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Class 11 Hindi Book Solution
Bihar board class 11 Hindi book solution chapter - 1 (Summary ) Saransh ( सारांश )
पुस की रात ( प्रेमचन्द) सारांश
Class 11 Hindi Book Solution
Bihar board class 11 Hindi book solution chapter - 1 Objective Quetion (वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर )
Answer ⇒ क |
Answer ⇒ ख |
Answer ⇒ क |
Answer ⇒ ग |
Answer ⇒ घ |
Answer ⇒ ख |
Answer ⇒ घ् |
Class 11 Hindi Book Solution
Bihar board class 11 Hindi book solution chapter - 1 Very Short Quetion (अतिलघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर )
(i) क्या इस कहानी का नाम पूस की रात सार्थक है ?
उत्तर-हाँ, क्योंकि इस कहानी का आधार घोर ठंढक की स्थिति है जो हमें पूस माह में प्राप्त होती है। साथ ही पूरी घटना रात में घटित होती है। कहानी का विषय पूस महीने में रात्रि के समय फसल की रखवाली से सम्बन्धित है। यह कार्य ठंढ़ की अतिशयता के कारण नहीं सम्पन्न होता है।
(ii) मुन्नी पैसे क्यों नहीं देना चाहती है ?
उत्तर-हल्कू ने मजदूरी में से कटौती करके कम्बल खरीदने के लिए पैसे बचाये हैं। वे तीन रुपये सहना को दे देने पर कम्बल नहीं खरीदा जा सकेगा। तब न जाड़ा कटेगा और न फसल की रखवाली होगी। कम्बल खरीदने के लिए कोई विकल्प नहीं है। इसलिए मुन्नी पैसे नहीं देना चाहती है।
(iii) खेत उजड़ने पर मुन्नी क्यों दुखी होती है ?
उत्तर-खेत उजड़ जाने पर खाने के लिए अन्न नहीं होगा। दूसरे, खेत की मालगुजारी भरने के लिए मजदूरी से होने वाली आय में से कटौती करनी पड़ेगी।
(iv) हल्कू खेत उजड़ने से क्यों प्रसन्न है ?
उत्तर-कर्ज चुकाने में कम्बल का पैसा खर्च हो जाने से हल्कू व्यथित है। वह अब कम्बल नहीं खरीद सकेगा। ऐसी स्थिति में मात्र एक दोहर चादर के सहारे पूस की रात में कड़ाके की ठंढ में रखवाली असंभव है। एक ही रात की दुर्गति इसका प्रभाव है। अतः हल्कू प्रसन्न है कि अब खेत की रखवाली से उसका पिंड छूट गया है।
(v) पशुओं से खेत की रक्षा करने में हल्कू क्यों जड़ हो जाता है ?
उत्तर-वस्तुतः खेती उसके लिए पोषण के बदले शोषण बन गयी है। उसका मन ऐसी खेती से विद्रोह कर रहा है जो उलटे मजदूरी में से भी कुछ छीन लेती है। इस विद्रोह और अनिच्छा भावने उसे जड़ बना दिया जिसके कारण चाहते हुए भी वह फसल की रक्षा करने नहीं गया।
Class 11 Hindi Book Solution
Bihar board class 11 Hindi book solution chapter - 1 Short Quetion (लघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर )
प्रश्न-1. हल्कू कंबल के पैसे सहना को देने के लिए क्यों तैयार हो जाता है ?
उत्तर- सहना की घुड़कियों और गालियों से बचने के लिए हल्कू कम्बल खरीदने के बदले पैसे सहना को दे देता है।
प्रश्न-2. मुन्नी की नजर में खेती और मजदूरी में क्या अन्तर है ? वह हल्कू से खेती छोड़ देने के लिए क्यों कहती है ?
उत्तर-उन लोगों को पेट के लिए मजदूरी करनी होती है तथा खेती की उपज लगान तथा बकाये में निकल जाती है। अतः खेती में किया गया श्रम और लगायी गयी पूँजी ऊपर से टैक्स की तरह भारी लगती है। किसी भी तरह लाभदायक न होने के कारण मुन्नी हल्कू से खेती छोड़ देने के लिए कहती है।
प्रश्न-3. हल्कू खेत पर कहाँ और कैसे रात बिता रहा था ?
उत्तर-हल्कू खेत पर रखवाली के लिए बनी मडैया में रात बिता रहा था। लेकिन ठंढ़ के कारण जब कठिनाई बढ़ गयी तो पास के बगीचे में जाकर सूखी पत्तियाँ बटोर कर आग लगायी। इस तरह ठंढ़ से मुक्ति मिली। बाद में जब आग बुझ गयी तो वहीं गर्म जमीन पर सो गया जहाँ उसे नींद आ गयी। इस तरह उसने जाड़े से संघर्ष करते हुए मडैया तथा बागीचे में रात बितायी।
प्रश्न-4. हल्कू ने जबरा को आगे की ठंढ काटने के लिए क्या आश्वासन दिया ?
उत्तर-हल्कू ने जबरा को आश्वासन दिया कि कल से यहाँ पुआल बिछा दूंगा। उसी में घुसकर बैठना तब जाड़ा न लगेगा।
प्रश्न-5. हल्कू की आला का एक-एक अणु प्रकाश से चमक रहा था।
उत्तर-हल्कू ने जाड़े से मुक्ति के एक प्रयत्न के रूप में जबरा को अपनी गोदी में सुला लिया। इस समय ऐसा सुख मिल रहा था कि कुत्ते की देह से निकलने वाली दुर्गन्ध का कोई बोध नहीं हो रहा था। उसके मन में घृणा की गन्ध तक नहीं थी। उसे लगता था कि वह अपने किसी प्रिय मित्र या भाई को प्रेमावेग से गले लगाए हुए है। मानव और पशु की इसी अनोखी आत्मीयता के कारण प्रेमचन्द यह अनुभव करते हैं कि इस मैत्री ने उसकी आत्मा के सब द्वार खोल दिये हैं और उसका एक-एक अणु प्रकाश से चमक रहा है। स्पष्टत: वह प्रीति का उदात्त क्षण होता है जो मनुष्य के अन्त:करण को प्रकाशित कर देता है।
प्रश्न-6. हल्कू और जबरा की मैत्री को लेखक ने अनोखा क्यों कहा है ?
उत्तर-आत्मीयता के अतिरेक में जहाँ जबरा हल्कू की गोद में स्वर्ग अनुभव कर रहा था वहीं हल्कू अपनी आत्मा के सभी द्वार खुले अनुभव करके आत्म प्रकाश से दीप्त अनुभव कर रहा था। इसी आधार पर प्रेमचन्द ने दोनों की मैत्री को अनोखा कहा है।
प्रश्न-7. हल्कू कैसे जाना कि रात अभी पहर भर बाकी है ?
उत्तर-हल्कू ने आकाश में देखा तो पाया कि सप्तर्षि अभी आकाश में शीर्ष की ओर आधा भी नहीं चढ़े हैं। पूरा ऊपर आयेंगे तब सबेरा होगा। इस तरह सप्तर्षि की गति के आधार पर हल्कू ने अनुमान लगाया कि पहर भर रात बाकी है।
प्रश्न-8. जब ठंड बर्दाश्त के बाहर हो जाती है तो हल्कू उसका सामना कैसे करता है ?
उत्तर-ठंढ़ बर्दाश्त के बाहर हो जाने पर हल्कू ने पास के बगीचे में फैली सूखी पत्तियों को बटोरा चिलम पीने के लिए आग उसके पास भी ही। उसने पतियों को जलाकर आग तापने के द्वारा ठंढ़ का सामना किया।
प्रश्न--9. लेखक ने पवन को निर्दय क्यों कहा है ? निर्दय पवन द्वारा पत्तियों का कुचलना से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-पवन के कारण ठंढ़ बढ़ गयी। इससे हल्कू के लिए रात काटना असंभव हो गया। तेज हवा के झोंकों के कारण बगीचे की पत्तियाँ उलट पुलट होती झरझरा उठती थीं। लगता था कोई अन्धकार में बिना देखे पत्तियों को कुचलता जा रहा है। इन्हीं दोनों आधारों पर प्रेमचन्द ने पवन को निर्दय व्यक्ति की तरह पत्तियों को कुचलते हुए चलना बताया है।
प्रश्न-10. आग तापते हुए हल्कू कैसी क्रीड़ा करता है ? अपने शब्दों में वर्णन करें।
उत्तर-आग तापने से हल्कू को ठंढ से राहत मिलती है। अत: उसकी स्वाभाविक फुर्ती और युवकोचित उत्साह लौट आता है। लपटों को कूदकर पार करने का खेल साहस भरा और उष्मा प्रदान करने वाला होता है। हल्कू आग की लपटों को फाँदकर इस पर से उस पार जाता है और फिर उस पार से इस पार आता है। यही क्रीड़ा है आग फाँदने की।
प्रश्न-11. हल्कू और मुन्नी दोनों के चरित्र की विशेषताएं बताएँ। आपको इन दोनों में अधिक महत्त्वपूर्ण कौन लगा ?
उत्तर- हल्कू हयादार व्यक्ति है। उसमें कष्ट सहने की क्षमता है लेकिन अपमानजनक व्यवहार सहने की क्षमता नहीं। इसीलिए वह कम्बल खरीदने के लिए रखे पैसे सहना को दे देता है। खेत की रखवाली के क्रम में जाड़ा से हारने पर वह पत्ते बटोरकर आग जलाता है। यह उसके प्रयत्नशील चरित्र को व्यक्त करता है। लेकिन वह जान पर खेलकर फसल की रखवाली करने वाला पुरुषार्थी नहीं है। यह पक्ष उसके चरित्र में इस विचार के कारण आया है कि जब खेती करने से लाभ नहीं है तो खेती के लिए क्यों जान दी जाय। मुन्नी में घरेलू स्त्री का चरित्र है। वह यथार्थ और आदर्श की मिश्रित प्रतिमा है। एक ओर तो वह पति को मना करती है कि सहना को पैसे मत दो। क्योंकि वह जानती है कि पैसे निकल गये तो कम्बल खरीदना संभव नहीं है। ऐसी दशा में पति जाड़े से ठिठुरते हुए पूस में खेती की रखवाली नहीं कर सकेगा। इतना ही नहीं वह पति को खेती छोड़ देने के लिए कहती है। क्योंकि खेती से पेट नहीं भरता, पेट भरने के लिए जब मजदूरी करनी ही है तो खेती क्यों करें ! मगर वही मुन्नी जब खेत की दुर्दशा देखती है तो दुखी हो जाती है। वस्तुतः दोनों पात्रों के चरित्र में अन्तर्विरोध है जो खेती की अलाभकर स्थिति से उत्पन्न है। अत: यह कहना कठिन है कि किसका चरित्र श्रेष्ठ है। वैसे अपमान सहने के बदले जाड़ा सहने का निर्णय करके कम्बल के लिए रखे पैसे सहना को दे देने वाला हल्कू आचरण की कसौटी पर श्रेष्ठ सिद्ध होता है। प्रश्न
12. यह कहानी भारतीय किसान के मजदूर बनने की त्रासदी की ओर संकेत करती है। कहानी के आधार पर स्पष्ट करें।
उत्तर-इस कहानी में मुन्नी स्पष्ट शब्दों में हल्कू से कहती है तुम क्यों नहीं खेती छोड़ देते ? मजूरी में सुख से एक रोटी खाने को तो मिलेगी। अच्छी खेती है। मजूरी करके लाओ। वह र भी कहता है - खेती हम करें, मजा दूसरे लूटें। जबरा भूक भूककर म्रियमान हो जाता है लेकिन हल्कू जंगली जानवरों को भगाने नहीं जाता है। सुबह पूरी खेती तहस-नहस हो जाती है। हल्कू प्रसन्न है कि रात को अब यहाँ सोना नहीं पड़ेगा। इस तरह वह मुन्नी के विचार को ही परोक्ष रूप में क्रियान्वित करता है। क्योंकि फसल नष्ट हो जाने के बाद अब मजदूरी ही जीविका का सहारा रहेगा। फसल नष्ट होना कृषक जीवन की त्रासदी है जो स्पष्टतः आगे मजदूर ही बन पाने की दिशा संकेतित कर रही है।
प्रश्न-13. “पूस की रात' कहानी में 'जबरा' एक प्रमुख पात्र है। कहानी में उसका क्या महत्त्व है?
उत्तर-जबरा हल्कू का पालतू कुत्ता है। कहानी में वह हल्क के मित्र की भूमिका निभा रहा इतना ही नहीं वह तत्पर रखवाले की भूमिका प्राण पण से निभाता है। अन्तत: वह पूंकते नूंकते कर्तव्य की वेदी पर म्रियमान होकर अचेत हो जाता है।
प्रश्न-14. निम्नलिखित वाक्यों की सप्रसंग व्याख्या करें है।
(क) बाकी चुकाने के लिए ही तो हमारा जनम हुआ है।
(ख) हल्कू ने रुपए लिए और इस तरह बाहर चला मानो अपना हृदय निकालकर देने जा रहा हो।
(ग) अंधकार के उस अनंत सागर में यह प्रकाश एक नौका के समान हिलता, मचलता हुआ जान पड़ता था।
(घ) तकदीर की खूबी है। मजूरी हम करें, मजा दूसरे लूटें।
उत्तर- (क) पूस की रात से गृहीत यह पंक्ति मुन्नी द्वारा कथित है। हल्कू ने किसी प्रसंग में सहना में रुपये कर्ज लिए थे वे अभी तक नहीं सधे हैं मानो ऋण न होकर द्रौपदी की साड़ी हों। कर्ज मधाने में निरन्तर परेशानी झेलते, अभाव अनुभव करते-करते दोनों बेहाल हैं। इस स्थिति से उत्पन्न उनकी निराशा से यह व्यथापूर्ण कथन निकला है। दोनों को लगता है कि कर्ज से कभी पक्ति नहीं होगा। यह उनकी नियति जैसी बन गयी है।
(ख) इन पक्तियों में प्रेमचन्द जी ने उत्प्रेक्षा अलंकार का सहारा लेकर बताना चाहा है कि हल्कू + लिए तीन रूपये प्राण की तरह मूल्यवान थे। पैसा दे देने से अपमान से तो मुक्ति मिल जायेगी किन पूरा जाड़ा पीड़ित करेगा। शायद जान भी चली जाये। इस अनिश्चयपूर्ण भविष्य की पीड़ा ने म का मूल्य बढ़ा दिया है। अतः प्रेमचन्द की दृष्टि में वे पैसे पैसे नहीं प्राण की तरह महत्त्वपूर्ण हैं। (ग। व्याख्यांश देखें।
(घ) पूस की रात की इन पंक्तियों में हल्कू ने भाग्य की विडम्बना की ओर संकेत किया है। उसका जीवन कमानेवाला खायेगा की उक्ति का मजाक है। वह खेती करता है कर्ज सधाने के लिए और मजदूरी करता है पेट भरने के लिए। फिर भी उसे न भर पेट भोजन मिलता है और न जाड़ा म बचने के लिए अपेक्षित वस्त्र। जबकि समाज में अनेक लोग बिना कमाये दूसरों के श्रम पर जीकर मौज कर रहे हैं। इसी कर्म और भाग्य की विपरीतता पर ये पंक्तियाँ व्यंग्य करती हैं। व्यंग्य के मूल में विषमता से उत्पन्न पीड़ा की करुणा है।
प्रश्न-15. कर्तव्य उसके हृदय में अरमान की भाँति उछल रहा था।' इस कथन के आलोक में कहानी में जबरा की भूमिका का मूल्यांकन करें।
उत्तर-जबरा हल्कू द्वारा पुकारे जाने पर भी अपने कर्त्तव्य से विमुख नहीं होता है। वह लगातार दौड़-दौड़कर और भूक-भूक कर जानवरों को रोकता भगाता रहता है। उसकी तत्पर और आक्रामक क्रियाशीलता को व्यक्त करने के लिए कहानीकार ने कर्त्तव्य को अरमान की तरह उछलना उक्ति द्वारा अभिव्यक्त किया है।
प्रश्न-16. 'दोनों खेत की दशा देख रहे थे। मुन्नी के मुख पर उदासी छाई हुई थी। पर हल्कू प्रसन्न था।' ऐसा क्यों ? मुन्नी की उदासी और हल्कू की प्रसन्नता का क्या कारण है ?
उत्तर-मुनी इसलिए उदास थी कि “अब फसल के अभाव में मजदूरी करके मालगुजारी भरनी पड़ेगी" जबकि हल्कू खुश था कि खेत की रखवाली से जान छूटी। ठंढ़ की रात में अब यहाँ न सोना पड़ेगा।
Class 11 Hindi Book Solution
Bihar board class 11 Hindi book solution chapter - 1 Hindi Grammar (भाषा की बात )
प्रश्न-1. वाक्य प्रयोग द्वारा इन मुहावरों का अर्थ स्पष्ट करें -
गला छूटना, बला टलना, ठंढा हो जाना, आँख तरेरना, बाज आना, भौंहें ढीली , पड़ना, आहट मिलना।
उत्तर -
- गला छूटना (उलझन से मुक्ति पाना) - मैं ऐसे व्यक्ति के जाल में फंस गया हूँ कि गला छूटना मुश्किल हो रहा है।
- बला टलना (संकट दूर होना) - लाओ, कम्बल वाले पैसे दे दो नहीं तो यह बला टलनेवाली नहीं है।
- ठंडा हो जाना (मर जाना) - चलो आग जलावें नहीं तो इस ठंढ़ के मारे हम भी ठंढे हो जायेंगे।
- आँख तरेरना (क्रोध मिश्रित असहमति का भाव) - मुन्नी ने आँख तरेरते हुए कहा कि तुमसे कोई उपाय नहीं होगा।
- बाज आना (विवशता में छोड़ना) - मैं बाज आया खेती करने से।
- भौंहे ढीली पड़ना (संकल्प ढीला होना) - परिस्थिति को देखते हुए हल्कू की भौंहे ढीली हो गयी।
- आहट मिलना (आगमन का अनुमान होना) - शिकारी को शेर के आने की आहट मिली।
प्रश्न-2. 'गला छूटना', 'आँख तरेरना' की तरह शरीर के अन्य अंगों की सहायता से दस मुहावरों को अर्थ सहित लिखें एवं उनका वाक्यों में प्रयोग करें।
उत्तर =
- कलेजे पर साँप लोटना (ईया होना) - उसकी उन्नति देखकर पड़ोसियों के कलेजे पर साँप लोटने लगा।
- छाती पर मूंग दलना (बोझ बनकर बैठना) - राम ने कहा मैं कहीं नहीं जाऊँगा यहीं बैठकर दुश्मन की छाती पर मूंग दलूँगा।
- नाक भौं सिकोड़ना (अरुचि और घृणा प्रकट करना) - घटिया व्यवस्था देखकर मंत्री जी नाक भौं सिकोड़ने लगे।
- कान काटना (आगे बढ़ जाना) - वह लड़का अभी से ज्ञान में बड़ों-बड़ों के कान काटता है।
- मुँह बन्द रखना (रहस्य खोलने से मना करना) - अगर तुम जीवित रहना चाहते हो तो मुँह बन्द रखना।
- हाथ उठाना (मारना) - आज मैंने प्यारे पुत्र पर हाथ उठाया, इसका सदैव पछतावा रहेगा।
- सिर उठाना (विद्रोह करना) - जो भी सिर उठावेगा उसको कुचला दिया जायेगा।
- आँखें चार होना (प्यार होना) - रजनी से आँखें चार मत करो अथवा पछताओगे।
- आँखों का तारा (अत्यन्त प्यारा) - हर पुत्र अपने माता-पिता की आँखों का तारा होता
- कमर टूटना (ताकत समाप्त होना) - महँगाई ने हमारी कमर तोड़ दी है।
प्रश्न-3. 'उठ बैठा' संयुक्त क्रिया का उदाहरण है। ऐसे पाँच अन्य उदाहरण दें।
उत्तर-चल पड़ा, पड़ा हुआ है, देख रहे हो, भरनी पड़ेगी, सो गया, कह रही थी, निकल गया, कर लेना, पा जाना, चला जाता था।
प्रश्न-4. निम्नलिखित विशेषणों से भाववाचक संज्ञा बनाएँ ढीली, दीर्घ, ठंडी, विशेष, गर्म, प्रसन्न।
उत्तर ---
- ढीली = ढिलाई
- दीर्घ = दीर्घता
- ठंढ़ी = ठंढक
- विशेष - विशेषता
- गर्म = गर्मी प्रसन्नता
- ढेर पत्तियों का ढेर लग गया।
- अलाव (पु) थोड़ी देर में अलाव जल उठा।
- लौ (स्त्री) आग की लौ बुझती जा रही थी।
- दोहर (पु.) मेरा दोहर दे दो।
- जी (पु.) - मेरा जी मत दुखाओ।
- गर्व (पु) - मेरा गर्व खोडत हो गया।
- ठंढ़ (स्त्री०) - मुझे ठंढ़ लग रही है।
- पूँछ (स्त्री) कुत्ते की पूँछ जरा सी जल गयी।
- चादर (स्त्री) मोटी चादर ढकर सो गया।
- राख (स्त्री) राख ठंढी हो गयी थी।
- शीत (स्त्री) शीत लग रही थी।
- झुंड (पु.) जानवरों का झुंड घुस आया।
- सत्यानाश (पु) खेती का सत्यानाश हो गया।
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