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Ancient history notes for UPSC , BPSC pdf Parrt - 1
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प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत
महाभारत में जो इतिहास की परिभाषा दी गई है उससे भारतीयों की इतिहास विषयक संकल्पना पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। इस ग्रंथ के अनुसार ऐसी प्राचीन रुचिकर कथा जिससे धर्म, अर्थ काम और मोक्ष की शिक्षा मिल सके 'इतिहास' कहलाती है।
⇒ इतिहासकार प्राचीन भारतीय इतिहास को तीन भागों में बाँटते हैं।
- वह काल जिसके लिए कोई लिखित साधन उपलब्ध नहीं है, जिसमें मानव का जीवन अपेक्षाकृत पूर्णतया सभ्य नहीं था, 'प्रागैतिहासिक काल' कहलाता है ।
- इतिहासकार उस काल को 'ऐतिहासिक काल' की संज्ञा देते हैं। जिसके लिए लिखित साधन उपलब्ध हैं और जिसमें मानव सभ्य बन गया था।
- प्राचीन भारत के इतिहास में एक ऐसा भी समय था जिसके लिए लेखन कला के प्रमाण तो हैं किंतु या तो वे अपुष्ट हैं या फिर उनकी गूढ़ लिपि का अर्थ निकालना कठिन है। इस काल को भारतीय इतिहासकार 'आद्य इतिहास' कहते हैं।
- हड़प्पा की संस्कृति और वैदिककालीन संस्कृति की गणना 'आद्य इतिहास' में की जाती है ।
- इस आधार पर हड़प्पा संस्कृति से पूर्व का भारत का इतिहास 'प्रागैतिहास'
- और लगभग ई० पू० 600 के बाद का इतिहास 'इतिहास' कहलाता है ।
- प्रागैतिहासिक काल का इतिहास लिखते समय इतिहासकार को पूर्णत: पुरातात्विक साधनों पर निर्भर रहना पड़ता है।
- आद्य इतिहास लिखते समय वह साहित्यिक तथा पुरातात्विक दोनों प्रकार के साक्ष्यों का उपयोग करता है
- इतिहास लिखते समय वह इन दोनों साधनों के अतिरिक्त विदेशियों के वर्णनों का भी उपयोग • करता है।
Note - इतिहास लिखने के लिए पुरातात्विक स्रोत अधिक विश्वसनीय हैं, क्योंकि उनमें हेरफेर करने की बहुत कम संभावना है।
⇒ पुरातात्विक स्रोतों के अंतर्गत सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण स्रोत अभिलेख है –
- सबसे प्राचीन अभिलेख अशोक के हैं।
- केवल निजाम के राज्य में स्थित मास्की नामक स्थान और गुर्जरा (मध्य प्रदेश) से प्राप्त अभिलेखों में अशोक के नाम का सही उल्लेख है।
- अशोक के अन्य अभिलेखों में उसे देवताओं का प्रिय, प्रियदर्शी राजा कहा गया है। इन अभिलेखों से अशोक के धर्म और राजत्व के आदर्श पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है।
- अशोक के अधिकतर अभिलेख बाह्मी लिपि में है जिससे भारत की हिंदी, पंजाबी, बंगाली, गुजराती और मराठी, तमिल, तेलुगू, कन्नड़ आदि सभी भाषाओं की लिपियों का विकास ।
- केवल उत्तर-पश्चिमी भारत में मिले कुछ अभिलेख 'खरोष्ठी लिपि' में है ।
- खरोष्ठी लिपि फारसी लिपि की भाँति दाई से बाईं ओर लिखी जाती थी।
- बाह्मी लिपि को सबसे पहले 1837 ई० में जेम्स प्रिंसेप नामक विद्वान ने पढ़ा था ।
- अशोक के ही कुछ अभिलेख अरामइक लिपि में हैं।
⇒ अशोक के बाद के अभिलेखों को हम दो वर्गों में बाँट सकते हैं – सरकारी अभिलेख और निजी अभिलेख
सरकारी अभिलेख या तो राजकवियों द्वारा लिखित प्रशस्तियाँ हैं या भूमि-अनुदान-पत्र | प्रशस्तियों का प्रसिद्ध उदाहरण समुद्रगुप्त का प्रयाग अभिलेख है जो अशोक स्तंभ पर उत्कीर्ण है। इसमें समद्रगुप्त की विजयों और नीतियों का पूरा विवेचन मिलता है।
भारतीय इतिहास के कुछ महत्त्वपूर्ण राजा एवं उनसे संबद्ध अभिलेख हैं –
- राजा भोज – ग्वालियर प्रशस्ति,
- कलिंगराज खारवेल – हाथीगुंफा अभिलेख,
- गौतमी बलश्री – नासिक अभिलेख,
- रुद्रदामन – गिरनार शिलालेख,
- स्कंदगुप्त – भितरी स्तंभ लेख और जूनागढ़ शिलालेख,
- बंगाल का शासक विजयसेन – देवपाड़ा अभिलेख और चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय - ऐहोल अभिलेख ।
↪ निजी अभिलेख बहुधा मंदिरों में या मूर्तियों पर उत्कीर्ण हैं ।
↪ गुप्त एवं गुप्तोत्तर काल के अधिकतर अभिलेख संस्कृत में हैं और उनमें खासकर ब्राह्मण धर्म का उल्लेख है
↪ पातंजलि के महाभाष्य से ज्ञात होता है कि पुष्पमित्र शुंग ने अश्वमेघ यज्ञ किए थे। उसी के वंशज धनदेव के अयोध्या अभिलेख से इस तथ्य की पुष्टि होती है।
↪ एशिया माइनर में बोगजकोई नामक स्थान पर लगभग 1400 ई० पू० का संधिपत्र अभिलेख मिला है।
↪ पृथ्वी को भूवैज्ञानिक समय सारणी को महाकल्पों में विभाजित किया जाता है। प्रत्येक महाकल्प अनेक कल्पों में विभाजित है और फिर प्रत्येक कल्प को अनेक युगों में बाँटा जाता है।
↪ भूवैज्ञानिक इतिहास में पृथ्वी के अंतिम महाकल्प को नूतनजीव महाकल्प कहा जाता है
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