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Class 11 Hindi Book Solution
Bihar board class 11 Hindi book solution chapter - 4 Saransh , (सरांश )
कक्षा - 11वी गद्यखंड अध्याय - 4
बेजोड़ गायकी : लतामंगेशकर
आधुनिकयुगीन संगीत के क्षेत्र में शास्त्रीय ज्ञान और कला दोनों दृष्टियों में एक महत्त्वपूर्ण नाम है कुमार गन्धर्व। इस बड़े संगीतकार ने अपने शास्त्रीय ज्ञान एवं कला मर्मज्ञता की दृष्टि में बीसवीं शताब्दी की सबसे महान संगीत प्रतिभा लता मंगेशकर के सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त किये हैं। कुमार गन्धर्व के इस आलेख के तीन बिन्दु है। प्रथम लता मंगेशकर के गायन की विशिष्टता, द्वितीय चित्रपट संगीत की विशेषता और तृतीय चित्रपट संगीत के समानान्तर शास्त्रीय संगीत की दृष्टिगत हीनता। यह आलेख वस्तुत: लता मंगेशकर के बहाने शास्त्रीय और चित्रपट संगीत की शक्ति और सीमाओं का भी विवेचन करता है।
कुमार गंधर्व के अनुसार कला के क्षेत्र में लता जैसी प्रतिभा का अवतरण चमत्कार है जो कभी-कभी होता है। लता के कारण चित्रपट संगीत को विलक्षण लोकप्रियता प्राप्त हुई और शास्त्रीय संगीत को देखने का दृष्टिकोण भी बदला है। सयाने से लेकर छोटे बच्चे तक अब स्वरों में गुनगुनाते हैं। संगीत के प्रकारों से लोग परिचित हो रहे हैं और लय के साथ जान-पहचान बढ़ी कुमार गंधर्व के अनुसार लता की लोकप्रियता का कारण गानपन है। जिस तरह मनुष्य की पहचान मनुष्यता से होती है उसी तरह संगीत की पहचान गानपन से होती है। इस दृष्टि से लता के द्वारा गाये गये सभी गाने गायनपन से परिपूर्ण हैं और एक-एक गाना एक सम्पूर्ण कलाकृति हैं।
लता का गायन कर्म चित्रपट संगीत से जुड़ा है। अर्थात् वे समर्पित भाव से फिल्मों के लिए ही गाती रही हैं। अतः कुमार गन्धर्व ने लता के संगीत की विशेषता का उल्लेख करने के प्रसंग में चित्रपट संगीत की विशेषताओं का उल्लेख किया है। उनके अनुसार चित्रपट संगीत सुरीला होता है। लय की द्रुतता और चपलता चित्रपट संगीत का विशेष गुणधर्म है। चित्रपट संगीत की लयकारी आसान होती है और उसमें आधे तालों का प्रयोग होता है। रंजकता और मिठास अर्थात् सुनते ही विभोर कर देने की क्षमता चित्रपट संगीत की विशेष पहचान है। लचकदारी या लोच चित्र पर संगीत में अधिक होती है। यदि क्षेत्र की दृष्टि से विचार करें तो चित्रपट संगीत ने शास्त्रीय संगीत से भी बहुत कुछ लिया है और लोक गीत-संगीत का भरपूर उपयोग मिला है। इससे उसका क्षेत्र कुमार गन्धर्व के अनुसार चित्रपट संगीत का तंत्र अलग होता है। उसमें कुछ नया रचने की पूरी संभावना रहती है। उसका ध्यान इस बात पर ज्यादा रहता है कि सरल ढंग से ऐसे है सम्प्रेषणीय गीत प्रस्तुत किये जायें जो अपने गायन की मिठास से ही नहीं भावाभिव्यक्ति से भी श्रोता के मन को छुए। विस्तार हुआ है। इसी के समानान्तर शास्त्रीय संगीत पर भी कुमार गंधर्व ने विचार किया है। उनके अनुसार गंभीरता शास्त्रीय संगीत का स्थली भाव है। उसमें लय, ताल, मात्रा, राग आदि की शुद्धता और उसके निर्वाह का आग्रह प्रबल होता है। उसका तंत्र जटिल और अभ्यास-साध्य होता है। शास्त्रीय संगीत में स्वर और राग को महत्त्व दिया जाता है। शब्द या अर्थ या भाव को नहीं। संगीतकार लय की लहरों से सम्मोहन पैदा करता है। शास्त्रीय संगीत अपनी प्रस्तुति के लिए पर्याप्त समय मांगता है। कलाकार में शास्त्रीय नियमों की सिद्धि। इसके बावजूद यदि गायक के स्वर में मिठास नहीं है तो नीरस शास्त्रीय प्रस्तुति प्रभाव उत्पन्न नहीं करती है। सबसे बड़ी बात यह कि शास्त्रीय संगीत ने आम आदमी का रंजन नहीं कर पाता उसके लिए शास्त्रीय ज्ञान सम्पन्न विशिष्ट श्रोतावर्ग ही चाहिए। इससे उसका प्रोता क्षेत्र सिमट जाता है।
कुमार गंधर्व ने माना है कि शास्त्र-शुद्धता के कर्मकाण्ड को आवश्यकता से अधिक महत्व शास्त्रीय गायकों ने दे रखा है जबकि जन समाज केवल शास्त्र शुद्ध नीरस गाना नहीं सुरीला और भावपूर्ण गाना की मांग करता है। चित्रपट संगीत ने शास्त्र और लोक के आवश्यक अंशों के मेल से सुरीले और भावपूर्ण गीतों का निर्माण किया है और यही आज का संगीत संस्कार है। इसके निर्माण में लता ने ऐतिहासिक भूमिका निभायी है। उनके गायन में शास्त्रीय संगीत की उत्तम जानकारी का पुट मिला हुआ है।
इसके अतिरिक्त उनके गायन में ऊंची लय का अधिक प्रयोग मिलता है। मुग्ध श्रृंगार की अभिव्यक्ति करने वाले मध्य या दुत लय के गाने लता के गायन की विशेष पहचान है। लता के गायन की एक अन्य विशेषज्ञ नाट्मय उच्चार है। इसमें दो शब्दों का अन्तर स्वरों के आलाप द्वारा भरा जाता है और दोनों शब्द विलीन होते-होते एक दूसरे में मिल जाते हैं।
लता के गीतों में स्वर, लय और शब्दार्थ की त्रिवेणी होती है और गीतों में महफिल को सम्मोहित कर लेने की क्षमता होती है। अपनी स्वर माधुरी, शास्त्रीय ज्ञान की व्यवस्थित पृष्ठभूमि और गीतों में प्रस्तुत भावों की प्रेषण क्षमता के कारण लता चित्रपट संगीत का पर्याय बन गयी है। उन्होंने नयी पीढ़ी के संगीत को संस्कारित किया है और सामान्य जन समाज में संगीत की अभिरुचि पैदा की है। संगीत की लोकप्रियता प्रसार और अभिरुचि के विकास में उनका योगदान अविस्मरणीय है। कुमार गंधर्व का यह कहना पूर्णतः सही है कि वे आधुनिक युग में संगीत की अनभिषिक्त साम्राज्ञी हैं।
लता मंगेशकर के गायन की विशेषताएँ
बीसवीं शताब्दी में पाँच दशकों तक अपने गायन की माधुरी से सम्पूर्ण भारत ही नहीं विदेश तक में अथाह ख्याति अर्जित करने वाली स्वर साम्राज्ञी भारत कोकिला लता मंगेशकर आज भी अद्वितीय गायिका के रूप में आदर और प्रेम की पात्री हैं। कुमार गंधर्व ने उन्हें भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ कहा है। यह पूर्णत: सत्य है। कुमार गंधर्व ने उनके गायन की कुछ विशेषताओं पर प्रकाश डाला है। यहां उन्हीं विशेषताओं का उल्लेख किया जाता है।
सर्वप्रथम यह बात हमारा ध्यान आकृष्ट करती है कि लता के कारण फिल्मी संगीत को लोकप्रियता प्राप्त हुई है। सुन्दर स्वर मालिकाओं और आकारयुक्त लय से जनमानस को परिचित करके उनकी संगीत विषयक अभिरूचि का परिष्कार और विस्तार किया है। इस तथ्य को लक्षित करते हुए कुमार गन्धर्व कहते हैं - 'उसने नयी पीढ़ी के संगीत को संस्कारित किया है और सामान्य मनुष्य में संगीत विषयक अभिरुचि पैदा करने में बड़ा हाथ बँटाया है। संगीत की लोकप्रियता, उसका प्रसार और अभिरूचि के विकास का श्रेय लता को ही देना पड़ेगा।"
लता की लोकप्रियता का दूसरा कारण उनके गायन में सतत् उपस्थित गानपन है। गानपान से तात्पर्य उस लयात्मक, मिठास और सुन्दरता से है जो श्रोता को विभोर कर दे। झूमने पर विवश कर दे। गानपन को कुमार गंधर्व संगीत को उसी रूप में देखते हैं जिस रूप में मनुष्य के भीतर मनुष्यता को। लता के गायन की विशेषता केवल गानपन ही नहीं स्वर की निर्मलता भी है। लता के स्वर में जो कोमलता, मुग्धता और मन को सात्त्विक भाव से भर देने की क्षमता मिलती है वही निर्मलता है। यह वह तत्त्व है जो विवाद को संवाद में उत्तेजना को शान्ति में और तनाव को आनन्दात्मकता में परिणत कर देती है। निर्मलता अनुभव का विषय है, व्याख्या और विवेचन का नहीं। कुमार गन्धर्व इस निर्मलता को लता के जीवन जीने की कला अर्थात् उनके स्वभाव, जीवन को देखने की रचनात्मक दृष्टि और सकारात्मक सोच का परिणाम मानते हैं। मैं प्रसाद के शब्दों के सहारे कहना चाहता हूँ कि संसार के तुल कोलाहल कलह के बीच रहकर भी आदमी जब हृदय की बात" अधिक सुनता है तब उसके मन में निर्मलता आती है और वही निर्मल मन निर्मल संगीत बनकर फूटता है।
लता के गायन की एक और विशेषता है नादमय उच्चार। इसके अन्तर्गत लता गीत के किन्हीं दा शब्दों के बीच के अन्तर को आलाप द्वारा भरती हैं जिसके कारण दोनों शब्द विलीन होते होते एक दूसरे में मिल जाते हैं।
लता के गायन की विशेषताएँ अनेक हैं। उनमें से एक यह भी है कि वे मध्य या द्रुत लय के गाने बड़ी उत्कटता से गाती हैं। ऐसे गायन में उनके प्राणों की ऊर्जा घुली मिली रहती है। इससे मुग्ध शृंगार भाव की व्यंजना अधिक होती है। कुमार गंधर्व के अनुसार जलद लय और चपलता चित्रपट संगीत का गुणधर्म है। लता में शास्त्रीय संस्कार भरपूर है लेकिन उनका कर्म चित्रपट के लिए ही गाना रहा अतः उनके गायन में चपलता और जलदलय अर्थात् द्रुत लय की प्रधानता मिलती है। ऊँची पट्टी अर्थात् द्रुत लय में ही अधिकतर संगीत निर्देशकों ने लता से गवाया है जिसके कारण उन्हें अधिक चिल्लाना पड़ा है। कुमार गंधर्व इसे अच्छा नहीं मानते। कुमार गंधर्व की दृष्टि में लता का एक-एक गाना अपने आपमें एक-एक सम्पूर्ण कलाकृति होती है। अपने तीन मिनट के गायन में वह वही आनन्द प्रदान करती है जो एक सिद्ध शास्त्रीय संगीतकार अपने तीन घंटे के गायन में प्रदान करता है।
सब मिलाकर कहा जा सकता है कि लता की गायकी का निर्माण जिस शास्त्रीय संगीत की जन्मभूमि पर हुआ है। उसने उनकी गायन कला को समृद्ध किया है। लेकिन उनकी गायन कला प्रतिभा का उत्कृष्ट प्रसाद है। उनके गायनी में माधुरी है, निर्मलता है और एक ऐसी खनक है जो श्रोता को बाँध लेती है। शास्त्रीय भाषा में कहें तो उनमें संगीत की प्रतिभा है। शास्त्रीय ज्ञान और लोकसंगीत के समृद्ध ज्ञान की व्युत्पत्ति है और निरन्तर अभ्यास द्वारा उन्होंने अपनी गायन कला को मानकर चमकाया है। वे उनकी गायन कला प्रतिभा व्युत्पत्ति अभ्यास के त्रिवेणी संगम पर स्थित तीर्थराज प्रयाग की तरह है जो अपनी आन्तरिक ऊर्जा से सम्पूर्ण विश्व के मानव समाज को प्रेरित प्रभावित करती है।
शास्त्रीय संगीत और चित्रपट संगीत की तुलना
कुमार गंधर्व ने अपने आलेख में लता मंगेशकर की चर्चा के क्रम में शास्त्रीय संगीत और चित्रपट संगीत की व्यापक तुलना की है। उसमें स्वर का प्रभाव और लोकप्रियता तीनों की दृष्टि से विचार हुआ है। यहाँ दोनों के अन्तर पर विचार किया जाता है।
शास्त्रीय संगीत वह है जिसका गायन कुछ निश्चित नियमों के अन्तर्गत किया जाता है। उत्कृष्ट संगीत साधकों ने निरन्तर प्रयत्न करके उत्कृष्ट और व्यवस्थित गायन के लिए जो नियम निर्धारित किये हैं उन्हीं का समुच्चय शास्त्रीय संगीत कहलाता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत का सारा अस्तित्व सात स्वरों पर आधारित है। भारतीय शास्त्रीय संगीत ताल, मात्रा, लय और राग-रागिनियों के जाल में आबद्ध है जिसको व्यवस्थित ढंग से संगीत साधक लम्बे समय के अभ्यास से सीखता है। इतना ही नहीं इस संगीत का आनन्द लेने वाले रसिकों को भी शास्त्रीय ज्ञान की जरूरत होती है। जिन श्रोताओं को संगीत के शास्त्रीय रूप और उसके सौन्दर्य को परखने की समझदारी नहीं होती है। उनको इसका आनन्द नहीं मिलता। अतः शास्त्रीय संगीत की विशेष स्थिति यह है कि इसमें गायक और श्रोता दोनों का शास्त्र मर्मज्ञ होना आवश्यक है। दूसरे शब्दों में शास्त्रीय संगीत का आनन्द उठाना सामान्य जन समुदाय के लिए संभव नहीं है। गंभीरता शास्त्रीय संगीत का स्थायी 7 भाव है।
इसके विपरीत द्रुत लय और चपलता चित्रपट संगीत का गुणधर्म है। चित्रपट संगीत का ताल प्राथमिक अवस्था का ताल होता है जबकि शास्त्रीय संगीत में ताल परिष्कृत रूप में होता है। चित्रपट संगीत में आधे तालों का उपयोग होता है। उसकी लयकारी आसान होती है। इसमें गीत के अर्थ और आघात को ज्यादा महत्त्व दिया जाता है। सुलभता और लोच चित्रपट संगीत की विशेष पहचान होती है।
Class 11 Hindi Book Solution
Bihar board class 11 Hindi book solution chapter - 4 Objective (स्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर )
(i) स्वर मलिका में क्या नहीं होता है?
- (क) लय
- (ख) बोल
- (ग) राग
- (घ) ताल
Answer ⇒ ख |
(i) क्या होने से गायन संगीत कहलाता है?
- (क) गानपन
- (ख) शास्त्रीयता
- (ग) राग
- (घ) आन्तरिक लय
Answer ⇒ क |
(iii) लता की लोकप्रियता का मुख्य मर्म कुमार गन्धर्व क्या मानते हैं?
- (क) उच्च स्वर
- (ख) गानपन
- (ग) गले की मिठास
- (घ) शास्त्रीयता
Answer ⇒ ख |
(iv) ध्वनि मुद्रिका किसे कहते हैं ?
- (क) स्वर लिपि को
- (ख) मात्रा की गिनती को
- (ग) राग को
- (घ) अंगूठी को
Answer ⇒ क |
(v) लता का गाना सामान्यतः किस पट्टी में रहता है ?
- (क) ऊंची
- (ख) नीची
- (ग) मध्यम
- (घ) किसी में नहीं
Answer ⇒ क |
(vi) जलद लय और घपलता किस संगीत का मुख्य गुणधर्म है ?
- (क) शास्त्रीय
- (ख) चित्रपट
- (ग) लोक
- (घ) किसी का नहीं
Answer ⇒ ख् |
(vii) शास्त्रीय और चित्रपट के गायन का कलात्मक मूल्य क्या है ?
- (क) एक
- (ख) भिन्न
- (ग) ज्ञात नहीं
- (घ) थोड़ा समान थोड़ा भिन्न
Answer ⇒ क |
(vii) किसी भी संगीत का अंतिम लक्ष्य क्या है ?
- (क) ज्ञान
- (ख) आनन्द
- (ग) अर्थोपार्जन
- (घ) विज्ञापन
Answer ⇒ ख |
(ix) शास्त्र-शुद्धता के कर्मकांड को जरूरत से ज्यादा महत्त्व किस संगीत में है ?
- (क) चित्रपट
- (ख) शास्त्रीय
- (ग) लोक
- (घ) किसी में नहीं साम्राज्ञी
Answer ⇒ ख |
(x) चित्रपट संगीत के क्षेत्र में अनभिषिक्त का पद किसे प्राप्त है ? है
- (क) लता मंगेशकर
- (ख) आशा भोंसले
- (ग) अनुराधा पौडवाल
- (घ) नूरजहाँ
Answer ⇒ क |
(vi) शास्त्रीय संगीत का स्थायी भाव क्या है?
- (क) गंभीरता
- (ख) चपलता
- (ग) तीव्रता
- (घ) करुणा
Answer ⇒ क |
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Bihar board class 11 Hindi book solution chapter - 4 Very Short Quetion (अतिलघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर )
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Bihar board class 11 Hindi book solution chapter - 4 Short Quetion (लघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर )
प्रश्न-1. लता मंगेशकर की आवाज सुनकर लेखक पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-लता मगेशकर की आवाज सुनकर लेखक ने अनुभव किया कि यह स्वर कुछ विशिष्ट है। यह स्वर लेखक के हृदय को छू गया। उसने माना कि यह स्वर अद्वितीय है।
प्रश्न-2. 'लता मंगेशकर ने नई पीढ़ी के संगीत को संस्कारित किया है। संगीत की लोकप्रियता, उसका प्रसार और अभिरुचि के विकास का श्रेय लता को ही देना पड़ेगा। क्या आप इस कथन से सहमत हैं ? यदि हाँ, तो अपना पक्ष प्रस्तुत करें।
उत्तर-यह सच है कि लता ने शास्त्र और लोक के मिश्रण से सुगम संगीत का जो स्वर दिया है वह अद्वितीय है। उनके स्वर की मिठास ने लोगों की शास्त्रीय संगीत विषयक अरूचि को सुरूचि में बदला है। उसकी मिठास ने लोगों को गायन के लिए अनायास प्रेरित किया है। अतः उनके द्वारा चित्रपट संगीत संस्कारित हुआ है।
प्रश्न-3. शास्त्रीय संगीत ओर चित्रपट संगीत में क्या अंतर है ? आप दोनों में किसे बेहतर मानते हैं, और क्यों ? उत्तर दें।
उत्तर-उत्तर के लिए शास्त्रीय संगीत और चित्रपट संगीत में अंतर शीर्षक आलोचना का अतिम अनुच्छेद देखें।
प्रश्न-4. कुमार गंधर्व ने लता मंगेशकर के गायन की कौन-कौन सी विशेषताएं बताई हैं ?
उत्तर-कुमार गंधर्व के अनुसार लता के गायन की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं।
- (क) लता के गायन में गानपन पूरी तरह प्राप्त होता है। यह गानपन लय की ऋजुता और स्वर की मिठास से आती है तथा सुनने वाले को सम्मोहित कर लेती है।
- (ख) लता के गायन में स्वर, लय और शब्दार्थ की त्रिवेणी है।
- (ग) उनके गायन में स्वरों की निर्मलता मिलती है।
- (घ) उनके गायन की एक विशेषता है नादमय उच्चार।
- (ङ) उनके गायन में एक मादक उत्तान अनुभव होता है।
- (च) करूण रस के गीतों को द्रावक रूप में प्रस्तुत करने में उन्हें महारत हासिल है।
- (छ) और अन्त में यह कि उन्होंने संगीत की अभिरुचि को संस्कारित किया है।
प्रश्न-5. 'चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़े नहीं सुधारे हैं।' इस संबंध में आपके क्या विचार हैं ?
उत्तर-चित्रपट संगीत के पहले या तो शास्त्रीय संगीत था या लोक संगीत। गवार लोग लोक संगीत पसन्द करते थे लेकिन शिष्ट जनों को इसमें बेढंगापन नजर आता था। इसके विपरीत शास्त्रीय संगीत शिष्ट एवं गँवार दोनों प्रकार के लोगों को कानों पर अत्याचार अनुभव होता था। ऐसी स्थिति में चित्रपट संगीत ने सुगम संगीत के रूप में दोनों को राहत दी। उसमें लय, मिठास तथा अर्थमत्ता तीनों थी। इसलिए चित्रपट संगीत ने लोगों के कान सुधारे हैं बिगाड़े नहीं हैं।
प्रश्न-6. चित्रपट संगीत की प्रसिद्धि के क्या कारण हैं ? इसके विकास को आप सही मानते हैं ? यदि हाँ, तो कैसे ?
उत्तर-चित्रपट संगीत ने शास्त्रीय और लोक संगीत का उचित उपयोग कर नये संगीत संसार का निर्माण किया है। उसमें लचकदारी है जो उसे आकर्षक बनाती है। उसमें नव निर्माण की बहुत गुंजाइश है जो शास्त्रीय संगीत में नहीं है। चित्रपट संगीत में नूतन और सुन्दर स्वर मलिकाओं का विधान है। उसमें नियमों के अनुपालन की अपेक्षा मिठास और आकर्षण भरने की चेष्टा अधिक है।
प्रश्न-7. निम्नलिखित वाक्यों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(क) कोकिला का स्वर निरंतर कानों में पड़ने लगे तो कोई भी सुनने वाला उसका अनुकरण करने का प्रयत्न करेगा। यह स्वाभाविक ही है।
(ख) और लता का कोई भी गाना लीजिए तो उसमें शत-प्रतिशत यह 'गानपन' मौजूद मिलेगा।
(ग) चित्रपट संगीत समाज की संगीत विषयक अभिरुचि में प्रभावशाली मोड़ लाया है।
उत्तर-(क) इस वाक्य में कुमार गन्धर्व ने लता के स्वर की तुलना कोयल के स्वर से की है। सामान्यतः प्रकृति जगत में हम पाते हैं कि कोयल की कूक से हमारे भीतर संगीत का उद्रेक होता है और बच्चे तथा युवक उसके स्वर की नकल करने लगते हैं। वैसे ही लता के गाये गीतों की मिठास से प्रेरित लोगों की रूचि बदल गयी और वे अनायास उनके स्वर की नकल करते हुए गुनगुनाने लगे। स्पष्टत: यहाँ लता की स्वर माधुरी के प्रेरक प्रभाव की ओर संकेत किया गया है।
(ख) कुमार गन्धर्व ने एक विशेष अर्थ में गानपन शब्द का प्रयोग किया है। जिस तरह मनुष्य की पहचान मनुष्यता अर्थात् मानवीय गुणों से होती है उसी तरह गाने की पहचान गानपन से। गानपन से तात्पर्य उसमें अर्थ की मोहकता, लय की तन्मयता और कंठ स्वर की मिठास से है। गाना जिस भावाकुलता को उद्दीप्त करने के उद्देश्य से गाया जाय वह उद्देश्य सिद्ध हो तो वही उसका गानपन है। लता जब गाती है तो गायन की मिठास बाँधती है, लय लपेटती है और अर्थ विभोर कर देता है। यह गानपन है और लता द्वारा गाये गये हर गाने में यह गानपन पूरी शक्ति से वर्तमान है।
(ग) इस वाक्य में कुमार गंधर्व ने चित्रपट संगीत के सामाजिक प्रभाव को रेखांकित किया है। आज यह सच्चाई हर व्यक्ति स्वीकार करता है कि चित्रपट संगीत के प्रेमियों की संख्या शास्त्रीय और लोक संगीत की तुलना में सौगुना अधिक है। लोग उसे सुनना सुनाना पसन्द करते हैं। यदि गायक के स्वर में मिठास और भावोत्तेजित करने की क्षमता हो तो क्या कहना ! लता के गीतों ने यह घटित कर रखा है। इसलिए यह कहना सही है कि चित्रपट संगीत ने समाज की संगीत विषयक अभिरुचि को अन्य दिशाओं की ओर से मोड़कर चित्रपट की ओर घुमा दिया है।
प्रश्न-8. ऊँची पट्टी में गायन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-ऊँची पट्टी में गायक ऊँची आवाज में गाता है संगीत शास्त्र की भाषा में इसे तारसप्तक कहते हैं।
प्रश्न-9. लता मंगेशकर भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ हैं। लेखक के इस कथन पर आप अपना विचार करें।
उत्तर-लेखक का विचार सही है। लता जी जैसी गायन प्रतिभा उनसे पहले या बाद में अब तक नहीं पैदा हुई है। उनका गायन ईश्वरीय वरदान की तरह है। वे विशिष्ट प्रतिभा सम्पन्न गायिका हैं जो कभी-कभी धरती पर पैदा होती हैं।
प्रश्न-10. गानपन से क्या आशय है ? इसे किस तरह अभ्यास से पाया जा सकता है ? उत्तर-प्रश्न 7 के अंश (ख) का उत्तर देखें।
प्रश्न-11. 'संगीत का क्षेत्र ही विस्तीर्ण है। वहाँ अब तक अलक्षित, असंशोधित और र अदृष्टपूर्व ऐसा खूब बड़ा प्रांत है तथापि बड़े जोश से इसकी खोज और उपयोग चित्रपट के लोग करते चले आ रहे हैं' -इस कथन को वर्तमान फिल्मी संगीत के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-चित्रपट संगीत ने अपने स्वर के निर्माण में एक ओर शास्त्रीय संगीत की अनेक विशेषताओं का उपयोग किया है। दूसरी ओर उसने पूरे भारत में प्रचलित लोकगीतों की परम्परा से अपना भंडार भरा है। लोकगीतों की दुनिया बड़ी लम्बी चौड़ी और विविधतापूर्ण है। इसका उपयोग चित्र पट वाले खोज खोज कर कर रहे हैं ताकि नूतनता आकर्षण और लोकप्रियता बढ़े। इसी की ओर इन पंक्तियों द्वारा संकेत किया गया है।
प्रश्न-12. घर-घर में गाने वाले पहले के बच्चों और आज के बच्चों के गान में कुमार गंधर्व अंतर देखते हैं। यह अंतर क्या है ?
उत्तर-पहले बच्चे जैसे-तैसे गाते थे। उनके पास कोई आधार नहीं था जिसके अनुसार ढंग से गाते। चित्रपट संगीत ने उन्हें गाने कर ढंग दिया, आधार दिया, जमीन दी। इसलिए आज के बच्चे का गायन पहलेवालों से उन्नत और सुन्दर हो गया है।
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Bihar board class 11 Hindi book solution chapter - 4 Hindi Grammar (भाषा की बात )
प्रश्न-1. निम्नलिखित शब्दों के समास पहचानें –
नन्हे-मुन्ने, सितारवादक, त्रिवेणी, अनाकर्षक, लोकप्रिय, शताब्दी, घर-घर ?
उत्तर-
- नन्हें-मुन्ने = कर्मधारय
- सितारवादक = तत्पुरुष
- त्रिवेणी - द्विगु
- अनाकर्षक = नब समास
- लोकप्रिय = तत्पुरुष
- शताब्दी = द्विगु घर घर
प्रश्न-2. निम्नलिखित शब्दों में कौन-से उपसर्ग हैं
अद्वितीय, सुप्रसिद्ध, अभिरुचि, संपूर्ण, सुसंगत, नवनिर्मित, प्रतिध्वनि, अलक्षित
उत्तर -
- अद्वितीय = अ + द्वितीय
- सुसंगत = सु + सम् + गत
- सुप्रसिद्ध = सु + प्र + सिद्ध
- नवनिर्मित = नव + निः + मित
- अभिरुचि = अभि + रुचि
- प्रतिध्वनि = प्रति + ध्वनि
- सम्पूर्ण = सम् + पूर्ण
- अलक्षित = अ + लक्षित
प्रश्न-3. अर्थ की दृष्टि से निम्नलिखित वाक्यों की प्रकृति बताएँ
उत्तर –
- (क) मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि यह स्वर किसका है। – विधानवाचक
- (ख) मेरा स्पष्ट मत है कि भारतीय गायिकाओं में लता के जोड़ की गायिका हुई – नकारात्मक
- (ग) इन सबका श्रेय लता को ही है। – विधानवाचक
- (घ) ऐसा प्रश्न उपस्थित किया जाता है कि शास्त्रीय संगीत में लता का स्थान कौन-सा है ? – प्रश्नवाचक
- (ङ) कितना बड़ा हमारा भाग्य ? उद्गारवाचक
प्रश्न-4. निम्नलिखित शब्दों से संज्ञा और विशेषण छाँटें –
रेडियो, स्वर, कोमल, आवाज, प्रसिद्ध, मिठास, मनुष्य, मनुष्यता, संगीत, त्रिवेणी, राजस्थान, पागल।
उत्तर –
संज्ञा –
- रेडियो
- स्वर
- आवाज
- मिठास
- मनुष्य
- मनुष्यता
- संगीत
- त्रिवेणी
- राजस्थान
विशेषण –
- कोमल
- प्रसिद्ध
- पागल
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