Bihar Board Class 12 Hindi Book Solution गद् Chapter 6 - एक लेख और एक पत्र

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Class 12 Hindi Book Solution    

Bihar board class 12 Hindi book solution  chapter - 6 Saransh  (सारांश )

अध्याय 6ः लेख और एक पत्र

    लेखक : भगत  सिंह

सारांश : भगत सिंह महान क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी और विचारक थे। भगत सिंह विद्यार्थी और राजनीति के माध्यम से बताते हैं कि विद्यार्थी को पढ़ने के साथ ही राजनीति में भी दिलचस्पी लेनी चाहिए। यदि कोई इसे मना कर रहा है तो समझना चाहिए कि यह राजनीति के पीछे घोर षड्यंत्र है। क्योंकि विद्यार्थी युवा होते हैं। उन्हीं के हाथ में देश की बागडोर है। भगत सिंह व्यावहारिक राजनीति का उदाहरण देते हुए नौजवानों को यह समझाते हैं कि महात्मा गाँधी, जवाहर लाल नेहरु, और सुभाष चन्द्र बोस का स्वागत करना और भाषण सुनना यह व्यावहारिक राजनीति नहीं तो और क्या है। इसी बहाने वे हिन्दुस्तानी राजनीति पर तीक्ष्ण नजर भी डालते हैं। भगत सिंह मानते हैं कि हिन्दुस्तान को इस समय ऐसे देश सेवकों की जरूरत है जो तन-मन-धन देश पर अर्पित कर दे और पागलों की तरह सारी उम्र देश की आजादी या उसके विकास में  न्योछावर कर दे। क्योंकि विद्यार्थी देश दुनिया की हर समस्याओं से परिचित होते हैं। उनके पास अपना विवेक होता है। वे इन समस्याओं के समाधान में योगदान दे सकते हैं। अतः विद्यार्थी को पॉलिटिक्स में भाग लेनी चाहिए।


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Bihar board class 12 Hindi book solution  chapter - 6 Objective  (वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर )




1. भगत सिंह ने कैसी मृत्यु को सुंदर कहा है? 

(A) युद्ध के दौरान हुई मृत्यु को

(B) वज्रपात से हुई मृत्यु को

(C) देश सेवा के बदले दी गयी फाँसी को

(D) किसी बीमारी के कारण हुई मृत्यु को 

Answer ⇒ C



2. ‘पंजाब की भाषा तथा लिपि की समस्या’ किस लेखक की रचना है? 

(A) भगत सिंह 

(B) मोहन राकेश

(C) नामवर सिंह 

(D) जे०कृष्णमूर्ति

Answer ⇒ A


3. “एक लेख और एक पत्र’ में भगत सिंह ने किसको पत्र लिखा था? 

(A) सुखदेव 

(B) राजगुरु  

(C) बिस्मिल

(D) अशफाक खाँ

Answer ⇒ A


4. ‘एक लेख और एक पत्र’ के रचनाकार कौन है? 

(A) नामवर सिंह 

(B) मोहन राकेश

(C) भगत सिंह 

(D) रामधारी सिंह दिनकर

Answer ⇒ C


5. भगत सिंह ने अपने नेतृत्व में पंजाब में ‘नौजवान भारत सभा’ का गठन कब किया?

(A) 1923 ई० में 

(B) 1924 ई० में

(C) 1925 ई० में 

(D) 1926 ई० में

Answer ⇒ D


6. भगत सिंह ने चन्द्रशेखर आजाद’ के साथ मिलकर किस संघ का गठन किया?

(A) स्वराज्य पार्टी

(B) स्वतंत्र पार्टी

(C) हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक पार्टी

(D) इनमें से कोई नहीं 

Answer ⇒ C


7. भगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह तथा चाचा अजीत सिंह किसके सहयोगी थे? 

(A) बाल गंगाधर तिलक

(B) लाला लाजपत राय

(C) विपिन चन्द्र पाल

(D) इनमें किसी के नहीं

Answer ⇒ B


8. भगत सिंह किस उम्र में क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हुए? 


(A) 10 वर्ष 

(B) 12 वर्ष

(C) 15 वर्ष 

(D) 20 वर्ष 

Answer ⇒ B


9. भगत सिंह को काँग्रेस तथा महात्मा गाँधी से मोहभंग कब हुआ? 

(A) 1920 ई० में 

(B) 1921 ई० में

(C) 1922 ई० में 

(D) 1923 ई० में

Answer ⇒ B


10. 1914 ई० में भगत सिंह किस पार्टी की ओर आकर्षित हए? 

(A) नेशनल पार्टी

(B) राष्ट्रवादी पार्टी

(C) स्वतंत्र पार्टी 

(D) गदर पार्टी 

Answer ⇒ D



11. चौरीचौरा कांड कब हुआ? . 

(A) 1920 ई० में 

(B) 1921 ई० में

(C) 1922 ई० में 

(D) 1924 ई० में

Answer ⇒ C


12. भगत सिंह की शहादत कब हुई थी? 

(A) 23 मार्च 1931 को

(B) 23 मार्च 1933 को 

(C) 23 मार्च 1932 को

(D) 24 मार्च 1934 को

Answer ⇒ A


13. भगत सिंह के हृदय में किस भावना का कोई स्थान नहीं था? 

(A) लोभ 

(B) प्रेम

(C) क्रोध 

(D) अहंकार 

Answer ⇒ B


14. भगत सिंह किसे घणित तथा कायरतापूर्ण मानते थे? 

(A) देश की सेवा 

(B) देश से भागना

(C) आत्महत्या 

(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ C


15. सन् 1926 में भगत सिंह ने किस दल का गठन किया? 

(A) नवयुवक संघ

(B) नौजवान भारत सभा

(C) नवयुवक भारत सभा

(D) नौजवान दल 

Answer ⇒ B


16. भगत सिंह, गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा निकाली जानेवाली किस पत्रिका से जुड़े?

(A) प्रताप 

(B) दिनमान

(C) संघर्ष 

(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ A

17. भगत सिंह को अपने लिए सजा के सम्बन्ध में क्या विश्वास था? 

(A) क्षमा का 

(B) नम्र व्यवहार का

(C) मृत्युदण्ड का

(D) आजीवन कारावास का

Answer ⇒ C


18. प्रिंस क्रोपोटकिन कौन था? 

(A) अर्थशास्त्र का विद्वान

(B) राजनीतिशास्त्र का विद्वान 

(C) समाजशास्त्र का विद्वान

(D) इतिहास का विद्वान

Answer ⇒ A


19. भगत सिंह को फाँसी दी गई 

(A) 23 मार्च 1931 को

(B) 24 मार्च 1931 को 

(C) 25 मार्च 1932 को

(D) 22 मार्च 1931 को

Answer ⇒ A


20. एक लेख और एक पत्र के रचनाकार है 

(A) भगत सिंह 

(B) सुखदेव

(C) राजगृह 

(D) चन्द्रशेखर आजाद

Answer ⇒ A


21. भगत सिंह ने अपने मित्रों के साथ केन्द्रीय असेंबली में बम कब फेंका था?

(A) 10 अप्रैल, 1929 को

(B) 8 अप्रैल, 1929 को 

(C) 16 अप्रैल, 1929 को

(D) 18 अप्रैल, 1930 को


Answer ⇒ B


22. भगत सिंह का जन्म कब हुआ था? 

(A) 28 सितंबर 1907 को

(B) 22 अक्टूबर 1908 को। 

(C) 23 मार्च 1910 को

(D) 27 सितंबर 1909 को

Answer ⇒ A


23. “विद्यार्थी और राजनीति’ शीर्षक निबंध किसका लिखा हुआ है? 

(A) रामचंद्र शुक्ल

(B) गुलाब राय

(C) भगत सिंह

(D) दिनकर 

Answer ⇒ C


24. ‘मतवाला’ पत्रिका कहाँ से निकलती थी? 

(A) कानपुर 

(B) पटना

(C) वाराणसी 

(D) कलकत्ता (कोलकाता)

Answer ⇒ D

25. भगत सिंह प्रभावित थे-
 

(A) महात्मा गाँधी से

(B) कार्ल मार्क्स से

(C) फ्रायड से 

(D) एडलर से

Answer ⇒ B


26. “मैं नास्तिक क्यों हूँ’ यह किसका लेख है? 

(A) भगत सिंह का

(B) चंद्रशेखर आजाद का

(C) सुखदेव का 

(D) खुदीराम बोस का

Answer ⇒ A

27. ‘बंदी जीवन’ किसकी कृति है? 


(A) रवींद्रनाथ ठाकुर की

(B) माइकेल मधुसूदन की

(C) शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की

(D) शचींद्रनाथ सान्याल की

Answer ⇒ D



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Bihar board class 12 Hindi book solution  chapter - 6 Subjective Quetion 


प्रश्न-1. विद्यार्थियों को राजनीति में भाग क्यों लेना चाहिए?

 उत्तर-भगत सिंह के अनुसार विद्यार्थी देश के कर्णधार होते हैं। आनेवाले समय में देश की बागडोर उन्हें अपने हाथ में लेनी है। उन्हें देश की समस्याओं और सुधार में हिस्सा लेना है। अत: देश के विकास के लिए विद्यार्थी को राजनीति में भाग लेना चाहिए। क्योंकि सत्ता राजनीतिकों के हाथ में होती है। छात्र-जीवन में विद्यार्थी को पढ़ाई के साथ-साथ अन्य सामाजिक कार्य भी देखने हैं। भगत सिंह मानते हैं कि नौजवान “वह चढ़ सकता है उन्नति की सर्वोच्च शिखर पर, वह गिर सकता है अर्द्धपतन के अंधेरे खंदक में।" विद्यार्थियों के हाथ में पतितों के उत्थान होते हैं। वे ही क्रांति का संदेश देश के कोने-कोने में पहुँचा सकते हैं। फैक्ट्री, कारखाना, गंदी बस्तियों और गांवों की जर्जर झोपड़ियों में रहने वालों के बीच क्रांति की अलख जगा सकते हैं जिससे आजादी आएगी और तब एक मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य का शोषण असंभव होगा। छात्रों में देश की समझदारी और समस्याओं में सुधार की योग्यता होना बेहद जरूरी है और जो शिक्षा ऐसा नहीं कर सकती है वह निकम्मी शिक्षा है, जो केवल देश में क्लर्क पैदा कर सकती है। हम सभी जानते हैं हिन्दुस्तान को ऐसे सेवकों की जरूरत है जो तन, मन, धन देश पर अर्पित कर दे और पागलों की तरह पूरी उम्र देश सेवा में बिता दे। ये वही विद्यार्थी या नौजवान कर सकते हैं जो किन्हीं जंजालों में न फंसे हों। जंजालों में पड़ने से पहले विद्यार्थी तभी सोच सकते हैं यदि उन्होंने कुछ व्यावहारिक ज्ञान भी हासिल किया हो। यह व्यावहारिक ज्ञान ही राजनीति है। अतः विद्यार्थी पढ़े मगर साथ ही राजनीति का ज्ञान भी हासिल करे। देश को सही दिशा देने के लिए विद्यार्थी को राजनीति का पाठ जरूर पढ़ना चाहिए।

प्रश्न-2. भगत सिंह की विद्यार्थियों से क्या अपेक्षाएँ हैं ?

उत्तर- भगत सिह कहते हैं कि देश को ऐसे देश सेवकों की जरूरत है जो तन-मन-धन देश पर अर्पित कर दें और पागलों की तरह सारी उम्र देश की आजादी के लिए या देश के विकास में न्योछावर कर दें। यह कार्य सिर्फ विद्यार्थी ही कर सकते हैं। सभी देशों को आजाद करने वाले वहाँ के विद्यार्थी और नौजवान ही हुआ करते हैं। वे ही क्रांति कर सकते हैं। अत: विद्यार्थी पढ़ें। साथ ही पॉलिटिक्स का भी ज्ञान हासिल करें और जब जरूरत हो तो मैदान में कूद पड़ें और अपना जीवन देश सेवा में लगा दें। अपने प्राणों को इसी में उत्सर्ग कर दें। यही अपेक्षाएँ हैं विद्यार्थियों से अमर शहीद भगत सिंह की।

प्रश्न-3. भगत सिंह के अनुसार केवल कष्ट सहकर ही देश की सेवा की जा सकती है? उनके जीवन के आधार पर इसे प्रमाणित करें।

उत्तर- भगत सिंह-एक ऐसे क्रांतिकारी के रूप में हमारे सामने आते हैं जिनमें देश की आजादी के साथ समाज की उन्नति की प्रबल इच्छा भी दिखती है। इसकी शुरूआत 12 वर्ष की उम्र में जालियाँवाला बाग की मिट्टी लेकर संकल्प के साथ होती है, उसके 1923 ई. में गणेश शंकर विद्यार्थी के पत्र 'प्रताप' से। भगत सिंह यह जानते थे कि समाज में क्रांति लाने के लिए जनता में सबसे पहले राष्ट्रीयता का प्रसार करना होगा। उन्हें एक ऐसी विचारधारा से अवगत कराना होगा जिसकी बुनियाद समभाव समाजवाद पर टिकी हो। जहाँ शोषण की कोई बात न हो। इसलिए उन्होंने लिखा कि समाज में क्रांति विचारों की धार से होगी। वे समाज में गैर-बराबरी, भेदभाव, अशिक्षा, अंधविश्वास, गरीबी, अन्याय आदि दुर्गुण एवं अभाव के विरोधी के रूप में खड़े होते हैं,मानवीय व्यवस्था के लिए कष्ट, संघर्ष सहते हैं। भगत सिंह समझते हैं कि बिना कष्ट सहकर देश की सेवा नहीं की जा सकती है। इसीलिए उन्होंने जो नौजवान सभा बनायी थी उसका ध्येय सेवा द्वारा कष्टों को सहन करना एवं बलिदान करना था।
क्रांतिकारी भगत सिंह कहते हैं कि मानव किसी भी कार्य को उचित मानकर ही करता है। जैसे हमने लेजिस्लेटिव असेम्बली में बम फेंकने का कार्य किया था। इस पर दिल्ली के सेसन जज ने असेम्बली बम केस में भगत सिंह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। कष्ट के संदर्भ में रूसी साहित्य का हवाला देते हुए कहते हैं, विपत्तियाँ व्यक्ति को पूर्ण बनाने वाली होती हैं। हमारे साहित्य में दुःख की स्थिति न के बराबर आती है, परन्तु रूसी साहित्य के कष्टों और दुःखमयी स्थितियों के कारण ही हम उन्हें पसंद करते हैं। खेद की बात यह है कि कष्ट सहन की उस भावना को अपने भीतर अनुभव नहीं करते। हमारे जैसे व्यक्तियों को जो प्रत्येक दृष्टि से क्रांतिकारी होने का गर्व करते हैं सदैव हर प्रकार से उन विपत्तियों 'चिंताओं' दु:खों और कष्टों को सहन करने के लिए तत्पर रहना चाहिए जिनको हम स्वयं आरंभ किए संघर्ष के द्वारा आमंत्रित करते हैं और जिनके कारण हम अपने आप को क्रांतिकारी कहते हैं। इसी आत्मविश्वास के बल पर भगत सिंह फाँसी के फंदे पर झूल गये। वे जानते थे, मेरे इन कष्टों, दु:खों का जनता पर बेहद प्रभाव पड़ेगा और जनता आंदोलन कर बैठेगी। अत: भगत सिंह का कहना सत्य है कि कष्ट सहकर ही देश की सेवा करनी चाहिए।

प्रश्न-4. भगत सिंह ने कैसी मृत्यु को सुंदर कहा है ? वे आत्महत्या को कायरता कहते हैं, इस संबंध में उनके विचारों को स्पष्ट करें।

उत्तर-क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह ने देश सेवा के बदले दी गई फाँसी (मृत्युदंड) को सुंदर मृत्यु कहा है। भगत सिंह इस संदर्भ में कहते हैं कि जब देश के भाग्य का निर्णय हो रहा हो तो व्यक्तियों के भाग्य को पूर्णतया भुला देना चाहिए। इसी दृढ़ इच्छा के साथ हमारी मुक्ति का प्रस्ताव सम्मिलित रूप में और विश्वव्यापी हो और उसके साथ ही जब यह आंदोलन अपनी चरम सीमा पर पहुँचे तो हमें फाँसी दे दी जाय। वह मृत्यु भगत सिंह के लिए सुंदर होगी जिसमें हमारे देश का कल्याण होगा। शोषक यहाँ से चले जायेंगे और हम अपना कार्य आप करेंगे। इसी के साथ व्यापक समाजवाद की कल्पना भी करते हैं जिसमें हमारी मृत्यु बेकार न जाय। अर्थात् संघर्ष में मरना एक आदर्श मृत्यु है। भगत सिंह आत्महत्या को कायरता कहते हैं। क्योंकि कोई भी व्यक्ति जो आत्महत्या करेगा वह थोड़ा दुख, कष्ट सहने के चलते करेगा। वह अपना समस्त मूल्य एक ही क्षण में खो देगा। इस संदर्भ में उनका विचार है कि मेरे जैसे विश्वास और विचारों वाला व्यक्ति व्यर्थ में मरना कदापि सहन नहीं कर सकता। हम तो अपने जीवन का अधिक से अधिक मूल्य प्राप्त करना चाहते हैं। हम मानवता की अधिक से अधिक सेवा करना चाहते हैं। संघर्ष में मरना एक आदर्श मृत्यु है। प्रयत्नशील होना एवं श्रेष्ठ और उत्कृष्ट आदर्श के लिए जीवन देना कदापि आत्महत्या नहीं कही जा सकती। भगत सिंह आत्महत्या को कायरता इसलिए कहते हैं कि केवल कुछ दुखों से बचने के लिए अपने जीवन को समाप्त कर देते हैं। इस संदर्भ में वे एक विचार भी देते हैं कि विपत्तियाँ व्यक्ति को पूर्ण बनाने वाली होती हैं।

प्रश्न-5. भगत सिंह रूसी साहित्य को इतना महत्वपूर्ण क्यों मानते हैं ? वे एक क्रांतिकारी से क्या अपेक्षाएँ रखते हैं ?

उत्तर- सरदार भगत सिंह रूसी साहित्य को महत्वपूर्ण इसलिए मानते हैं क्योंकि रूसी साहित्य के प्रत्येक स्थान पर जो वास्तविकता मिलती है, वह हमारे साहित्य में कदापि दिखाई नहीं देती है। उनकी कहानियों में कष्टों और दुखमयी स्थितियाँ हैं जिनके कारण दुख कष्ट सहन की प्रेरणा मिलती है। इस दुख, कष्ट से सहृदयता, दर्द की गहरी टीस और उनके चरित्र और साहित्य की ऊँचाई से हम बरबस प्रभावित होते हैं। ये कहानियाँ हमें जीवन संघर्ष की प्रेरणा देती हैं। नये समाज निर्माण की प्रक्रिया में मदद करती हैं। इसलिए ये कहानियाँ महत्वपूर्ण हैं।
सरदार भगत सिंह क्रांतिकारियों से अपेक्षा करते हैं कि हम उनकी कहानियाँ पढ़ कर कष्ट सहन की उस भावना का अनुभव करें। उनके कारणों पर सोचे-विचारें। हम जैसे क्रांतिकारियों को सदैव हर प्रकार से उन विपत्तियों, चिंताओं, दुखों और कष्टों को सहन करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। भगत सिंह कहते हैं कि मेरा नजरिया यह रहा है कि सभी राजनीतिक कार्यकर्ता को ऐसी स्थितियों में उपेक्षा दिखानी चाहिए और उनको जो कठोरतम सजा दी जाय उसे हँसते-हँसते बर्दाश्त करना चाहिए। भगत सिंह क्रांतिकारियों से कहते हैं कि किसी आंदोलन के बारे में यह कह देना कि दूसरा कोई इस काम को कर लेगा या इस कार्य को करने के लिए बहुत लोग हैं, यह किसी प्रकार से उचित नहीं कहा जा सकता। इस प्रकार जो लोग क्रांतिकारी क्षेत्र के कार्यों का भार दूसरे लोगों पर छोड़ने को अप्रतिष्ठापूर्ण एवं घृणित समझते हैं उन्हें पूरी लगन के साथ वर्तमान व्यवस्था के विरूद्ध संघर्ष आरंभ कर देना चाहिए। उन्हें चाहिए कि वे उन विधियों का उल्लंघन करें, परन्तु उन्हें औचित्य का ध्यान रखना चाहिए।

प्रश्न-6. 'उन्हें चाहिए कि वे उन विधियों का उल्लंघन करें परन्तु उन्हें औचित्य का ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि अनावश्यक एवं अनुचित प्रयत्न कभी भी न्यायपूर्ण नहीं माना जा सकता।' भगत सिंह के इस कथन का आशय बताएं। इससे उनके चिंतन का कौन-सा पक्ष उभरता है? वर्णन करें।

 उत्तर- सरदार भगत सिंह क्रांतिकारियों से कहते हैं कि क्रांतिकारी शासक यदि शोषक हो, कानून व्यवस्था यदि गरीब-विरोधी, मानवता-विरोधी हो तो उन्हें चाहिए कि वे उसका पुरजोर विरोध करें, परन्तु इस बात का भी ख्याल करें कि आम जनता पर इसका कोई असर न हो, वह संघर्ष आवश्यक हो अनुचित नहीं। संघर्ष आवश्यकता के लिए हो तो उसे न्यायपूर्ण माना जाता है परन्तु सिर्फ बदले की भावना हो तो अन्यायपूर्ण। इस संदर्भ में रूस की जारशाही का हवाला देते हुए कहते हैं कि रूस में बंदियों को बंदीगृहों में विपत्तियाँ सहन करना ही जारशाही का तख्ता उलटने के पश्चात् उनके द्वारा जेलों के प्रबंध में क्रांति लाए जाने का सबसे बड़ा कारण था। विरोध करो परन्तु तरीका उचित होना चाहिए, न्यायपूर्ण होना चाहिए। इस दृष्टि से देखा जाय तो भगत सिंह का चिंतन मानवतावादी है जिसमें समस्त मानव जाति का कल्याण निहित है। यदि मानवता पर तनिक भी प्रहार हो, उन्हें पूरी लगन के साथ वर्तमान व्यवस्था के विरूद्ध संघर्ष आरंभ कर देना चाहिए।

प्रश्न-7. निम्नलिखित कथनों का अभिप्राय स्पष्ट करें – 

(क) मैं आपको बताना चाहता हूँ कि विपत्तियाँ व्यक्ति को पूर्ण बनानेवाली होती हैं। 
(ख) हम तो केवल अपने समय की आवश्यकता की उपज हैं। 
(ग) मनुष्य को अपने विश्वासों पर दृढ़तापूर्वक अडिग रहने का प्रयल करना चाहिए। 

उत्तर-

(क) यहाँ पर भगत सिंह के कहने का अभिप्राय यह है कि विपत्तियाँ झेल कर ही व्यक्ति पूर्णता प्राप्त कर सकता है। इस महान क्रांतिकारी ने अपने जीवन का सचित्र अनुभव हमारे सामने उड़ेल दिया है जिसने कष्ट सहन नहीं किया वह पूर्ण नहीं बन सकता।

(ख) क्रांति के अग्रदूत भगत सिंह का विचार है कि हमें यह नहीं समझना चाहिए कि यदि हम इस क्षेत्र में न उतरे होते तो कोई भी क्रांतिकारी कार्य कदापि नहीं हुआ होता। ऐसा सोचना हमारी भूल होगी। निस्संदेह हम भी वातावरण को बदलने में काफी हद तक सहायक सिद्ध हुए। अर्थात् हमारी भी भूमिका महत्वपूर्ण है, किन्तु हम तो केवल अपने समय की आवश्यकता की उपज हैं। हमने समय की पुकार को समझा एवं सहयोग दिया है।

(ग) मनुष्य को दृढ़-निश्चयी होना चाहिए। उसे अपने विचारों के प्रति गम्भीर एवं अटल होना आवश्यक है। भगत सिंह ने अपने विश्वासों पर दृढ़तापूर्वक अडिग रहने के लिए हमारा उद्बोधन किया हैं उनका कहना है। कि कोई भी नहीं कह सकता है कि भविष्य में क्या घटने वाली है। अतः हमें परिस्थितियों से विचलित होकर अपने रास्ते से भटकना अथवा विचारों को त्यागना नहीं चाहिए, तभी वह अपने लक्ष्य पर पहुँच सकता है, अथवा सफलता प्राप्त कर सकता है।

प्रश्न-8, 'जब देश के भाग्य का निर्णय हो रहा हो तो व्यक्तियों' के भाग्य को पूर्णतया भुला देना चाहिए।' आज जब देश आजाद है, भगत सिंह के इस विचार का आप किस तरह मूल्यांकन करेंगे ? अपना पक्ष प्रस्तुत करें।

उत्तर- शहीद भगत सिंह का यह कथन उनकी मानवतावादी दृष्टि का परिचय देता है जिसमें व्यक्ति को अपनी स्वार्थ से ऊपर उठकर समष्टि के बारे में सोचना चाहिए। देश के लिए तन, मन, धन स्वयं अर्पित कर देना चाहिए। परन्तु आज देश की आजादी साठ वर्ष हो गये फिर भी इस प्रकार की भावना का लेशमात्र भी व्यक्ति के मन में नहीं है। व्यक्ति अपनी स्वार्थपरता थोड़े-से सुख के लिए अपना सारा मूल्य खो बैठा है। आज भारतवासी अपने ही देश में भ्रष्टाचार की आग में जल रहे हैं, गोरे अंग्रेजों के चंगुल से टूटने के बाद आज देश अपने देशी भूरे अंग्रेजों द्वारा विनाश के गर्त में भेजा जा रहा है। अपराधी और घूसखोर जनता को लूट रहे हैं। राजनीति का अपराधीकरण चरम सीमा पर है। इस शासन व्यवस्था के कारण अपने ही लोग देश के दुश्मन हो चुके हैं। आतंकवादी गतिविधियाँ बढ़ रही हैं। आज के राजनीतिक दल धार्मिक, भाषाई और क्षेत्रीय उन्माद फैलाकर सत्ता पर काबिज होने को प्रयासरत है। सिर्फ अपने थोड़े-स्वार्थ के लिए। 

प्रश्न-9, भगत सिंह ने अपनी फाँसी के लिए किस समय की इच्छा व्यक्त की है? वे ऐसा क्यों चुनते हैं?

उत्तर- युग पुरुष ! क्रांति के अद्वितीय योद्धा ! भगत सिंह ने एक अन्य महान क्रांतिकारी सुखदेव को लिखे अपने पत्र में अपनी फाँसी दिए जाने के समय के संबंध में अपने कुछ विचार दिए हैं। उनका कहना है कि उनका अटल विश्वास है कि उन्हें मृत्युदंड की सजा सुनायी जाएगी। उन्हें यह भी अच्छी तरह ज्ञात है कि उन्हें पूर्ण क्षमा अथवा किसी प्रकार की अन्य रियायत नहीं दी जाएगी। उनके शब्दों में, "यदि कोई क्षमा हुई भी तो पूर्णतः सबके लिए होगी, वरन् वह भी हमारे अतिरिक्त अन्य लोगों के लिए नितान्त सीमित एवं कई बंधनों से जकड़ी हुई होगी।" यद्यपि उन्हें इसका तनिक भी आशा नही, शिवाय इसके कि मृत्युदण्ड की सजा ही सुनाई जाए। किन्तु यदि मुक्ति का प्रस्ताव आवे तो सम्मिलित और विश्वव्यापी हो। उनकी अपनी अन्तिम इच्छा उन्होंने इन शब्दों में व्यक्त की है, "जब यह आंदोलन चरम सीमा पर पहुँचे तो हमें फाँसी दे दी जाए। इस प्रकार उनकी फाँसी के समाचार को समस्त देशवासी तथा विश्व के अन्य लोग जान सकें। भगत सिंह ने ऐसा समय संभवतः इसलिए चुना, क्योंकि जब आंदोलन चरमोत्कर्ष पर होगा। ऐसे समय इनको फाँसी पर चढ़ाए जाने पर देशवासियों में तीव्र आक्रोश, नई ऊर्जा, एकता तथा देश को स्वतंत्र कराने का जुनून पराकाष्ठा पर पहुंच जाएगा। यह ब्रिटिश साम्राज्य की बेड़ियों से भारतमाता को मुक्त कराने में सहायक होगा। भगत सिंह की आत्मा को भी इससे हार्दिक शांति एवं संतोष की प्राप्ति होगी।

प्रश्न-10. भगत सिंह के इस पत्र से उनकी गहन वैचारिकता, यथार्थवादी दृष्टि का परिचय मिलता है। पत्र के आधार पर इसकी पुष्टि करें।

उत्तर-महान क्रांतिकारी भगत सिंह ने इस पत्र में तीन-चार सवालों पर विचार किया है जिनमें, आत्महत्या, जेल जाना, कष्ट सहना, मृत्युदंड और रूसी साहित्य है। भगत सिंह का आत्महत्या के संबंध में विचार है कि केवल कुछ दुखों से बचने के लिए अपने जीवन को समाप्त कर लेना मनुष्य की कायरता है। यह कायर व्यक्ति का काम है। एक क्षण में समस्त पुराने अर्जित मूल्य खो देना मूर्खता है। अतः व्यक्ति को संघर्ष करना चाहिए। दूसरा जेल जाना भगत सिंह व्यर्थ नहीं मानते क्योंकि रूस की जारशाही का तख्ता-पलट बंदियों का बंदीगृह में कष्ट सहने करना है तो कष्ट सहने से नहीं डरना चाहिए। का कारण बना। अत: यदि आन्दोलन को तीव्र देश सेवा के क्रम में क्रांतिकारी को ढेरों कष्ट सहने पड़ते हैं-जेल जाना, उपवास करना इत्यादि अनेकों दण्ड। अतः भगत सिंह कहते हैं हमें कष्ट सहने से नहीं डरना चाहिए क्योंकि विपत्तियाँ ही व्यक्ति को पूर्ण बनाती हैं।

मृत्युदंड के बारे में भगत सिंह के विचार हैं कि वैसी मृत्यु सुंदर होगी जो देश सेवा के संघर्ष के लिए हो। संघर्ष में मरना एक आदर्श मृत्यु है। श्रेष्ठ एवं उत्कृष्ट आदर्श के लिए दी गई फाँसी एक आदर्श, सुन्दर मृत्यु है। अत: क्रांतिकारी को हँसते-हँसते फाँसी का फंदा डाल लेना चाहिए। रूसी साहित्य में वर्णित कष्ट दुख, सहनशक्ति पर फिदा है भगत सिंह। रूसी साहित्य में कष्ट-सहन की जो भावना है उसे हम अनुभव नहीं करते। हम उनके उन्माद और चरित्र की असाधारण ऊँचाइयों के प्रशंसक हैं, परन्तु इसके कारणों पर सोच-विचार करने की चिंता कभी नहीं करते। अत: भगत सिंह का विचार है कि केवल विपत्तियाँ सहन करने के लिए साहित्य के उल्लेख ने ही सहृदयता, गहरी टीस और उनके चरित्र और साहित्य में ऊँचाई उत्पन्न की है। इस प्रकार हम पाते हैं कि भगत सिंह की वैचारिकता सीधे यथार्थ के धरातल पर टिकी हुई आजीवन संघर्ष का संदेश देती है।

Class 12 Hindi Book Solution    

Bihar board class 12 Hindi book solution  chapter - 6 Hindi Grammer  Quetion भाषा की बात )




प्रश्न-1. निम्नलिखित शब्दों के प्रत्यय निर्दिष्ट करें – 

कायरता, घृणित, पूर्णतया, दयनीय, स्पृहणीय, वास्तविकता, पारितोषिक। 

उत्तर – 
  •             कायरता – ता प्रत्यय 
  •             घृणित –     इत प्रत्यय 
  •             पूर्णतया –   इया प्रत्यय 
  •             दयनीय –    इय प्रत्यय 
  •             स्पृहणीय –  इय प्रत्यय 
  •             वास्तविकता –ता प्रत्यय 
  •             पारितोषिक –  इक प्रत्यय 

प्रश्न-2. हास्यास्पद शब्द में 'अस्पद' प्रत्यय है, इस प्रत्यय से पाँच अन्य शब्द बनाएँ। 

उत्तर-विवादास्पद, विरोधास्पद, लज्जास्पद, घृणास्पद, संदेहास्पद। 

प्रश्न-3. हमारे विद्यालय के प्राचार्य आ रहे हैं। इस वाक्य में हमारे विद्यालय के प्रचार्य संज्ञा पदबंध है। वह पद-समूह जो वाक्य में संज्ञा का काम करे संज्ञा पदबंध कहलाता है। इस तरह नीचे दिये गये वाक्यों से संज्ञा पदबंध चुनें। 

(क) बंदी होने के समय हमारी संस्था के राजनीतिक बंदियों की दशा अत्यंत दयनीय थी। 
(ख) कुछ मुट्ठी भर कार्यकर्ताओं के आधार पर संगठित हमारी पार्टी अपने लक्ष्यों और आदर्शों की तुलना में क्या कर सकती थी ? 
(ग) मैं तो यह भी कहूँगा कि साम्यवाद का जन्मदाता मार्क्स वास्तव में इस विचार को जन्म देने वाला नहीं था।

उत्तर-
      (क) हमारी संस्था के राजनीतिक बंदियों की दशा 
      (ख) संगठित हमारी पार्टी 
       (ग) साम्यवाद का जन्मदाता मार्क्स। 

पश्न-4. पर्यायवाची शब्द लिखें। वफादारी, विद्यार्थी, फायदेमंद, खुशामद, दुनियादारी, अत्याचार, प्रतीक्षा, किंचित् 

उत्तर – 
  •          वफादारी –    समर्पित. स्वामीभक्त 
  •          विद्यार्थी –     छात्र, शिष्य
  •          खुशामद –  जीहजूरी, चापलूसी 
  •          दुनियादारी –  सामाजिक व्यवहार, संसारिकता 
  •          अत्याचार – उत्पीड़न, क्रूरता 
  •          प्रतीक्षा – इंतजार, आशा 
  •          किचित –   कुछ भी नहीं, यदा-कदा। 

प्रश्न-5. विपरीतार्थक शब्द लिखें – 

सयाना, उत्तर, निर्बलता, व्यवहार, स्वाध्याय, वास्तविक, अकारण। 

उत्तर – 

  •  सयाना –  नादान 
  •  उत्तर – दक्षिण 
  •   निर्बलता – सबलता 
  •   व्यवहार – दुर्व्यवहार 
  •   वास्तविक – अवास्तविक 
  •   अकारण – सकारण।

 

Class 11 Hindi Book Solution    

Bihar board class 11 Hindi book solution  chapter - 3 Very Short Quetion (अतिलघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर )



प्रश्न-1. भगत सिंह के अनुसार विद्यार्थियों को राजनीति में भाग लेना चाहिए या नहीं?

उत्तर- भगत सिंह के अनुसार छात्रों को राजनीति का ज्ञान होना चाहिए और उसमें भाग लेना चाहिए।

प्रश्न-2. भगत सिंह की दृष्टि में सही शिक्षा क्या है ?

उत्तर-जिस शिक्षा में पढ़ाई के साथ परिस्थितियों का ज्ञान और उनके सुधार के उपाय भी सम्मिलित हो वही सही शिक्षा है। 

प्रश्न-3. चालाक लोग क्या कहते हैं ? 

उत्तर-तुम पॉलिटिक्स के अनुसार पढ़ो और सोचो जरूर लेकिन कोई व्यवहारिक हिस्सा न लो। तुम अधिक योग्य होकर देश के लिए फायदेमंद साबित होंगे।

प्रश्न-4. भगत सिंह के अनुसार उस समय देश को कैसे लोगों की जरूरत थी? 

उत्तर-भगत सिंह के अनुसार उस समय देश को ऐसे सेवकों की जरूरत थी जो देश के लिए तन मन धन अर्पित कर दें और पागलों की तरह सारी उन देश की आजादी के लिए न्योछावर कर दें।

प्रश्न-5. आत्महत्या के विषय में भगत सिंह की क्या राय थी?

उत्तर- भगत सिंह आत्महत्या को घृणित और कायरतापूर्ण कार्य मानते थे। 

प्रश्न-6. ईश्वर, पुनर्जन्म आदि के विषय में भगत सिंह के विचार क्या थे? 

उत्तर- भगत सिंह इन चीजों को नहीं मानते थे। वे जीवन और मृत्यु के विषय में नितांत भौतिकवादी दृष्टि से विचार करने के पक्षधर थे।

प्रश्न-7. क्षमादान के विषय में भगत सिंह का क्या दृष्टिकोण था ? 

उत्तर-वे उन्हें क्षमादान इसी बात पर स्वीकार था कि यदि सभी क्रांतिकारियों के लिए सुविधा और क्षमादान की व्यवस्था हो तथा उसका प्रभाव स्थायी हो और देश के लोगों पर हमारे इस आचरण को सही मानें।




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