Bihar board class 11th Hindi Solution पद्खंड chapter - 11 पृथ्वी – नरेश सक्सेना

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Bihar board class 11 Hindi book solution  padyakhand chapter - 11 Saransh , (सरांश  )

कक्षा - 11वी  पद्खंड अध्याय - 11  

              पृथ्वी – नरेश सक्सेना          

लेखक : नरेश सक्सेना 

अरुण कमल आधुनिक काल के एक संवेदनशील कवि हैं। वे समय, समाज और संवेदना तीनों से सरोकार रखते हैं। मनुष्यता की रक्षा उनकी चिन्ता का विषय है। प्रस्तुत कविता 'मातृभूमि' में उन्होंने परम्परा से हटकर भारतमाता को एक माँ के रूप में अनुभव करते हुए धरती की सेवा कर अन्न उगाने वाले धरती-पुत्र किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्या की त्रासदी को केन्द्र में रखा। इसलिए यह कविता पूर्ववर्ती कवियों द्वारा मातृभूमि पर लिखी गयी अन्य कविताओं से भिन्न है। कवि वर्षा काल में संध्या समय खुले आसमान के नीचे स्वयं को भींगता हुआ अचानक अनुभव करता है कि यह धरती मेरी माँ है। अर्थात् मेघ में भींगते हुए उसकी अनुभूति में पहली बार माँ और मातृभूमि की अभिन्नता कौंधती है। वह पाता है कि धान के पौधों ने धरती को इस तरह ढंक लिया है कि मार्ग का अस्तित्व लुप्त हो गया है। जिस तरह समुद्र ज्वार में लहराता आवेग के साथ तट की ओर दौड़ता है मानो छाती के सारे बटन खोले कोई व्यक्ति दौड़ता है उसी तरह कवि उस बच्चे की तरह धरती की ओर दौड़ता है जो मेले में माँ से बिछुड़ जाता है और अचानक अपनी माँ को पाकर उसकी ओर दौड़ पड़ता है। कवि कई बिम्बों में माँ को, धरती माँ को अनुभव करता है। वर्षा की फुहार पड़ते ही सबसे पहले चरती हुई बकरियाँ भागती हैं और किसी पेड़ के नीचे छिप जाती हैं। वह सड़क पर भींगते एक साँढ़ को देखता है जो पूरी सड़क छेंककर खड़ा है। उसे देखकर कवि को सिन्धु घाटी से प्राप्त उपादानों पर अंकित साँढ़ या बैल के चित्र की स्मृति हो आती है और वह साँढ़ जो सड़क पर खड़ा है सिंधु घाटी के साँठ की तरह अनुभव होता है। कवि बारिश में भींगकर काम करते मजदूरों की ओर दृष्टि डालता है तो लगता है कि वे मिट्टी के ढेले की तरह पानी सोख रहे हैं। इसी तरह घर के आँगन में नवविवाहिता स्त्री भींगती नाचती वर्षा का सुख लेती है। कवि वर्षा में भींगते कौवों के काले डैनों के नीचे के सफेद रोओं तक को भींगा हुआ पाता है। और फिर अचानक उसे इलायची के भीतर उसके छोटे-छोटे आपस में चिपके दाने प्यारे लगने लगते हैं। इस तरह इन सभी बिम्बों में उसे मातृभूमि की अनुभूति होती है। कवि कई दिनों से भूखे प्यासे बच्चे की भाँति माँ को चारों तरफ ढूँढ़ रहा था। आज जब भीख में मुट्ठी भर अनाज दुर्लभ है तब उसे चारों तरफ गर्म रोटी की भाप फैलती अनुभव होती है। उसे लगता है कि उसकी माँ नक्काशीदार रूमाल से ढँकी तश्तरी में खुबानी, अखरोट, मखान और काजू भरे हाथ में गर्म दूध का गिलास लिए आ रही है। यहाँ कवि ने यथार्थ और आकांक्षा के बीच के गहरे अंतर को रेखांकित कर विषय को मार्मिक बनाने का प्रयास किया है। कवि को अनुभव होता है कि यह धरती मात्र मिट्टी नहीं माँ है जो रसोई घर में है। रसोई घर की चौखट पर बच्चे कब से खड़े प्रतीक्षा कर रहे हैं वे भूखे हैं उन्हें माँ से भोजन पाने की प्रतीक्षा है। समय-चक्र का परिवर्त्तन-क्रम जारी है। धरती का रंग हरा से सुनहला होता है, फिर धूसर होता है, छप्परों से धुँआ उठता है और गिर जाता है अर्थात् धरती फसल उगाती है, भोजन बनता है लेकिन घर से निकाले गये निर्धन भूखे बच्चे जहाँ के तहाँ धरती माँ के रसोई घर की देहरी पर सिर टेके सो रहे हैं, उनकी स्थिति पूर्ववत् है। ये बच्चे उन किसानों के बच्चे हैं जिन्होंने खेती में हो रही लगातार हानि और कर्ज लेते रहकर खेती करने से मुक्ति पाने हेतु आत्महत्या कर ली है। ये बच्चे देश के कालाहांडी, आंध्रप्रदेश, पलामू (झारखंड) आदि विभिन्न क्षेत्रों के बच्चे हैं। ये यतीम अर्थात् अनाथ बच्चे हैं, बंधुआ मजदूर बच्चे हैं। कवि धरती माँ से अनुरोध करता है। कि इनके माथे पर हाथ फेर दो, इनकी भींगी लटों को सँवार दो, अर्थात् इनकी दशा बदल दो इनका अनाथपन दूर कर दो, इन्हें प्यार दो।

कवि एक प्रश्न करता है तुम किसकी माँ हो मातृभूमि ? उसका स्पष्ट आशय है कि तुम सम्पन्नों की माँ हो या निर्धनों की ? कवि अपने विषय में बताता है कि मेरे थके माथे पर हाथ फेरती, प्यार से निहारती तुम्हीं तो हो। मैं भींग रहा हूँ मैं कील की तरह बीचोंबीच भींगता खड़ा हूँ, धरती नाच रही है, आसमान नाच रहा है। कवि अपने को भींगने के केन्द्र में खड़ा कर यह बताना चाहता है कि मैं उन गरीब अनाथ भूखे बच्चों का प्रतीक हूँ, प्रतिनिधि हूँ। यह वर्षा नहीं तुम्हारी स्नेह-वर्षा है। तुम मात्र धरती नहीं, माता हो और इसलिए देश में भी जो भी अनाथ हैं, भूखे हैं उन सब की तुम माँ हो। वे सब तुम्हारी कृपा के याचक हैं, प्रतीक्षारत हैं। अत: मातृधर्मिता का आग्रह है कि तुम्हारा कोई पुत्र भूखा और अनाथ न रहे।


शब्दार्थ : कन्दरा = गुफा, खोह, नक्काशीदार - बेल बूटे बनाये हुए, फूल-पत्तियाँ आदि की आकृति जिस पर बनी हो, खुबानियाँ - एक खाद्य पदार्थ, धूसर मटमैला। कालाहांडी, पट्टन, नरौदापटिया विभिन्न स्थानों के नाम, यतीम लावारिश, जिनके माता-पिता न हों।

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Bihar board class 11 Hindi book solution padyakhand  chapter - 11 Objective (स्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर )



(1) मातृभूमि को कवि ने किस रूप में अनुभव किया है ? 

(क) माँ 

(ख) बहन 

(ग) पत्नी 

(घ) बेटी

उत्तर –क

(2) 'मातृभूमि' कविता के कवि हैं ?

(क) नागार्जुन

(ख) त्रिलोचन

(ग) अरुण कमल

(घ) केदारनाथ सिंह

उत्तर – ग

(3) मातृभूमि में वर्णित साँढ़ कहाँ का है ?

(क) कुल्लू घाटी

(ख) सिन्धु घाटी

(ग) हल्दी घाटी

(घ) कहीं का नहीं।

उत्तर – ख

(4) भींगती हुई नवोढ़ा आँगन में क्या कर रही है ?

(क) नृत्य

(ख) गायन

(ग) वादन

(घ) रुदन

उत्तर – क


(5) ढेला की तरह वर्षा को कौन सोख रहा है ? 

(क) कवि 

(ख) मजदूर

(ग) साँढ़

(घ) नवोढ़ा

उत्तर – ख

6. धरती-आसमान के बीच भींगता कौन खड़ा है ? 

(क) किसान 

(ख) बच्चे 

(ग) कवि 

(घ) मातृभूमि 

उत्तर – ग

(7 ) भोजन लेकर कौन आ रही है ? 

(क) नौकरानी 

(ख) माँ 

(ग) बहन 

(घ) पत्नी

उत्तर – ख

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Bihar board class 11 Hindi book solution padyakhand chapter - 11 Very Short Quetion (अतिलघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर )


(i) वर्षा में भींगने का सुख कौन-कौन ले रहे हैं ? 

उत्तर –  वर्षा में भींगने का सुख मजदूर, नवोढ़ा स्त्री, कौए और साँढ़ ले रहे हैं। स्वयं कवि भी यह सुख ले रहा है।

(ii) आंध्र के किसानों के बच्चे कैसे हैं ? 

उत्तर – आंध्र के किसानों के बच्चे भूखे, यतीम और अनाथ हैं, बंधुआ हैं। 

(iii) कवि को रास्ता क्यों नहीं सूझ रहा है ? 

उत्तर – धान के पौधों से धरती ढँकी है। बढ़े हुए पौधों ने अधिक फैलकर रास्तों को भी ढँक लिया है। इसलिए कवि को रास्ता नहीं सूझता है। 

(iv) बच्चे रसोई घर की देहरी पर क्यों खड़े हैं ? 

उत्तर – बच्चे यतीम और अनाथ हैं। इनके पास खाने के लिए कुछ नहीं है। अतः ये भोजन की आशा में रसोईघर की देहरी पर खड़े हैं। 

(v) कवि मातृरूपा भूमि से बच्चों के विषय में क्या अनुरोध करता है ? 

उत्तर – कवि मातृरूपा भूमि से बच्चों के माथे पर हाथ फेरने तथा इन

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Bihar board class 11 Hindi book solution Padyakhand chapter - 11  Short Quetion (लघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर )


प्रश्न-1. यह कविता किसे सम्बोधित है  ॽ 

उत्तर- यह कविता एक साथ माँ और मातृभूमि दोनों को संश्लिष्ट रूप में संबोधित करती है। 

प्रश्न-2. कवि ने अपनी गति की तुलना समुद्र से क्यों की है ? 

उत्तर – मेले में खोया बच्चा राह ढूँढ़ने या बिछुड़े अभिभावक या माँ को खोजने के लिए कभी आगे जाता है कभी पीछे आता है। उसमें सीधी राह जाने की नहीं भटकाव की स्थिति होती है। समुद्र की लहरें भी बार-बार तट तक आकर पीछे लौटती हैं या इधर-उधर फैलती हैं। दोनों में भटकाव का तत्त्व प्रधान होता है। इसीलिए कवि ने ऐसी उपमा दी है। 

प्रश्न-3. कवि ने मजदूरों की तुलना बारिश मिट्टी के ढेले से क्यों की है ? 

उत्तर-मजदूर बारिश में भींगते हुए भी काम करते हैं।उनकी नग्न देह पर गिरती बूँदें उन्हें  भिंगोती हुई नीचे गिरती हैं। स्थूल कर्मठता के कारण कवि ने ढेले से उनकी उपमा दी है। 

प्रश्न-4. उद्धृत काव्य-पंक्तियों का मर्म उद्घाटित करें। 

घर के आँगन में............... ये सब तुम्हीं तो हो। 

उत्तर-इन पंक्तियों में बारिश में भींगने के तीन चित्र हैं। प्रथम नवोढ़ा का है। वह आँगन में भींगती हुई बन्धन से मुक्ति के कारण नाच रही है। यह मुक्ति जन्य प्रसन्नता की अभिव्यक्ति है। दूसरी पंक्ति में एक तथ्य है। कौओं के घोंसले ऐसे नहीं होते कि उनकी रक्षा हो सके। अतः वे भींग जाते हैं। भींगने पर उनके पंख उड़ने की स्थिति में नहीं होते। अतः वे कहीं बैठकर निरन्तर भींगते रहते हैं और पंखों के नीचे उगे किचिति हल्के रोओं तक भींग जाने की नियति झेलते हैं। अतः कौए के चित्र में भींगते जाने की विवशता का वर्णन है। तीसरे चित्र में कवि ने एक भिन्न चित्र दिया है। उसका सम्बन्ध वर्षा में भींगने से नहीं है। वहाँ प्यार से गुत्थम गुत्था दाने सहज एकता भाव को व्यक्त करते हैं। जो राष्ट्रीय एकता की व्यंजना करता है

प्रश्न-5. कविता में किस तरह की भाप का संकेत है ? इस भाप के इतना फैलने में किस तरह की व्यंजना है ?

उत्तरं-मुट्ठी भर अनाज दुर्लभ होना 'निर्धनता' का सूचक है। जबकि गर्म रोटी की भाप फैलना अमीरी का प्रतीक है। अतः यह भाप आर्थिक सुविधाओं की विषमता के फैलाव की भाप है। 

प्रश्न-6, कई दिनों से भूखे-प्यासे कवि को माँ किस रूप में दिखलाई पड़ती है ? कवि ने किन स्थानों के बच्चों का उल्लेख किया है और क्यों ?

उत्तर- 

  • (i) कवि को माँ नक्काशीदार रुमाल से ढँकी तश्तरी में खूबानी, अखरोट, मखाना और काजू भर कर और हाथ में गर्म दूध का ग्लास लिए आते हुए दिखायी पड़ती है। 
  •  (ii) कवि ने कालाहांडी (उड़ीसा) आंध्रप्रदेश और पलामू के पट्टन नरौदा पटिया के बच्चों का उल्लेख किया है।

प्रश्न-7. उद्धृत पंक्तियों का अर्थ लिखें। कवि ने यहाँ 'भींगे केश' क्यों लिखा है ? ये यतीम ये अव्यय श्यामल हाथों से।

उत्तर-कवि ने कालाहांडी आदि जिन स्थानों के बच्चों का उल्लेख किया है वे अभावग्रस्त बच्चे भिखमंगों के बच्चों की तरह यतीम या अनाथ हैं। ये जहाँ तहाँ बंधुआ मजदूर की तरह काम

करने को विवश हैं। चूँकि धरती धनी-गरीब, अनाथ-सनाथ सबकी माँ है। अतः सबको प्यार पाने का हक है और माँ का स्वभाव होता है सभी बच्चों को बिना भेद भाव के स्नेह देना। इसलिए कवि मातृभूमि से अपने श्यामल हाथों से इनके केश सँवार देने की प्रार्थना करता है। प्रसंग बारिश का है और बच्चे अनाथ हैं अतः इधर-उधर बेघर भटकने के कारण इनके केश भींगे हैं। अभावग्रस्तता और भूख से उत्पन्न रूदन के कारण भी केशों के भींगने की बात सोंची जा सकती है। 

प्रश्न-8. 'तुम किसकी माँ हो मातृभूमि' इस प्रश्न का मूल भाव आपके विचार में क्या है ?

उत्तर – इस पंक्ति में प्रश्न का आशय है कि क्या तुम केवल अमीरों की मातृभूमि हो ? यतीम और गरीब किसान-मजदूरों की माँ नहीं हो क्या ? इसका व्यंग्यार्थ है कि तुम भूखे और अनाथ लोगों की भी माँ हो। उनका भी तुम पर हक है। कवि के प्रगतिवादी चिन्तन से जोड़ने पर यह धरती पर गरीबों के हक का उद्घोषक कथन है।

प्रश्न-9. 'और मैं भींज रहा हूँ' पंक्तियों का आशय लिखें।

उत्तर –कवि वर्षा में भींग रहा है। उसे लग रहा है कि धरती नाच रही है, आसमान नाच रहा है और वह दोनों के बीचोंबीच भींग रहा है। संभव है वह स्वयं को नाचता अनुभव कर रहा हो और इसी मन के नृत्य को उसने धरती और आकश पर प्रक्षेपित कर दिया हो जिसके कारण उसे दोनों नाचते प्रतीत हो रहे हों।

प्रश्न- 10. कवि ने स्वयं को 'भींजना' कहा है और अन्य को 'भींगना'। ऐसा क्यों ? 

उत्तर-इसका एकमात्र कारण यही हो सकता है कि वह बिहार का निवासी है। यहाँ भींगना की जगह भींजना का ही प्रयोग जन सामान्य द्वारा किया जाता है।

प्रश्न-11. शब्दों के प्रयोग में कवि अपनी पीढ़ी में अतिशय सावधान है। इस सन्दर्भ में कुछ उदाहरण कविता से चुनकर दें। 

उत्तर-

ऐसे कुछ सावधान प्रयोग ये माने जा सकते हैं - 
सिंधु घाटी का चौड़े पट्टेवाला साँढ़
मिट्टी के ढेले की तरह बारिश सोखना 
शंखध्वनि कन्दराओं के अन्धकार को हिलोरती
नवौढ़ा भींगती नाचती प्यार से गुत्थमगुत्था
नक्काशीदार रूमाल गर्म रोटी की भाप
देश सँवारना इत्यादि

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Bihar board class 11 Hindi book solution padyakhand chapter - 11  Hindi  Grammar  (भाषा की बात )


प्रश्न-1. वचन परिवर्त्तन करें। 

उत्तर-पौधों = पौधा, रास्ता रास्तों, बकरियाँ = बकरी, पेड़ = पेड़ों, मजदूर = मजदूरों, तश्तरी = तश्तरियाँ, गिलास = गिलासों, छप्परों = छप्पर, देहरी देहरियों, हाथों = हाथ, किसानों = किसान। 

प्रश्न-2. अनाथ शब्द में कौन सा समास है ?

उत्तर-अनाथ शब्द में नञ समास है।

प्रश्न-3. कविता की निजवाचक सर्वनाम वाली पंक्तियाँ लिखें –

उत्तर –

(i) तब अचानक मुझे लगता है। 

(ii) मुझे रास्ता तक नहीं सूझता।

(iii) मेरी माँ मेरी मातृभूमि 

(iv) मेरी माँ आ रही है। 

(v) अपने श्यामल हाथों से 

(vi) किसकी माँ हो मेरी मातृभूमि ? 

प्रश्न-4. पर्यायवाची शब्द लिखें – 

उत्तर –

आसमान =  आकाश, गगन, नभ 

धरती = भू, धरा, पृथ्वी धरित्री 

समुद्र = जलधि, उदधि, सागर, सिन्धु

पेड़ = वृक्ष, तरू

माँ = जननी, माता 

दूध = पय, क्षीर 

प्रश्न-5. विशेषण चुनें – 

उत्तर– 

(क) काले, सफेद 

(ख) गर्म, इतनी, चारों

(ग) हरा, सुनहला, धूसर 

(घ) भींगे, श्यामल 

(ङ) थके

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Bihar board class 11 Hindi book solution Padyakhand chapter - 11  Hindi  Grammar  (व्यख्या )


(1) आज इस शाम..........................मेरी माँ मेरी मातृभूमि

अरुण कमल रचित 'मातृभूमि' कविता की प्रस्तुत पंक्तियों का चित्र यह है कि संध्या काल में हो रही वर्षा में कवि भींग रहा है। स्वभावत: ऊपर आसमान है और पैरों तले धरती। वह बीचों बीच है। इस भींगते क्षण में अचानक उसके भीतर एक अनुभूति कौंधती है। इस अनुभूति में वह मातृभूमि अर्थात् अपनी जन्मभूमि को जननी के रूप में अनुभव करता है। कवि का अभिप्राय यह है कि धरती और माँ दोनों दो भौतिक अस्तित्व हैं। इन दोनों को एक अनुभव करना किसी विशिष्ट क्षण में संभव होता है। कवि के जीवन में इस एकात्मकता की अनुभूति वर्षा में भी गाते हुए क्षण में संभव हुई है।

(2) धान के पौधों ने तुम्हें...............अंधकार को हिलोरती।

में जब 'मातृभूमि' शीर्षक कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अरुण कमल ने एक चित्र खींचा है। चित्र के अनुसार धरती, धान की फसल से इतनी भरी हुई है कि धरती पूरी तरह ढंक गयी है। रास्ता तक इतना ढँक गया है कि दिखाई नहीं पड़ता है। कवि अपने को मेले में खो गये बच्चे की तरह अनुभव करता है। ऐसे बच्चे में अपनी माँ को खोजने की तीव्र उत्कंठा होती है और पा जाने पर वह बेतहाशा माँ की तरफ दौड़ पड़ता है। कवि इसी प्रकार की आतुरता से धरती की ओर दौड़ पड़ता है। कवि इसी प्रकार की आतुरता से धरती की ओर दौड़ पड़ा है। इस दौड़ने की ललक और तीव्रता को व्यक्त करने के लिए वह दूसरा चित्र देता है। वह चित्र है समुद्र का। समुद्र ज्वार उठता है तो पानी का आवेग बड़ी तीव्रता से तट की ओर दौड़ता है और तट की धरती को अपने भीतर समेट लेता है। ऐसा लगता है मानो समुद्र ने कोई कोट पहन रखा हो और उसके सारे बटन खोलकर हटाता हुआ तट की और उसे अपनी छाती में चिपका लेने के लिए दौड़ रहा हो। यहाँ यह टिप्पणी करना आवश्यक समझता है कि छाती के सारे बटन खोले हहाते के दौड़ते आने का यह बिम्ब कहीं से भी कविता की सुन्दरता में कोई योगदान नहीं देता। यदि बटन खोलने से कवि का कोई विशेष अभिप्राय है तो वह स्पष्ट नहीं है। इसी तरह कन्दराओं से अन्धकार को हिलोरती आने वाली शंख-ध्वनि का क्यों वर्णन हुआ है यह स्पष्ट नहीं है। यदि इसका अर्थ प्रकाश का शंखनाद है और अन्धेरेपन को तोड़ने का उपक्रम है तो उसका प्रयोजन व्यक्त नहीं है। 

(3) वे बकरियाँ जो पहली बूँद................ पूरी सड़क छेके।

'मातृभूमि' कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में बारिश होने से घटित दो चित्र दिये गये हैं। प्रथम वर्षा की पहली बूँद गिरते ही बकरियाँ भागकर किसी घर या वृक्ष के नीचे छिप जाती हैं। यह उनकी स्वाभाविक वृत्ति है। इसके विपरीत साँढ़ बड़े मजे से सड़क पर भींगता खड़ा रहता है। साँढ़ के प्रसंग में कवि ने तीन विशेषताओं का उल्लेख किया है। प्रथम यह कि उसके अगले पैरों से लेकर मुँह के बीच गले के नीचे पट्टा जैसा भाग लटका है वह काफी चौड़ा है। अर्थात् साँढ़ लम्बे चौड़े डील डौल वाला है। द्वितीय यह कि कवि को सड़क पर भींगता वह भारी-भरकम साँद सिन्धु घाटी की खुदाई में मिले उपादान पर बने साँढ़ के चित्र की याद दिलाते हैं। तृतीय साँढ़ पूरी सड़क छेंककर खड़ा है। इन चित्रों के माध्यम से संभवतः कवि यह बताना चाहता है वर्षा क्रान्ति का विस्फोट है। जब क्रान्ति होती है तो बकरी जैसे लोग भाग खड़े होते हैं जबकि साँढ़ जैसे बलवान लोग पर्वत की तरह अडिग भाव से डँटे रहते हैं। साँढ़ और बकरी के इस बिम्ब को 'योग्य जन जीता है' की उक्ति की व्याख्या के रूप में भी ग्रहण किया जा सकता है। ।

(4) वे मजदूर जो सोख रहें है ..............वे सब तुम्हि तो हो   

अरुण कमल ने अपनी मातृभूमि कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में वर्षा में भींगते कुछ लोगों के चित्र दिये हैं। प्रथम चित्र उस मजदूर का है जिसका शरीर ढेले की तरह वर्षा के जल को सोख रहा है अर्थात् मजदूर भींगता हुआ भी अपने काम में तन्मय है। दूसरा चित्र उस नवविवाहिता का है जो घर से बाहर न निकलने के लिए विवश है। अतः वह घर के आँगन में भींग रही है और भींगने की प्रसन्नता को नाच-नाच कर व्यक्त कर रही है। अर्थात् वर्षा उस नवोढ़ा के लिए आनन्ददायक है। तीसरा चित्र कौवे का है। वह कहीं बैठा भींग रहा है। उसके पंख तो गीले हो ही गये हैं पंखों के नीचे जो हल्के सफेद रंग के रोयें हैं वे भी भींग गये हैं। अतः वह भींगते रहने को विवश है। चौथा चित्र इलायची का है जिसके भीतर दाने आपस में इस तरह चिपके हैं मानो प्यार के अतिरेक में गुत्थम-गुत्था हो गये हैं। कवि बताना चाहता है कि हे मातृरूपा मातृभूमि इन सभी चित्रों में तुम्हारी ही अभिव्यक्ति है तुम्हारी ही तन्मयता तुम्हारा ही उल्लास और प्यार व्यक्त है। 

(5) कई दिनों से भूखा प्यासा........... दूध का गिलास लिए।

अरुण कमल ने अपनी प्रस्तुत पंक्तियों में धरती के मातृरूप को चिह्नित करने के लिए एक चित्र दिया है। कवि के माध्यम से भूखे प्यासे लोग कई दिनों से चारों तरफ मातृरूपा भूमि को ढूँढ़ रहे हैं। ढूँढ़ने का कारण स्पष्ट है। कवि इच्छा और यथार्थ की विषमता का विडम्बना भरा चित्र अंकित करता है कि आज जब भूखे लोगों को भीख में एक मुट्ठी अनाज दुर्लभ है। तब चारों तरफ गर्म रोटी की, इतनी भाप क्यों फैल रही है ? कवि का तात्पर्य संभवतः यह है कि एक तरफ लोग रोटी के लिए तड़प रहे हैं और दूसरी तरफ इतनी रोटियाँ हैं अर्थात् इतनी समृद्धि है कि उसकी गर्मी भाप बनकर फैल रही है और दूसरों की भूख को उत्तेजित कर रही है। लेकिन शायद यह अभिप्राय कवि का नहीं है। रोटियों की भाप से भूखे लोगों को अनुमान होता है कि शायद माँ नक्काशीदार रुमाल से ढँकी तश्तरी में खुबानी अखरोट, काजू भरे और हाथ में गर्म दूध का गिलास लिए आ रही है।

(6) ये सारे बच्चे तुम्हारी रसोई .................सिर टेकसो रहे माँ । 

कवि अरुण कमल ने अपनी 'मातृभूमि' कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में भूमि को माँ के रूप में चित्रित किया है। जिस तरह भूख लगने पर बच्चे रसोई घर की चौखट पर जाकर खड़े हो जाते हैं भोजन पाने की प्रत्याशा में, उसी तरह भारतमाता के भूखे बेटे गरीब बेटे न जाने कवि से इसके रसोई घर की चौखट पर खड़े इस बात के लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं कि धरती माँ के द्वारा दिये गये अन्न-धन में से उन्हें भी उनका उचित भाग मिलेगा। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। धरती पौधों से हरी होती है, फिर अन्न की बालियों से सुनहली और फिर उनके कट जाने पर धूसर। उसका रंग बदलता रहता है अर्थात् इसी तरह प्रत्येक वर्ष बीतता जाता है। जिनके पास अन्न होता है वे पकाते हैं जिसका धुँआ छप्परों से निकलता है और इसी तरह क्रम चलता रहता है। लेकिन जो बच्चे बेघर हो गये हैं वे वहीं के वहीं हैं। वे मातृरूमा धरती की देहरी पर भूखे ही सो गये हैं। अर्थात् उनकी दशा नहीं बदली है। ये बच्चे कालाहांडी, आंध्रप्रदेश, पलामू आदि स्थानों के उन किसानों के, धरती पुत्रों के बेटे हैं जिनके पिताओं ने कृषि कर्म की निरन्तर उपेक्षा की है। बढ़ती लागत और कम होती आय तथा कर्ज से ऊबकर आत्महत्या कर ली है। यहाँ कवि का तात्पर्य कम उम्र वाले बच्चों से नहीं है। उसका आशय कृषि-कर्म से जुड़े उन हजारों किसानों से है जो अब तक आत्महत्या कर चुके हैं या कर रहे हैं।

(7) ये यतीम ये अनाथ ये बंधुआ ..........................तुम किसकी माँ हो मेरी मातृभूमि ? 

अरुण कमल की 'मातृभूमि' शीर्षक कविता की प्रस्तुत पंक्तियाँ अत्यन्त मार्मिक हैं। कवि भूखे किसानों को यतीम अनाथ और बंधुआ मानते हुए धरती माँ से प्रार्थना करता है कि अपने श्यामल हाथ इनके माथे पर फेर दो, इनके भींगे केशों को सँवार दो। अर्थात् इन्हें विपन्नता से मुक्ति का आशीर्वाद दे। यही कवि एक ज्वलन्त प्रश्न उठाता है। तुम किसकी हो मेरी मातृभूमि ? स्पष्टतः वह सीधा सवाल पूछना चाहता है समाज से, व्यवस्था से कि धरती किसकी है उपजाते-बेकार अन्न, उपजाने वाले किसानों की या उनके द्वारा उपजाये अन्न को शोषण के बल पर हस्तगत कर मौज उड़ाने वाले अमरलता सदृश परजीवी लोगों की ? प्रश्न की भंगिमा में आक्रोश है कृषक-विरोधी सारे तत्त्वों के प्रति और यह स्पष्ट घोषणा भी कि धरती सेवा करने वाले धरती पुत्रों की है शोषकों की नहीं।

(8) मेरे थके माथे पर हाथ फेरती ............ भींगता बीचोंबीच

'मातृभूमि' कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अरुण कमल ने माँ और मातृभूमि में तदाकारता का बोध व्यक्त किया है। वह अनुभव करता है कि मातृरूपा भूमि उसे प्यार से ताक रही है, उसके माथे पर हाथ फेर रही है और वह भींग रहा है। उसे लगता है कि वह धरती-आसमान के बीचोंबीच कील की तरह खड़ा है और उसी कील पर धरती नाच रही है, आसमान नाच रहा है। यहाँ कवि को ऐसी प्रतीति दो कारणों से होती है। प्रथम यह कि वर्षा में मग्न धरती के स्नेह से उत्पन्न आनन्द की अभिव्यक्ति हो रही है। दूसरे कवि सारी प्रकृति में लय की विराट् कल्पना करता है जिस लय के फलस्वरूप यह सारा संसार किसी विराट् सत्ता के संकेत पर नृत्य करता ज्ञात होता है।




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