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Class 11 Hindi Book Solution
Bihar board class 11 Hindi book solution padyakhand chapter - 10 Saransh , (सरांश )
कक्षा - 11वी पद्खंड अध्याय - 10
जगरनाथ – केदारनाथ सिंह
लेखक : केदारनाथ सिंह
आम आदमी के जीवन के विविध पक्षों को प्रस्तुत कर उसके सुख-दुःख को वाणी देना हिन्दी की नयी कविता की एक प्रमुख विशेषता है। केदारनाथ सिंह रचित 'जगरनाथ' कविता इसी प्रवृत्ति पर रचित है जिसमें कवि ने अपने बचपन के साथी जगरनाथ दुसाध के साथ संवाद स्थापित करने की चेष्टा की है। जगरनाथ से कवि की मुलाकात होती है। वह तत्परतापूर्वक उसे रोककर हालचाल पूछता है। हालचाल से सम्बन्धित प्रश्नों में उसके स्वास्थ्य, कामधाम तथा बच्चों के प्रति जिज्ञासा है। इससे हटकर जगरनाथ के दरवाजे पर खड़े नीम के पेड़, वर्षा की स्थिति तथा आमों के पकने के विषय में जिज्ञासा है। कितने बरस बाद तुम्हें देख रहा हूँ, यह तुम्हारे ललाट पर गुम्मट-सा क्या उग आया है, तुम्हारा जी कैसा है आदि कथनों के सहारे कवि संवाद को आत्मीयता के रस में डुबाने की चेष्टा करता है। फिर स्वयं ही जगरनाथ की तरफ से बोलते हुए अपने बारे में बताता है कि खाता-पीता हूँ, क्लास में बक आता हूँ अर्थात् पढ़ा आता हूँ, समय मिलने पर दिन में भी एकाध झपकी नींद लेकर आराम कर लेता हूँ। इससे लगता है कवि अध्यापक है। वह लगे हाथ पर हमेशा लगता है मेरे भाई कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है" कहकर देश-समाज-समय आदि के प्रति अपनी नपुंसक बौद्धिक जागरूकता का संकेत दे देता है। इस प्रसंग को यहीं लटका कर वह फिर जगरनाथ की ओर मुड़ता है और उसके कामधाम के बारे में पूछता है जबकि उसे शायद पता भी नहीं है कि जगरनाथ कौन-सा काम कर रहा है। इसी बीच वन-सुग्गों की एक टोली उड़ती हुई उसके सिर पर से गुजर जाती है और तुरत वह उनकी ओर मुखातिब होकर जगरनाथ को बताता है कि अब जीवन प्रकृति से बहुत दूर हो गया है और यदि आसमान में कभी रंग-बिरंगे डैने अर्थात् उड़ते पक्षी दीख जाते हैं तो मन को राहत अनुभव होती है। लगता है भीतर की कोई सहज आकांक्षा जो तनावपूर्ण जिन्दगी से घिर कर छटपटा रही थी वह चैन पा गयी है। वैसे वह अपनी लापरवाही बताये बिना नहीं रहता कि यह सब है तो है। इनके न रहने पर भी जिन्दगी चल तो जाती ही है। कवि आत्माभिव्यक्ति के वृत्त से निकलकर फिर जगरनाथ की ओर मुखातिब होता है। वर्षा तथा आमों के पकने के विषय में जिज्ञासा करता हुआ यह बताने से वह नहीं चूकता है कि आमों है के विषय में उसकी क्या धारणा है ? कविता की पंक्तियों से ज्ञात होता है कि आम उसकी नजर में एक अजब-सा फल है जिसमें स्वाद और खुशबू दोनों की दुनिया है। यह विशेषता अन्य फलों में नहीं होती।
इतनी देर तक अपने बारे में अपनी चिन्ता और रुचि के बारे में बताने के बाद उसका ध्यान जब जगरनाथ पर केन्द्रित होता है तो वह पाता है कि जगरनाथ लगातार चुप है खड़ा है, उसके ओठ फड़क रहे हैं मानो कुछ कहना चाहता है और उसकी दृष्टि में एक अजीब-सी बेधकता है। कवि को एहसास होता है कि उसने कवि के वक्तव्य में निहित नकलीपन, झूठ और शिष्टाचार की औपचारिकता को पकड़ लिया है। इसलिए 'चोर की दाढ़ी में तिनका' की उक्ति चरितार्थ करता हुआ वह तुरंत पूछ बैठता है कि तुम्हें मेरी बातों में झूठ की गंध आ रही है जो इस तरह मुझे
सके बाद कवि का सारा गणित गड़बड़ा जाता है। वह उसे आग्रहपूर्वक प्रतीति हिलाने और अपनत्व प्रदर्शित करने के बदले पूछने लगता है क्या तुम्हें काम पर जाना है, क्या तुम्हें जल्दी है ? और फिर बिना उसके उत्तर की प्रतीक्षा किए मानो उससे जान छुड़ाने के उद्देश्य से कहता चला जाता है
विचित्र दृष्टि से ताक रहे हो ?
“तो जाओ मेरे भाई
रोकूँगा नहीं
जाओ जाओ...।"
स्वभावतः इसके बाद जगरनाथ चला जाता है कवि को न देखता हुआ। लेकिन उसकी न देखनेवाली यह दृष्टि कवि को इतनी तीक्ष्ण धारवाली छुरी अनुभव होती है जो उसे भीतर तक चीर-फाड़ डालती है।
इस कविता पर गहरी दृष्टि से विचार करने पर दो तीन बातें सामने आती हैं। पहली यह कि यह एकालापी संवाद - शैली की कविता है, कवि स्वयं भी बोलता है और जगरनाथ की ओर से भी। जगरनाथ केवल खड़ा है। उसके पास फड़कते ओठ और बेधक दृष्टि के सिवा कोई भाषा नहीं है। दूसरी बात कि कवि बहुत बेचैनी और जल्दीबाजी में जिज्ञासाएँ करता है। अतः वह एक ढंग से बातें न कहकर इस डाल से उस डाल उछलता है। हमेशा ऐसा लगता है कि कहीं कुछ गडबड़ जरूर है और नहीं है तो भी चलती ही रहती है जिन्दगी आदि पंक्तियाँ मुख्य कथ्य पर चिप्पी की तरह चिपकी लगती है। इससे जगरनाथ को कोई वास्ता नहीं है। कवि अपने को आधुनिक बुद्धिजीवी अध्यापक दिखाना चाहता है और उसी क्रम में नकली हो जाता है, जैसे- कोई चोर - अपराधी क्या मैं चोर हूँ, क्या मैं अपराधी हूँ कहकर अपनी सफाई देता है या अपने भीतर के सच को छिपाता है उसी शैली में कवि अपने कथन में झूठ की गन्ध की बात कबूलता है। तीसरी बात कि यों तो कवि जगरनाथ के कामधाम, स्वास्थ्य और बच्चों के बारे में भी पूछता है लेकिन नीम, आम और वन सुग्गों में उसकी ज्यादा रुचि है। आम के स्वाद और गंध तथा वन-सुग्गों के बहाने तने जीवन में राहत पाने की चर्चा जगरनाथ के सन्दर्भ में एकदम बेमानी है। अंत में वह जिस ढंग से जगरनाथ द्वारा जाने की अनुमति माँगे जाने के लिए कहता है उससे उसकी नकली आत्मीयता और बचपन के साथी के प्रति निरर्थक शिष्टाचार उजागर होता है। यदि यह कविता यथार्थ है तो बेकार है। यदि इसका लक्ष्य जगरनाथ के बहाने आज के अभिजातवर्गीय शहरी बुद्धिजीवियों की निम्न जाति के अपने ग्रामीणों के प्रति खोखली संवेदनशीलता का प्रदर्शन है तो यह एक उत्कृष्ट कविता है।
शब्दार्थ : गुम्मट कपाल पर हड्डी की गोलाकार उभार ।
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Bihar board class 11 Hindi book solution padyakhand chapter - 6 Objective (स्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर )
(1) 'जगरनाथ' कवि कविता कौन है ?
(क) बचपन का साथी
(ख) नेता
(ग) नेता
(घ) भिखमंगा
उत्तर – क |
(2) कवि के सिर पर से किस पक्षी का दल उड़ता हुआ निकल जाता है ?
(क) कोयल
(ख) मैना
(ग) वनसुग्गा
(घ) कौआ
उत्तर – ख |
(3) जगरनाथ के यहाँ नीम के पेड़ के नीच कौन पशु बाँधा जाता था ?
(क) गाय
(ख) बकरी
(ग) भैंस
(घ) गदहा
उत्तर – ख |
(4) जगरनाथ की जाति क्या है ?
(क) चमार
(ख) पासी
(ग) हरिजन
(घ) दुसाध
उत्तर – घ |
(5) क्या कविता में जगरनाथ के नाम के साथ उसकी जाति का उल्लेख जरूरी है ?
(क) नहीं
(ख) हाँ
(ग) शायद
(घ) पता नहीं
उत्तर – क |
(6) कवि किस फल के पकने की जिज्ञासा करता है ?
(क) कटहल
(ख) जामुन
(ग) आम
(घ) बेल
उत्तर – ग |
(7) लेखक किस पेशे से सम्बन्धित है ?
(क) नाई
(ख) अध्यापकी
(ग) धोबी
(घ) बढ़ई
उत्तर – ख |
(8) कवि की जिज्ञासा किन क्षेत्रों से सम्बन्धित है ?
(क) स्वयं जगरनाथ
(ख) उसके परिवार
(ग) प्रकृति
(घ) तीनों से
उत्तर – घ |
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Bihar board class 11 Hindi book solution padyakhand chapter - 6 Very Short Quetion (अतिलघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर )
(i) कवि की जिज्ञासाओं के उत्तर में जगन्नाथ क्या कहता है ?
उत्तर – जगरनाथ कोई उत्तर नहीं देता है। उसके ओठ फड़फड़ा कर रह जाते हैं और वह अजीब दृष्टि से कवि को ताकता है जिसे कवि सह नहीं पाता है।
(ii) 'जगरनाथ' कविता में कवि ने किस तत्त्व को केन्द्र में रखा है ?
उत्तर – 'जगरनाथ' कविता में कवि ने जगरनाथ से आत्मीयता का सम्बन्ध स्थापित करने की चेष्टा को केन्द्र में रखा है।
(iii) जगरनाथ द्वारा कवि की भावना की प्रतिक्रिया में क्या उत्तर प्राप्त होता है ?
उत्तर – जगरनाथ कोई उत्तर नहीं देता है। उसके मन में यह स्नेह नहीं मात्र प्रदर्शन है। इसलिए यह अविश्वसनीय है। दोनों के धरातल दो हैं अतः बचपन की आत्मीयता का उल्लास उसके मन में नहीं उमड़ता । जगरनाथ क्या करता है ?
(iv) कविता के अन्त में जगरनाथ क्या करता है ॽ
उत्तर – वह कवि को ऐसी दृष्टि से ताकता हुआ चला जाता है जो दृष्टि कवि को भीतर तक चीर-फाड़ देती है।
(v) कवि अपनी ही बातों में झूठ की गन्ध की बात क्यों कहता है ?
उत्तर – कवि के मन में एक चोर बैठा है नकली आत्मीयता का दिखावेपन का उसे लगता है कि जगरनाथ उसके खोखले आत्मीयतापूर्ण शब्दों की सच्चाई अनुभव कर रहा है और इसीलिए चुप है। इसी की प्रतिक्रिया में उसका असली रूप बाहर आ जाता है।
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Bihar board class 11 Hindi book solution Padyakhand chapter - 6 Short Quetion (लघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर )
प्रश्न - 1. कवि को क्यों लगता है कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है ?
उत्तर- आज का कवि यह मानने लगा है कि राजनेताओं, अफसरों और व्यवसायियों की मिली भगत के कारण भीतरी स्तर पर घोटाला, भ्रष्टाचार और शोषण का चक्र चल रहा है। लेकिन वह इसे पकड़ नहीं पाता है। अतः मन ही मन वह आशंकाग्रस्त रहता है तथा उसे हमेशा शक बना रहता है कि कहीं कुछ गड़बड़ है।
प्रश्न - 2.
"वह बनसुग्गों की पाँत थी
जो अभी-अभी उड़ गई हमारे ऊपर से
वह है तो है
नहीं है तो भी चलती रहती है जिंदगी"
इन पंक्तियों का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर - वनसुग्गे पालतू नहीं होते हैं। अतः वे व्यवस्था और अनुशासन के अंग नहीं होते। यदि वनसुग्गों को आदमी का प्रतीक मान लें तो वनसुग्गे जैसे लोगों से व्यवस्था अनुशासन और सृजनात्मक चेतना को कोई सहयोग नहीं मिलता, अतः उनके होने न होने का कोई अर्थ नहीं होता। ऐसे ही लोगों की ओर ये पंक्तियाँ संकेत करती हैं।
प्रश्न - 3. कवि वानसुग्गों के पांति की उपेक्षा क्यों करता है ?
उत्तर- लाल पीले डैने वाले पक्षियों को कवि ने सौन्दर्य बोध का पर्याय अनुभव किया है। संभवतः वनसुग्गों को अपने परिवेश से बाहर अनुभव कर और उनकी कर्णकटु टें टें ध्वनि को कोलाहल का पर्याय मानकर कवि ने उन्हें उपेक्षित तथा लाल-पीले पक्षियों को राहत का पर्याय माना है।
प्रश्न - 4. कवि को अपने शब्दों से झूठ की गंध आने का संशय क्यों होता है ?
उत्तर- आज का बौद्धिक समाज आम जनों से कट गया है। कवि प्रोफेसर है और जगरनाथ उसका बचपन का साथी जो सामान्य जन है। दोनों लम्बे अन्तराल पर मिले हैं। इस बीच जो मानसिक-सामाजिक स्तर की खाई बनी है उसने दोनों को दो धरातल पर खड़ा कर दिया है। इसलिए लेखक स्वयं अनुभव करता है कि वह बचपन के साथी से हृदय खोलकर नहीं औपचारिक ढंग से ओर अपनी विशिष्टता की रक्षा करते हुए बातें कर रहा है। अतः उसे स्वयं अपने शब्द खोखले और व्यवहार नकली अनुभव हो रहे हैं। अतः उसे लगता है कि शायद जगरनाथ उसकी बातों को तौल रहा है कि यह सब झूठा और नकली है या वास्तविक। इन्हीं कारणों से उसे अपनी बातों में स्वयं ही झूठ की गंध आने का संशय होता है।
प्रश्न - 5. जगरनाथ की चुप्पी और उसके होठों के फड़कने में क्या संबंध है ?
उत्तर - जगरनाथ चुप होकर शायद कवि के व्यवहार को पढ़ रहा है, परख रहा है और आत्मीयता की अनुभूति तलाश रहा है। ओठ फड़कने का अर्थ है कि वह पुराने अनुभव के कारण उत्तर देने के लिए बोलना चाहता है किन्तु उसे या तो कवि को व्यवहार की आत्मीयता पर शक है अथवा वह सही शब्दों की तलाश कर रहा है।
प्रश्न - 6. कवि को अपनी दिनचर्या से असंतोष क्यों है ?
\उत्तर - यह कवि का नहीं हर अकर्मण्य बुद्धिजीवी का असंतोष है। वह सारे देश में हर स्तर पर गड़बड़ी, घोटाला, भ्रष्टाचार की सत्ता अनुभव कर संशयग्रस्त हो गया है। वह स्वयं कम शारीरिक श्रम कर अधिक सुविधाजीवी हो गया है। लेकिन देश, समाज आदि की अकर्मण्य चिन्ता से ग्रस्त है। अतः वह असंतुष्ट है।
प्रश्न - 7, जगरनाथ को जाते हुए देखकर कवि को ऐसा क्यों लगता है कि वह उसे चीरता- फाड़ता हुआ जा रहा है ?
उत्तर–कवि आत्मीयता का प्रदर्शन करते हुए कुछ ज्यादा ही दिखावटी बन जाता है और लगातार अपनी ही ओर से बोलता जाता है | जगरनाथ के ओठ फड़फड़ाते हैं और अन्ततः वह बिना कोई उत्तर दिये चला जाता है। इस अनुत्तरित और प्रतिदान विहीन व्यवहार से कवि अनुभव करता है कि वह एक अदना आमदी से पूरी तरह उपेक्षित अस्वीकृत हो गया। इसीलिए उसे अनुभव होता है कि जगरनाथ की मौन दृष्टि उसे भीतर तक चीर फाड़कर उसके व्यक्तित्व को तार-तार बनाकर चली जा रही है।
प्रश्न - 8. कविता का नायक कौन है ?
उत्तर - कविता का नायक जगरनाथ है, कवि नहीं। वक्तव्य की दृष्टि से कविता में कवि छाया हुआ है लेकिन सबको जगरनाथ का मौन काट देता है। वह चला जा कर कवि को चीर फाड़कर छत विक्षत कर देता है। एक उक्ति है - वाणी का वर्चस्व रजत है और मौन कंचन है। जगरनाथ मौन रहकर विजेता बन गया है और कवि बहुत बोलकर भी उपेक्षित और अनाद्रित रह गया है। इसलिए जगरनाथ ही नायक है ।
प्रश्न- 9. कविता का शीर्षक 'जगरनाथ' क्यों है ?
उत्तर - कविता जगरनाथ को निवेदित है। इसकी पूरी बनावट जगरनाथ की उपस्थिति के कारण घटित हुई है, इसलिए वही कविता के केन्द्र में है। इसलिए कवि ने जगरनाथ शीर्षक सही दिया है।
प्रश्न - 10. इस कविता में आपको प्रिय लगती पंक्तियाँ कौन-कौन सी हैं और क्यों ?
उत्तर- इस कविता की निम्न पंक्तियाँ मुझे प्रिय लगती हैं क्यों मुझे देख रहे हो इस तरह ?
क्या मेरे शब्दों से आ रही है
झूठ की गंध ?
इन पंक्तियों में कविता का निष्कर्ष है। ये पंक्तियाँ आज भी नकली आत्मीयता पर करारा व्यंग्य करती हैं।
प्रश्न - 11. कवि का पेशा क्या है ?
उत्तर - कवि का पेशा अध्यापन है। जो 'बक बक कर आता हूँ क्लास में' पंक्ति से स्पष्ट है।
प्रश्न - 12. कविता में जगरनाथ के ललाट पर उग आए गुम्मट का विवरण क्यों दिया गया है ? -
उत्तर - सामान्यतः प्रौढ़ावस्था में किसी-किसी व्यक्ति को ललाट की हड्डी बढ़ने के कारण गुम्मट सा उभर आता है। जगरनाथ के माथे पर ऐसा ही गुम्मट उग आया है। लेखक को संभवतः किसी चोट आदि का सन्देह है इसीलिए उसका विवरण दिया है।
प्रश्न - 13. कविता में केवल जगरनाथ का चित्रण है और कवि का एकालापी, वक्तव्य, जबकि कविता का शीर्षक 'जगरनाथ' है। यहाँ जगरनाथ का वक्तव्य क्यों नहीं आ सका है ?
उत्तर - कविता में जगरनाथ बोलता नहीं है। लेकिन उसकी प्रतिक्रियाएँ जैसे ओठ फड़कना, खड़े रहना, चुप रहना, झूठ की गंध, अनुभव करना, चला जाना आदि कवि के द्वारा शब्द पाती हैं। ये शब्द मुद्राभाशा (जेस्चर भाषा) के रूप में उसका सारा वक्तव्य प्रस्तुत कर देती है। उसका मौन कवि के एकालाप की तुलना में ज्यादा वजनी है। जगरनाथ का वक्तव्य न आना कविता के महत्त्व को बढ़ा देता है। इसीलिए कवि ने उसका वक्तव्य नहीं दिया है।
प्रश्न - 14. कविता में प्रश्नवाचक चिन्हों के प्रयोग बहुत हैं। उसकी सार्थकता पर विचार कीजिए।
उत्तर - यह कविता 'पूछने की शैली' में लिखी गयी है। कवि ताबड़तोड़ एक के बाद एक प्रश्न पूछता चला जाता है। पूछने के मूल में जिज्ञासा और आत्मीयता का स्वर है | जगरनाथ बहुत दिनों पर मिला है। वह कवि का बचपन का साथी है। अत: बहुत कुछ जानने की इच्छा स्वाभाविक है। इसी कारण प्रश्नवाचक चिह्न का अधिक प्रयोग हुआ है।
प्रश्न - 15. कविता का शीर्षक है जगरनाथ, जिसका शुद्ध रूप जगन्नाथ है। शीर्षक में इस तद्भव रूप का प्रयोग कवि ने क्यों किया है ?
उत्तर - कवि भोजपुरी भाषी क्षेत्र का है। उस क्षेत्र में जनभाषा भोजपुरी में आमजन जगरनाथ रूप ही उच्चरित करते हैं। शुद्ध रूप जगन्नाथ सामान्य प्रयोग में नहीं हो पाता। फिर बचपन में जिस भाषा संस्कार के कारण कवि अपने साथी को जगरनाथ पुकारता रहा, आज वही आत्मीय संस्कार उसे जगरनाथ कहने को प्रेरित करता है। वह अपना अभिजात प्रदर्शित कर औपचारिक नहीं होना चाहता है।
Class 11 Hindi Book Solution
Bihar board class 11 Hindi book solution chapter - 11 Hindi Grammar (भाषा की बात )
प्रश्न - 1. बक बक, अभी-अभी में कौन-सा समास है ?
उत्तर - वक-वक तथा अभी-अभी अविकारी शब्द हैं अतः इनमें अव्ययी भाव समास है। चूँकि यहाँ शब्द की आवृत्ति है युग्मता नहीं इसलिए द्वन्द्व, समास नहीं है।
प्रश्न - 2. निम्न मुहावरों का वाक्य-प्रयोग कीजिए।
उत्तर -
- ठीक ही होना (सामान्य होना ) - मेरे यहाँ सब ठीक ही है। कोई विशेष बात नहीं।
- बक बक कर आना (व्याख्यान दे आना ) - मैं प्रतिदिन वर्ग में चार घंटे बक बक कर आता हूँ।
- मार ही लेना ( सुविधा प्राप्त कर लेना ) - काम का बोझ चाहे जितना रहे, मेरा नौकर प्रतिदिन एक झपकी मार ही लेता है।
- जाने देना ( ध्यान न देना) - उसकी बातें जाने दो, व्यर्थ तनाव बढ़ेगा। चलती ही रहना ( रुकावट न होना) लाख परेशानी हो लेकिन जिन्दगी तो चलती ही रहती है।
प्रश्न- 3. कविता में प्रयुक्त अव्ययों को लिखें।
उत्तर- कविता में प्रमुख अव्यय निम्नलिखित हैं
बस, बक बक, अभी अभी, यदि, पर, कि, तो अब तक जरा, तरह
प्रश्न - 4. पर्यायवाची लिखें -
उत्तर-
ललाट = भाल
पेड़ = तरु, वृक्ष
क्लास = वर्ग, कक्षा
आसमान = आकाश, गगन
राहत = चैन
बारिश = वर्षा
खुशबू = सुगन्ध
साथी = मित्र, बन्धु
प्रश्न- 5. कविता में प्रयुक्त सर्वनामों का परिचय दें।
उत्तर -
पुरुषवाचक - मैं, मेरे, तुम, तुम्हारे, हमारे, तुम्हारा, तुम्हें
निश्चयवाचक - वह, यह, वो
प्रश्नवाचक - कैसा, कैसे, क्या
अनिश्चयवाचक - कहीं, कुछ
प्रश्न - 6. उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष और अन्य पुरुष का अन्तर वाक्य प्रयोग द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर-
उत्तम पुरुष : मैं हम – मैं ठीक हूँ।
मध्यम पुरुष : तू, तुम – तुम कहाँ जा रहे हो ?
अन्य पुरुष : वे – वे कहाँ गये ?
Class 11 Hindi Book Solution
Bihar board class 11 Hindi book solution Padyakhand chapter - 9 Hindi Grammar (व्यख्या )
(ii) मैं मैं तो बस ठीक ही हूँ.............. कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है।
केदारनाथ सिंह रचित कविता 'जगरनाथ' उनके तथा उनके बचपन के ग्रामीण मित्र जगरनाथ दुसाध के बीच एकालापी संवाद के रूप में रचित है। इन पंक्तियों में सूच्य रूप में व्यक्त किया गया है कि कवि के द्वारा कुशल समाचार पूछे जाने के उत्तर में जगरनाथ कवि से समाचार पूछता है। इन पंक्तियों में कवि अपना हाल बताते हुए कहता है कि मैं ठीक हूँ, खाता-पीता हूँ और क्लास में पढ़ा आता हूँ, अवसर मिलता है तो दिन में भी एकाध नींद सो लेता है। इन बाहरी बातों के अतिरिक्त वह अपनी बौद्धिक सामाजिक जागरूकता प्रदर्शित करने के लिए यह भी जोड़ देता है कि मुझे हमेशा लगता है कि कहीं कुछ गड़बड़ है। कवि का संकेत सामाजिक राष्ट्रीय जीवन में आ रही गिरावट, जीवन की भागदौड़ और आर्थिक रवैये से उत्पन्न विकलता और उनके कारण मूल्यहीनता की बाढ़ है।
(iii) पर छोड़ो तुम कैसे हो ?................ चलती ही रहती है जिन्दगी ।
'जगरनाथ' कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में जगरनाथ से बातें करते हुए कवि अपना हाल बताने के बाद पुनः जगरनाथ की ओर मुड़ता है और उसके सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने की कड़ी को आगे बढ़ाता हुआ पूछता है कि तुम्हारा कामधाम कैसा चल रहा है ? इसी बीच वनसुग्गों की एक पंक्ति उसके ऊपर से उड़ती निकल जाती है। वह उनकी ओर थोड़ा ध्यान देता है मगर शीघ्र ध्यान हटा लेता है, "वह है तो है नहीं है तो भी चलती ही रहती है जिन्दगी" कहकर अपनी लापरवाही व्यक्त करता है। इस कथन से स्पष्ट है कि वन-सुग्गों का टें टें करते उड़ना उसे अच्छा लगता है लेकिन उनके न होने से भी जिन्दगी की चाल में कोई व्यवधान नहीं आता है। उसके कहने के ढंग से स्पष्ट है कि अब की जिन्दगी में पशु-पक्षी प्रकृति आदि जीने की अनिवार्य शर्त नहीं रह गये हैं।
(iv) पर यह भी सच है मेरे भाई ........... बड़ी राहत मिलती है जी को।"
'जगरनाथ' कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में केदारनाथ सिंह कहना चाहते हैं कि जीवन की प्राथमिकताएँ और परिस्थितियाँ बदल जाने के कारण अनेक ऐसी चीजों से लगाव का आग्रह कम करना पड़ता है जो जीवन के लिए आवश्यक होते हैं। ऐसी ही एक चीज है उड़ते हुए वन-सुग्गों की उड़ती पंक्ति को देखना। इसे स्वीकार करते हुए लेखक कहता है कि वन- सुग्गों को देखने का आग्रह दबा देने के बावजूद सच्चाई यही है कि जब कभी आसमान में लाल या पीले या किसी रंग का कोई पक्षी उड़ता हुआ दीख जाता है तो मन को राहत अनुभव होती है। यहाँ लेखक यह बताना चाहता है कि मन की नैसर्गिक इच्छाओं की पूर्ति का अवसर न मिलने पर उनके प्रति आग्रह घट जाता है और एक उदासीन भाव आ जाता है। लेकिन उनके प्रति सम्मोहन कम नहीं होता। अवसर मिलने पर वे इच्छाएँ यदि पूर्ण होती हैं तो मन को जो आनन्द प्राप्त होता है वह जीवन में सन्तुष्टि और सन्तोष देता है।
(v) पर यह तो बताओ ..............................भर जाती है दुनिया |
'जगरनाथ' शीर्षक कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में केदारनाथ सिंह पुनः जगरनाथ की ओर मुखातिब होकर उससे उसके स्वास्थ्य का हाल पूछते हैं कि तुम्हारा जी आजकल कैसा है ? इससे लगता है कि जगरनाथ प्रायः अस्वस्थ रहता होगा लेकिन आत्मीयता का यह ज्वार एक क्षण भी नहीं टिकता। कवि तुरत जगरनाथ को छोड़कर बारिश पर उतर आता है और जानना चाहता है कि क्या इधर बारिश हुई थी और फिर जल्दी आमों की ओर चला जाता है और पूछता है कि क्या आमों का पकना शुरू हो गया ? और फिर जगरनाथ को भूलकर आमों के स्वाद में खो जाता है।उसकी टिप्पणी के अनुसार यह एक अजीब-सा फल है जिसमें सुगन्ध और स्वाद दोनों का विरल संयोग है जिससे मन की दुनिया भर जाती है पूर्ण परितृप्ति प्राप्त होती है।इन पंक्तियों में लक्ष्य करने की बात यह है कि कवि के मन में जगरनाथ के प्रति अभिरुचि और संवेदना कम है तथा वर्षा और आम की रस-गंध में ज्यादा रुचि है। यह बतलाता है कि कवि की दृष्टि जगरनाथ में जगरनाथ से ज्यादा महत्त्व वनसुग्गे, बारिश और आम का है। इनके बारे में कहने के लिए उसने जगरनाथ का बहाना बनाया है।
(vi) पर यह क्या ? ...................जाओ................ जाओ।
प्रस्तुत पंक्तियाँ पाठ्य पुस्तक की 'जगरनाथ' शीर्षक से पंक्तियाँ ली गयी हैं। इसके कवि केदारनाथ सिंह हैं। केदारनाथ सिंह जगरनाथ को रोककर ढेर सारी जिज्ञासाएँ करते हैं जिनमें कुछ जगरनाथ से सम्बन्धित हैं और कुछ ग्राम-प्रसंग से। इन सबके उत्तर में जगरनाथ कुछ बोलता नहीं, केवल उसके ओठ फड़कते हैं बोलने के लिए। कवि इस पर आश्चर्य व्यक्त करता हुआ अनेक प्रश्न पूछ जाता है, जैसे- तुम्हारे होंठ क्यों फड़क रहे हैं ? तुम अब तक चुप क्यों हो ? इस तरह खड़े क्यों हो ? इत्यादि । फिर वह जगरनाथ को पास बुलाता है क्योंकि उसे बहुत कुछ कहना है। मगर जगरनाथ कुछ बोलता नहीं केवल एक विचित्र दृष्टि से देखता है। कवि को लगता है कि जगरनाथ को मेरी आत्मीयता भरी आतुरता पर विश्वास नहीं हो रहा है, उसे झूठ की गन्ध अनुभव हो रही है। यह कवि के सन्तुलन को गड़बड़ा देता है। वह पूछता है क्या तुम्हें जल्दी है ? क्या काम पर जाना है ? और फिर बिना उसके मन्तव्य जाने अपनी ओर से अनुमति भी दे देता है जाओ मेरे भाई जाओ। मैं तुम्हें नहीं रोकूँगा। इन पंक्तियों से यह धारणा बनती है कि कवि को स्वयं यह आत्मीयता-प्रदर्शन नकली लगता है। उसकी सारी जिज्ञासाओं में बनावटीपन और जगरनाथ के बहाने अपनी बात कहने की आतुरता है जो उसकी अभिजात दृष्टि और कृत्रिम सहानुभूति की पोल खोल रही है।
(vii) और इस तरह.................. जगरनाथ दुसाध ।
'जगरनाथ' कविता की ये अंतिम पंक्तियाँ हैं। इसमें कवि की सारी जिज्ञासाओं के उत्तर में जगरनाथ के चुपचाप चले जाने का वर्णन है। कवि कहता है कि जगरनाथ इस तरह चला जा रहा था मानो उसने मुझे देखा ही न हो। और उसके द्वारा अनदेखी किए जाने की मुद्रा इतनी तीखी और धारदार थी कि कवि को चीरता- फाड़ता चला जा रहा हो। इन पंक्तियों का निहितार्थ स्पष्ट है - कवि जगरनाथ का बचपन का साथी है लेकिन वह अब उससे भिन्न है, विशिष्ट है, अध्यापक हैं। जगरनाथ इस भेद को समझता है कि दोनों दो धरातल के जीव हैं जिनके जीवन स्तर और बोध में अन्तर है। इस विषमता के कारण जगरनाथ के मन में कवि के लिए कोई आत्मीयता नहीं है। वह प्रतिक्रिया तो व्यक्त नहीं करता लेकिन लगातार चुप रहकर और चुपचाप चले जाकर सारी बातें कह जाता है। उसकी न देखने वाली दृष्टि की धार से चीरा जाकर कवि आहत हो उठता है।
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