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Class 11 Hindi Book Solution
Bihar board class 11 Hindi book solution padyakhand chapter - 2 Saransh , (सरांश )
कक्षा - 11वी पद्खंड अध्याय - 2
पद – कबीर
लेखक : कबीर
कबीर एक क्रान्तिकारी समाज-सुधारक कवि हैं। उनकी प्रासंगिकता आज भी है। उनकी काव्य-साधना के दो पक्ष हैं - प्रथम, सामाजिक और धार्मिक प्रवृत्तियों पर चिन्तन और उसकी औपचारिकता तथा रूढ़िवादिता पर प्रहार। द्वितीय साधना के द्वारा ईश्वर को प्राप्त करना। इसके लिए वे योग, ज्ञान और प्रेम तीनों मार्गों का सहारा लेते हैं। लेकिन, प्रधानता प्रेम मार्ग की है। हमारी पाढ्य पुस्तक में संकलित प्रथम पद उनकी धार्मिक प्रवृत्तियों का द्योतक है और दूसरा पद धार्मिक क्षेत्र की रूढ़िवादिता तथा हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष पर प्रहार करने की चेतना से सम्बन्धित।क्रान्तिकारी कवि कबीर एक निडर व्यक्ति हैं। अपनी आस्था के बल पर वे किसी भी व्यक्ति की आलोचना करने की शक्ति रखते हैं। प्रथम पद में कबीर ने संसार के पागलपन का वर्णन किया है। इस वर्णन के माध्यम से उन्होंने नकली साधकों, आत्मज्ञान से रहित गुरुओं और नाम-भेद को लेकर आपस में मार-काट करनेवाले हिन्दुओं-मुसलमानों की कटु आलोचना की है। वे कहते हैं संतो ! देखो यह संसार बौड़ाया हुआ है अर्थात् पागल और उन्मत्त है। यह पागलपन मूढ़ता और ढोंग से उत्पन्न है, लाभ-लोभ से प्रेरित है। कबीर जब ऐसे लोगों की वास्तविकता समाज को बतलाते हैं अर्थात् सच्ची बात कहते हैं तो लोग उसे मारने दौड़ते हैं जबकि अयोग्य और नकली साधकों की झूठी बातों पर वे विश्वास करते हैं। कबीर कहते हैं कि मैंने ऐसे लोगों को देखा है। ये धार्मिक नियमों का पालन करते हैं, धर्म-कर्म की औपचारिक विधियों का सम्पादन करते हैं। प्रतिदिन प्रात:काल ही स्नान कर अपने को पवित्र और धार्मिक मान लेते हैं। लेकिन ये ऊपरी विधि-विधान तक ही सीमित हैं। इन्हें कोई ज्ञान नहीं है। तभी तो ये आत्मा को मारकर यानी आत्मा की आवाज अनसुनी कर पत्थर की पूजा करते हैं यानी ज्ञान रहित होने के कारण पत्थर की मूर्ति को ईश्वर मानकर पूजा करते हैं। इन्हें ज्ञात ही नहीं है कि पत्थर भगवान नहीं होता है। कबीर मूर्तिपूजक हिन्दुओं पर प्रहार कर शीघ्र मुसलमानों की ओर मुड़कर उन पर निशाना साधते हैं। वे कहते हैं कि मैंने अनेक पीर और औलिया अर्थात् मुसलमान सिद्धों और ज्ञानियों को देखा है जो कुरान आदि धर्मग्रंथ पढ़कर अपने को ज्ञानी और धर्मगुरु घोषित कर चुके हैं। ये लोगों को अपने शिष्य बनाते हैं और उन्हें मुक्ति की युक्ति बतलाते हैं। लेकिन इनका ज्ञान भी वैसा ही है अर्थात् किताबी है। जो आचरण और मन में नहीं उतरा है। कबीर फिर हिन्दुओं की ओर मुड़ जाते हैं। वे कहते हैं कि ये हिन्दू साधक आसन लगाकर बैठते तो हैं लेकिन उनमें दंभ भरा हुआ है। ये इस गुमान में भूले हैं कि उनसे बड़ा साधक और ज्ञानी कोई नहीं है। ये पीपल तथा पत्थर पूजते हैं अर्थात् वृक्षों और मूर्तियों की पूजा करते हैं। ये अनेक तीर्थों की यात्रा कर आते हैं और इस गर्व से भर जाते हैं कि मैंने पूजा-पाठ किया है, तीर्थयात्रा की है अत: असली ज्ञानी हूँ, धार्मिक हूँ। ऐसे साधक आम लोगों से अपने को अलग बताने के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के तिलक लगाते हैं, माला पहनते हैं। कोई विशेष पहचान-चिह्न धारण कर अपनी साम्प्रदायिक पहचान प्रकट करते हैं या विशेष ढंग की टोपी पहन कर अपनी विशेषता घोषित करते हैं। आज की भाषा में कहें तो भिन्न-भिन्न प्रकार के साधु टोपी, माला, तिलक और पहचान-चिह्न का साइनबोर्ड शरीर पर लगाकर अपने ज्ञान, अपनी साधना और अपनी साम्प्रदायिक पहचान का विज्ञापन करते चलते हैं। इतना ही नहीं ये लोगों पर प्रभाव जमाने के लिए साखी तथा सबद यानी पद भाव-विभोर होकर झूम-झूम कर गाते हैं और गाते-गाते बेसुध हो जाते हैं। कबीर की दृष्टि में ये सब उपाय बाहरी हैं, दिखावटी हैं। सत्यता यही है कि इन लोगों को अपनी आत्मा की कोई खबर ही नहीं है, ये आत्मज्ञान से रहित मूढ़ जन हैं जो बाहरी विधि-विधान और किताबी ज्ञान को ही असली ज्ञान मानकर मगन रहते हैं। हिन्दू-मुसलमानों के बीच संघर्ष कबीर के युग की सामान्य घटना थी। मुसलमान जहाँ तलवार के बल पर हिन्दुओं को मुसलमान बनाने के लिए प्रयत्नशील थे वहीं हिन्दू सत्ता गँवाकर अपनी धर्म-रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे थे। हिन्दू ईश्वर को राम कहते थे तो मुसलमान रहमान। कबीर की दृष्टि में यह नाम का भेद है। तत्त्वतः राम और रहमान एक ही ईश्वर के दो नाम हैं। यह तात्त्विक बात, यह रहस्य दोनों में से किसी की समझ में नहीं आता है और दोनों ईश्वर को भूलकर उसके नाम पर लड़कर मर रहे हैं। कबीर की दृष्टि में यह मूर्खता है।
कबीर अपना अगला निशाना नकली और ज्ञान-शून्य गुरुओं और उनके मूढमति शिष्यों को बनाते हैं। वे कहते हैं कि वे गुरु लोग अपनी महिमा के अभिमान से भरे हुए हैं और घर-घर घूम-घूम कर गुरुमंत्र दे रहे हैं यानी शिष्य बना रहे हैं। ये सब मूढ़ अभिमानी और ज्ञानशूल हैं। ये सारे शिष्य गुरु सहित एक दिन पछतायेंगे और अपनी वास्तविकता जानकर अन्त समय में निष्फलता की पीड़ा से दु:खी होंगे। कबीर कहते हैं कि मैं लोगों को कितना भी समझाता हूँ लेकिन लोग नहीं मानते हैं। अपने आप में ही समाये रहते हैं अर्थात् अपने में मग्न रहते हैं दूसरों की सही बात भी नहीं सुनना चाहते हैं। अपने प्रेम-सम्बन्धी द्वितीय पद में वे ईश्वर को सम्बोधित करते हुए पूछना चाहते हैं कि तुम कब कृपा करके अपने दर्शन दोगे? इसी क्रम में अपनी आतुरता, अपनी दशा तथा अपने प्रेम को अभिव्यक्त करते हुए वे कहते हैं कि मैं दिन-रात तुम्हारे दर्शन के लिए आतुर रहता हूँ। प्रेमाकुलता ने मुझे इस प्रकार व्याप्त कर लिया है कि मैं चैन से नहीं रह सकता। मेरे नेत्र तुम्हें चाहते हैं अर्थात् तुम्हें देखते रहना चाहते हैं। अत: ये एकटक तुम्हारी प्रतीक्षा करते रहते हैं और तनिक भी हार नहीं मानते हैं। कबीरदास अपनी दशा बताते हुए कहते हैं तुम्हारे विरह की अग्नि मुझे बहुत जलाती है। अर्थात् तुम्हारे पाने की व्याकुलता दाहक बन गयी है। जैसे आग में जला व्यक्ति बहुत बेचैनी अनुभव करता है उसी तरह मैं तुम्हारे बिना बेचैनी अनुभव करता हूँ। इससे तुम विचार कर सकते हो कि तुम्हारे प्रति मेरा प्रेम कितना गहरा है और तुम्हारे बिना मैं कितना विकल हूँ। वे प्रभु का ध्यान आकृष्ट करते हुए कहते हैं कि हे गोसाईं अर्थात् मेरे स्वामी मेरी वाणी अर्थात् मेरा बयान, मेरी प्रार्थना, मेरी पीड़ा या मेरी फरियाद सुनो, तुम बहरे की तरह मेरी फरियाद अनसुनी मत करो। तुम धैर्यवान हो, देर तक किसी की आतुर पुकार को अनसुनी करने की क्षमता तुममें है। (क्योंकि मेरी तरह तुमसे प्रीति करने वाले लोग अनेक हैं।) लेकिन मुझमें धैर्य नहीं है, मैं विरह-व्यथा से बेचैन होकर तुरत आतुर हो जाता हूँ। वैसे ही जैसे कच्चे घड़े में जल बहुत देर तक नहीं टिक पाता है, कच्चेपन के कारण शीघ्र गला कर बाहर बह जाता है। आगे वे निवेदन करते हैं कि हे माधव, तुमसे बिछुड़े बहुत दिन हो गये। अब मन धीरज नहीं धर पा रहा है। मेरी देह विरह-ताप से क्षत हो गयी है, मैं (कबीर) अत्यन्त आर्त हो गया हूँ अतः मिलने की कृपा करो।
निष्कर्षत: इस पद में कबीर ने परमात्मा के प्रति अपने अनन्य प्रेम और परमात्मा से न मिल पाने की अकुलाहट में अपनी पीड़ा का वर्णन करते हुए मिलने की अधीर आकांक्षा व्यक्त की है। यह कहा जा सकता है कि कबीर ने धार्मिक जीवन की विडम्बनाओं, रूढ़ियों, अन्धविश्वासों और मूर्खताओं को उजागर किया है और धर्म के नाम पर होने वाली ठगी का विरोध किया है।
शब्दार्थ –
(i) पद संतो देखत जग बौराना
स्नान, बौराना पागल था उन्मत्त होना, पावे - दौड़, पतियाना - विश्वास करना, नेमी - नियम का पालन करने वाला, घरमी - धर्म-सम्बन्धी विधानों के अनुसार आचरण करने वाला, असनाना आतम आत्मा, पखानहि - पत्थर को, बहुतक - अनेक, पौर = पीड़ा हरने वाला संत या सिद्ध पुरुष, औलिया - ज्ञानी, साधक, भक्त, मुरीद - अनुगत, शिष्य, तदबीर • युक्ति, तरीका डिंभ - दंभ, साखी - साक्षी, सबद शब्द, पद, मरम - मर्म, रहस्य।
(ii) पद हो बलिया कब देखाँगी तोहि।
बलैया बलैया लेना, शुभ भावना सूचक सम्बोधन। अहनिस अहर्निश, दिन-रात, व्यापै-व्याप्त होना, ३ - को, रती - तनिक भी, लेहू - लो, वादि - फरियाद करना, गुसांई गोस्वामी, मालिक, प्रभु, देवता, जिन = मत, नहीं, बधीर - बहरा, काचै - कच्चा भांडे - भाण्ड, बर्तन, नीर = जल, छतां - क्षीण, क्षत, दग्ध, आरतिवेत - आर्त, दयनीय, दीन।
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Bihar board class 11 Hindi book solution padyakhand chapter - 2 Objective (स्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर )
(i) कबीर किसके उपासक हैं ?
(क) राम
(ख) शिव
(ग) कृष्ण
(घ) इनमें से किसी के नहीं।
उत्तर – घ |
(ii) कबीर किससे प्रेम करते हैं ?
(क) निर्गुण ब्रह्म
(ख) सगुण ब्रह्म
(ग) पुरुष
(घ) अपने आप से
उत्तर – क |
(iii) कबीर का तन किस आग में जलता है?
(क) लकड़ी की आग
(ख) विरह की आग
(ग) कोयले की आग
(घ) किसी आग में नहीं
उत्तर – ख् |
(iv) सच बोलने पर संसार किसको मारने दौड़ता है ?
(क) कबीर को
(ख) झूठे व्यक्ति को
(ग) परमात्मा को
(घ) गुरु को
उत्तर – क |
(v) माला-टोपी कौन धारण करता है?
(क) कबीर
(ख) गुरु
(ग) शिष्य
(घ) नकली उपासक
उत्तर – घ |
(vi) कबीर की दृष्टि में सही ज्ञान क्या है ?
(क) प्रत्यक्ष ज्ञान
(ख) पुस्तकीय ज्ञान
(ग) आत्म-ज्ञान
(घ) वैज्ञानिक ज्ञान
उत्तर – ग |
(vii) कबीर के अनुसार हिन्दू किसको प्यारा कहता है ?
(क) राम
(ख) शिव
(ग) दुर्गा
(घ) कृष्ण
उत्तर – क |
(viii ) कबीर के अनुसार मुसलमान किसको प्यारा कहता है ?
(क) मुहम्मद साहब
(ख) खुदा
(ग) रहिमाना
(घ) शैतान
उत्तर – ग |
(ix) कबीर ने 'तुरुक' शब्द का प्रयोग किसके लिए किया है ?
(क) अछूत
(ख) मुसलमान
(ग) अत्याचारी
(घ) ईश्वर
उत्तर – ख् |
(x) मंत्र कौन देता है ?
(क) गुरु
(ख) चेला
(ग) ईश्वर
(घ) कबीर
उत्तर – क |
(xi) मंत्र कौन लेता है?
(क) गुरु
(ख) चेला
(ग) ईश्वर
(घ) कबीर
उत्तर – ख |
Class 11 Hindi Book Solution
Bihar board class 11 Hindi book solution padyakhand chapter - 2 Very Short Quetion (अतिलघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर )
1) कबीर विरह की दशा में क्या अनुभव करते हैं?
उत्तर-कबीर को विरह की अग्नि जलाती है, आतुरता और उद्वेग पैदा करती है तथा मन धैर्य से रहित हो जाता है।
(i) कबीर परमात्मा से क्या चाहते हैं?
उत्तर-कबीर परमात्मा का दर्शन चाहते हैं, विरह-दशा की समाप्ति और मिलन का सुख चाहते हैं।
(iii) कबीर के अनुसार हिन्दू-मुस्लिम किस मुद्दे पर लड़ते हैं ?
उत्तर-हिन्दू-मुसलमान नाम की भिन्नता और उपासना की भिन्नता को लेकर लड़ते हैं।
(iv) कबीर की दृष्टि में नकली उपासक क्या करते हैं ?
उत्तर नकली उपासक नियम-धरम का विधिवत पालन करते हैं, माला-टोपी धारण करते हैं, आसन लगाकर उपासना करते हैं, पीपल-पत्थर पूजते हैं, तीर्थव्रत करते हैं तथा भजन-कीर्तन गाते हैं।
(v) कबीर की दृष्टि में नकली गुरु लोग क्या करते हैं ?
उत्तर-नकली गुरु लोग किताबों में पढ़े मन्त्र देकर लोगों को शिष्य बनाते हैं और ठगते हैं। इन्हें अपने ज्ञान, महिमा तथा गुरुत्व का अभिमान रहता है लेकिन वास्तव में ये आत्मज्ञान से रहित, मूर्ख, ठग और अभिमानी होते हैं।
(vi) अनुसार ईश्वर-प्राप्ति का असली मार्ग क्या है ?
उत्तर-ईश्वर-प्राप्ति का असली मार्ग है आत्मज्ञान अर्थात् अपने को पहचानना और अपनी सत्ता को ईश्वर से अभिन्न मानना तथा ईश्वर से सच्चा प्रेम करना।
Class 11 Hindi Book Solution
Bihar board class 11 Hindi book solution Padyakhand chapter - 2 Short Quetion (लघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर )
प्रश्न-1. कबीर ने संसार को बौराया हुआ क्यों कहा है ?
उत्तर-संसार ईश्वर के सही रूप आत्मज्ञान को भूलकर स्नान-पूजा, माला तिलक आदि के पचड़े में पड़ा हुआ है। वह इसे ही धर्म और ईश्वर प्राप्ति का मार्ग समझता है। कबीर के अनुसार यह सही मार्ग नहीं है। चूंकि गलत राह पर पागल-उन्मत्त आदि प्रकार के लोग ही चलते हैं, सही लोग नहीं, अत: कबीर ने संसार को बौड़ाया या पागल कहा है।
प्रश्न-2, “साँच कहौं तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना" कबीर ने यहाँ किस सच और झूठ की बात कही है ?
उत्तर-कबीर आत्मज्ञान को ईश्वर प्राप्ति का सही मार्ग और परम्परागत धर्म-कर्म पूजा-पाठ को गलत मानते हैं। लेकिन लोग उलटी राह पर चलने के अभ्यासी तथा उसी के विश्वासी हैं। कबीर का सच आत्मज्ञान है और झूठ लोकाचार है। वे इसी सच बात को कहते हैं तो लोग उन्हें मारने दौड़ते हैं और पंडितों द्वारा फैलाए पाखंड पूर्ण धर्माचार पर विश्वास करते हैं।
प्रश्न-3. कबीर के अनुसार कैसे गुरु-शिष्य अंतकाल में पछताते हैं ? ऐसा क्यों होता है?
उत्तर-अहंकारी, अभिमानी तथा आडम्बर रचने वाले ऐसे गुरु जो घर-घर घूम कर चेला बनाते फिरते हैं तथा बिना समझे-बूझे अयोग्य गुरु को गुरु बना लेने वाले शिष्य दोनों अपात्र हैं। ये दोनों सही धर्माचरण के शत्रु हैं। ऐसे ही गुरु शिष्य पतित होने के कारण अथवा भेद खुलने पर दुर्गति किये जाने के कारण पछताते हैं। रहिमाना
प्रश्न-4. 'हिंदू कहै मोहि राम पियारा तुर्क कहै । आपस में दोउ लरि लरि मूए मर्म न काहू जाना। इन पंक्तियों का भावार्थ स्पष्ट करें।
उत्तर-कबीर के अनुसार ईश्वर एक है निर्गुण निराकार। वह आत्मज्ञान से या अपने भीतर झाँकने से प्राप्त होता है। उसे ही हिन्दू राम कहता है और मुसलमान रहमान। यह नाम का भेद है। लेकिन दोनों इतने मूर्ख हैं कि अर्थ के बदले शब्द को पकड़कर एक दूसरे से लड़ते मरते हैं। यदि वे मर्म समझते तो आपस में मिलकर रहते।
प्रश्न-5. 'बहुत दिनन कै बिछुरै माधौ मन नहिं बाँधै धीर।" यहाँ माधौ किसके लिए प्रयुक्त है?
उत्तर-माधो का तत्सम रूप माधव है। यह कृष्ण के लिए प्रयुक्त होता है। लेकिन कबीर ने राम, माधो आदि का प्रयोग अपने ईश्वर या प्रियतम परमात्मा के लिए किया है।
प्रश्न-6. कबीर ने शरीर में प्राण रहते ही मिलने की बात क्यों कही है?
उत्तर-कबीर ईश्वर का दर्शन करना चाहते हैं आत्मज्ञान के रूप में। आतमग्यान बिना सब सूना।' यह देहरहित हो जाने पर संभव नहीं है। इसीलिए वे शरीर में प्राण रहते ही मिलने की बात करते हैं।
प्रश्न-7. कबीर ईश्वर से मिलने के लिए बहुत आतुर हैं क्यों ?
उत्तर-कबीर भक्त हैं। वे अपने को प्रेमिका मानते हैं। प्रेमिका में प्रेमी से मिलने की आतुरता का कारण होता है-प्रेम। कबीर भी वियोगी प्रेमी हैं। वे प्रेम को अमल या आदत मानते हैं। अमली को अमल के लिए जो बेचैनी होती है वही कबीर को है। इसी प्रेम अमल के कारण वे ईश्वर से मिलने को आतुर हैं।
प्रश्न-8. दूसरे पद के आधार पर कबीर की भक्ति भावना का वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर-कबीर की भक्ति में विरह की प्रधानता है। उन्होंने बहुत दिनों से अर्थात् जब से शरीर धारण किया तभी से वियोग व्यथित हैं। प्रियतम परमात्मा को देखने की प्रबल इच्छा उनके तन मन में व्याप्त है। विरह की अग्नि तन को जला रही है। वे अपने को जल भरा कच्चा घड़ा मानते हैं जो बहुत समय तक नहीं टिक सकता। अत: वे अधीर हो आर्त होकर मिलन सुख देने का अनुरोध परमात्मा से करते हैं। इस पद में आतुरता और वियोग-विदग्धता का स्वर प्रबल है।
प्रश्न-10. प्रथम पद में कबीर ने बाह्याचार के किन रूपों का जिक्र किया है ? उन्हें अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-प्रथम पद में वाह्याचार के रूप में कबीर ने (1) प्रात:काल स्नान कर पितरों अथवा पत्थरों की पूजा (मूर्ति की पूजा) करने का उल्लेख किया है। (ii) आसन प्राणायाम करके अपने तप और ज्ञान का नकली प्रदर्शन करके लोगों को अपना अनुगामी बनाने वाले ढोंगी गुरुओं का वर्णन किया है। (iii) तीरथ व्रत को धर्म और ईश्वर प्राप्ति का मार्ग माने वाले पाखंड का वर्णन किया है। (iv) घर-घर घूमकर शिष्य बनाने वाले नकली गुरुओं का वर्णन किया है। (५) ईश्वर का मर्म न समझकर कोरे राम-रहमान नामों के भेद को लेकर लड़ने-मरने वालों का वर्णन किया है।
प्रश्न-11. कबीर धर्म-उपासना के आडंबर का विरोध करते हुए किसके ध्यान पर जोर देते हैं?
उत्तर-कबीर सहज समाधि लगाने और निर्गुण ब्रह्म का ध्यान करने पर जोर देते हैं।
प्रश्न-12. आपस में लड़ते-मरते हिंदू और तुर्क को किस मर्म पर ध्यान देने की सलाह कवि देता है?
उत्तर-कवि हिन्दू-मुसलमान को लड़ना छोड़कर राम-रहमान शब्द पर नहीं उसके अर्थ पर ध्यान देने की बात करते हैं। उनकी दृष्टि में दोनों का अर्थ एक है अभिप्राय एक है। अन्तर केवल शब्द का है। शब्द तभी महत्त्वपूर्ण होता है जब अर्थवान होता है।
प्रश्न-13. "सहजै सहज समाना" में सहज शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है। इस प्रयोग की सार्थकता स्पष्ट करें।
उत्तर-"सहजै सहज समाना।' कथन में प्रथम सहज का अर्थ है आसानी से या स्वाभाविक रूप से या सहज साधना के द्वारा। दूसरा सहज परमात्मा का सूचक है। सहज का अर्थ हुआ कि साधना के द्वारा ईश्वर की सत्ता में आत्मा का विलयन हो जाता है। सहज दो बार और दो अर्थों में प्रयोग होने से यमक अलंकार है।
प्रश्न-14. कबीर ने 'भर्म' किसे कहा है ?
उत्तर- कवि ने पूजा पाठ, किताबी ज्ञान, मूर्ति पूजा, तीर्थ व्रत आदि सभी धार्मिक वाह्याचारों को भर्म या भ्रम कहा है।
Class 11 Hindi Book Solution
Bihar board class 11 Hindi book solution padyakhand chapter - 2 Hindi Grammar (भाषा की बात )
प्रश्न-1. निम्नलिखित शब्दों के शुद्ध रूप लिखें।
उत्तर-आतम = आत्मा, पखान = पाषाण, तीरथ तीर्थ, पियारा = प्यारा, सिख्य - शिष्य असनान - स्नान, डिभ = डिम्ब, पाथर पत्थर, मंतर = मंत्र, भर्म मंत्र, भर्म = भ्रम, अहनिस - अहर्निश, तुम. = तुमको।
प्रश्न-2. दोनों पदों में जो विदेशज शब्द आए हैं, उसकी सूची बनाएँ एवं उनका अर्थ लिखें।
उत्तर-पीर, ओलिया, कितेब, कुराना, मुरीद, तदबीर, खबर, तुर्क, रहिमाना।
प्रश्न-3. पठित पदों से उन शब्दों को चुनें दो निम्नलिखित शब्दों के लिए आए हैं आँख, पागल, धार्मिक, बर्तन, वियोग, आग, रात
उत्तर-आँख - नैन, पागल = बौराना, धार्मिक = धरमी, बर्तन - धरमी, बर्तन = भांडै, वियोग - विरह, आग अगिनि, रात निस।
Class 11 Hindi Book Solution
Bihar board class 11 Hindi book solution Padyakhand chapter - 2 Hindi Grammar (व्यख्या )
(1) संतो देखत जग बौराना................................. उनमें कछु नहिं ज्ञाना।'
प्रस्तुत पंक्तियों में कबीरदास जी ने धार्मिक क्षेत्र में प्रचलित उलटी रीति और संसार के लोगों के बावलेपन का उल्लेख किया है। वे संतों अर्थात् सज्जन तथा ज्ञान-सम्पन्न लोगों को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि संतो ! देखो, यह संसार बावला या पागल हो गया है ? इसने उल्टी राह पकड़ ली है। जो सच्ची बात कहता है उसे लोग मारने दौड़ते हैं। इसके विपरीत जो लोग गलत और झूठी बातें बताते हैं उन पर वे विश्वास करते हैं। मैंने धार्मिक नियमों और विधि-विधानों का पालन करने वाले अनेक लोगों को देखा है। वे प्रातः उठकर स्नान करते हैं, तथा मंदिरों में जाकर पत्थर की मूर्ति को पूजते हैं। मगर उनके पास तनिक भी ज्ञान नहीं है। वे अपनी आत्मा को नहीं जानते हैं और उसकी आवाज को मारते हैं, अर्थात् अनसुनी करते हैं, सारांशतः कबीर कहना चाहते हैं कि ऐसे लोग केवल बाहरी धर्म-कर्म और नियम-आचार जानते हैं जबकि अन्तः ज्ञान से पूर्णतः शुन्य है ।
(ii) बहुतक देखा पीर औलिया ...........उनमें उहै जो ज्ञाना।
कबीरदास जी ने अपने पद की प्रस्तुत पंक्तियों में मुसलमानों के तथाकथित पीर और औलिया के आचरणों का परिहास किया है। वे कहते हैं कि मैंने अनेक पीर-औलिये को देखा है जो नित्य कुरान पढ़ते रहते हैं। उनके पास न तो सही ज्ञान होता है और न कोई सिद्धि होती है। फिर भी वे लोगों को अपना मुरीद यानी अनुगामी या शिष्य बनाते और उन्हें उनकी समस्याओं के निदान के उपाय बताते चलते हैं। यही उनके ज्ञान की सीमा है। निष्कर्षतः कबीर कहना चाहते हैं कि ये पौर-औलिया स्वत: अयोग्य होते हैं लेकिन दूसरों को ज्ञान सिखाते फिरते हैं। इस तरह ये लोग ठगी करते हैं।
(iii) आसन मारि डिंभ धरि ............. आतम खबरि न जाना।
कबीरदास जी का स्पष्ट मत है कि जिस तरह मुसलमानों के पीर औलिया ठग हैं उसी तरह हिन्दुओं के पंडित ज्ञान-शूल। वे कहते हैं कि ये नकली साधक मन में बहुत अभिमान रखते हैं और कहते हैं कि मैं ज्ञानी हूँ लेकिन होते हैं ज्ञान-शूल। ये पीपल पूजा के रूप में वृक्ष पूजते हैं, मूर्ति पूजा के रूप में पत्थर पूजते हैं। तीर्थ कर आते हैं तो गर्व से भरकर अपनी वास्तविकता भूल जाते हैं। ये अपनी अलग पहचान बताने के लिए माला, टोपी, तिलक, पहचान चिह्न आदि धारण करते हैं और कीर्तन-भजन के रूप में साखी, पद आदि गाते-गाते भावावेश में बेसुध हो जाते हैं। इन आडम्बरों से लोग इन्हें महाज्ञानी और भक्त समझते हैं। लेकिन विडम्बना यह है कि इन्हें अपनी आत्मा की कोई खबर नहीं होती है। कबीर के अनुसार वस्तुतः ये ज्ञानशून्य और डोंगी महात्मा हैं।
(iv) हिन्दु कहै मोहि राम पियारा ........... मरमनकाह जाना।
कबीर कहते हैं कि हिन्दू कहते हैं कि हमें राम प्यारा है। मुसलमान कहते हैं कि हमें रहमान प्यारा है। दोनों इन दोनों को अलग-अलग अपना ईश्वर मानते हैं और आपस में लड़ते तथा मार काट करते हैं। मगर, कबीर के अनुसार दोनों गलत हैं। राम और रहमान दोनों एक सत्ता के दो नाम हैं। इस तात्त्विक एकता को भूलकर केवल नाम-भेद के कारण दोनों को भिन्न मानकर आपस में लड़ना मूर्खता है। अतः दोनों ही मूर्ख हैं जो राम-रहीम की एकता से अनभिज्ञ हैं।
(v) घर घर मंत्र देत ..............सहजै सहज समाना।
कबीरदास जी इन पंक्तियों में कहते हैं कि कुछ लोग गुरु बन जाते हैं मगर मूलतः वे अज्ञानी होते हैं। गुरु बनकर वे अपने को महिमावान समझने लगते हैं। महिमा के इस अभिमान से युक्त होकर वे घर-घर घूम-घूम कर लोगों को गुरुमंत्र देकर शिष्य बनाते चलते हैं। कबीर के मतानुसार ऐसे सारे शिष्य गुरु सहित बुड़ जाते हैं; अर्थात् पतन को प्राप्त करते हैं और अन्त समय में पछताते हैं। इसलिए कबीर संतों को सम्बोधित करने के बहाने लोगों को समझाते हैं कि ये सभी लोग भ्रमित हैं, गलत रास्ते अपनाये हुए हैं। मैंने कितनी बार लोगों को कहा है कि आत्मज्ञान ही सही ज्ञान है लेकिन ये लोग नहीं मानते हैं। ये अपने आप में समाये हुए हैं, अर्थात् स्वयं को सही तथा दूसरों को गलत माननेवाले मूर्ख हैं। यदि आप ही आप समाज का अर्थ यह करें कि कबीर ने लोगों को कहा कि अपने आप में प्रवेश करना ही सही ज्ञान है। तब यहाँ 'आपहि आप समान' का अर्थ होगा 'आत्मज्ञान प्राप्त करना' जो कबीर का प्रतिपाद्य है।
(vi) हो बलिया कब देखौंगी.................... न मानें हारि।
प्रस्तुत पंक्तियों में कबीरदास जी ने ईश्वर के दर्शन पाने की अकुलाहट भरी इच्छा व्यक्त की है। वे कहते हैं कि प्रभु मैं तुम्हें कब देखूगा ? अर्थात् तुम्हें देखने की मेरी इच्छा कब पूरी होगी, मैं तुम कब दर्शन दोगे ? मैं दिन-रात तुम्हारे दर्शन के लिए आतुर रहता हूँ। यह इच्छा मुझे इस तरह व्याप्त किये हुई है कि एक पल के लिए भी इस इच्छा से मुक्त नहीं हो पाता हूँ। मेरे नेत्र तुम्हें चाहते हैं और दिन-रात प्रतीक्षा में ताकते रहते हैं। नेत्रों की चाह इतनी प्रबल है कि ये न थकते हैं और न हार मानते हैं। अर्थात् ये नेत्र जिद्दी हैं और तुम्हारे दर्शन किये बिना हार मानकर बैठने वाले नहीं हैं। अभिप्राय यह कि जब ये नेत्र इतने जिद्दी हैं, और मन दिन-रात आतुर होते हैं तो तुम द्रवित होकर दर्शन दो और इनकी जिद पूरी कर दो।
(vii) "बिरह अगिनि तन .......................जिन करहु बधीर।
प्रस्तुत पंक्तियों में कबीरदास जी अपनी दशा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि हे स्वामी ! तुम्हारे वियोग की अग्नि में यह शरीर जल रहा है, तुम्हें पाने की लालसा आग की तरह मुझे दग्ध कर रही है। ऐसा मानकर तुम विचार कर लो कि मैं दर्शन पाने का पात्र हूँ या उपेक्षा का ? कबीरदास जी अपनी विरह-दशा को बतला कर चुप नहीं रह जाते हैं। वे एक वादी अर्थात् फरियाद करने वाले व्यक्ति के रूप में अपना वाद या पक्ष या पीड़ा निवेदित करते हैं और प्रार्थना करते हैं कि तुम मेरी पुकार सुनो, बहरे की तरह अनसुनी मत करो। पंक्तियों की कथन-भंगिमा की गहराई में जाने पर स्पष्ट ज्ञात होता है कि कबीर याचक की तरह दयनीय मुद्रा में विरह-निवेदन नहीं कर रहे हैं। उनके स्वर में विश्वास का बल है और प्रेम की वह शक्ति है जो प्रेमी पर अधिकार-बोध व्यक्त करती है।
(viii) तुम्ह धीरज मैं आतुर आरतिवंत कबीर।
अपने आध्यात्मिक विरह-सम्बन्धी पद की प्रस्तुत पंक्तियों में कबीर अपनी तुलना आतुरता और ईश्वर की तुलना धैर्य से करते हुए कहते हैं कि हे स्वामी ! तुम धैर्य हो और मैं आतुर। मेरी स्थिति कच्चे घड़े की तरह है। कच्चे घड़े में रखा जल शीघ्र घड़े को गला कर बाहर निकलने लगता है। उसी तरह मेरे भीतर का धैर्य शीघ्र समाप्त हो रहा है अर्थात मेरा मन अधीर हो रहा है। आपसे बहुत दिनों से बिछुड़ा हुआ हूँ, मन अधीर हो रहा है तथा शरीर क्षीण हो रहा है। अतः अपने इस आर्त भक्त कबीर पर कृपा कीजिए और शीघ्र अपने दर्शन दीजिए।
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