Bihar board class 11th Hindi Solution पद्खंड chapter - 7 तोड़ती पत्थर

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Bihar board class 11 Hindi book solution  padyakhand chapter - 7 Saransh , (सरांश  )

कक्षा - 11वी  पद्खंड अध्याय -7  

               तोड़ती पत्थर                  

लेखक :सुर्यकान्त त्रिपाठी निराला 

निराला यौवन और आवेग के कवि हैं। वे बेरोकटोक आगे बढ़ने में विश्वास रखते हैं। उनमें सदैव जीवन के प्रति पौरुष युक्त विजेता का भाव रहा है। उन्होंने छायावाद को प्रगतिवाद की जन चेतना से सम्पन्न किया। यह कविता संवेदना की दृष्टि से प्रगतिवादी कविता है जिसमें एक मजदूरनी के माध्यम से श्रमिक जीवन की विवशता और शोषण के प्रति विद्रोह का भाव व्यक्त किया गया है तथा विपन्न मजदूर जीवन के प्रति सहानुभूति प्रकट की गयी है।

कवि ने इलाहाबाद के किसी पथ पर पत्थर तोड़ती एक मजदूरनी को देखा। वह जहाँ पत्थर तोड़ रही थी वहाँ कोई छायादार वृक्ष नहीं था। वह भारी हथौड़े से बार-बार प्रहार करती पत्थर तोड़ रही थी। सामने तरु समूहों से युक्त तथा चहारदीवारी से घिरा एक उन्नत भवन खड़ा था। जब उस मजदूरनी की ओर कवि की दृष्टि जाती है तो पाता है कि उसका रंग साँवला है तथा शरीर भरा हुआ है अर्थात् वह यौवन से परिपूर्ण तथा गठीले शरीर की है। 'बँधा हुआ' से किये अपने कर्म में तल्लीन कवि का तात्पर्य माँसल किन्तु गठीले शरीर से है। वह आँखें नीची है। धीरे-धीरे सूरज चढ़ने लगा और दिन अत्यधिक प्रकाशमान हो उठा। ग्रीष्म ऋतु होने के कारण धरती रुई की तरह जलने लगी। झुलसाने वाली लू चलने लगी। चारों तरफ गर्द से भरी गर्म हवा चिनगारी की तरह छिटकने लगी। इस तरह के मौसम में पत्थर तोड़ते दोपहर हो गयी।

कवि को अपनी ओर ताकते देख उसने एक बार सामने वाले भवन की ओर देखा। फिर कवि की ओर ऐसी दृष्टि से देखा जो दृष्टि मार खाकर रो नहीं पाने वाले बच्चे की होती है। अर्थात् उसकी दृष्टि में पीड़ा भरी विवशता थी, द्रवित कर देने वाली करुणा थी। सहानुभूति और संवेदना से भरी झंकार सुनी जो कवि ने पहले कभी नहीं सुनी थी, अर्थात् उसे मजदूर के व्यथा भरे श्रमशील जीवन का अनुभव हुआ। एक क्षण बाद उस मजदूरनी की देह काँप गयी और उसके माथे पर झलक आयी पसीने की बूँद नीचे ढुलक पड़ी। कर्म में लीन रहते हुए मानो वह कह रही थी कि मैं पत्थर तोड़ती हूँ। इस कविता के कथ्य पर विचार करने पर तीन बिन्दु दृष्टिगत होते हैं। प्रथम कवि द्वारा पत्थर तोड़नेवाली मजदूरिन को पत्थर तोड़ते देखना और उसके रूप, रंग तथा कर्म तल्लीन दशा का वर्णन। इससे ज्ञात होता है कि मजदूरनी युवती है, श्याम रंग की है तथा अपना कर्म तल्लीन होकर करने की निष्ठा उसमें है। द्वितीय बिन्दु है उसके प्रति कवि की सहानुभूति । वह जान जाती है कि कवि उसकी ओर उत्सुकता से देख रहा है। इससे वह भी कवि की ओर कातर दृष्टि से इस तरह ताकती है कि कवि का संवेदनशील मन उसकी पूरी भावना को ग्रहण कर लेता है। यह बिन्दु अधिक कलात्मक और भावगत गहराई लिये है। यहाँ कवि ने गंभीर शब्दों और प्रतीकों के सहारे चित्रण करने का प्रयास किया है तथा अपने भावों को सम्प्रेषित करने में सफल रहा है। तीसरा बिन्दु परिवेश की प्रतीकात्मकता है। कविता का परिवेश ग्रीष्म की दोपहरी का है। लू चलने की स्थिति है। ऐसे में वह पत्थर तोड़ रही है। इससे सूचित होता है कि पेट की आग बुझाने के लिए मानव को विषम परिस्थिति में पत्थर तोड़ने जैसा कठिन कर्म करना पड़ता है। जहाँ वह पत्थर तोड़ रही है वहाँ एक अट्टालिका है अर्थात् विशाल भवन है। वह चहारदीवारी से घिरा है, छायादार पेड़ भी हैं। यह पूँजीवादी स्थिति का प्रतीक है। भवन की भव्यता और तरु समूह की छाया सुख-सुविधा की प्रतीक है वहीं चहारदीवारी वर्गीय विभाजन का प्रतीक है। पूँजीवादी व्यवस्था जहाँ आरामदायक भवनों में विश्राम करती है वहाँ सर्वहारा या मजदूर वर्ग छायाहीन स्थान पर बैठकर ग्रीष्म की तपती दोपहरी में लू की झोंकों के बीच पत्थर तोड़ता है। कवि ने 'करती बार बार प्रहार' पंक्ति के ठीक बाद' सामने तरुमालिका अट्टालिका प्राकार" पंक्ति रखकर यह व्यजित किया है कि मजदूरनी हथौड़ा पत्थर पर नहीं सामने की अट्टालिका पर चला रही है ताकि यह सुविधा पूँजीपति वर्ग का अस्तित्व ध्वस्त हो जाय। कवि ने सटीक अर्थव्यंजक शब्दों के प्रयोग कर कविता को अर्थ की गंभीरता से मंडित कर दिया है। प्रतीक विधान के कारण यह कविता एक साधारण मजदूरनी की व्यथा की कथा न बनकर उसके संघर्ष की कथा बन गयी है जो वर्ग संघर्ष के रूप में ध्वनित है। मजदूरनी के प्रति सहानुभूतिशील दृष्टि कविता को मार्मिक बनाती है तो लू से भरी दोपहरी का चित्र इसके यथार्थ को चुभने वाला बना देता है।

 शब्दार्थ :- तरु मालिका = वृक्ष, मालिका=  माला, अट्टालिका विशाल और ऊँचा भवन,  प्राकार चहारदीवारी, सीकर = पसीने की बूँद ।  

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Bihar board class 11 Hindi book solution padyakhand  chapter - 7 Objective (स्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर )


(1) कवि ने मजदूरनी को किस शहर के पथ पर पत्थर तोड़ते देखा ? 

(क) पटना 

(ख) इलाहाबाद 

(ग) दिल्ली 

(घ) आगरा 

उत्तर – ख्

(2) पत्थर किसके द्वारा तोड़ा जा रहा है ? 

(क) मजदूर 

(ख) किसान 

(ग) मजदूरनी 

(घ) किसी के द्वारा नहीं 

उत्तर – ग

(3) हथौड़ा किसका प्रतीक है ? 

(क) मजदूर वर्ग 

(ख) किसान वर्ग 

(ग) पूँजीवादी वर्ग 

(घ) बुद्धिजीवी वर्ग 

उत्तर – क

(4) अट्टालिका किसका प्रतीक है ?

(क) मजदूर

(ख) किसान 

(ग) पूँजीपति 

(घ) क्रान्तिकारी

उत्तर – ग

(5) मजदूरनी का तन किस वर्ण का है ?

(क) श्याम 

(ख) गौर 

(ग) लाल 

(घ) नीला 

उत्तर – क

(6) मजदूरनी किस तरह से काम कर रही है ? 

(क) बेमन से 

(ख) रो-रोकर 

(ग) लीन होकर 

(घ) उपेक्षापूर्वक 

उत्तर – ग

(7) मजदूरनी किस मौसम में पत्थर तोड़ रही है ? 

(क) जाड़ा 

(ख) गर्मी 

(ग) बरसात 

(घ) वसन्त 

उत्तर – ख

(viii) मजदूरनी कहाँ पत्थर तोड़ रही है ? 

(क) पथ पर 

(ख) घर में 

(ग) आँगन में

(घ) खुले मैदान में 

उत्तर – क


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Bihar board class 11 Hindi book solution padyakhand chapter - 7 Very Short Quetion (अतिलघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर )


1. निराला जी ने पत्थर तोड़ने वाली को कहाँ देखा था ? 

उत्तर- इलाहाबाद के किसी पथ पर। 

2. मजदूरनी की शारीरिक बनावट कैसी थी ? 

उत्तर- मजदूरनी साँवले रंग की, भरा शरीर, यौवन-पूर्ण और गठीले शरीर की थी। 

3. मजदूरनी को कवि ने कब देखा था ? 

उत्तर- निराला जी मजदूरनी को ग्रीष्म ऋतु की दोपहर में (झुलसाने वाली लू के समय) देखा था।

4. मजदूरनी पत्थर तोड़ने का काम क्यों करती थी ? 

उत्तर- पेट की भूख मिटाने के लिए। 

5. मजदूरनी जहाँ पत्थर तोड़ रही थी वहाँ कवि ने और क्या देखा ? 

उत्तर- कवि ने वहाँ एक विशाल भवन को देखा।

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Bihar board class 11 Hindi book solution Padyakhand chapter - 7  Short Quetion (लघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर )


प्रश्न - 1. पत्थर तोड़ने वाली स्त्री का परिचय कवि ने किस तरह दिया है ? 

उत्तर- निराला जी ने पत्थर तोड़नेवाली स्त्री का परिचय इस प्रकार प्रारंभ किया है उसे इलाहाबाद की (किसी) सड़क पर पत्थर तोड़ते हुए देखा। वह अपने भारी हथौड़े से बार-बार प्रहार कर रही थी, उसका रंग साँवला था और उसका शरीर युवावस्था के कारण भरा अर्थात् मांसल था। वह तन्मयतापूर्वक अपने काम में लगी थी।

प्रश्न - 2. 'श्याम तन, भर बँधा यौवन, नत नयन, प्रिय-कर्म रत मन' निराला ने पत्थर तोड़ने वाली स्त्री का ऐसा अंकन क्यों किया है ? ऐसा लिखने की क्या सार्थकता है ? 

उत्तर कवि के द्वारा श्याम तन लिखने का आशय यह बताना है कि पत्थर तोड़ने वाली का रंग साँवला था। भर बँधा यौवन लिखने का आशय है कि उसका शरीर मांसल और गठीला था अर्थात वह अच्छे शरीर वाली युवती थी। 'नत नयन प्रिय कर्मरत मन' से अभिप्राय है कि वह आँखें नीची किये अपने काम में लीन थी। यह उसकी कर्म तन्मयता और ईमानदार कर्म निष्ठा को व्यक्त करती है। कर्म के साथ प्रिय लगाकर निराला जी बताना चाहते हैं कि वह प्रेम पूर्वक काम कर रही थी। बेगारी नहीं टाल रही थी, कवि के ऐसा लिखने की सार्थकता यह है कि कवि लोगों को बताना चाहता है कि काम चाहे किसी प्रकार का हो जो कर्मनिष्ठ होते हैं वे दीन-दुनिया से बेखबर होकर तल्लीनता और ईमानदारी से अपना काम करते हैं। दूसरे, कवि मजदूरनी के शारीरिक रूप रंग तथा भाव भगिमा का एक स्पष्ट चित्र अंकित करना आवश्यक समझता था इसी उद्देश्य से उसने ऐसा लिखा है।

प्रश्न- 3. स्त्री अपने गुरु हथौड़े से किस पर प्रहार कर रही है ? 

उत्तर- स्त्री अपने भारी हथौड़े से पत्थर पर प्रहार कर पत्थर तोड़ रही थी।

प्रश्न - 4. कवि को अपनी ओर देखते हुए देखकर स्त्री सामने खड़े भवन की ओर क्यों देखने लगती है ?

उत्तर - कवि को अपनी ओर देखते हुए देखकर मजदूरनी सामने खड़े भवन की ओर क्यों देखने लगी यह बताना संभव नहीं है। लेकिन कवि के वर्णन से स्पष्ट है कि वह बताना चाहती थी कि मैं पत्थर पर नहीं सामने के भवन पर प्रहार कर रही हूँ। हम जानते हैं कि भवन पूँजीवाद का प्रतीक है और हँसिया हथौड़ा साम्यवादियों की विचारधारा का। अत: अभिप्राय स्पष्ट है कि मजदूरनी अर्थात सर्वहारा का एक प्रतिनिधि पूँजीवाद पर प्रहार कर रहा था।

प्रश्न- 5. 'छिन्नतार' का क्या अर्थ है ? कविता के संदर्भ में स्पष्ट करें। 

उत्तर - छिन्नतार का अर्थ है कि मजदूरनी एक तार की तरह सततता से काम में तन्मय थी। कवि को अपनी ओर ताकते देखकर वह अस्थिर हो उठी। स्त्रीजनोचित सामान्य स्वभाव के कारण। फलतः काम की तन्मयता का तारतम्य टूट गया। इसी तारतम्य टूटने को कवि ने छिन्नतार शब्द के द्वारा व्यक्त किया है।

प्रश्न - 6. 'देखकर कोई नहीं' पंक्तियों का मर्म उद्घाटित करें।

 उत्तर - इन पंक्तियों के द्वारा कवि ने मजदूरनी की व्यथा को साकार करना चाहा है। 'मार खा रोयी नहीं' में विवशता और वेदना की मिश्रिता स्थिति से उत्पन्न करुणा की व्यंजना हुई है। 

प्रश्न - 7. 'सजा सहज सितार' में किस सितार की ओर संकेत है ? इन पंक्तियों का भाव स्पष्ट करें।

उत्तर- कवि ने मजदूरनी की 'मार खा रोयी नहीं' वाली दृष्टि में वेदना का संगीत अनुभव किया। स्वभावत: इस संगीत की व्यजिका मजदूरनी को उसने सितार के रूप में अनुभव किया। अत: सितार शब्द मजदूरनी के लिए तथा झंकार वेदना के संगीत के लिए आया है। कवि को किसी निर्धन मजदूर की पीड़ा का ऐसा बोध पहले कभी नहीं हुआ था इसलिए उसने लिखा सुनी मैंने वह नहीं जो सुनी थी झंकार।

प्रश्न- 8. कविता की अंतिम पंक्ति का वैशिष्ट्य स्पष्ट करें। 

उत्तर- कविता के अंत में और आरम्भ में दोनों जगह तोड़ती पत्थर पंक्ति आयी है। अंतिम पंक्ति कविता को इंटरलौक करती है। इससे कविता का सारा प्रभाव अंतिम पंक्ति पर सिमट आता है। इसकी व्यंजना यह है कि वह पत्थर तोड़ने के द्वारा एक तो अपनी यथार्थ स्थिति को व्यक्त कर रही है और दूसरे उस यथार्थ को जन्म देने वाली व्यवस्था पर प्रहार कर उसे तोड़ रही है। 

प्रश्न- 10. कविता का भावार्थ अपने शब्दों में लिखें।

उत्तर- उत्तर के लिए कविता का कथ्य या प्रतिपाद्य शीर्षक अंश देखें।

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Bihar board class 11 Hindi book solution padyakhand chapter - 7  Hindi  Grammar  (भाषा की बात )



प्रश्न - 1. निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची लिखें।

उत्तर – 

  • पथ = मार्ग, राह 
  • दिवा दिन, दिवस 
  • पेड़ = वृक्ष, तरू
  • भू = धारा, पृथ्वी, धरती 
  • गर्द= धूल, रज 
  • पत्थर = पाषाण, प्रस्तर 
  • सुघर=  सुगढ़, सुन्दर 


प्रश्न - 2. 'देखा मुझे उस दृष्टि से' में दृष्टि संज्ञा है या विशेषण ? 

उत्तर-दृष्टि संज्ञा है, इसका विशेषण 'उस' है जो सार्वनामिक विशेषण है। 

प्रश्न- 3. विशेष्य-विशेषण अलग करें – 

  • श्याम तन = तन विशेष्य श्याम विशेषण
  • नत नयन = नयन नत गु
  • रु हथौड़ा = हथौड़ा 
  • सहज सितार = सितार " सहज गुरु 

प्रश्न - 4. कविता से सर्वनाम पदों को चुनकर लिखें। 

उत्तर - वह, उसे, मैंने, कोई, जिसके, मुझे, जो, मैं 

प्रश्न - 6. कविता में अनुप्रास, रूपक और उपमा अलंकारों के उदाहरण चुनकर लिखें। 

उत्तर- 

अनुप्रास = पथ पर, नत नयन, हथौड़ा हाथ, देखते देखा,

रूपक = गर्द चिनगी 

उपमा = रुई ज्यों जलती हुई भू

प्रश्न - 7. गीत और प्रगीत में क्या अन्तर है ? 

उत्तर- गीत में निजता होती है तथा सुख-दुख को भावावेग पूर्ण अभिव्यक्ति मिलती है। उसकी अलग विशेषता होती है। प्रगीत में सांगीतिक गेयता और निजता अनिवार्य नहीं होती। विषय प्रधान होता है जबकि गीत विषयी प्रधान होता 1

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Bihar board class 11 Hindi book solution Padyakhand chapter - 7  Hindi  Grammar  (व्यख्या )



( क ) श्याम तन.................. कर्म-रत मन।

निराला रचित कविता 'तोड़ती पत्थर' से गृहीत प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने उस पत्थर तोड़नेवाली मजदूरनी के रूप-रंग का वर्णन किया है जिसे उसने इलाहाबाद के पथ पर देखा था। कवि के अनुसार उसका शरीर साँवला है। वह युवती है। उसका शरीर भरा हुआ तथा बँधा हुआ है अर्थात् वह गठीले शरीर वाली है और शरीर मांसल है। अर्थात् उसमें यौवन अपनी पूर्णता में विकसित है। वह आँखें नीची किये अपने काम में तल्लीन है। प्रिय कर्मरत मन कहकर कवि यह बताना चाहता है कि उसने मजदूरी को अपनी जीविका का अनिवार्य माध्यम मान लिया है। उसका मन अपने काम में लगता है। अर्थात् वह मन लगाकर प्रेम से काम कर रही है। पत्थर तोड़ने का कार्य उसके लिए न तो बेगारी है और अनिच्छा से थोपा हुआ कार्य। इस कथन से उसकी कर्मप्रियता और कर्मनिष्ठा दोनों व्यक्त हो रही है।

समग्रतः वह मजदूरनी भरे हुए यौवन वाली साँवली युवती है और वह मन लगाकर तल्लीन होकर काम कर रही है। कदाचित् इसी तल्लीनता के कारण वह धूप के कड़ेपन का अनुभव नहीं कर पा रही है।


( ख ) गुरु हथौड़ा हाथ.......................अट्टालिका, प्राकार।

'तोड़ती पत्थर' महाकवि निराला रचित एक प्रगतिवादी कविता है। इस कविता की व्याख्येय पंक्तियों में कवि ने प्रतीक के सहारे प्रगतिवाद की मूल चेतना “सर्वहारा बनाम पूँजीपति" के संघर्ष को व्यजित किया है। इलाहाबाद के पथ पर कवि ने जिस मजदूरनी को पत्थर तोड़ते देखा है वह पूरी तल्लीनता के साथ लगातार पत्थर पर भारी हथौड़े से प्रहार कर रही है। सामने वृक्ष- समूह की माला से घिरी हुई एक अट्टालिका यानी हवेली है। वह हवेली प्राकार अर्थात् चहारदीवारी से घिरी है। कवि को अनुभव होता है कि मजदूरनी पत्थर पर नहीं सामने वाले भव्य भवन पर हथौड़े से प्रहार कर रही है। हम जानते हैं कि हँसिया हथौड़ा मार्क्सवादी पार्टी का चिह्न है। यह पार्टी मार्क्स के सिद्धान्तों पर चलती है। मार्क्स के अनुसार समाज में दो ही वर्ग हैं। शोषित या सर्वहारा जिसमें किसान-मजदूर आते हैं। (ii) पूँजीपति, जिनके पास सम्पत्ति है, ऊँचे महल हैं और सुख-सुविधा के सामान हैं। सर्वहारा को संगठित कर पूँजीपतियों के विरुद्ध संघर्ष करते हुए उनका खात्मा और किसान-मजदूर राज की स्थापना ही मार्क्स का दर्शन है।

उपर्युक्त पंक्तियों में हथौड़ा मजदूर का प्रतीक है और चहारदीवारी से घिरी वृक्ष समूहों की शीतल छाया में खड़ा विशाल भवन पूँजीपति का प्रतीक है। मजदूरनी मानो पत्थर पर हथौड़ा चलाकर इसकी चोट का प्रभाव महल की दीवारों पर अंकित करना चाहती है। वह तोड़ती पत्थर |


(ग) दिवा का तमतमाता रूप.........................वह तोड़ती पत्थर' 

कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में निराला जी ने पत्थर तोड़ने वाली के कार्य-परिवेश का वर्णन किया है। इसी के अन्तर्गत मौसम का उल्लेख है। मौसम ग्रीष्म का है। जैसे-जैसे दिन चढ़ता जाता है गर्मी बढ़ती जाती है। कवि कल्पना करता है कि इस अत्यधिक गर्मी के माध्यम से मानो दिन का क्रोधित तमतमाया हुआ रूप व्यक्त हो रहा है। दिन के तमतमाने का मतलब है अत्यधिक गर्मी। इसके परिणामस्वरूप लू चलने लगी है जो तन को झुलसा रही है। धरती इस तरह जल रही है मानो रुई जल रही हो । हवा के थपेड़ों के कारण चारों तरफ गर्द-गुबार का साम्राज्य है। तप्त हवा के कारण यह धूल शरीर से लगती है तब लगता है कि आग की चिनगारी उड़ कर शरीर में लग रही है।

ऐसे विषम और गर्म मौसम में भी बेचारी मजदूरनी छायाविहीन स्थान पर पत्थर तोड़ रही है और दोपहरी के प्रचण्ड ताप में झुलस कर भी काम कर रही है। इन पंक्तियों 'रुई ज्यों जलती' पंक्ति में उपमा अलंकार है और पूरे कथन में उत्प्रेक्षा अलंकार की ध्वनि है। 

(घ) देखते देखा मुझे ......................मार खा रोई नहीं।

निराला रचित 'तोड़ती पत्थर' कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में कवि पत्थर तोड़नेवाली मजदूरनी के साथ आत्मीय सम्बन्ध स्थापन की चेष्टा करता है। इससे कविता तटस्थ वर्णन के क्षेत्र से निकलकर आत्मीयता की परिधि में आ जाती है। कवि को अपनी ओर देखते देखकर वह मजदूरनी भी उसकी ओर मुखातिब होती है। फिर वह एक बार उस विशाल भवन की ओर देखती है। मगर वहाँ उसे जोड़ने वाला कोई तार नहीं दीखता। अर्थात् वहाँ उसकी ओर किसी भी दृष्टि से देखनेवाला कोई नहीं है। अतः प्रहार से तार छिन्न हो जाता है, टूट जाता है। कवि 'छिन्नतार' शब्द के प्रयोग द्वारा यह कहना चाहता है कि एक मजदूर और एक महल वाले के बीच जोड़ने वाला कोई तार नहीं होता।लिहाजा अट्टालिका की ओर से दृष्टि घुमाकर मजदूरनी कवि की ओर देखती है। उसकी दृष्टि में वेदना है ऐसी वेदना जो मार खाकर भी न रोने वाले बच्चे की आँखों में होती है। ऐसी दृष्टि बेहद करुण होती है। यहाँ कवि की दृष्टि में सहानुभूति है तो मजदूरनी की दृष्टि में विवशता भरी करुणा जो किसी की सहानुभूति पाकर उमड़ पड़ती है।

(ङ) सजा सहज सितार.................मैं तोड़ती पत्थर |

'तोड़ती पत्थर' कविता की प्रस्तुत से पंक्तियों में निराला जी ने अपनी भावना और मजदूरनी की यथार्थ स्थिति को मिला दिया है। मजदूरनी जिस “मार खा रोई नहीं" दृष्टि से कवि को देखती है उससे कवि के हृदय रूपी सितार के तार बज उठते हैं। उसमें से करुणापूर्ण ममत्व की रागिनी झंकृत होने लगती है। ‘सजा सहज सितार' के द्वारा कवि हृदय में मजदूरनी के प्रति सहानुभूति उत्पन्न होने की बात कहना चाहता है। उसे वेदना की ऐसी अनुभूति पहले कभी नहीं हुई थी। इसीलिए वह कहता है "सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार । "

इसके बाद कवि पुनः यथार्थ के वाह्य जगत में लौट आता है। वह देखता है कि एक क्षण के बाद मजदूरनी के शरीर में कम्पन हुआ और उसके माथे पर झलक आयी पसीने की बूँदें लुढ़क पड़ती हैं। वह पुनः कर्म में लीन हो गयी। मानो कह रही हो मैं तोड़ती पत्थर। इन पंक्तियों से स्पष्ट है कि मजदूरनी की कातर दृष्टि तथा मौसम की कठोर स्थिति की विषमता ने कवि के मन को उद्वेलित किया। उसकी भावना के तार करुणा से झंकृत हुए और उसी की परिणति इस कविता की रचना के रूप में हुई। ये पंक्तियाँ इस कविता को प्रेरणा भूमि समझने की कुंजी ज्ञात होती हैं।

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