दोश नहीं हो सकते है । 
इस नवीन सूझ को  निबंध आधार बनाकर सभ्यता के इतिहास का अवलोकन करते हुए दिनकर जी बतलाते है कि आदिम नारी और नर पूरी तरह समान रहे होंगे । दोनो की हर काम में समान भागीदारी रही होगी । जैसा हम पशुओ और पक्षियों के नर मादा में देखते है । दिनकर जी का सोचना है कि नारी की पराधीनता का प्रारंभ कृशि कार्य के आविश्कार युग से हुआ । इसके चलते नर का काम हो गया उत्पादन और नारी का काम संरक्षण । फलतः यहाँ से जिन्दगी दो टुकड़ो में बँट गयी । स्त्री घर में सिमटती गयी , उसकी दुनिया छोटी होता गयी और उसकी पराधीनता बढ़ती चली गयी । इस पराधीनता के कारण नारी अपने अस्तित्व के लिए पुरूश पर आश्रित होत चली गयी । पुरूश बन गया वृक्ष और नारी बन गयी लता जो बिना पेड़ के सहारे खड़ी होने में असमर्थ बनती चली गयी । सब मिलाकर दिनकर के शब्दों में ‘‘नारी का सारा मूल्य इस बात पर ठहरा कि पुरूशों को उसकी आवशकता है या नहीं । इससे नारी की पद मर्यादा कभी उठती और गिरती रही ।  । 
जीवन के प्रति को मार्ग । अपनाने वाले प्रवृत्तिमार्गी लोगों ने नारी को इसलिए महत्व दिया कि वह आनन्द की खान है । मगर ऐसे लोंगों ने भी स्त्री को कोमल , मोहक भोग्या रूप को ही महत्व दिया , उसके साथ सहचारी सम्बन्ध को नहीं । 
संन्यासमार्ग अपनाकर जीवन से विमूख होनेवालें निवृत्ति मार्गियों ने नारी की उपेक्षा की उन्हें अपने लिए आवशकता माना । बुद्ध ने अपने धर्म में नारी को स्थान तो दयिा लेकिन यह भी बता दिया कि नारी के प्रवेश के कारण उनका धर्म पाँच हजार वर्श के बदले पाँच सौ वर्श तक ही निरापद चल सकेगा । जैनियों ने तो नारी को मुक्ति के सर्वथा अनुपयुक्त माना और कहा कि उन्हे पुरूश योनि में जन्म लेने की प्रतीक्षा करनी चाहिए । उसके बाद ही संन्यास ग्रहण कर वे मुक्ति पा सकती है । 
 साहित्यकारों ने भी इसी स्वर में स्वर मिलाया । कबीर ने कहा -
      
                                                      नारी तो हम्हुंह  करी , तब ना किया विचार ।  
                                                      जब जानी तब परिहरी नारी महा विकार । । 

रवीन्द्रनाथ ने माता कि नारी की सार्थकता उसकी मोहकता में है  , आलोक की प्रतिमा बनने मै है ।  कर्म , वीर्य , शीक्षा आदि लेकर वह क्या करेगी  ? प्रेमचंद ने पुरूश में नारी के गुण को देवत्व माना मगर नारी मे पुरूश के गुण को राक्षसत्व । उन्होंने गोदान उपन्यास में लिखा है - पुरूश जब नारी के गुण लेता है तब वह देवता बन जाता है । किन्तु नारी जब नर के गुण सीखती है तब राक्ष्सी हो जाती है । 
दिनकर का मानना है कि नारियाँ अपने को कोमल , सुन्दर ,और भोग का उपादन कहे जाने को र्गारवपूर्ण मानती है । वे इसी रूप में अपनी प्रशसा सुनने की अभ्यस्त हो गयी है । पुरूश उनकी प्रशंशा इसलिए करता है कि वे उसी मे मगन रहें , उनके भीतर व्यक्तित्व स्वातंत्र की दिपशिखा दीप्त न हो । दिनकर के ही शबदों में ‘‘ वे देवों की रणक्लान्ति मदिर नयनों से हरनेवाली ’’ बनी रही । 
दिनकर जी नारी द्वारा अपने स्वरूप और शक्ति को विस्मृत किये रहना बुरा माने है । उनके अनुसार नर और नारी एक ही द्रव्य से निर्मित दो मूर्तियाँ है । प्रत्येक नर के भीतर एक नारी और प्रत्येक नारी के भीतर एक नर छिपा है । नारी ने अपने भीतर को दबाया है और पुरूश ने अपने भीतर की नारी को उपेक्षित किया है , इसिलिए आज संसार में इतना संघर्श और कटुता है । मर्द की कठोरता युद्धोलास में बदल कर कुरूप् हो गयी है । सारी दुनिया उसके नियंत्रण मे है और उसी की उछल कूद से अषांति है । इस स्थिति से निकलने का रास्ता यह है कि नर अपने भीतर की नारी को जगाये और नारी अपने भीतर के पुरूश्ज्ञ को । अर्द्धनारीश्वर केवल इस बात का प्रतीक नही है कि नारी और नर जबतक अलग है तबतक दोनों अधूरे है , बल्कि इस बात का भी कि पुरूश्ज्ञ मे नारीत्व की ज्योति जगे और यह कि प्रत्येक नारी मे भी पौरूश का स्पश्ट आभास हो । समय की मांग है कि स्त्री पुरूश का समन्वय हो , पूरक सम्बनध नहीं । 


⇒  अध्याय 4 :  Objective  Question 


1. ‘अर्धनारीश्वर’ पाठ के लेखक कौन है  ?

(A) नामवर सिंह
(B) रामधारी सिंह ‘दिनकर’
(C) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(D) रामचन्द्र शुक्ल

Answer ⇒ B

2. रामधारी सिंह “दिनकर’ की रचना कौन-सी है ?

(A) उसने कहा था
(B) जूठन
(C) तिरिछ
(D) अर्धनारीश्वर

Answer ⇒ D

3. दिनकर जी का जन्म बिहार के किस जिले में हुआ था ?

(A) समस्तीपुर
(B) बेगूसराय
(C) पटना
(D) भोजपुर

Answer ⇒ B

4. अर्धनारीश्वर में किस गुण का समन्वय है ? .

(A) नारी के
(B) पुरुष के
(C) नारी और पुरुष दोनों के
(D) इनमें कोई नहीं

Answer ⇒ C

5. दिनकर जी की पहली काव्य पुस्तक कौन-सी है ?

(A) कुरुक्षेत्र
(B) हुंकार
(C) रसवंती
(D) प्रणभंग

Answer ⇒ D

6. दिनकर जी की पहली कविता किस पत्रिका में प्रकाशित हुई ?

(A) छात्र सहोदर
(B) छात्र पत्रिका
(C) छात्र मित्र
(D) इनमें से कोई नहीं.

Answer ⇒ A

7. दिनकर जी की पहली कविता कब प्रकाशित हुई ?

(A) 1920 में
(B) 1925 में
(C) 1930 में
(D) 1935 में

Answer ⇒ B

8. दिनकर जी के अनुसार यदि पति विचार है तो पत्नी क्या है ?

(A) बुद्धि
(B) समझ
(C) भावना
(D) इनमें कोई नहीं

Answer ⇒ C

9. बुद्ध और महावीर ने नारियों को कौन-सा अधिकार दिया ?

(A) संन्यास लेने का।
(B) भिक्षुणी होने का
(C) पति के त्याग का
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ B

10. “पुरूष जब नारी के गुण लेता है तब वह देवता बन जाता है। किन्तु नारी जब नर के गुण सीखती है तब वह राक्षस हो जाती है।” यह किसका कथन है ?

(A). दिनकर जी का
(B) रवीन्द्रनाथ का
(C) प्रेमचन्द का
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ C

11. ‘अर्धनारीश्वर’ का किस विद्या से संबंध है ?

(A) निबंध
(B) कहानी
(C) एकांकी .
(D) व्यंग्य

Answer ⇒ C

12. किसने अपने जीवन के अन्तिम दिनों में नारीत्व की साधना की थी ?

(A) गाँधी जी ने
(B) रवीन्द्रनाथ ने
(C) दिनकर जी ने
(D) उदयप्रकाश ने

Answer ⇒ A

13. अर्द्धनारीश्वर शंकर और पार्वती का किस प्रकार का रूप है ?

(A) यथार्थ
(B) कल्पित
(C) आदर्श
(D) वास्तविक

Answer ⇒ B

14. प्रेमचन्द के अनुसार नारी जब पुरुष के गुण सीखती है तब वह क्या  हो जाती है ?

(A) आकर्षक
(B) साहसी
(C) कोमल
(D) राक्षसी .

Answer ⇒ D

15. निम्नलिखित में कौन-सी रचना दिनकर जी की नहीं है ?

(A) उर्वशी
(B) रश्मिरथी
(C) जूठन
(D) कुरुक्षेत्र

Answer ⇒ C

16. निम्नलिखित में कौन-सी रचना दिनकर जी की है ?

(A) सदियों का संताप
(B) परशुराम की प्रतीक्षा
(C) दरियाई घोड़ा
(D) रसातल यात्रा

Answer ⇒ B

17. “दिनकर’ को किस कृति पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ ?

(A) अर्धनारीश्वर
(B) उर्वशी
(C) हुँकार
(D) कुरुक्षेत्र

Answer ⇒ B

18. युद्ध और शांति की समस्या पर लिखी गई काव्यकृति है ?

(A) नील कुसुम
(B) कुरूक्षेत्र
(C) द्वंद्वगीत
(D) रश्मिरथी

Answer ⇒ B

19. अर्धनारीश्वर, कल्पित रूप है –

(A) शिव और पार्वती का
(B) राम और सीता का
(C) राधा और कृष्णा का
(D) विष्णु और लक्ष्मी का

Answer ⇒ A

20, गांधारी थी ?

(A) दुर्योधन की माँ
(B) कृष्ण की माँ
(C) अर्जुन की माँ
(D) बलराम की मा

Answer ⇒ A

21. प्रेमचंद थे ?

(A) गीतकार
(B) कथाकार
(C) फिल्मकार
(D) संगीतकार

Answer ⇒ B

22. “दिनकर’ का जन्म कब हुआ था ?

(A) 23 सितम्बर, 1908 को
(B) 22 दिसम्बर, 1912 को
(C) 28 सितम्बर, 1911 को
(D) 25 सितम्बर, 1913 को

Answer ⇒ A

23. ‘दिनकर’ किस युग के कवि है ?

(A) भारतेंदु युग
(B) छायावादी युग
(C) छायावादोत्तर युग
(D) नव्यकाव्यांदोलन युग

Answer ⇒ C

24. ‘संस्कृति के चार अध्याय’ किसकी कृति है ?

(A) गुलाब दास
(B) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(C) आचार्य सीताराम चतुर्वेदी
(D) रामधारी सिंह ‘दिनकर’

Answer ⇒ D

25. कौन-सी कृति रामधारी सिंह “दिनकर’ की लिखी हुई है ?

(A) शुद्ध कविता की खोज
(B) पुनर्नवा
(C) स्मृति की रेखाएँ
(D) कविता के नए प्रतिमान

Answer ⇒ A

⇒  अध्याय 4 :  Subjective Question 

Q 1 -  यदि संधि की वर्ता कुंती  और गांधारी के बीच हुई होती , तो बहुत संभव था कि महाभारत न मचता , लेखक के इस कथन से क्या आप समझते है ? 

उत्तर - यह एक संभावना है । शायद नहीं होता है । कारण अपनी पुत्रधुओं की सिन्दूर रक्षा के लिए तथा अपनी नारी सुलभ कोमलता के कारण दोनों सहमत हो जातीं । लेकिन तब भी प्रश्न है कि दोनों के पुत्र मानते तब तो । 

Q2 - अर्धनारीश्वर का कल्पना क्यों की गयी होगी ? आज इसकी क्या सार्थकता है ?

उत्तर - अर्धनारीश्वर केलल शिव रूप है । अन्य देवी देवता विशेषकर विश्णु-लक्ष्मी और ब्रह्या सरस्वती भी युग्म में है । इससे लगता है कि शिव के स्वभाव में ही कुछ विशेशता थी । सोचकर ऐसा किया होगा । हम जानते है कि शिव संहार के नाश के देवता है । उनके संहारकर रौद्र रूप पर पार्वती की कोमलता का अंकुश रहता होगा । ऐसे दिनकर जी का धारणा भी सही लगती है अर्धनारीश्वर । 
आज के युग में स्त्री - पुरूश में जो असंतुलन है , पुरूश प्रधान है नारी गौण- इसी के कारण संसार में कठोरता , कोलाहल अधिक है । असंतुलन हेै । समाज के संतुलन के लिए स्त्री - पुरूस का समान सबल होना आवश्यक है । 

Q3 - रवीन्द्रनाथ , प्रसाद और प्रेमचंद के चिन्तन से दिनकर क्यों अशंतुष्ट है ?

उत्तर -  तीनों स्त्री - पुरूश की समान या बराबरी का समर्थन नहीं करते । रवीन्द्र मानते है - नारी की सार्थक मोहकता में है । वह कीर्ति , बल तथा शिक्षा लेकर क्या करेगी ? प्रसाद स्पश्ट कहते है -नारी तुम केवल श्रद्धा हो । जीवन के समत्व मे पीयुश स्त्रोत बनकर बहो । प्रेमचन्द कहते है कि पुरूश में नारी का गुण आने से देवता बनता है मगर नारी में पुरूश का गुण आने से वह राक्षसी बन जाती है । 
दिनकर नारी - नर की समानता और समन्वय और समन्वय के समर्थ है । अतः वे इन तीनों का मन्तव्य नहीं मानते है । 

Q4 - प्रवृत्तिमार्ग और निवृत्तिमार्ग क्या है ? 

उत्तर - मनुश्य सांसारिक जीवन का अनुरागी बनकर गृहस्थ कहलात है । जीविकोपार्जन , संतानोत्पत्ति , स्त्रीप्रेम , समाज , राजनीति आदि के व्यापारों में लिप्तता आदि को जब वह पसन्द करता है तथा इसमें लिप्त रहता है तो इस जीवन प्रणाली को प्रवृत्ति अर्थात जीवन व्यापार के प्रति अनुराग । 
इससे भिन्न जब मनुश्य इन व्यापारों को लोभ मोह मद आदि शड्विकारों के रूप में देखत है , परिवार को बाधा मानता है तब वह इससे अलग होकर संन्यासी बन जाता है । उस समय वह संसार की नहीं केवल आत्म कल्याण की चिंता करता है और इश्वर से जुड़ने की साधना करता है । यही निवृत्ति मार्ग है । 

Q5 - बुद्ध ने आनन्द से क्या कहा ? 
उत्तर - बुद्ध ने आनन्द से कहा - आनंद ! मैने जो धर्म चलाया था , वह पांच सहस्त्र वर्श तक चलने वाला था , किन्तु अब केवल पांच सौ वर्श चलेगा , क्योकि नारियों को मैने भिक्षुणी बनने का अधिकार दे दिया है । 

Q6 - स्त्री को अहेरिन , नागिन और जादूगरनी कहने के पीछे क्या मंशा होती है ? क्या यह उचित है ?

उत्तर  - नागरियों की उपेक्षा करते हुए अंग्रेज लेखक वर्नाड षाॅ ने स्त्री केा अहेरिन , नागिन और जादूगरनी कहा । उनका ऐसा कहते के पीछे उनकी मंशा स्त्रियों की अवहेलना करना है । इनकी इजाद इसलिए पुरूश करता है , क्योकि उनसे उसे अपनी दुर्बलता अथवा कल्पित श्रेश्ठता को दुलारने में सहायता मिलती है । यह जरूरी नहीं है कि यह विकार दोनों में है । नाग और जादूगर के गुण भी नारी में कम पुरूश्ज्ञ में अधिक होते है एवं आखेट तो मुख्यतः पुरूश्ज्ञ का ही स्वभाव है । अतः स्त्री को इस तरह निकृश्ट उपाधियों से विभूशित करना उचित नहीं है ।
 
Q7 - नारी की पराधीनता कब से आरम्भ हुई ? 

उत्तर - राष्ट्रकवि दिनकर के अनुसार स्त्री की पराधिनता तब हुई जब मानव जाति ने कृशि का आविश्कार किया तो नारी घर में और पुरुष बाहर रहने लगा । यहाँ  से जिंदगी दो टुकड़ों में बँट गई । घर का जीवन सीमित और बाहर का जीवन विस्तृत होता गया एवं छोटी जिंदगी बड़ी जिंदगी के अधिकाधिक अधीन होती चली गई । कृशि के विकास के साथ ही नारी की पराधीनता आरम्भ हो गई  । 



Q 8 - प्रसंग स्पश्ट करें - 
(क) प्रत्येक पत्नी अपने पति को बहुत कुद उसी दृश्टि से देखती है जिस दृश्टि से लता वृक्ष को देखती है - 

उत्तर - लता का स्वभाव है कि वह किसी पेड़ के बिना विकसित नहीं हो पाती । पेड़ पर चढकर वह मनमाने ढंग से फैलने लगती है । यही स्थिति पत्नी की है । अपने विकास करने के लिए वह पति का सहारा चाहती है । उसके बिना अपने को असहाय समझती है । यहाँ लेखक ने पत्नियों के पति - आश्रित स्वभाव की ओर संकेत किया है । 

(ख) जिस पुरूश में नारीत्व नहीं , अपूर्ण है। 

उत्तर - जीवन की पूर्णता कठारता , कोमलता , ताप -षीतलता आदि के समन्वय में है । यदि पुरूश में नारी भाव न हो तो वह केवल कठोर और अषांति मचानेवाला होता है । अतः अधूरा होता है। स्त्री का थोड़ा गुण आने पर उसमें प्रेम , दया , कोमल ,शितलता आती है।  इसलिए नारीत्व विहीन पुरूष अधूरा माना जाता है । 

Q 9 - जिसे भी पुरूश अपना कर्मक्षेत्र मानता है , वह नारी काभी कर्मक्षेत्र है । कैसे ?  

उत्तर - इसे सिद्ध करने के लिए किसी तर्क की आवश्यकता नहीं है । वर्तमान जीवन में कल तक जो क्षेत्र मात्र पुरूशों के माने जाते थे वे आज नारियों से भरे है । चिकित्सा , व्यवसाय , प्रबंध , सेना , पुलिस, राजनीति, अध्यापन, प्रशासन आदि सभी क्षेत्र इसके उदाहरण है । 


  ⇒  अध्याय 4 : अति लघु उत्तरीय प्रश्नोउत्तर  
                      
                           
Q1 - अर्धनारीश्वर की कल्पना के विशय में दिनकर का क्या मन्तव्य है ? 

उत्तर - दिनकर का मन्तव्य है कि नर नारी पूर्ण रूप से समान है एवं उनमें से एक के गुण दूसरे के दोश नहीं हो सकते  
Q 2 - निवृत्ति मार्गी नारी को किस दृश्टि से देखते है ?
उत्तर - निवृत्ति मार्गी नारी को मुक्तिमार्ग की बाधा मानते है और उसे त्यागने में ही कल्याण समझते है । 

Q3 - जैनी नारियों के विशय में क्या धरणा रखते है ? 
उत्तर - जैनी मानते है कि पुरूश योनि में जन्म लेकर सन्यास मार्ग अपनाने पर ही नारी को मुक्ति मिल सकती है । 
Q4 - वर्तमान समाज में अंशित क्यों है ? 
उत्तर - पुरूश और स्त्री को अलग लिग इकाई मानने के कारण अंशित है । 

Q5 - वर्तमान विश्व जीवन पर किसका कब्जा है ? 

उत्तर -  वर्तमान विश्व जीवन पर पुरूशों का कब्जा है । वे प्रबल है और स्त्रियाँ उनकी तुलना में कमजोर । 

Q6 - दिनकर स्त्री - पुरूश के बीच कैसा सम्बन्ध चाहते है ? 
उत्तर - दिनकर स्त्री पुरूश के बीच बराबरी का सम्बन्ध चाहते है । आश्रय और आश्रित का नहीं । स्त्री पुरूश आपस में गाड़ी के दोनो पहिया बनें , पेड़ और लता नहीं । 

                             
⇒   व्याकरण से संबंधित प्रश्न


Q1 - निम्नलिखित शब्दों से संज्ञा बनाएँ - 
कल्पित , शितल , अवलंबित , मोहक , आकर्शक , वैयक्तिक , विधवा , साहसी । 

 उत्तर -        शब्द               -      संज्ञा 
               कल्पित             -    कल्पना 
              शीतल               -     शीत
               अवलंबित          -  प्रवलंब 
               मोहक               - मोह 
               आकर्शक            -  आकर्शक 
               व्यक्ति                - व्यक्ति 
               विधवा              -  वैधव्य  

Q2 - वाक्य प्रयोग द्वारा लिंग निर्णय करें । 

सन्यास , आयुश्मान , अंतर्मन , महौशधि  , यथेश्ट , मनोविनोद । 

उत्तर - संन्यास     -   (पु0) वृद्ध व्यक्ति का संन्यास सार्थक होता है । 
        आयुश्मान   -   (पु0) आयुश्मान बालक खुषियाँ मना रहा है । 
         अन्तर्मन   -    (पु0) मेरा अन्तर्मन बोलता है । 
         महौशधि    -    (स्त्री0) मन की षांति एक अच्छी महौशधि है । 
         यथेश्ट       - (पु0) यह आपका यथेश्ट कार्य है । 
        मनोविनोद  - (पु0) आपका मनोविनोद अच्छा लगा । 

Q3 - अर्थ की दृश्टि से नीचे लिखे वाक्यों की प्रकृत्ति बताएँ । 

(क) संसार में सर्वत्र पुरूश है और स्त्री स्त्री । 
(ख) किंतु पुरूश और स्त्री में अर्धनारीश्वर का यह रूप आज कहीं भी देखने में नहीं आता ह। 
(ग) कामिनी तो अपने साथ यामिनी की षांति लाती है । 
(घ) यहाँ से जिंदगी दो टुकड़ों में बँट गई । 
(ड.) विचित्र बात तो यह है कि इनमें से कई महात्माओं ने व्याह भी किया और फिर नारियों की निंदा भी की । 
उत्तर - (क) विधानवाचक वाक्य 
       (ख) नकरात्मक वाक्य 
       (ग) विधानवाचक वाक्य 
       (घ) विधानवाचक वाक्य 
       (ग) विस्मयादिवाचक वाक्य । 







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