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Class 11 Hindi Book Solution
Bihar board class 11 Hindi book solution padyakhand chapter - 6 Saransh , (सरांश )
कक्षा - 11वी पद्खंड अध्याय - 6
झंकार – मैथिलीशरण गुप्त
लेखक : मैथिलीशरण गुप्त
हिन्दी की आधुनिक कविता को उँगली पकड़ कर चलना सिखलाने वाले कवि मैथिलीशरण गुप्त अपनी राष्ट्रीयता, संस्कृति और मानवीय आदर्श के कारण हमारे राष्ट्रकवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उन्होंने सामान्यतः भौतिक जीवन से जुड़ी भावनाओं को नैतिक मूल्यों की भूमि पर अभिव्यक्ति दी है। लेकिन उनकी कृति 'झंकार' में आध्यात्मिक भावों की अभिव्यक्ति हुई है। प्रस्तुत कविता उसी कृति से गृहीत एक गीत है। इसमें कवि ने मानव देह को तंत्री या वीणा या सितार जैसा वाद्य यन्त्र माना है तथा ईश्वर से इस वाद्य यन्त्र से झंकार उत्पन्न करने हेतु अनुरोध किया है। वीणा या सितार जैसे वाद्य यन्त्रों में एक या सात तार लगे होते हैं। इन तारों पर जब एक निश्चित ढंग से उँगली से आघात किया जाता है तो संगीत की मधुर ध्वनि निकलती है। इसी ध्वनि को झंकार कहते हैं। झंकार अपनी ताल-लय के कारण संगीत कहलाती है। यहाँ मानव के चेतना युक्त शरीर को तंत्री या वाद्ययन्त्र माना गया है। ईश्वर को वादक माना गया है क्योंकि वही हमारा सृजनकर्ता और नियामक है। चूँकि हमारा सारा कर्म, सारा जीवन व्यापार ईश्वर द्वारा नियत रूप में नियंत्रित होता है, अतः वह जैसा चाहता है हम वैसा ही आचरण करते हैं। इसी को लक्षित कर प्राय: कहा जाता है कि हम कठपुतली हैं ईश्वर के हाथों की वह जैसे चाहता है वैसे हमें नचाता है। यहाँ कवि ने नचाने के बदले बजाने की बात कही है। वाद्य यन्त्र से जो ध्वनि या संगीत निःसृत होता है वह फैलता है और उसका प्रभाव दूर तक और देर तक गूंजता रहता है। इस संगीत स्वर को मानव का कर्म मान लें और तब उसके विस्तार और प्रभाव की बात करें तो पायेंगे कि जो लोग ईश्वर की प्रेरणा से अच्छे काम करते हैं उनका यश दूर-दूर तक फैल जाता है। कुछ लोगों की सुकृति सारे विश्व में चर्चित होती है। जैसे गाँधी या बुद्ध या ईसा की वाणी का प्रभाव। ऐसे तत्त्वों को हम मानव देह के माध्यम से व्यक्त होने वाली ईश्वरीय विभूति या ईश्वरीय संगीत कह सकते हैं। मैथिलीशरण गुप्त ने इस कविता में इसी अभिप्राय को झंकार के रूप में व्यक्त किया है। कवि ईश्वर से निवेदित करता है कि इस शरीर की नस-नस तुम्हारी तंत्री के तार हो जायें। मुझे आघात की कोई चिन्ता नहीं, बस ऊँची झंकार उठनी चाहिए। अर्थात् मुझे चाहे जो कष्ट मिले लेकिन मेरा अच्छा कर्म संसार में संगीत की तरह गुजित हो । मेरे भीतर जितने भी सुर हैं या तुम जितने भी सुरों में बजाना चाहो यह शरीर रूपी वाद्य यन्त्र बजे। तुम्हारी वादन-क्रिया पर नियति अर्थात् प्रारब्ध या भाग्य नाचे तथा प्रकृति अर्थात् यह संसार स्वर साधे। तुम्हारे द्वारा बजाये जाने पर इस देह रूपी वाद्य यन्त्र से सुकर्म रूपी जो संगीत निकले उसकी गूँज गहरी हो और वह सुरभि की तरह हर स्थल और हर समय में अपना प्रभाव उत्पन्न करता रहे। देश-देश से तात्पर्य हर स्थान पर और काल-काल से तात्पर्य हर काल से है। अतः स्थान और समय की सीमा पार कर मेरे माध्यम से व्यक्त होने वाला संगीत सर्वत्र व्याप्त हो जाय। तंत्र वाद्यों को बजाने हेतु उसके तारों पर उँगलियों से या बजाने वाले उपादान से आघात करना पड़ता है। इस आघात को सहना वाद्ययन्त्र के लिए आवश्यक होता है। अन्य क्षेत्र में आघात का अर्थ होता है चोट, क्षति, कठिनाई का प्रहार इत्यादि। जो लोग जीवन में सन्मार्ग पर चलते हैं. या किसी अच्छे उद्देश्य के लिए प्रयास करते हैं। उन्हें विरोधी तत्त्वो के द्वारा उपस्थित की जानेवाली बाधाओं और विपत्तियों से टकराना पड़ता है। इसमें कभी-कभी उन्हें मौत को भी गले लगाना पड़ता है। इसी तत्व की ओर संकेत करते हुए कवि कहता है कि तुम मुझ पर प्रहार करो, हाँ जितन जी चाहे प्रहार करो मैं विचलित नहीं होऊंगा। क्योंकि, वह प्रहार नहीं तुम्हारा प्यार है प्यार इस अर्थ में कि भगवान जिसे अपना प्यारा समझते हैं कि उसी को कठिन दायित्व सौंपते हैं। कवि समर्पित भाव से कहता है कि प्यारे प्रभु और क्या कहूँ, बस मैं हर तरह से तैयार हूँ, तुम मेरे माध्यम से जो भी विश्व संगीत बजाना चाहो, जैसा भी आघात देना चाहो, दो, मैं तुम्हारे हाथों वाद्य यन्त्र बनने के लिए प्रस्तुत हूँ। इस तंत्र रूपी मेरी देह के तार-तार से तुम्हारी हर तान का विस्तार हो। यही मेरी हार्दिक इच्छा है। अपनी उँगलियों के आघात से तुम सम्पूर्ण श्रुतियों के द्वार खोल दो। यों ' श्रुति' शब्द का सामान्य अर्थ होता है जिसके द्वारा सुना जाता है अर्थात् कान। लेकिन भारतीय परम्परा में श्रुति का विशेष अर्थ होता है सुनकर प्राप्त होने वाला ज्ञान। वेदों को श्रुति कहा गया है और वेद का अर्थ होता है - ज्ञान। इसके अनुसार 'खोल अविरल श्रुतियों के द्वार' का अर्थ होगा। ज्ञान के समस्त बन्द द्वारों को खोल देना। पुनः कवि कहता है कि तुम्हारे द्वारा बजाये हर ताल पर यह संसार बार-बार मुग्ध हो, लय का ऐसा घेरा बने कि सब उसी में बँध जाये और जब तुम्हारा वादन सम पर पहुँचे तो यह सारा विश्व उससे तदाकार हो जायें। अर्थात् यह संसार जो तुमसे प्रकट हुआ है तुम्हारे ब्रह्माण्ड व्यापी संगीत में लय होकर तुमसे तदाकार हो जाय। निष्कर्षतः इस कविता में कवि यह कहना चाहता है कि यह सृष्टि ईश्वर की संगीत रचना है। यह उसी से निकली है और उसी की वाद्य-लय से मिलकर तदाकार हो जाती है। अतः मानव शरीर उसका वाद्य यन्त्र है, उसे बजाने के क्रम में होने वाले आघातों को सहने के लिए मानव को प्रस्तुत रहना चाहिए। सुख-दुख, अभाव-भाव सब उसकी ही देन हैं। वह जिससे जितना प्यार करता है उसे उतनी ही कठिन साधना में लगाता है। दूसरे शब्दों में, यदि मानव को सुघर सलोना रूप चाहिए तो आघातों के लिए तत्पर रहना पड़ेगा।
शब्दार्थ : सकल सब, शिराएँ = नसें, तंत्री = वाद्य यन्त्र, झंकार = गूँज, नियति = भाग्य, सबको नचानेवाली अव्यक्त शक्ति, प्रकृति = संसार, वह तत्त्व जिसके माध्यम से ईश्वर संसार की सृष्टि करता है। देश = स्थान, काल = समय, गमक = सुगंध, संगीत शास्त्र का एक शब्द। वाद्ययन्त्र के तार, तान = संगीतशास्त्र का एक शब्द, भाल = सिर, माथे का अगला भाग जहाँ तिलक लगाया जाता है, श्रुति = श्रवण, कान, ज्ञान, वेद लय क्रमबद्धता से उत्पन्न व्यवस्था, संगीतशास्त्र का एक शब्द, सम समतल, बराबर, संगीतशास्त्र का एक शब्द, सुर संगीतशास्त्र का एक शब्द जो स्वर-व्यवस्था से उत्पन्न होता है। तार = =
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Bihar board class 11 Hindi book solution padyakhand chapter - 6 Objective (स्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर )
(1) 'झंकार' कविता के कवि हैं
(क) जयशंकर प्रसाद
(ख) मैथिलीशरण गुप्त
(ग) निराला
(घ) महादेवी
उत्तर – ख |
(2) 'झंकार' कविता किस शास्त्र की भाषा के सहारे
(क) संगीतशास्त्र
(ग) अर्थशास्त्र
(ख) समाजशास्त्र
(घ) तर्कशास्त्र
उत्तर – क |
(3) 'झंकार' कविता में किसके नाचने का उल्लेख है ?
(क) प्रकृति
(ख) नर्तकी
(ग) नर्तक
(घ) नियति
उत्तर – घ |
(4) 'झंकार' कविता में आघात सहने के लिए कौन तैयार है ?
(क) परमात्मा
(ख) जनता
(ग) कवि
(घ) कोई नहीं
उत्तर – ग |
(5) 'झंकार' में कवि ने किसके द्वार खोलने की बात कही है ?
(ख) मंदिर
(क) घर नहीं।
(ग) श्रुतियों
(घ) किसी के
उत्तर – ग |
(6) 'झंकार' कविता में कवि ने अपने शरीर को किस वस्तु के समान कहा है ?
(क) तंत्री
(ख) कमंडल
(ग) यज्ञ
(घ) घड़ा
उत्तर – क |
(7 ) 'झंकार' के माध्यम से किसकी सत्ता व्यक्त होगी ?
(क) आत्मा की
(ग) संसार की
(ख) परमात्मा की
(घ) कवि की
उत्तर – ख |
(8) 'झंकार' कविता में किसकी अंगुली के धक्के से श्रुतियों के द्वार खुलेंगे ?
(क) आत्मा
(ख) कवि
(ग) परमात्मा
(घ) परिस्थिति
उत्तर – ग |
(9) 'झंकार' किस वाद से सम्बन्धित कविता है
(क) प्रगतिवाद
(ख) प्रयोगवाद
(ग) छायावाद
(घ) रहस्यवाद
उत्तर – घ |
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Bihar board class 11 Hindi book solution padyakhand chapter - 6 Very Short Quetion (अतिलघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर )
1. 'झंकार' कविता में कवि ने अपने को किस रूप में प्रस्तुत किया है ?
उत्तर - ‘झंकार' कविता में कवि ने अपने को वाद्य यन्त्र के रूप में प्रस्तुत किया है और कहा है कि मेरे शरीर के स्नायु तंत्र की सभी नसें ही इस शरीर रूपी वाद्य यन्त्र या तंत्री के तार हैं।
2. कवि कैसी गुंजार की इच्छा व्यक्त करता है ?
उत्तर- कवि चाहता है कि वह गुंजार ऐसी हो कि सभी स्थानों तथा सभी समयों में उसकी सत्ता बनी रहे।
3. श्रुतियों के द्वार खोलने का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर- 'श्रुति' शब्द के दो अर्थ हैं। पहला कान और दूसरा सुनकर प्राप्त होने वाला ज्ञान। जब 'श्रुति' शब्द का दूसरे अर्थ में लाक्षणिक प्रयोग होता है तो वह वेद-ज्ञान का अर्थ देता है। अतः श्रुतियों के द्वार खोलने का अर्थ है परमात्मा की कृपा से समस्त ज्ञान-विज्ञान का बोध प्राप्त हो जाने की क्षमता प्राप्त होना।
4. परमात्मा के संगीत की झंकार से उत्पन्न प्रभाव का कवि ने किस रूप में वर्णन किया है ?
उत्तर कवि के अनुसार परमात्मा के संगीत की झंकृति का प्रभाव गहरा हो। वह सकल श्रुतियों के द्वार खोल दे। उसके ताल-ताल पर संसार मोहित होकर तथा सिर नवाकर उसके प्रभाव को व्यक्त करे तथा सारा संसार उस संगीत की लय से तदाकार हो जाय।
5. कवि परमात्मा की तंत्री बनने के लिए क्या सब करने को तैयार है ?
उत्तर- कवि परमात्मा की तंत्री बनने पर बजाने के क्रम में होने वाले सभी आघातों को सहने के लिए तैयार है। क्योंकि, वह मानता है कि यह आघात प्रभु के प्यार का सूचक है।
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Bihar board class 11 Hindi book solution Padyakhand chapter - 6 Short Quetion (लघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर )
प्रश्न - 1. कवि ने अपने शरीर की सकल शिराओं को किस तंगी के तार के रूप चाहा है ?
उत्तर कवि ने अपने शरीर की सकल शिराओं को ईश्वर की तंत्री (वीणा) के तार के रूप में देखा है।
प्रश्न - 2. कवि को आघातों की चिंता क्यों नहीं है ?
उत्तर – कवि आघातों की चिन्ता इसलिए नहीं करता कि बिना आघात के कोई वाद्य यन्त्र नहीं बजता है। जब वाद्य यन्त्र बजेगा नहीं तो मधुर संगीत नहीं निकलेगा। और श्रोता का मन आह्लादित नहीं होता। जीवन की सार्थकता दूसरे की प्रसन्नता में है। इसके लिए थोड़ा कष्ट उठाना ही पड़ता है। कवि आघात को दूसरे रूप में भी देखता है। ईश्वर उसे ही बजाना चाहता है, अन्य को नहीं। यह उसके लिए विशेष गौरव की बात है कि ईश्वर जग की प्रसन्नता के लिए उसे ही निमित्त बना रहा है।
प्रश्न - 3. कवि ने समूचे देश में किस गुंजार के गमक उठने की बात कही है ?
उत्तर- कवि ने देश में जागृति के गुंजार की बात कही है। कवि राष्ट्रवादी है। वह देश को स्वाधीनता के लिए जगाना चाहता है। अतः वह अपनी वाणी अर्थात् कविता को राष्ट्रीय चेतना सम्पन्न मानता है और अपेक्षा करता है कि लोग उसकी कविताओं को पढ़कर राष्ट्र प्रेम की भावना से भर जायें और देश के लिए काम करें।
प्रश्न - 4 कर प्रहार ......................यह तो है प्यार – यह तो है प्यार यहाँ किससे प्रहार के लिए रहा है ? भार को प्यार करने का क्या अर्थ है ?
उत्तर-इन पंक्तियों में कवि अव्यक्त ईश्वर से प्रहार करने हेतु कह रहा है। चूँकि यह प्रहार कृषि के प्रति ईश्वर की विशेष कृपा का सूचक है। उसे निमित्त बनाने की पात्रता का सूचक और इसमें जन कल्याण की भावना निहित है। अतः कवि इस आघात को भार नहीं अपने प्रति ईश्वर का प्यार मानता है।
प्रश्न - 5. कविता का केन्द्रीय भाव क्या है ? अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर- इस कविता में कवि ने मानव को ईश्वर का वाद्य यन्त्र माना है। जैसे गोस्वामी जी ने लिखा है - सबहिं नचावत राम गोसाईं। उसी तरह गुप्त जी कहना चाहते हैं – सबहिं बजावत राम गोसाई। मानव के बजने का उत्कृष्ट संगीत की स्वर अपने काव्य से भाव है श्रेष्ठ और लोक कल्याणकारी कार्य करना: जिस तरह माधुरी सबको मुग्ध करती हुई वातावरण में छा जाती है उसी तरह कवि राष्ट्रीय चेतना गुजित कर देश के जन जन में प्रेरणा भर देना चाहता है।
प्रश्न - 7. सुरों के सजीव-साकार होने का क्या अर्थ है ?
उत्तर - कविता के सुरों के सजीव साकार होने का अर्थ है प्रेरित प्रभावित कर क्रियाशील बना देना।
प्रश्न - 8, क्या इस कविता का स्वाधीनता आन्दोलन से कोई सम्बन्ध है ? यदि हाँ तो कैसा ?
उत्तर- इस कविता में स्वाधीनता आन्दोलन का संकेत है। संकेत है जागरण का। उस जमाने में जनता को जगाने हेतु राष्ट्रीय गीतों का सामूहिक गायन होता था। प्रभात फेरी के रूप में राष्ट्रीय चेतना के गीत गाये जाते थे। इससे जनजागृति फैलती थी और लोग भावावेग में आकर आन्दोलन में सम्मिलित हो जाते थे। व्यंग्यार्थ का प्रयोग करती ऐसी अनेक कविताएँ माखनलाल चतुर्वेदी, प्रसाद, निराला आदि की मिलती हैं जिनका स्वर इसी तरह का है। जैसे निराला की जागो फिर एक बार या प्रसाद की हिमाद्रि तुंग शृंग से आदि कविताएँ।
प्रश्न- 9. वर्णनात्मक कविता लिखने के लिए द्विवेदी युग के कवि प्रसिद्ध थे, किन्तु इस कविता में छायावादी कवियों जैसी शब्द-योजना, भावाव्यक्ति एवं चेतना दिखलाई पड़ती है। कैसे ?
उत्तर- इस कविता में यदि मानव शरीर को भारत मान लें और जगानेवाले के रूप में गाँधीजी को या कवियों को मान लें तो पूरा अर्थ साफ हो जायेगा। प्रतीक चूँकि स्पष्ट नहीं है इसलिए यह कविता ईश्वर द्वारा मानव में आध्यात्मिक जागृति का अर्थ देती है, राष्ट्रीय स्तर पर देश के जगने का अर्थ देती है और व्यक्तिगत स्तर पर मानव को कर्म प्रेरणा से भरती है। इन अनेक अर्थों की अभिव्यक्ति के कारण यह कविता अर्थ की व्यंजना शक्ति का उदाहरण बन जाती है। पूरी कविता में एक अमूर्त स्थिति है, व्यापकता है और अर्थ की सपाटता नहीं है, प्रतीक भी स्पष्ट नहीं है। अतः अर्थ की अमूर्तता, प्रतीकात्मकता और व्यंजना के कारण यह छायावादी तत्त्व का आधिक्य है। सभी आलोचकों ने गुप्त जी के गीत संग्रह झंकार को छायावादी संस्कार की रचना माना है। यह गीत भी उसी से लिया गया है।
Class 11 Hindi Book Solution
Bihar board class 11 Hindi book solution padyakhand chapter - 6 Hindi Grammar (भाषा की बात )
प्रश्न - 1. गुप्त जी की कविताओं में तुकों के विधान पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर- इस कविता के प्रत्येक छन्द में चार पंक्तियाँ हैं। गुप्त जी ने हर दूसरी और चौथी पंक्ति में समान तुक या स्वर समुदाय वाले शब्द रखे हैं। इसकी एक विशेषता यह है कि सभी छन्दों की दूसरी और चौथी पंक्ति का तुक एक ही प्रकार का है जो इस प्रकार है- तार-झंकार, साकार गुंजार, प्यार तैयार, विस्तार द्वार, बारंबार संसार ।
प्रश्न - 2. अनुप्रास अलंकार क्या है ? कविता से उदाहरणों को चुनकर लिखें।
उत्तर-पद्य या गद्य में जहाँ एक ही प्रकार के स्वर या व्यंजन की एकाधिक बार आवृत्ति होती है वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। झंकार कविता में अनुप्रास के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-तंत्री के तार, नाचे नियति, सजीव साकार, गमक गहरी गुंजार, मेरे तार तार से तेरी, अपनी अंगुली, सम में समा जाय संसार आदि। इनके अतिरिक्त ताल ताल, देश देश काल काल, तान तान तार में भी है लेकिन शब्द की आवृत्ति होने से वहाँ अनुप्रास नहीं वीप्सा अलंकार है। अनुप्रास प्रश्न -
3. लिंग निर्णय करें :–
शरीर (पु०) = मेरा शरीर स्वस्थ है।
शिरा (स्त्री०) = मेरे शरीर की एक एक शिरा झंकृत हो उठी।
झंकार (स्त्री०) = संगीत की ऊँची झंकार उठी।
प्रकृति (स्त्री०) - प्रकृति क्रुद्ध हो उठी।
नियति (स्त्री०) नियति मेरे साथ विचित्र खेल खेल रही है।
गमक (स्त्री०) = गीत की गमक पर ध्यान दो।
तान (स्त्री०) उसकी तान सुरीली थी।
अंगुली (स्त्री०) = मेरी एक अंगुली टेढ़ी है।
भाल (पु०) = मेरा भाल दीप्त है।
संसार ( पु०) = तुम्हारी इस करनी पर सारा संसार थूकेगा।
प्रश्न - 4. विशेषण बनायें ः–
- शरीर = शारीरिक
- नियति = नियत
- काल = कालिक
- चिन्ता = चिन्तित
- सुर = सुरीली
- प्रकृति = प्राकृतिक
- श्रुति = श्रुत
- संसार = सांसारिक
- लय = लयात्मक
Class 11 Hindi Book Solution
Bihar board class 11 Hindi book solution Padyakhand chapter - 6 Hindi Grammar (व्यख्या )
(1 ) इस शरीर की सकल ...........................ऊँची झंकार ।
प्रस्तुत पंक्तियाँ राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त रचित 'झंकार' कविता से ली गयी हैं। झंकार में कवि का स्वर आध्यात्मिक है, यहाँ छायावादी रहस्य-चेतना मुखर है। इन पंक्तियों में कवि कहता है कि जिस तरह वीणा के तारों पर आघात करने से संगीत की सृष्टि होती है उसी तरह मानव का शरीर भी वीणा की तरह तारों वाला वाद्य यन्त्र है। इस शरीर में निहित शिराएँ अर्थात् नसें ही तार हैं। हे परमात्मा इस शरीर की सभी शिराएँ तुम्हारी तंत्री अर्थात् वाद्य यन्त्र के तार बनें। हमें आघात की चिन्ता नहीं है कि कितनी चोट लगती है या कितनी झंकार उठती है। बस केवल इसमें से शंकार निकलनी चाहिए। अर्थात् इस ऐसा महत्त्वपूर्ण काम संभव हो जो जगत के लिए सुखद और मेरे लिए यशवर्द्धक कवि ने अपने को परमात्मा का तंत्र भी कहा है। शरीर से कोई हो। यहाँ वही इसे बजाता है अर्थात् जैसा लक्ष्य निर्धारित करता है वैसा हम कार्य करते हैं ।
(ii) नाचे नियति, प्रकृति सुर साधे............................गहरी गुंजार ।
'झंकार' गीत की इन पंक्तियों में इसके रचयिता कवि प्रस्तुत श्रेष्ठ मैथिलीशरण गुप्त परमात्मा से यह कहना चाहते हैं कि तुम इस तन रूपी तंत्री के सभी सुरों को सजीव साकार करो। वे सुर इतने प्रभावशाली हों, इतने प्रेरक हों कि नियति अर्थात् भाग्य जो सब को नचाता है वह स्वयं नाचने लगे और प्रकृति जो लय के माध्यम से साकार होती है वह स्वयं सुर साधने लगे। उस झंकार का प्रभाव देश देश में अर्थात् सभी स्थानों में व्याप्त हो जाय और वह इतनी स्थायी हो कि भूत, वर्तमान और भविष्य तीनों में व्याप्त रहकर कालातीत झंकार बन जाय। उस झंकार की गमक ऐसी हो कि उसका गहरा प्रभाव पड़े। यहाँ कवि ने तन के भीतर उठने वाली आत्मा की झंकार के विश्वव्यापी स्वरूप और गहरे प्रभाव की ओर संकेत किया है।
(iii) कर प्रहार, हाँ, कर प्रहार................. मैं हूँ तैयार।
प्रस्तुत पंक्तियाँ मैथिलीशरण गुप्त जी की छायावादी रहस्यवादी काव्यकृति 'झंकार' से गृहीत हैं। इन पंक्तियों में कवि अपने नियन्ता परमात्मा से अनुरोध करना चाहता है तुम मुझको बजाने की कृपा अवश्य करो, यह मेरा सौभाग्य होगा कि तुमने मुझे उपयोग के लायक समझा। बजाने में चाहे जितने जोर से तुम आघात करो मुझे आपत्ति नहीं क्योंकि मैं जानता हूँ कि वह प्रहार नहीं तुम्हारा प्यार होगा। हे प्यारो, मैं तुमसे अधिक क्या कहूँ, मैं हर तरह से तुम्हारे द्वारा बजाये जाने के लिए तैयार हूँ। ये पंक्तियाँ प्रसन्नतापूर्वक दुःख उठाने वाली मध्ययुगीन भक्ति-भावना तथा सम्पूर्ण समर्पण की प्रवृत्ति को सूचित करती हैं।
(iv) मेरे तार तार से............... श्रुतियों के द्वार।
प्रस्तुत पंक्तियाँ राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त रचित 'झंकार' कविता से ली गयी हैं। इसमें कवि यह भाव व्यक्त करता है कि परमात्मा के द्वारा यदि वह उसके संगीत का माध्यम बनाया जाता है तो यह उसका सौभाग्य होगा। अतः वह चाहता है कि उसके शरीर की सभी शिराओं से परमात्मा के संगीत का प्रकाशन हो, वह उनके विश्वव्यापी संगीत के प्रसार का निमित्त बने। उसकी हार्दिक इच्छा है कि परमात्मा के अस्तित्व बोध का भौतिक माध्यम बनकर जगत को उसकी सत्ता की सांगीतिक अनुभूति करा सकेगा। -
(v) ताल-ताल पर भाल......................... समाजाय संसार।
प्रस्तुत पंक्तियाँ मैथिलीशरण गुप्त रचित ' झंकार' कविता से ली गयी हैं। हम जानते हैं कि संगीत में ताल का महत्त्व होता है। हर गीत अलग-अलग ताल में निबद्ध होता है। कवि चाहता है कि उसके माध्यम से परमात्मा का जो संगीत व्यक्त हो उसके प्रत्येक ताल पर संसार बार-बार मोहित होकर अपना सिर झुकाकर परमात्मा की महत्ता को नमन करे। भीतर से निकली झंकार में ऐसी अन्विति हो, ऐसी क्रम-व्यवस्था हो कि लय बँध जाय और उस लय के व्यापक प्रभाव में में क्रम-क्रम से सम अर्थात् उद्वेग और तनाव से रहित ऐसी स्निग्ध और आनन्दपूर्ण शान्ति का विधान हो कि सारा संसार उसी में समाहित हो जाय। अर्थात् परमात्मा की सत्ता से तन्मय तदाकार होकर अखंड आनन्द की प्राप्ति करे। इन पंक्तियों में ताल, लय तथा सम ये तीनों शब्द संगीतशास्त्र के पारिभाषिक शब्द हैं।
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