से प्राप्त अवशेषों का अध्ययन ही है। हाल फिलहाल के सालों में, 'शिकार' शब्द विद्वानों के बहस का विषय बना हुआ है। अब अधिकांशत: यह मत दिया जाने लगा है कि आदिकालीन होमिनिड अपमार्जन या रसदखोरी (Scavanging or Forgaining) के द्वारा उन जानवरों की लाशों से मांस-मज्जा खुरच कर निकालने लगे जो जानवर अपने आप मर जाते हैं अथवा किन्हीं दूसरे हिंसक जानवरों द्वारा मार दिए जाते थे। इस बात की भी संभावना अभिव्यक्त की जा सकती है कि पूर्व होमिनिड समूह के मानव चूहे, छुटुंदर जैसे कृतकों, पक्षियों, सरीसृपों और कीड़ों-मकोड़ों का भी उपभोग करते थे। शिकार संभवत: बाद में प्रारम्भ हुआ यही 5 लाख वर्ष पूर्व। दक्षिणी इंगलैण्ड के बॉक्सग्रोव एवं जर्मनी में शोनिंजन में मानवों द्वारा जानवरों का शिकार क्रमश: पाँच एवं चार लाख वर्ष प्राचीनहै। मछली का शिकार भी मानव के भोजन प्राप्ति का एक तरीका था। कई खोज स्थलों से मछली में
की हड्डियाँ मिलने से जानकारी प्राप्त हुई है। चेक गणराज्य में दोलनी वेस्तोनाइस से इस बात का य
साक्ष्य उपलब्ध हुआ है कि लगभग 35,000 वर्ष पहले मानवों के द्वारा पतझड़ तथा बसंत के मौसम
में रेन्डियर और घोड़ों का शिकार किया जाता था। खाद्य पदार्थों को एकत्रित करने में स्त्री-पुरुष की सम्मिलित भूमिका के बारे में कोई ठोस जानकारी प्राप्त नहीं है।
Q.6. पाषाणकाल की विशेषताएँ लिखें।
Ans. प्राक् इतिहास को तीन कालों में विभाजित किया जाता है - पुरापाषाणकाल, (a) पुरापाषाण काल - मानव सभ्यता की उत्पत्ति एवं विकास की कहानी रहस्यपूर्ण है। मानव को अपनी प्रारम्भिक स्थिति (आदिम युग की स्थिति) से आज की अत्यंत विकसित सभ्यता तक पहुँचने में करोड़ों-लाखों वर्ष लगे जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती है। मानव की अत्यंत रेंगना, कताई-बुनाई के कार्य से लोग अवगत हो चुके थे। खाद्यान्नों को सुरक्षित रखने हेतु मिट्टी के भांडे और बरतन बनाए जाने लगे।
(v) सामान्य जीवन : नवपाषाण युग में आर्थिक परिवर्तन होने लगे थे। उद्योग-धंधों एवं कृषि में आए क्रमिक विकास से सामाजिक जीवन प्रभावित हुआ। मानवों ने भोजन सामग्री को उत्पादक सामग्री बना लिया। स्थायी बस्तियाँ बनने लगी और क्रमश: कृषि एवं अन्य उद्योग-धंधों में विकास होने लगा। गृहों के निर्माण, विभिन्न प्रकार के उपयोगी उपकरणों- अग्नि के प्रयोग, कृषिकर्म आदि के विकास से जीवन में स्थायित्व आया और जीवन सुखद होने लगा। पहिया का निर्माण होने पर बैलगाड़ी का उपयोग भी प्रारम्भ हो गया। विभिन्न प्रकार के उद्योग-धंधों का व्यवसायीकरण भी होना शुरू हुआ।
जीवन धीरे-धीरे विकसित और जटिल होने लगा। पारस्परिक सहयोग और सहकारिता की भावना बढ़ी। आर्थिक उन्नति, परिवार की भावना और जनसंख्या की वृद्धि ने व्यक्तिगत संपत्ति को महत्त्व दिया। समाज का रूप पितृप्रधान था। लोग अब पहाड़ियों-कंदराओं से हटकर नदियों के मैदानी भाग में बसने लगे। इस प्रकार, भ्रमणशील जीवन का अंत हो गया। गाँवों का निर्माण होने लगा। कृषि, अन्नसंचय, पशुपालन, निवासगृह, परिवार आदि की भावना से व्यवस्थित समाज का निर्माण हुआ।
गुल स्थान : नवपाषाण युग अपेक्षाकृत अधिक विकसित संस्कृति थी। कुछ स्थानविशेष से प्रभावित अंतर के साथ प्रायः संपूर्ण भारत में यह संस्कृति थी। बुर्जहोम (कश्मीर), किली मुहम्मद (क्वेटा पाकिस्तान), राना घुडई (ब्लूचिस्तान), चिराँद (बिहार), मास्की, ब्रह्मगिरि, हलुर, संगनकल्लू (कर्नाटक), कालीबंगन (राजस्थान), उतनूर (आंध्र प्रदेश), पैयामपल्ली (तमिलनाडु) आदि में इस संस्कृति के चिन्ह प्राप्त हुए हैं।
Q.7. मानव के आविर्भाव को रेखांकित कीजिए। (Evaluate the origin of Human being.)
Ans. जब से मनुष्य को प्राणिजगत् में अपने पृथक् अस्तित्व और वैशिष्ट्य का बोध हुआ, वह अपनी उत्पत्ति की समस्या पर विचार करता रहा है। विश्व के लगभग सभी धर्मों में प्राणियों के आविर्भाव और मनुष्य की उत्पत्ति पर प्रकाश डालनेवाली कथाएँ उपलब्ध होती हैं। इनमें सामान्यतः यह मत प्रतिपादित किया गया है कि ईश्वर ने सब प्रकार के प्राणियों की समकालीन परन्तु पृथक-पृथक विकसित रूपों में सृष्टि की थी, बाद में उनकी वंशानुवंश परम्परा चलती रही। इस सिद्धांत के अनुसार मनुष्य अन्य प्राणियों से सर्वथा पृथक और श्रेष्ठ है और उसकी शारीरिक संरचना और मानसिक दशा में उसके आविर्भाव से लेकर अब तक कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। परन्तु आधुनिक काल में हुई वैज्ञानिक गवेषणाओं ने इस विश्वास को निराधार और सत्य के सर्वथा प्रतिकूल सिद्ध कर दिया है। आजकल नृवंशशास्त्री विकासवाद (थ्योरी ऑफ एनील्यूएशन) के अनुसार यह विश्वास प्रकट करते हैं कि मनुष्य और नाना पशुओं तथा पौधों में एक ही प्राण की धारा प्रवाहित और विकसित हुई है। इस दृष्टि के अनुसार सुदूरभूत में, अब से लगभग 180 करोड़ वर्ष पूर्व, पृथ्वी पर होनेवाली रासायनिक और भौतिक क्रियाओं के फलस्वरूप भौतिक तत्व से जीवतत्व स्वयं ही अस्तित्व में आ गया था। प्रारम्भ में जीवन का प्रादुर्भाव धूप से प्रकाशित छिछले जल में लसलसी झिल्ली के समान लगनेवाले प्राणियों के रूप में हुआ, कालान्तर में परिस्थितियों में परिवर्तन होने के कारण उसकी शरीर-संरचना सरल से जटिलतर होती चली गई जिससे विभिन्न प्रकार के प्राणी अस्तित्व में आए।
जीवशास्त्रियों ने जीवन के विकास को कई युगों में विभाजित किया है। पहला युग, जिसमें ऐसे सूक्ष्म प्राणी उद्भुत हुए जिनका अस्तित्व केवल अनुमान पर आधारित है, प्रजीव युग (आयोजोइक एज) कहलाता है। इसके बाद प्रारम्भिक-जीव युग (प्रोटेरोजोइक एज) आता है, जिसमें लसलसी झिल्ली और काई के सदृश प्राणी और पौधे उत्पन्न हुए। यह युग 120 करोड़ वर्ष
- पूर्व से 55 करोड़ वर्ष पूर्व तक चला। प्राचीन-जीव युग (पेलियोजोइक एज) में, जिसका उत्तरार्द्ध प्राथमिक युग (प्राइमरी पीरियड) कहलाता है, पहले विशालकाय जलबिच्छू इत्यादि उत्पन्न हुए और फिर मछलियाँ। ये संसार के रीढ़ की हड्डीवाले प्राचीनतम प्राणी थे। अभी तक पृथ्वी पर प्रादुर्भूत होनेवाले सभी प्राणी जलचर थे। मस्त्य-कल्प (एज ऑव फिशिज) के अन्त में अर्द्ध-जलचर-अर्द्ध-थलचर अर्थात् उभयचर प्राणी, जैसे मेंढक और केंकड़े आदि तथा दलदली भूमि में उपन्न हो सकनेवाले पौधे अस्तित्व में आए। द्वितीयक (सेकेण्डरी पीरियड) अथवा मध्य-जीव युग (मेसोजोइक एज) में पृथ्वी की जलवायु में परिवर्तन होने के कारण सर्वथा नए प्रकार के प्राणी उद्भूत हुए। इनमें सरीसृपों (रेप्टाइल्स) का अत्यधिक बाहुल्य था, इसलिए इस युग को सरीसृप-कल्प भी कहते हैं। यह युग अब से लगभग छ: करोड़ वर्ष पूर्व तक चला।
नव-जीव युग : मध्य-जीव युग के पश्चात् जीव-विकास के इतिहास में नव-जीव युग (केनोजोइक एज) आता है जो अब तक चल रहा है। इसमें पृथ्वी जंगलों और नये प्रकार के जीवों से परिपूर्ण हो जाती है। इनमें पक्षी और स्तनपायी प्राणी प्रमुख है। इन्हीं स्तनपायी प्राणियों के नर-वानर (प्राइमेट) परिवार के परिष्कार के द्वारा मनुष्य का आविर्भाव हुआ। इसलिए मनुष्य के उद्भव और विकास के दृष्टिकोण से नव-जीव युग का अत्यधिक महत्व है।
नव-जीव युग को दो भागों में विभाजित किया जाता है, तृतीयक और चतुर्थक। तृतीयक युग (टर्शियरी पीरियड) के अन्त में, जो अब से लगभग दस लाख वर्ष पूर्व समाप्त हुआ, सम्भवत: मानवसम प्राणी (होमिनिड) अस्तित्व में आने लगे थे। चतुर्थक युग (कार्टनरी पीरियड) के प्रारम्भ से उनका अस्तित्व निर्विवाद रूप से सिद्ध किया जा सकता है। इन्हीं मानवसम प्राणियों से कालान्तर में पूर्णमानवों (होमो सेपियन्स) की उत्पत्ति हुई।
प्लीस्टोसीन काल और हिम युग : चतुर्थक युग को भूगर्भवेत्ता दो भागों में विभाजित करते हैं-प्रातिनूतन अथवा प्लीस्टोसीन काल तथा सर्वनूतन अथवा होलीसीन काल। प्लीस्टोसीन काल में, जो अब से लगभग बारह सहस्र वर्ष पूर्व तक चला, पृथ्वी की जलवायु में बार-बार घोर परिवर्तन हुए। इन परिवर्तनों का कारण उत्तरी प्रदेशों में चार बार भारी हिमपात होना था। उन युगों को जब कि पृथ्वी की जलवायु हिमपात के कारण अत्यन्त शीतल हो जाती थी हिम युग (आइस एज) और इनके बीच-बीच में आनेवाले गर्म जलवायुवाले युगों को अन्तर्हिम युग (इन्टर ग्लेशियल एज) कहा जाता है। पहला हिम युग अब से लगभग छः लाख वर्ष पूर्व आया था और अन्तिम हिम युग लगभग पचास सहस्र वर्ष पूर्व अपने चरम शिखर पर था। जलवायु में होनेवाले इन परिवर्तनों के कारण मनुष्य के लिए स्वयं को नई परिस्थितियों के अनुसार ढालना आवश्यक हो गया। इससे उसकी शरीर-संरचना, रहन-सहन और मानसिक दशा में अनेक परिवर्तन हुए, जिनके कारण वह स्वयं को नर-वानर परिवार के अन्य प्राणियों से पृथक् कर सका और कालान्तर में प्रकृति पर विजय प्राप्त कर सका।
मनुष्य का आदि पूर्वज : 'लुप्त कड़ी' की समस्या : जिस प्रकार नर-वानर परिवार के किसी सदस्य के परिष्कार के द्वारा मनुष्य का आविर्भाव हुआ, उसी प्रकार आजकल मिलनेवाले हाथी, घोड़े, गाय, ऊँट आदि सभे मानवेतर प्राणी अपने-अपने वर्ग के प्राचीनतर प्राणियों से उद्भुत थे। विकासवादियों ने ऐसे बहुत से प्राणियों का क्रमिक विकास सिद्ध करने योग्य साक्ष्य संगृहीत कर लिए हैं। परन्तु अभाग्यवश मानव के विकास की क्रमिक अवस्थाओं का पूर्ण ज्ञान अभी तक नहीं हो पाया है। साधारणतः यह धारणा प्रचलित है कि विकासवादी मनुष्य का आदि पूर्वज बन्दर है। विकासवादी मनुष्य का विकास बन्दर से नहीं वरन् किसी ऐसे 'एन्थ्रोपॉएड एप' से हुआ है जो गोरिल्ला, चिम्पांजी और औरंगुटांग से मिलता-जुलता होने पर भी उनसे कुछ भिन्न था। सम्भवतः यह प्राणी सीधा खड़ा होकर चलता था और भूमि पर रहता था। पेड़ों पर वह आसानी से चढ़ लेता होगा। उसका मस्तिष्क-कोष ज्ञात एन्थ्रोपाएड एपों से बड़ा, कपाल कुछ गुम्बदाकार और नाक का अग्रभाग चपटा होता होगा। मनुष्य का यह आदि पूर्वज कौन सा प्राणी था और सर्वप्रथम कहाँ
आविर्भूत हुआ, इसके विषय में कुछ कहना कठिन है। इसलिए इस अज्ञात प्राणी को मानव-विकास की लुप्त कड़ी (मिसिंग लिंक) कहा जाता है। इस कड़ी की खोज करते-करते विद्वानों ने जावा, चीन, यूरोप तथा अफ्रीका से प्राचीन मानसम प्राणियों के अनेक प्रस्तरित (फोसिलाइज्ड) अस्थि अवशेष खोल निकाले हैं। वस्तुतः मानव संस्कृति के इतिहास का प्रथम अध्याय लिखनेवाले मानव 'पूर्णमानव' न होकर यही मानवसम प्राणी था।
- मनुष्य की प्रकृति और अन्य प्राणियों पर सफलता के कारण : प्रारम्भ में जब मनुष्य पृथ्वी पर प्रकट हुआ तो उसमें और अन्रू चतुष्पदों में बहुत कम अन्तर था। लेकिन उसके पास हाथ, बाक्-शक्ति और विचार-शक्ति, ये तीन साधन ऐसे थे जिनकी सहायता से वह अन्य प्राणियों और प्रकृति पर विजय प्राप्त कर सका। हाथ की सहायता से वह विभिन्न प्रकार के उपकरणों का निर्माण कर सकता था, जब कि अन्य प्राणियों को अपने पंजे, चोंच और नाखून इत्यादि पर निर्भर रहना पड़ता था। इसका आशय यह नहीं है कि मनुष्य आदिकाल से ही हथियारों का निर्माण करना जानता था। प्रारम्भ में वह निश्चित रूप से वृक्षों की डालों और नैसर्गिक प्रस्तर-खण्डों का हथियारों के रूप में प्रयोग करता था। धीरे-धीरे अनुभव बढ़ने पर उसने हथियार बनाना सीखा। आदि मानव के जीवन और रहन-सहन के विषय में अन्य तथ्य ज्ञात न होने के कारण उसके उपकरण ही उसकी यान्त्रिक और औद्योगिक प्रगति के प्रतीक तथा प्रागैतिहासिक और पुरा-ऐतिहासिक युगों में, जिनका अध्ययन करने के लिए हमारे पास लिखित साक्ष्य उपलब्ध नहीं है, इस प्रगति के अध्ययन का एक मात्र साधन हैं।
मानव सभ्यता के युग : मनुष्य ने अपने हथियारों के निर्माणों में जिन द्रव्यों का उपयोग किया, उनके आधार पर पुरातत्ववेत्ताओं ने सभ्यता के इतिहास को दो भागों में विभाजित किया है-पाषाण काल और धातु काल। इन युगों को अध्ययन की सुविधा के लिए लघुतर युगों में बाँटा जा सकता है। पाषाणं काल को स्थूल रूप से तीन भागों में बाँटा जाता है-पूर्व-पाषाण काल (पेलियोलिथिक एज), मध्य-पाषाण काल (मेसोलिथिक एज) तथा नव-पाषाण काल (नियोलिथिक एज)। पूर्व-पाषाण काल को पुनः प्रारम्भिक-पूर्व-पाषाण काल, मध्य-पूर्व-पाषाण काल और परवर्ती-पूर्व-पाषाण काल इन तीन युगों में विभाजित किया जाता है।
Q.8. मध्य-पूर्व-पाषाण काल की नियण्डर्थल जाति की विशेषता बताइये।
Ans. मध्य-पूर्व-पाषाण काल में यूरोप पर नियण्डर्थल जाति का आधिपत्य स्थापित हो जाता है। नियण्डर्थल मानव के अवशेष सर्वप्रथम 1848 ई. में जिब्राल्टर की एक चट्टान के नीचे मिले थे। उस समय उनकी ओर किसी का ध्यान नहीं गया। तत्पश्चात् 1856 ई० में जर्मनी के डुसेल्डोर्फ प्रदेश के नियण्डर्थल नामक स्थान पर एक अस्थिपंजर के कुछ अंश मिले। इस स्थान के नाम पर इन अस्थियों के मानव को नियण्डर्थल कहा गया। 19वीं शताब्दी ई. के उत्तरार्द्ध में यूरोप के बेल्जियम, फ्रांस, स्पेन, इटली, यूगोस्लाविया और क्रीमिया इत्यादि देशों से इस मानव के अनेक अस्थिपंजर खोज निकाले गये।
नियण्डर्थल जाति की विशेषताएँ : नियण्डर्थल मानव की शरीर-संरचना आधुनिक 'पूर्णमानव' से बहुत कुछ मिलती-जुलती होने पर भी कुछ बातों में भिन्न थी। इस मानव का कदम छोटा-5 फीट से 5 फीट 4 इंच तक होता था। उसका सिर बड़ा, नाक चौड़ी परन्तु नुकीली, कन्धे चौड़े और माथा पीछे की ओर ढलका हुआ होता था। उसका अँगूठा मनुष्य के अंगूठे के समान लचीला नहीं होता था। वह न तो गर्दन सीधी करके खड़ा हो सकता था और न सत्वर गति से चल सकता था। वह सम्भवत: बोल सकता था, परन्तु भाषा का विकास नहीं कर पाया था। अतः सब से कुछ वर्ष पूर्व तक विद्वानों धारणा थी कि नियण्डर्थल जाति एक अर्द्धमानव जाति थी जिसको पराजित करके पूर्ण मानवों ने परवर्ती-पूर्व-पाषाण काल में यूरोप पर अधिकार किया। परन्तु अब यूरोप में ही स्टीनहीम, स्वान्स्कोम्ब तथा फीतेशेवाद स्थानों से प्रारम्भिक-पूर्व-पाषाणकालीन ‘पूर्णमानवों' के अवशेष मिल गये हैं। इससे यह लगने लगा है कि स्वयं नियण्डर्थल भी पूर्णमानव
[3:04 pm, 28/02/2022] @Raj: जाति की एक शाखा थे। सम्भवतः जब मध्य पूर्व पाषाण का में यूरोप में चतुर्थ हिमयुग आया, वे शेष 'पूर्णमानवों' से अलग पड़ गये, जिससे उनकी शरीर संरचना में कुछ परिवर्तन आ गया। इस दृष्टि से देखने पर नियण्डर्थलों को मूलतः ‘पूर्णमानव' परिवार का सदस्य मानना होगा।
मूस्टेरियन-उपकरण : नियण्डर्थल जाति के पाषाण हथियार और अन्य उपकरण ल- मूस्टियर स्थान में प्रचूर मात्रा में पाये गये हैं, इसलिए उन्हें 'मूस्टैरियन' नाम दिया गया है। ये हथियार फ्रांस के अतिरिक्त यूरोप के अन्य बहुत से देशों, पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ्रीका में भी मिले हैं। ये मुख्यतः फलक हथियार हैं। मुष्टिछूरे का पुराने ढंग का होने के कारण, बहुत कम प्रयोग हुआ है।
> गुफाओं का प्रयोग और अग्नि पर नियंत्रण : चतुर्थ हिमयुग में शीत से बचने के लिए नियण्डर्थल गुफाओं में रहते थे। इस समय मैमथ, भालू और गैंडे जैसे भयंकर पशु भी शीत से बचने के लिए गुफाओं पर अधिकार करने का प्रयास कर रहे थे। उनको गुफाओं से दूर रखने में नियण्डर्थलों को अग्नि से बहुत सहायता मिली। आग से जंगली पशु डरते थे इसलिए गुफाओं के द्वार पर इसे प्रज्वलित रखकर उन्हें दूर रखा जा सकता था। इसकी सहायता से वे चतुर्थं हिम युग के भयंकर शीत से बच सकते थे और अंधेरे स्थानों को प्रकाशित कर सकते थे। अग्नि की सहायता से उनका भोजन अधिक सुस्वादु होने लगा। यह भी स्मरण रखना चाहिये कि अग्नि पर ही भविष्य में सभ्यता की प्रगति निर्भर थी। अग्नि पर नियन्त्रण किये बिना न तो मनुष्य धातुओं को पिघला सकता था और न उनसे उपकरण बना सकता ज्ञा। इन तथ्यों से स्पष्ट है कि नियण्डर्थलों ने अग्नि पर नियंत्रण स्थापित करके मानव सभ्यता की प्रगति में महत्वपूर्ण योग दिया।
भोजन, शिकार और सामूहिक जीवन : नियण्डर्थल मानव पूर्णरूपेण प्रकृतिजीवी थे। उनका भोजन या तो जंगली फल थे जिनको वे तोड़कर एकत्र करते थे अथवा वे पशु थे जिनका वे अकेले अथवा सामूहिक रूप से शिकार करते थे। वे विशालकाय पशुओं का शिकार करते थे, इससे स्पष्ट है कि वे समूहों में रहते होंगे। समूह में अधिक संख्या प्रकृत्या स्त्रियों और बच्चों की होती थी। अगर आधुनिक आदिम जातियों के सामाजिक संगठन के आधार पर कुछ कल्पना की जाय तो कहा जा सकता है कि प्रत्येक समूह का एक मुखिया होता था। जब समूह का कोई लड़का वयस्क हो जाता था तो वह मुख्यिा के पद को छीनने का प्रयास करता था। अगर मुखिया इस संघर्ष में जीतता था तो वह उस युवक को समूह से निकाल देता था और यदि युवक जीतता था तो वह मुखिया बन जाता था और समूह के सब सदस्यों पर उसका अधिकार हो जाता था।
मृतक-संस्कार : अपने अस्तित्व के अन्तिम चरण में नियण्डर्थलों ने अपने मृतकों को कुछ आदर और सम्मान के साथ दफनाना प्रारम्भ कर दिया था। वे उनको विशेष रूप से खोदी गई समाधियों में गाड़ते थे। बहुधा ये समाधियाँ रहने की गुफाओं में उस स्थान के समीप बनाई जाी थीं जहाँ वे आग जलाते थे। वे अपने मृतकों को विशेष मुद्राओं में लिटाते थे तथा उनके साथ औजार और खाद्य सामग्री रख देते थे। सम्भवतः उनका विचार था कि मरने के बाद भी व्यक्ति का अस्तित्व किसी-न-किसी रूप में बना रहता है और उस समय भी उसे इस जीवन में प्रयुक्त होनेवाली खाद्य-सामग्री और हथियारों की आवश्यकता पड़ती है।
Q.9. परवर्ती - पूर्व-पाषाण काल की विशेषता बताइये।
Ans. लगभग 35,000 ई० पू० के लगभग नियण्डर्थल जाति का एकाएक अन्त हो जाता है और उसका स्थान ‘पूर्णमानव जातियाँ' लेने लगती हैं। ये परवर्ती-पूर्व-पाषाण काल में यूरोप, उत्तरी और पूर्वी अफ्रीका तथा एशिया के विभिन्न प्रदेशों में एक साथ दिखाई देती हैं, इसलिये यह कहना कठिन है कि इनका सर्वप्रथम आविर्भाव कहाँ हुआ। जिस समय इन्होंने नियण्डर्थलों को पराजित करके यूरोप पर अधिकार स्थापित किया ये कई शाखाओं में विभाजित
थीं। नये उपकरण : परवर्ती-पूर्व-पाषाण काल में यूरोप में जो नई जातियाँ आई वे नियण्डर्थलों से अधिक प्रबुद्ध थीं। उनका जीवन भी पूर्वगामी जातियों से अधिक जटिल था। इसलिए उन्होंने हथियार बनाने के लिए पाषाण के साथ हाथी दाँत, लींग और अस्थियों का भी प्रचुरता से प्रयोग किया है और पाषाणोपकरण बनाने में (आन्तरिक, कोर) और फलक के स्थान पर ब्लेडों (अत्यन्त पतले फलकों) की प्रधानता दी। पुरातत्ववेत्ताओं ने उनकी संस्कृतियों को तीन युगों में विभाजित किया है-ऑरिन्येशियन, सौल्टयूट्रियन तथा मैग्डेलिनियन। इनमें मैग्डेलेनियन संस्कृति से सम्बद्ध उपकरण सर्वोत्तम हैं। इनमें बहुतों पर ऐसी आकृतियाँ उत्कीर्ण मिलती हैं जो कलात्मक दृष्टि से अत्यन्त उच्चकोटि की हैं। ये पूर्ण मानवों की सौन्दर्य भावना के समुन्नत होने का प्रमाण है।
आवास, वस्त्र और भोजन : जिस समय ‘पूर्णमानवों' ने नियण्डर्थलों को पराजित करके यूरोप पर अधिकार स्थापित किया, वहाँ की जलवायु पहले से अधिक उष्ण हो गई थी। इसलिए उनके लिए खुले आकाश के नीचे रहना इतना कठिन नहीं था। फिर भी चतुर्थ हिमयुग के शीत का अभी पूर्णरूपेण अन्त नहीं हुआ था इसलिए वे गुफाओं का, जहाँ वे उपलब्ध थीं, प्रयोग करने से नहीं चूकते थे। जहाँ गुफाएँ उपलब्ध नहीं थीं वहाँ वे शीत से बचने के लिए खाल के तम्बू बनाते थे या भूमि में गड्ढे खोदकर उन पर खाल तान देते थे। सम्भवत: वे रहने के लिए झोपड़ियों का निर्माण करना भी जानते थे। लकड़ी कम उपलब्ध थी, इसलिए वे अपने घरों को गर्म रखने के लिए अस्थियाँ जलाते थे। उनकी बनाई हुई सुइयों के अस्तित्व से पता चलता है कि सम्भवत: वे खाल को सीकर वस्त्र का रूप देना भी जानते थे।
आर्थिक जीवन : आर्थिक दृष्टि से परवर्ती-पूर्व-पाषाणकालीन मानव अपने पूर्वजों के समान कृषि और पशुपालन से अपरिचित होने के कारण शिकार और जंगली फलों पर अवलम्बित था। लेकिन धनुष-बाण और मछली पकड़ने के लिए हार्पून जैसे नये हथियारों के आविष्कार के कारण वह इस कार्य में अधिक सफल होने लगा था। शिकार में अब वह चित्रों के माध्यम से जादू की सहायता लेने का भी प्रयास करने लगा था, क्योंकि इस काल के बहुत से भित्ति-चित्र, जिनमें अधिकांशतः शिकार से संबंधित हैं, तत्कालीन गुफाओं में प्राप्त होते हैं।
स्थापत्य कला : परवर्ती-पूर्व-पाषाणकालीन मानवों की कलात्मक प्रतिभा बहुमुखी थी। उन्होंने न केवल भित्ति-चित्र बनाये वरन् अस्थियों और सींगों से निर्मित औजारों और हथियारों पर नक्काशी करके सुन्दर आकृतियाँ और हाथी दाँत तथा मिट्टी की मूर्तियाँ भी बनाई। कुछ नारी-मूर्तियों में, जिनको पुरातत्वशास्त्री 'रति' या ‘बीनस' की मूर्तियाँ कहते हैं, सिर बहुत छोटे दिखाये गये हैं, बालों के स्थान पर कुछ लकीरें खींच दी गई हैं परन्तु पेट, नितम्ब और स्तनों को अपेक्षाकृत बड़ा दिखाया गया है। ऐसा लगता है कि ये मूर्तियाँ मातृ-शक्ति के किसी रूप से सम्बद्ध थीं।
चित्रकला और धार्मिक विश्वास : परवर्ती-पूर्व-पाषाण काल के प्रारम्भिक चित्र बहुत सुन्दर नहीं है। ये आजकल के बाल-चित्रों के समान लगते हैं। इनमें बहुधा चतुष्पद पशुओं के केवल दो पैर-एक अगला एक पिछला-दिखाये गये हैं। ऐसा लगता है मानो पशुओं की छायाओं को छोटा करके उनके चारों ओर रेखाएँ खींच दी गई है। परन्तु मैग्डेलेनियन-युग तक पहुँचते-पहुँचते उनके चित्र तकनीक और सौन्दर्य दोनों की दृष्टि से इतने उत्कृष्ट हो जाते हैं कि आधुनिक कलाकारों के लिए भी उनका निर्माता होना गौरव का कारण हो सकता है। उनकी चित्रकला के सर्वोत्तम नमूने 1879 ई. में उत्तरी स्पेन में अल्तमीरा स्थान की प्रागैतिहासिक गुफाओं की छतों और दीवारों पर प्राप्त हुए हैं। इनमें चारों रंगों से बाया गया जंगली भैंसे का एक चित्र अत्यन्त प्रसिद्ध है। यह मैग्डेलेनियन-युग की ही नहीं समस्त प्रागैतिहासिक काल की चित्रकला का सर्वोत्तम नमूना है। ये चित्र बहुधा ऐसे स्थानों पर प्राप्त होते हैं, जहाँ दिन में भी घोर अंधकार रहता था और आजकल भी प्रकाश का प्रबन्ध करने में कठिनाई होती है। कुछ चित्र तो ऐसे स्थानों पर बनाये गये हैं जहाँ कलाकार को बड़ी कष्टप्रद मुद्रा में बैठना पड़ा होगा। स्पष्ट है कि गुफाओं को सजाने अथवा अपनी सौन्दर्यानुभूति को अभिव्यक्ति देने के लिये इतने कष्ट उठाने की आवश्यकता न थी। इसलिए फ्रेजर और बर्किट इत्यादि विद्वानों ने यह मत रखा है कि ये चित्र उनकी खाद्य-समस्या
से सम्बद्ध हैं। सम्भवतः परवर्ती- पूर्व-पाषाणकालीन मानवों का विचार था कि किसी पशु का शिकार करने के पहले यदि उसकी आकृति का शिकार कर लिया जाय तो वास्तविक शिकार में निश्चित रूप से सफलता मिलती है, क्योंकि उस पशु की आत्मा चित्र में पहले ही बन्दी हो जाती है। इसलिए किसी बड़े पशु का शिकार करने के पहले उनके चित्रकार उस पशु की आकृति बनाते होंगे, और उसका 'दर्शन' अपने साथी शिकारियों को कराते होंगे। इस दृष्टि से देखने पर कहा जा सकता है कि वे स्थान जहाँ ये चित्र बनाए जाते थे एक प्रकार के मन्दिर थे और इन चित्रों को बनाने वाले कलाकार इन मन्दिरों के पुजारी। उन्हीं के हाथ में वह जादू था जिसके द्वारा पशुओं की आत्मा को पकड़कर समूह के लिये खाद्य सामग्री सुलभ की जा सकती थी। स्पष्ट है कि ऐसे व्यक्तियों का समूह में अत्यधिक प्रभाव रहता होगा, परलोक के विषय में उनके विचार नियण्डर्थल युग से अधिक विकसित हो गये थे, क्योंकि वे न केवल अपने मुर्दो को दफनाते थे वरन उनके साथ आभूषण, हथियार और खाद्य-पदार्थ भी रख देते थे। मृतकों के शरीर को वे लाल रंग के रंगते थे। लाल रंग रक्त का प्रतीक है। सम्भवतः उनकी यह धारणा थी कि मृत शरीर को लाल रंग से रंग देने पर जीवन की लालिमा पुनः लौट आती है।
ज्ञान-विज्ञान : परवर्ती-पूर्व-पाषाणकालीन मानवों ने अप्रत्यक्ष रूप से बहुत-सा ज्ञान अर्जित किया और भावी ज्ञान-विज्ञान की नींव डाली। उदाहरणार्थ, पशुओं के चित्र बनाने के लिए उन्होंने उनकी शरीर-संरचना का गहन अध्ययन किया। दूसरे, उन्होंने खाद्याखाद्य-पदार्थों के संबंध में नियण्डर्थलों के ज्ञान को बढ़ाया। कौन पदार्थ खाने योग्य हैं, कौन पदार्थ विषाक्त हैं, खाद्य-पदार्थ कहाँ मिलते हैं, किस ऋतु में प्राप् होते हैं तथा किस पशु को कहाँ और कब पाया जा सकता है-ये सब बात उनका ज्ञान-विज्ञान थीं। इन्हीं से कालान्तर में वनस्पति-शास्त्र, प्राणी-शास्त्र और ऋतु-शास्त्र इत्यादि विशिष्ट विद्याओं का जन्म हुआ।
परवर्ती-पूर्व पाषाणकालीन मानवों के समान मध्य-पाषाणकालीन मानव का प्रमुख भोज्य-पदार्थ शिकार से प्राप्त मांस था। परन्तु इस काल में शिकार किये जानेवाले पशुओं और शिकार की प्रणाली में पूर्णरूपेण परिवर्तन हो जाता है। मध्य-पाषाण काल में विशालकाय पशुओं की संख्या कम होती जा रही थी, इसलिये मनुष्य को बड़े-बड़े समूहों में रहने की आवश्यकता नहीं रही। इस काल के पशुओं, जैसे हिरण, खरगोश और बारहसिंहा इत्यादि का शिकार अकेले या छोटे-छोटे समूहों में करने में आसानी होती थी। इसलिये मध्य-पाषाण काल में मनुष्य हमें यूरोप के विभिन्न भागों में छोटे-छोटे समूहों में बिखरा दिखाई देता है। इस काल में मनुष्य वे एक नई बात और सीखी वे और वह थी शिकार करने में कुत्ते का सहयोग प्राप्त करना। कुत्ता मनुष्य का सबसे पुराना पशु- -मित्र है। यह पहला पशु है जिसे मनुष्य पालतू बनाने में समर्थ होता है।
Q.10. ताम्र-प्रस्तर काल की विशेषता बताइये।
Ans. नये आविष्कारों की आवश्यकता : नव-पाषाण काल के अन्त तक मानव सभ्यता के अधिकांश आधार-स्तम्भों का निर्माण हो चुका था। मनुष्य ने कृषि-कर्म और पशुपालन के द्वारा प्रकृति को काफी सीमा तक अपने वश में कर लिया था और मकान, मृद्भाण्ड तथा वस्त्र इत्यादि के निर्माण की विधियों का आविष्कार कर लिया था। परन्तु इन सफलताओं से उसकी समस्याएँ स्थायी रूप से हल नहीं हो पाई। वह अभी तक हल, खाद, कृत्रिम सिंचाई और पहिये इत्यादि से सर्वथा अपरिचित था। इसलिए दो-तीन फसल के बाद जब भूमि शक्तिहीन हो जाती थी, उसे नये खेत तलाश करने पड़ते थे। इसी प्रकार पालित पशुओं की संख्या बढ़ने पर नये चरागाहों की आवश्यकता पड़ती थी। परन्तु भूमि का विस्तार सीमित है। इसलिये एक समय ऐसा आया जब नये खेत और चारागाह मिलने बन्द हो गये। दूसरे शब्दों में जनसंख्या की उदरपूर्ति की समस्या फिर सामने आई। इसके अतिरिक्त उस आदिम युग में अतिवृष्टि और अनावृष्टि जैसे प्राकृतिक संकट आने पर बाह्य सहायता के बिना अस्तित्व बनाये रखना प्रायः दुष्कर हो जाता था और यातायात के साधनों के अभाव में एक गाँव से दूसरे गाँव को माल भेजना असम्भव रहता था। इन कठिनाइयों
पर विजय प्राप्त करने के लिए मनुष्य ने हल, जुआ (योक), पालदार नाव, पहियेदार गाड़ी तथा कुम्हार का चाक इत्यादि अनेक वस्तुओं का आविष्कार किया। ये आविष्कार 5000 ई. पू. से 3000 ई० पू० के मध्य किये गये। पुरातात्विक दृष्टि से यह युग ताम्र के उत्पादन और उससे विविध प्रकार के उपकरण बनाने की विधियों की खोज का है जिनके कारण शनैः शनैः ताम्र उपकरण पाषाण उपकरणों का स्थान लेने लगते हैं। इसलिए पुरातत्ववेत्ता इस युग को ताम्र-प्रस्तर काल (चेल्कोलिथिक् एज) अथवा ताम्र काल (कॉपर एज) की संज्ञा देते हैं।
> ताम्रकालीन संस्कृति का उदय-स्थल : ताम्र काल का प्रादुर्भाव उस विशाल भूभाग में हुआ जो मिस्र और पूर्वी भूमध्यसागरीय प्रदेश से भारत में सिन्धु नदी की घाटी तक विस्तृत है। इसमें नील नदी की घाटी, ईजियन प्रदेश, एशिया माइनर, सीरिया, पेलेस्टाइन, असीरिया, बैबिलोनिया, ईरान, अफगानिस्तान तथा उत्तर-पश्चिमी भारत सम्मिलित हैं। यह प्रदेश अपेक्षाकृत शुष्क है, तथापि ऐतिहासिक युग के पूर्व यहाँ अब से अधिक वर्षा होती थी। इसका बहुत-सा भाग पर्वतों और रेगिस्तानों द्वारा घिरा हुआ है परन्तु बीच-बीच में नदियों की घाटियाँ और हरे-भरे नखलिस्तान हैं। यहीं पर नव-पाषाणकालीन ग्राम-सभ्यता का उदय हुआ था। ताम्रकालीन पुरातात्विक अवशेष भी सर्वप्रथम इन्हीं नखलिस्तानों और घाटियों में अवस्थित नव-पाषाणकालीन ग्रामों के ऊपरी स्तरों से प्राप्त होते हैं। ईरान तथा पश्चिमी एशिया के ताम्रकालीन स्थलों में सियाल्क, तैल हलफ, अलउबैद. तेप गावरा और जम्बेदनस्र तथा मिस्र के स्थलों में बदरी, अग्रसती तथा जरजेह प्रसिद्ध हैं।
ताम्र का उपकरण बनाने के लिए प्रयोग : ताम्र प्रयुक्त किया जाना मानव सभ्यता के इतिहास में क्रांतिकारी आविष्कार था। ताम्र एक लचीली धातु है। इसे न केवल पाषाण की तरह घिसा जा सकता है वरन् आसानी से मोड़ा और हथौड़े से पीटकर इच्छित रूप दिया सकता है। इसके उपकरणों में पत्थर के उपकरणों के समान कठोरता और तीक्ष्णता तो होती ही है, साथ ही स्थायित्व भी होता है। पकी मिट्टी और पाषाण से बने हथियारों को एक बार टूट जाने पर जोड़ा नहीं जा सकता परन्तु ताम्र के उपकरण न तो इस प्रकार टूटते हैं, और यदि खराब भी हो जाते हैं तो उन्हें गलाकर नये उपकरण बनाये जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त ताम्र को पिघलाया जा सकता है। अगर तरलावस्था में इसे किसी साँचे में डाल दिया जाय और फिर ठण्डा कर लिया जाय, तो यह उस साँचे का रूप धारण कर लेता है परन्तु इसकी कठोरता लौट आती है। ढालकर उपकरण बनाना सम्भव होने से ताम्र से कम-से-कम उतने प्रकार के उपकरण बन सकते हैं जितने प्रकार के साँचे उपलब्ध हों।
कृषि-कर्म सम्बन्धी आविष्कार : पशुओं से खाल, माँस और दूध इत्यादि की प्राप्ति मनुष्य नव-पाषाण काल में ही करने लगा था। अब उसने जुए (योक) का आविष्कार किया जिसमें बैलों को जोतकर हल खिंचवाया जा सकता था। स्वयं हल का आविष्कार कब हुआ यह कहना कठिन है। । इतना निश्चित है कि इसका आविष्कार 3000 ई० पू० से कई शताब्दी पहले हो गया था। अब प्रत्येक किसान को अपने घर में बैल रखने की व्यवस्था करनी पड़ी। इसके खाद के लिए गोबर उपलब्ध हने लगा। इससे भी उपज में वृद्धि हुई। ।
यातायात संबंधी आविष्कार : बैलों का हल खींचने में प्रयोग होने का एक अप्रत्यक्ष परन्तु अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रभाव यातायात पर पड़ा। जब मनुष्य ने बैलों को हल खींचते देखा तो उसे यह विचार आया कि बैल भार ढोने का काम भी कर सकते हैं। परन्तु सबसे पहला पशु, जिसे यह कार्य दिया गया, बैल न होकर गधा था। घोड़े का घुड़सवारी, गाड़ी खींचने और भार ढोने के लिए प्रयोग बहुत बाद में प्रारम्भ हुआ। यातायात में सबसे क्रांतिकारी आविष्कार पहिये का था, जिससे गाड़ियाँ अस्त्वि में आई। 3000 ई० पू० के लगभग दो चार पहियेवाली गाड़ियाँ पश्चिमी एशिया में प्रयुक्त हो रही थी। नाव बनाने की विधि का आविष्कार मनुष्य ने नव-पाषाण काल में ही कर लिया था। इस युग में उसने पाल का प्रयोग करना सीखा। कालान्तर में यातायात की यह विधि अन्य सब विधियों से सस्ती सिद्ध हुई।
मृदभाण्ड कला : यातायात में हुई क्रांति का प्रभाव एक और उद्यम पर पड़ा। वह उद्यम है मृद्भाण्ड बनाने की कला। नव पाषाण काल के अन्त तक मनुष्य मृदभाण्ड हाथ से बनाता था। तास काल में पहिये के आविष्कार से कुम्हार का चाक अस्तित्व में आया। इसके कारण मृदभाण्ड कला एक विशिष्ट उद्दाम बन गई।
उपयुक्त आविष्कारों का सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बहुत प्रभाव पड़ा। एक, इनके कारण ठठरे, बढ़ई, कुम्हार इत्यादि बहुत से विशिष्ट वर्ग, जिनके कार्य इतने जटिल थे कि साधारण गृहस्थ उन्हें नहीं कर सकते थे, अस्तित्व में आये। ये वर्ग धीरे-धीरे खाद्यान के उत्पादन से दूर हटते गये और अपनी उदरपूर्ति के लिए अपनी विशिष्ट विद्याओं पर निर्भर रहने लगे। दूसरी ओर साधारण कृषक को उनकी विद्या से लाभ उठाने के लिए अतिरिक्त उत्पादन करना पड़ा। इससे व्यक्ति और गाम की आत्मनिर्भरता को धक्का पहुँचा। दूसरे नये-नये आविष्कारों के कारण मनुष्यों के पास व्यक्तिगत सम्पत्ति बढ़ने लगी। इस पर अपना अधिकार प्रकट करने की आवश्यकता अनुभव होने पर मुद्राएँ (सोल्स्) अस्तित्व में आई जिनकी छाप लगाकर स्वामी-भाव प्रदर्शि किया जा सकता था। स्वामित्व का प्रदर्शन केवल भौतिक वस्तु पर ही नहीं वरन् मनुष्यों पर भी प्रकट किया जाता था। ताम्र काल में विभिन्न समूहों के पारस्परिक संघर्ष बढ़ गये थे, इसलिए यदा-कदा युद्ध होते रहते थे। इन युद्धों में पराजित शत्रुओं को दण्ड देन के लिए दास-प्रथा (स्लेवरी) का प्रचलन हुआ। सामाजिक व्यवस्था में एक अन्य परिवर्तन स्त्रिया की दशा से संबंधित है। ताम्र काल में अधिकांश आविष्कार स्वयं पुरुषों ने किये थे, इसलि इस काल में स्त्रियों की तुलना में उनकी अवस्था अधिक अच्छी हो जाती है। इन आविष्कारों से स्त्रिया को बोझा ढोने, खेत जोतने और बर्तन बनाने जैसे कार्यों से मुक्ति मिल गई, परन्तु उनका सामाजिक स्तर गिर गया। अब सामाजिक व्यवस्था पितृसत्तात्मक हो गई अर्थात् परिवार का स्वामी पुरुष हो गया। परिवार की सम्पत्ति पर, जिसमें आभूषण, अस्त्र-शस्त्र, औजार, भूमि और दासादि होते थे उसका अधिार हो गया। साधारणतः एक समूह में जिस व्यक्ति के पास सबसे अधिक सम्पत्ति और दास होते थे, वह युद्धों में नायक का भी काम करता था। वह एक प्रकार से समूह या कबीले का मुखिया बन जाता था। उसकी सम्पत्ति का स्वामी उसके बाद उसका पुत्र होता था, इसलिए व्यवहार में मुखिया या नायक पद भी पैतृक होता जाता था। यही मुखिया बाद में शक्ति बढ़ जाने पर वास्तविक राजा बन बैठता था।
Q.11. कांस्यकाल में नगर-क्रान्ति के कारण और परिणामों को स्पष्ट करें।
Ans. ताम्र काल के अन्त में, 3000 ई० पू० के लगभग, मनुष्य ने कांस्य का उत्पादन और उपकरण बनाने के लिए प्रयोग करने की विधि का आविष्कार किया। ताम्र और कांस्य में अधिक अन्तर नहीं है। ताम्र पाषाण से लचीला होता है, इसलिए इसके उपकरणों की धार शीघ्र नष्ट हो जाती है। लेकिन इसमें थोड़ा-सा टिन मिला देने पर इसी कठोरता में वृद्धि हो जाती है। इस मिश्रित धातु को ही कांस्य कहते हैं। इसका आविष्कार सर्वप्रथम कब और कहाँ हुआ, कहना कठिन है। इतना निश्चित है कि इसका प्रयोग सिन्धु प्रदेश, मिस्र, कीट और सुमेर में 3000 ई० के कुछ पहले या कुछ बाद में, ट्राय में 2000 ई० पू० के बाद तथा शेष यूरोप में इसके भी बाद प्रारम्भ हुआ।
नगरक्रान्ति : कारण
नदी-घाटियों में नगरों के उदय का कारण : ताम्र और कांस्य के उपकरण बनाने की विधि तथा हल, पहिया, बैलगाड़ी और पालदार नाव इत्यादि के आविष्कार क्रान्तिकारी सम्भावनाओं से परिपूर्ण थे। परन्तु मिस्त्र, पश्चिमी एशिया और ईरान आदि प्रदेशों के नखलिस्तानों में स्थित छोटे-छोटे ताम्रकालीन ग्रामों के निवासी इनसे समुचित रूप से लाभ नहीं उठा सकते थे। अपने सीमित साधनों की सहायता से वे जिस सीमा तक प्रगति कर सकते थे उतनी ताम्र काल में कर चुके थे। दूसरे, जैसा कि हम देख चुके हैं, ये प्रदेश शनैः शनैः अधिकाधिक शुष्क हो जा रहे थे। इसलिए इनकी ओर प्रगति करने की सम्भावना घटती जा रही थी। अब मनुष्य के लिए यह
आवश्यक होने लगा कि वह ऐसे स्थान पर निवास करे जहाँ उसे व्यक्तिगत आवश्यकताओं की पूर्ति और कृषि-कर्म के लिए पूरे वर्ष पर्याप्त जल मिल सके। यह सुविधा उसे केवल नदियों द्वारा सिंचित घाटियों में ही उपलब्ध हो सकती थी। इसलिए चतुर्थ सहस्राब्दी ई. पू. के उत्तरार्द्ध में मिस्र, सुमेर तथा सिन्धु प्रदेश में निवास करनेवाले मनुष्यों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ने लगती है।
नदी-घाटियों की उर्वरता : मिस्र एक छोटा सा देश है। नील नदी ने सहस्रों वर्ष में बाढ़ के साथ लाई हुई मिट्टी से इसके मध्य एक अत्यन्त उर्वर भूखण्ड निर्मित कर दिया है। प्राचीन काल में यह प्रदेश इतना उपजाऊ था कि यहाँ एक ही वर्ष में तीन-तीन फसलें उगाना असम्भव नहीं था। सुमेर भौगोलिक दृष्टि से उस उर्वर अर्धचन्द्र (फर्टाइल क्रीसेण्ट) का दक्षिण-पूर्वी सिरा है, जो भूमध्यसागर के पूर्वी तट पर पेलेस्टाइन से प्रारम्भ होता है और सीरिया तथा असीरिया होता हुआ दक्षिण-पूर्व में फारस की खाड़ी के तट तक चला गया है। जिस प्रकार मिस्त्र का उर्वर भूखण्ड नील नदी के द्वारा लाई हुई मिट्टी से बना है, उसी प्रकार सुमेर का दजला और फरात द्वारा लाई हुई मिट्टी '। यहाँ की भूमि की उर्वरता भी विश्वविख्यात थी। प्राचीन काल में यहाँ उपज साधारणतः बीज से छियासी गुनी होती थी। सौ गुनी उपज भी असम्भव अथवा अज्ञात नहीं थी। इसके अतिरिक्त यहाँ नदियों और तालाबों में मछलियाँ और भूमि पर खजूर के वृक्ष बहुतायत से मिलते थे। सिन्धु प्रदेश भी उस समय आजकल की तुलना में अधिक उर्वर था और वहाँ वर्षा भी अब से अधिक होती थी। इस प्रकार ये तीनों प्रदेश मनुष्य को आकर्षित करनेवाले थे।
विशालतर समूहों में स्थायी रूप से बसने की आवश्यकता : परन्तु इन प्रदेशों में बसना लाभप्रद होते हुए भी आसान नहीं था। इनकी आवास के योग्य बनाने के लिए कठोर श्रम करना आवश्यक था। इन प्रदेशों में वर्षा नाममात्र की होती थी। यह ठीक है कि यहाँ प्रतिवर्ष बाढ़ आती थी, परन्तु बाढ़ उतरने के कुछ दिन बाद ही भूमि सूखकर कठोर हो जाती थी। दूसरे, बाढ़ के जल को नियंत्रित करना भी आवश्यक था। सुमेर में एक कठिनाई और थी। यह हाल ही में दजला और फरात द्वारा लाई गई मिट्टी से बना होने के कारण दलदलों से भरा हुआ था। इन दलदलों में नरकुल के घने जंगल थे। दलदलों को सुखाये और नरकुल के जंगलों को साफ किये बिना यहाँ की भूमि की उर्वरता निरर्थक थी। परन्तु जंगलों को साफ करना, बाढ़ के जल को बाँध बनाकर नियंत्रित करना और नहरों द्वारा सिंचाई की व्यवस्था करना-ये सब काम छोटे-छोटे गाँवों के निवासी नहीं कर सकते थे। इसके लिए मनुष्य को विशालतर समूहों में एकत्र होना आवश्यक था। एक बार बाँध और नहरें बना लेने के बाद उनकी रक्षा के लिए सदैव प्रयत्न करते रहने की भी आवश्यकता थी। इसलिए मिस्र और सुमेर में विशाल मानव-समूहों का एक स्थान पर स्थायी रूप से निवास करना आवश्यक हो गया। इससे मिलती-जुलती भौगोलिक परिस्थिति सिन्धु-प्रदेश में भी थी। इसलिए वहाँ भी, लगभग उसी समय, नगर-सभ्यता का प्रादुर्भाव हुआ।
केन्द्रीय शक्ति की आवश्यकता : मनुष्य का विशाल समूहों में स्थायी रूप से एक स्थान पर निवास करना और सामूहिक रूप से सार्वजनिक निर्माण कार्य में भाग लेना एक और बात की अपेक्षा रखता है। और वह है कि किसी केन्द्रीय शक्ति का अस्तित्व जो सार्वजनिक निर्माण कार्यों की योजना बनाये, उस योजना को कार्यान्वित करने के लिए जनशक्ति और साधन एकत्र करे, श्रमिकों को वेतन के रूप में देने के लिए भण्डारों में अन्न और वस्त्र आदि संगृहीत करे और आय व्यय का विवरण रखे। संक्षेप में समूह के सदस्यों को अनुशासित करें। सुमेर में नगरों में व्यवस्था बनाये रखने का उत्तरदायित्व सिद्धान्तत: नगर के प्रधान मन्दिर के देवता और व्यवहार में प्रधान पुजारी का था। यहाँ भूमि को देवता की व्यक्तिगत सम्पत्ति, मन्दिर को देवता का महल और प्रधान पुजारी को उसका प्रतिनिधि या वायसराय माना जाता था। मिस्र में इसके विपरीत ऐतिहासिक काल के प्रारम्भ में ही राजनीतिक एकीकरण हो गया था, इसलिए वहाँ समाज को व्यवस्थित करने और सार्वजनिक निर्माण कार्यों को व्यावहारिक रूप देने का उत्तरदायित्व राजा या फराओ पर पड़ा। सिन्धु-प्रदेश में भी किसी-न-किसी प्रकार की शक्तिशाली सरकार अवश्य अस्तित्व में आ गई
होगी, परन्तु यहाँ की लिपि के न पढ़े जा सकने के कारण यह कहना कठिन है कि यहाँ की शासन-व्यवस्था का केन्द्र सामन्त थे अथवा पुजारी या राजा।
. पारस्परिक सम्पर्क की आवश्यकता : नदी-घाटियों में बसनेवाले मानव समूहों को नगरी के रूप में परिणत होने में एक और तथ्य ने सहायता दी। ये सभी प्रदेश ऐसे थे जहाँ आवश्यकता की सभी वस्तुएँ प्राप्त नहीं होती थीं। सुमेर में न तो ताम्र मिलता था और न पत्थर। यहाँ तक कि भवन-निर्माण के लिए लकड़ी भी बाहर से मँगानी पड़ती थी। मिस्त्र में पत्थर मिल जाता था परन्तु ताम्र, लकड़ी भी बाहर से मँगानी पड़ती थी। मिस्र में पत्थर मिल जाता था परन्तु ताम्र, लकड़ी, मेलेचाइट, बहुमूल्य पत्थरों तथा राल इत्यादि का आयात करना पड़ता था। मोहनजोदड़ों और हडप्या के नागरिक देवदार और बहुमूल्य धातुएँ बाहर से मँगवाते थे। संक्षेप में, कांस्यकालीन नगर नव-पाषाण काल और ताम्र काल के गाँवों की तरह आत्मनिर्भर नहीं थे। उन्हें अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बाहर से आयात किये हुए माल पर निर्भर रहना पड़ता था और इसके लिए अतिरिक्त खाद्यान्न का उत्पादन करना पड़ता था। यह तथ्य नागरिक जीवन के विकास की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि समाज में व्यापारियों का अस्तित्व केन्द्रीय शक्ति को दृढ़तर करने में बड़ा सहायक सिद्ध हुआ।
पणिाम : नागरिक जीवन का प्रादुर्भाव
स्थान-स्थान पर व्यापारसैनिक शक्ति, न्यायालय और कानून : इस युग में व्यापारी सौदागरों के माध्यम से माल का आयात और निर्यात करते थे। शीघ्र ही इन सौदागरों के काफिलों की सुविधा के लिए र-केन्द्र स्थापित होने लगे और विभिन्न देशों के शासकों को अपने देश के व्यापारियों के हितों और काफिलों की सुरक्षा के लिए सैनिकों की आवश्यकता महसूस होने लगी। तीसरी सहस्राब्दी ई० पू० में हम बहुत से शासकों को अपने राज्य के व्यापारियों के हितों की रक्षा के लिए युद्ध करते देखते हैं। इसके अतिरिक्त उनके लिए यह भी आवश्यक हो गया कि वे व्यापारियों, सौदागरों, कृषकों और अन्य वर्गों के पारस्परिक झगड़े सुलझाने के लिए राजकर्मचारी रखें और न्यायालय स्थापित करें। न्यायालयों के लिए कानूनों की आवश्यकता पड़ी। पहले प्रचलित रीति-रिवाजों के अनुसार न्याय करने का प्रयास किया गया। कालान्तर में विविध स्थानों के रिवाजों में समरूपता लाने के लिए विधि-संहिताओं की रचना की गई।
बौद्धिक-प्रगति : मन्दिरों के पुजारियों और व्यापारियों को सम्पत्ति और व्यापार सम्बन्धी आँकड़े रखने पड़ते थे। इसलिये नगरों के उदय के साथ-साथ लिपि का जन्म हुआ और बहीखाता रखने की विद्या, अंक, भार और नाप के निश्चित पैमाने तथा ज्यामिति के नियम अस्तित्व में आये। लिपि के आविष्कार से तत्कालीन युग में प्रचलित लोक-कथाओं और विविध विद्याओं से सम्बद्ध ज्ञान को लिपिबद्ध करना सम्भव हो गया। इससे आगामी सन्ततियों के लाभार्थ साहित्य की रचना और रक्षा हो सकी। इसी बीच में कृषकों की सहायता के लिए नक्षत्रों का अध्ययन करके सौर-पंचांग (सोलर कैलेण्डर) का आविष्कार किया जा चुका था। लिपि का आविष्कार हो जाने से खगोल-विद्या और ज्योतिष से संबंधित ज्ञान की प्रगति में भी बहुत सहायता
मुद्रा-निर्माण कला : व्यापारियों को अपनी सम्पत्ति पर अधिकार व्यक्त करने के लिए और माल को बाहर भेजी जानेवाली गाँठों पर स्वत्व चिन्ह अंकित करने के लिए मुद्राओं की आवश्यकता पड़ती थी। इससे मुद्रा बनाने की कला का विकास हुआ और मुद्रा बनानेवाले कलाकारों का स्वतंत्र वर्ग के रूप में जन्म हुआ।
भवन-निर्माण कला : स्थायी जीवन व्यतीत करने के कारण मनुष्य के लिए यह सम्भव हो सका कि वह अपना जीवनं सुखमय बनाने की ओर ध्यान दे। सबसे पहले उसने अपने भवनों की ओर ध्यान दिया। नव-पाषाण काल में और ताम्र काल के प्रारम्भ में मेसोपोटामिया और मित्र में नरकुल और मिट्टी की झोपड़ियाँ बनाई जाती थी। कांस्य काल के प्रारम्भ में अर्थात् 3000 पू के कुछ पहले ईंटों का आविष्कार किया गया। कच्ची ईंटें (मिट्टी) को साँचे में ढालकर ई० और
फिर धूप में सुखाकर बनाई जाती थीं। सिन्धु-प्रदेश में पक्की ईंटों का बहुताय से प्रयोग होता था। ईंटों के आविष्कार से झोपड़ियों के स्थान पर मकान बनाना साभव हो गया। इनका प्रयोग राजप्रासाद और मन्दिर आदि बनाने में भी किया गया। ईंटों से बनी प्रारम्भिक इमारतें झोपड़ियों के अनुरूप होती थीं, परन्तु सुमेर और सिन्धु-प्रदेश में 3000 ई. पू. के लगभग मेहराब का आविष्कार हो चुका था। सिन्धु प्रदेश में तीसरी सहस्राब्दी ई. पू. में दो मंजिलों के मकान भी बनने लगे थे।
सह उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि कांस्यकालीन नगर क्रान्ति के परिणामस्वरूप मनुष्य का जीवन आमूल परिवर्तित हो गया। वे सब बातें जो सभ्य नागरिक जीवन के साथ जुड़ी हैं और वे सब आविष्कार जो मनुष्य के जीवन को सुखमय और सुविधापूर्ण बनाते हैं, ताम्र और कांस्य काल में, तीसरी सहस्राब्दी ई. पू. की प्रारम्भिक शताब्दियों तक, अस्तित्व में आ चुके थे। आगामी दो में मनुष्य इन सुख-सुविधाओं को (वर्णमाला और लोहे का उत्पादन तथा उपकरण बनाने के लिए प्रयोग की विधि को छोड़कर) और अधिक नहीं बढ़ा पाया। इसलिए कांस्यकालीन नगर-क्रान्ति के युग को 'सभ्यता के जन्म' का युग कहा जाता है।
Class 11th History Chapter 1 : लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
Q.1. हाड्जा जनसमूह के बारे में मानव विज्ञानी बुडबर्न के विचार विस्तार में लिखिए।
Ans. सुप्रसिद्ध मानव विज्ञानी बुडबर्न ने हाड्जा जनसमूह के बारे में अधोलिखित विचार व्यक्त किए हैं
1. हाड्जा, शिकारियों और संग्राहकों का एक लघु समूह है। यह जनसमूह एयासी नामक एक नमकीन पानी की कटाव-घाटी के समीप रहता है। पूर्वी हाड्जा का क्षेत्र सूखा और चट्टानी है। यहाँ सवाना घास, कांटेदार झाड़ियाँ और एकेसिया के वृक्ष उपलब्ध हैं। यहाँ जंगली खाद्य पदार्थ ज्यादा परिमाण उपलब्ध हैं।
2. हाड्जा में 20वीं सदी के प्रारम्भ में ज्यादातर जानवर पाए जाते थे। यहाँ पाए जाने वाले जानवरों के हाथी, गैंडे, भैंसे, जिराफ, जेब्रा, बारबक, हिरण, चिंकारा, मस्सेदार सूअर, बबून बन्दर, शेर, तेन्दुआ और लकड़बग्घा उल्लेखनीय हैं। छोटे जानवरों में साही, खरगोश, गीदड़, कछुआ और दूसरे प्रकार के जानवर ज्यादा संख्या में उपलब्ध हैं। हाड्जा लोगों के द्वारा हाथी के अतिरिक्त शेष सभी जानवरों का शिकार किया जाता है। >
3. आम दर्शकों को कन्दमूल, बैर, बाओबाब वृक्ष के फल साधारण दिखाई नहीं देते हैं। ये सभी फल आदि सुखे मौसम में सुखे के वर्ष में भी प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। वनस्पतिक खाद्य जो वर्ष के छः महीनों में उपलब्ध रहता है। वह सूखे मौसम में मिलने वाली खाद्य वस्तुओं से भिन्न होता है। किन्तु इनकी कमी किसी भी वक्त में नहीं होती है। जंगली मधुमक्खियों को सात प्रजातियों के शहद और सूड़ियों को खाया जाता है। इनकी आपूर्ति मौसम के मुताबिक बदलती रहती है।
4. वर्षा ऋतु में जल साधनों का कुल देश में व्यापार रूप में बाँट दिया जाता है। किन्तु ये साधन सूखे के मौसम में बहुत कम हो जाते हैं। हाड्जा लोग सोचते हैं कि यदि ज्यादा से ज्यादा 5-6 किलोमीटर की दूरी तक पानी मिल जाता है तो उसका काम निकल सकता है। अत: उनके शिविर साधारणतया जल स्रोत से एक किलोमीटर की दूरी में ही स्थापित किए जाते हैं।
देश के कुछ हिस्सों में घास के खुले मैदान हैं, किन्तु हाड्जा लोग वहाँ कभी भी अपना शिविर नहीं बनाते हैं। वे अपने शिविर पेड़ों अथवा चट्टानों के मध्य या वहाँ लगाते हैं जहाँ ये दोनों सुविधाएँ प्राप्त हैं।
5. पूर्वी हाड्जा लोग जमीन और उसके संसाधनों पर अपना अधिकार नहीं बताते हैं। कोई भी व्यक्ति जहाँ चाहे वहाँ रह सकता है, पशुओं का शिकार कर सकता है और कन्द-मूल फल बेर तथा शहद संग्रह कर सकता है और पानी ले सकता है, इस बारे में हाड्जा प्रदेश में उन पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है।
6. अपने क्षेत्र में शिकार के लिए ज्यादा अधिक संख्या में पशु मिलने के बावजूद हाङ्जा लोग अपने भोजन के वास्ते मुख्यत: जंगली सब्जियों पर ही निर्भर करते हैं। संभवतः उनके भोजन का 80% तक भाग प्रमुखतः वनस्पतिजन्य होता है और बांकी 20% भाग माँस और शहद से पूरा किया जाता है।
उनके छोटे-छोटे शिविर आमतौर पर वर्षा के मौसम में दूर-दूर तक स्थापित किए जाते हैं और सूखे के मौसम में पानी के उपलब्ध साधनों के समीप सकेन्द्रित होते हैं। सूखे के सघन में भी उसके यहाँ भोजन का अभाव नहीं रहता है।
Q.2. इनमें से कौन-सी क्रिया के साक्ष्य व प्रमाण पुरातात्त्विक अभिलेख में सर्वाधिक मिलते हैं- (क) संग्रहण (ख) औजार बनाना, (ग) आग का प्रयोग (NCERT)
Ans. संग्रहण, आग का प्रयोग तथा औजार बनाने में से औजार बनाने की प्रक्रिया की क्रिया के साक्ष्य पुरातात्विक अभिलेख में सर्वोत्तम रीति से दिए गए हैं।
(1) पत्थर के औजार : इसको बनाने और उनका इस्तेमाल किए जाने के सबसे ज्यादा प्राचीन साक्ष्य इथियोपिया तथा कीनिया के तलाशी स्थानों से उपलब्ध हुए हैं।
(क) एक विशाल पत्थर के ऊपरी सिरे को पत्थर के हथौड़े की सहायता से हटाया जा रहा है।
(ख) इससे एक चपटी सतह तैयार हो जाती है जिसे प्रहार मंच अथवा धन (Striking platform) कहा जाता है। किया जाता
(ग) पुनः इस पर हड्डी या सींग से बने पंच तथा हथौड़े की सहायता से चोट है।
(घ) इससे धारदार पट्टी बन जाती है, जिसका चाकू की तरह प्रयोग किया जा सकता है अथवा उनसे एक तरह की छेनिया बन जाती है जिनसे हड्डी, सींग, हाथी दाँत या लकड़ी को उकेरा जा सकता है। >
(ङ) हड्डी पर नक्काशी का नमूना दिया गया है।
आरंभिक औजार जो ओल्डबई में मिले (क) एक गडांसा जो एक पत्थर है जिसके एक सिरे को घोलकर धारदार बना दिया गया है। (ख) एक हस्त कुठार है।
अफ्रीका में पत्थर के औजार बनाने और इस्तेमाल करने के आरंभिक साक्ष्यों की जगह। (ii) इस बात की संभावना है कि आस्ट्रेलापिथिकस द्वारा 5.6 मिलियन वर्ष पूर्व सबसे पहले पत्थर के औजार बनाए गए।
(iii) पुरा पाषाण युग के औजार मुख्यतः तीन हिस्सों में विभाजित किए जाते हैं। (a) कुठार (b) गंडासे (c) रूखानी अथवा शल्कल औजार। कुठार को मुट्ठी में पकड़ा जाता था और उसका इस्तेमाल किसी वस्तु को काटने अथवा कुचलने में किया जाता था। कुठार का निर्माण पत्थर के टुकड़े के सख्त बीच हिस्सा में पपड़ी उतार कर किया जाता था।
गंडासे का इस्तेमाल शायद मांस काटने हेतु किया जाता था। ये भारी पत्थर के एक तरफ तेज नोक बनाकर बनाए जाते थे।
रूखानी अथवा शल्कल औजार कुठारों और गंडासों के मुकाबले छोटे और पतले होते थे, किन्तु उनके किनारे अधिक पैने या शार्प (sharp) होते थे।
(iv) साक्ष्यों से प्रमाणित हुआ है कि करीब इस बात के प्रमाण उपलब्ध हुए हैं कि फेंककर मारने वाले भालों और तीर कमान जैसे नये प्रकार के औजार बनाए गये। भाला प्रेक्षक यंत्र की मदद से शिकारी अधिक दूरी तक भाला फेंक सकते थे।
(v) करीब 35000 साल पूर्व सीने की सूई का भी आविष्कार हुआ। सिले हुए कपड़ों प्रथम साक्ष्य करीब 21000 साल प्राचीन है।
(vi) पंच ब्लेड तकनीक द्वारा छेनी अथवा रुखानी जैसे छोटे छोटे औजार बनाए जाने लगे। इसके नुकीले ब्लेडों से हड्डी, सींग, हाथी दांत अथवा लकड़ी पर नक्काशी की जाने लगी।
(vii) मध्य पाषाण में छोटे औजारों को लघु अश्म कहते हैं। इन्हें भाले के अगले हिस्सा और तीरों के अगले हिस्सा के रूप में इस्तेमाल किए जाने लगा।
(Vill) नवपाषाण काल : इसके औजार अधिक कौशल के साथ बनाए जाते थे। इस युग का एक अहम औजार एक चिकनी कुल्हाड़ी थी। यह कुल्हाड़ी बढ़िया दानेदार पत्थर द्वारा बनायी जाती थी इससे जंगल साफ किए जाते थे। हसिया इस युग का एक दूसरा अहम औजार था। इसका इस्तेमाल पत्थर के काटने और संग्रह करने में किया जाता था। हड्डियों के बारीक औजार भी बनाए जाते थे।
(ix) पहिए के बारे में इस प्रकार चर्चा की गयी है
(a) लकड़ी के कूदें से काटा जाता था।
(b) पहिए पर मिट्टी के बर्तन बना होता था।
(c) रथ के लिए इजिरिशयन पहिया था।
(d) सुमेरियन रथ भी प्रचलित था।
Q.3. मानव और लंगूर तथा वानरों जैसे स्तनपायियों के व्यवहार तथा शरीर रचना में कुछ समानताएँ पायी जाती हैं। दोनों के बीच पाए जाने वाले अंतरों का भी उल्लेख कीजिए जिन्हें आप महत्वपूर्ण समझते हैं। (NCERT)
Ans. मानव और स्तनधारी जैसे कि बन्दर तथा वानरों के व्यवहार और शरीर रचना में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं
1. व्यवहार
(i) होमिनिड्स का विकास होमिनाइड से हुआ है। उनमें अनेक समानताएँ भी पायी जाती हैं किन्तु समानताओं के साथ-साथ कुछ प्रमुख अंतर भी पाये जाते हैं। होमिनाइड का मस्तिष्क होमिनिड्स की अपेक्षा छोटा होता है। वे चौपाये थे अर्थात् चारों पैरों के बल चलते थे लेकिन उनके शरीर का अगला भाग और अगले दोनों पैर लचकदार होते थे। होमिनिड्स सीधे खड़े होकर पिछले दो पैरों के बल चलते थे।
(ii) होमिनिड्स तथा होमोनाइड के हाथों की रचना में विशेष अंतर थे जिनकी सहायता से वे औजार बना सकते थे।
2. शरीर रचना
(i) मानव के आरंभिक स्वरूपों में उसके लक्षण अभी भी बने हुए थे। जैसे होमो की तुलना में मस्तिष्क का अपेक्षाकृत छोटा होना, पिछले बड़े दांत और हाथों को सीमित दक्षता। सीधे खड़े हो कर चलने की क्षमता भी सीमित थी। इसका प्रमुख कारण मानव के द्वारा अभी भी अपना ज्यादा समय पेड़ों पर गुजरना था। यही कारण था कि उसमें पेड़ों पर जीवन बिताने के लिए आवश्यक कई शारीरिक विशेषताएँ अभी भी विद्यमान थी। उदाहरणार्थ आगे के अंगों का लंबा होना, हाथ और पैरों की हड्डियों का मुड़ा होना और टखनों के जोड़ों का घुमावदार होना।
(ii) प्रारम्भिक मानव के अवशेष विभिन्न प्रजातियों में बाँट दिए गये हैं। इनमें अंतर का आधार उनकी हड्डियों में पाए जाने वाला अंतर है। उदाहरणार्थ आरंभिक मानवों की प्रजातियों को उनकी खोपड़ी के आकार और जबड़ों की विशिष्टता के आधार पर बाँट दिया गया है। इन खोपड़ियों में पाए जाने वाले अंतर मानव के क्रमिक उद्विकास के फलस्वरूप पैदा हुए हैं।
Q.4. अध्याय के अंत में दिए गए प्रत्येक कालानुक्रम में से किन्हीं दो घटनाओं को चुनिए और यह बताइए कि इनका क्या महत्व है ?
Ans :- कालानुक्रम में से दो घटनाओं का विवरण अधोलिखित हैं
1. आस्ट्रेलोपिथिकस : लैटिन भाषा के शब्द आस्ट्रेल अर्थात् दक्षिणी तथा यूनानी भाषा के शब्द पिथिकस यानी वानर (Ape) से मिलकर बना है। आस्ट्रेलोपिथिकस नाम देने का मुख्य वजह था कि मानव के आरंभिक रूप में वानर अवस्था के कई लक्षण मौजूद थे। आस्ट्रेलोपिथिक 5.6 मिलियन साल पूर्व उपलब्ध होते थे।
2. होमो : होमो लैटिन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है मानव। वैज्ञानिकों द्वारा होमो को कई प्रजातियों में विभाजित किया गया है और प्रजातियों को उनकी विशिष्ट विशेषताओं के मुताबिक अलग-अलग नाम प्रदत्त हैं। होमो जीवाश्मों को अधोलिखित वर्गों में विभाजित किया गया है
(a) होमो हैबिलस : औजार बनाने वाले।
(b) होमो इरेक्टस : सीधे खड़े होकर पैरों के बल चलने वाला।
(c) होमो सेपियंस : सोचने वाला या बुद्धिमान मनुष्य।
होमो हैबिलस के जीवाश्म इथियोपिया में ओमो और तंजानिया के ओल्हुवाई गॉर्ज में उपलब्ध हुए हैं।
होमो ईरेक्टस के सबसे प्राचीन जीवाश्म अफ्रीका के कूबी फोरा और पश्चिमी तुर्कान और केन्या तथा जावा के मोड़-जोकर्ता और संगरिन थे।
होमो सेपियंस यानी आधुनिक मानव जो विवेकशील और चिंतनशील कहा जाता है। होमो सेपियंस (0.19 से 0.16 मिलियन साल पूर्व के हैं।
कालानुक्रम से दो घटनाओं का विवरण अधोलिखित है
1. स्वर-तंत्र का विकास (200,000 साल पहले) : स्वर तंत्र का संबंध उच्चरित भाषा से है। ऐसा माना जाता है कि होमो हैबिलिस के मस्तिष्क में कुछ ऐसी विशेषताएँ होंगी जिनके कारण उनके लिए बोलना मुमकीन हुआ होगा।
मस्तिष्क के परिवर्तनों के अतिरिक्त स्वर-तंत्र का विकास भी भाषा की उत्पत्ति में अहम स्थान रखता है। स्वर का विकास करीब 200,000 वर्ष पहले हुआ था। असलियत में इसका संबंध आधुनिक मानवों से रहा है। व 10 T
2. सिलाई वाली सूई का ईजाद ( आविष्कार ) : 21,000 साल पहले औजार बनाने के के आरंभिक साक्ष्य हमें अफ्रीका के इथोपिया और कीनिया से उपलब्ध हुए हैं। ऐसा अनुमान किया जाता है कि आस्ट्रेलोपिथिकस आरंभिक पत्थर के औजार बनाने वाले थे। करीब 21,000 साल पहले सीने के सूई का आविष्कार हो गया। हमें सिले हुए कपड़ों का शुरू का साक्ष्य 21,000 साल पुराना उपलब्ध है। (
Q.5. प्रतिस्थापन (Replacement) और क्षेत्रीय निरंतरता (continuity) पर प्रकाश डालें।
Ans. प्रतिस्थापन (Replacement) और क्षेत्रीय निरंतरता (continuity) दो ऐसे अभिमत हैं जिनसे पता लगाया जाता है कि आधुनिक मानव का उद्भव कहां हुआ। हालांकि ये दोनों मत एक दूसरे से विपरीत है। इनमें प्रथम मत प्रतिस्थापन मॉडल में यह कल्पना की गयी है कि मानव के मु सभी पुराने रूप, चाहे वे कहीं भी थे, परिवर्तित हो गये तथा उनका स्थान मुकम्मल तौर पर आधुनिक मानव ने ले लिया। इस मत की संपुष्टि इस बात से हो जाती है कि आधुनिक मानव में सभी जगह उत्पत्तिमूलक समानता पायी जाती है। उनकी शारीरिक और जननिक विशेषताएँ असमान नहीं होती हैं। इसके लिए जो कारक उत्तरदायी माने गए हैं, वह यह है कि मानवों के पूर्वजों की उत्पत्ति एक ही स्थान अफ्रीका में हुई थी और वहीं से वे दुनिया के दूसरे भागों में गए। आधुनिक मानव के प्राचीनतम जीवाश्म का इथियोपिया के ओमो नामक स्थान पर उपलब्ध होना भी प्रतिस्थापन मॉडल (Replacement Model) के पक्ष को ही हिदायत करता है। इस मॉडल को स्वीकार करने वाले विद्वानों का मानना है कि आधुनिक मानव में शारीरिक विभिन्नताओं का पाया जाना इस बात का प्रमाण मात्र है कि जिन क्षेत्रों में मानव समूह अफ्रीका से गए वहाँ की परिस्थितियों के मुताबिक कालांतर में उन्होंने अपने आप को ढाल लिया और वे अंततोगत्वा वहीं के बसिन्दा हो गए।
क्षेत्रीय निरंतरता के मुताबिक अनेक क्षेत्रों में अलग-अलग मनुष्यों की उत्पत्ति हुई है। विभिन्न प्रदेशों में निवास करने वाले होमोसैपियंस आधुनिक मानव के रूप में शनैः शनैः और अलग-अलग गति से विकसित हुए। यही कारण है कि वे विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग स्वरूप में दृष्टिगोचर हुए हैं।
इस प्रकार उपर्युक्त दोनों मत अपनी जगह ठीक प्रतीत होता है तो भी बहुतो विद्वान प्रतिस्थापन मॉडल को सही मानते हैं। यह बात दीगर है कि विभिन्न क्षेत्रों के मानव इस बात का दावा करते हैं कि उनका क्षेत्र-विशेष मानव सभ्यता के विकास मूल स्रोत रहा है।
Q.6. “जीवाश्म' (Fossil) क्या है ?
Ans. जीवाश्म (Fossil) एक ऐसी वस्तु है जो बहुत ही पुराने पेड़-पौधों, जानवरों अथवा मानव के उन अवशेषों के अथवा छापों के लिए प्रयोग किया जाता है जो एक पत्थर के रूप में रूपांतरित होकर प्रायः किसी चट्टान में प्रविष्ट कर जाता है तथा पुनः लाखों वर्षों तक उसी रूप में पड़े रहते हैं। इसका कारण है कि इनका संपर्क वायु ऑक्सीजन से टूट जाता है। इसलिए इनका ऑक्सीकरण नहीं हो जाता है। इनके अन्दर उपस्थित जल और वाष्पशील पदार्थ भी दाब पड़ने के कारण बाहर निकल जाता है।
जीवाश्मों की तिथि का निर्धारण प्रत्यक्ष रासायनिक विश्लेषण द्वारा अथवा उन परतों या तलछटों के काल का अप्रत्यक्ष रूप से निर्धारण करके किया जाता है जिनमें वे दबे हुए पाये जाते हैं। जब एक बार जीवाश्मों की तिथि यानी काल का पता चल जाता है तब विकास का क्रम निर्धारित करना जटिल नहीं रहता।
लगभग 200 वर्ष पूर्व, सबसे पहले जब ऐसी खोजें की गयीं थीं, तो अनेक विद्वान यह मानने को तैयार नहीं थे कि खुदाई में मिले अवशेष और पत्थर तथा चित्रकारियों जैसी अन्य चीजें वास्तव में मनुष्य के आदिकालीन रूपों में संबंध रखती थी। विद्वानों की हिचकिचाहट आमतौर पर बाइबिल के ओल्ड टेस्टामेंट में अभिव्यक्त इस धारणा पर आधृत थी कि परमेश्वर ने सृष्टि की रचना करते समय अन्य प्राणियों के साथ मनुष्यों को भी बनाया।
Q.7. पाठ्यपुस्तक के पृष्ठ 13 पर दिए गए सकारात्मक प्रतिपुष्टि व्यवस्था (Positive feedback mechanism) को दर्शाने वाले आरेख को देखिए। क्या आप उन निवेशों (Inputs) की सूची दे सकते हैं जो औजारों के निर्माण में सहायक हुए ? औजारों के निर्माण से किन-किन प्रक्रियाओं को बल मिला ? (NCERT)
Ans. I. निम्नलिखित निवेश (Inputs) औजार निर्माण में सहायक हुए।
(1) मस्तिष्क के अकार और उसकी क्षमता में वृद्धि।
(2) औजारों के उपयोग के लिए और बच्चों व वस्तुओं को ले जाने के लिए हाथों का मुक्त होना।
(3) मानव का सीधे खड़े होकर चलना।
(4) भोजन और शिकार के लिए।
II. औजारों के निर्माण से निम्नलिखित प्रक्रियाओं को बल मिला
(1) मनुष्य के कार्य क्षमता में वृद्धि हो गयी।
(2) वह शिकार के बड़े टुकड़े को छोटे-छोटे आकार में काट सकता था जिससे मानव को खाने में सुविधा हो गयी। (3) वह शिकार भी आसानी से कर सकता था।
(4) औजारों के निर्माण से घर बनाने में भी सुविधा हो गयी।
Q.8. मानव उद्भव क्षेत्रीय निरंतरता मॉडल के पक्ष में दिये गए तर्कों पर चर्चा कीजिए। क्या आपके विचार से यह मॉडल पुरातात्विक साक्ष्य का युक्तियुक्त स्पष्टीकरण देता है ? (NCERT)
Ans. मानव उद्भव के क्षेत्रीय निरंतरता मॉडल के पक्ष में दिये गये तर्क(1) आधुनिक मानवों में सर्वत्र शारीरिक और जननिक या उत्पत्ति-मूलक समरूपता पायी जाती है। इस समरूपता का कारण क्षेत्रीय निरंतरता है।
(2) सभी के पूर्वज एक ही क्षेत्र अर्थात् अफ्रीका में उत्पन्न हुए थे और वहीं से अन्य स्थानों को गये।
(3) आधुनिक मानवों के उन पुराने जीवाश्मों के साक्ष्य से भी (जो इथियोपिया में ओमो स्थान पर मिले हैं) से भी इसकी पुष्टि होती है।
(4) आधुनिक मानवों में जो शारीरिक भिन्नतायें पायी जाती हैं उसका कारण उन लोगों का परिस्थितियों के अनुसार अपने को संतुलन स्थापित करना है।
यह मॉडल पुरातात्विक साक्ष्य का विश्वासोत्पादक स्पष्टीकरण देता है जिसकी पुष्टि पुरातात्विक साक्ष्य से भी होती है।
Q.9. मध्यपाषाण कालीन कलाकृतियों का वर्णन करें।
Ans. मध्यपाषाण युग के लोग चित्र बनाना जानते थे। इनकी कलाकृतियाँ अनेक जगहों पर मिली हैं। इस युग के लोग कलात्मक ढंग से मूर्तियों का निर्माण करते थे। उदाहरणार्थ, मध्यप्रदेश के भीमबेत का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है।
Q.10. मध्यपाषाण काल के लोगों के निवास स्थान पर
प्रकाश डालें।
Ans. मध्यपाषाण काल के लोग छोटे-बड़े समूहों में रहते थे। इस काल के लोग पहाड़ की गुफाओं में नदी-झील और झरनों के तटों पर टहनियों, पत्तों और घास से बनी झोपड़ियों में रहने लगे थे। जलवायु के परिवर्तन ने सांस्कृतिक विकास को प्रभावित किया। वनों में उत्पन्न फल-फूल कंद-मूल आदि खाद्य सामग्री थे। इसके साथ ही मांस एवं मछलियाँ भी खाद्य पदार्थ के रूप में प्रयुक्त होते थे।
Q.11. नवपाषाण काल के सामान्य जीवन पर प्रकाश डालें।
Ans. इस काल में आर्थिक परिवर्तन होने लगे थे। मानवों ने भोजन सामग्री को उत्पादक सामग्री बना लिया। स्थायी बस्तियाँ बनने लगी और क्रमश: कृषि और अन्य उद्योग धंधों में विकास होने लगा। गृहों के निर्माण, विभिन्न प्रकार के उपयोगी उपकरणों, अग्नि के प्रयोग कृषि कर्म आदि विकास से जीवन में स्थायित्व आया और जीवन सुखद होने लगा। पारस्परिक सहयोग और सहकारिता की भावना बढ़ी। आर्थिक उन्नति, परिवार की भावना और जनसंख्या की वृद्धि ने व्यक्तिगत सम्पत्ति को महत्व दिया। समाज का रूप पितृप्रधान था।
Q. 12. संक्षिप्त में लिखिये कि मेसोलिथिक युग से आप क्या समझते हैं ? (Write in brief what do you understand
by the Mesolithic Age ?) Ans. मध्य पाषाण युग के बाद उत्तर पाषाण युग हुआ। उत्तर पाषाण युग के औजार (ब्लेड और ब्यूरिन) आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात हुये हैं। मेसोलिथिक युग प्राचीन तथा नव पाषाण युग के बीच का युग था। लगता है, इस युग की संस्कृति का विकास उत्तर पाषाण युगीन संस्कृति से हुआ। से प्राप्त
औजार : मेसोलिथिक युग के औजार आकार में प्रायः काफी छोटे होते थे। इस वजह से उनहें अस्थि या लकड़ी की मूठ में लगाया जाता था। औजारों के छोटे होने की वहज से इस यग को माइक्रोलिथिक युग भी कहते है। इस युग के औजारों की उत्पत्ति के बारे में मतभेद है। प्राप्ति स्थान : माइक्रोलिथस् असम, बंगाल, गंगा की घाटी तथा केरल को छोड़कर प्रायः सम्पूर्ण भारत में मिले हैं।
निवास एवं जीवन : इस युग का मानव प्रायः पहाड़ी आश्रय स्थलों में, समुद्र तथा नदी के किनारे एवं रेतीले क्षेत्र में रहता था। इस युग के औजारों के साथ कोई अनाज नहीं मिला। इसलिये लगता है कि इस युग के लोग भी शिकारी ही थे। बहुत ही महत्वपूर्ण बात यह है कि इस युग के मानव ने अपने भावों को कन्दराओं की भित्तियों पर रेखांकित करना सीख लिया था।
उद्गम : इस युग के अवशेष तत्कालीन पश्चिम एशिया, यूरोप और अफ्रीका से सभ्यता रखते हैं। लगता है, भारत में इस संस्कृति का मानव उत्तर-पश्चिम से आया। Q. 13. नव पाषाण युग के निवासियों के जीवन तथा सभ्यता का संक्षिप्त वर्णन नो कीजिये।
2 (Describe in brief the life and civilization of the people of the Neolithic Age.) Ans. नव पाषाण युग, वास्तव में, पाषाण युग का ही एक भाग है। परन्तु, इसमें आर्थिक तथा तकनीकी क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुये। सामाजिक तथा धार्मिक क्षेत्र में भी परिवर्तन हुये।
औजार तथा उनका प्राप्ति स्थान : इस युग के औजार अब सुन्दर, सुडौल तथा चमकदार होने लगे थे। ये औजार बेलरी, मैसूर, हैदराबाद स्टेट, मध्य भारत, मध्य प्रान्तों, बुन्देलखण्ड, गुजरात, कश्मीर, पश्चिम बंगाल, छोटा नागपुर तथा उड़ीसा से प्राप्त हुये हैं।
जन-जीवन : मानव ने अब कृषि करना, आग का उपयोग करना, पशु-पालन आदि शुरू कर दिया था और अब वह घुमक्कड़ जीवन को छोड़कर निश्चित स्थान पर बसने का प्रयत्न करने लगा था। इस युग में मनुष्य वृक्षों तथा चट्टानों में दैवीशक्ति या देवता का निवास समझने लगा था। सम्भव है, वह उनकी पूजा भी करता हो। इस समय के कुछ गहने (पत्थर, मिट्टी और हड्डी के) तथा जनवरों की मूर्तियाँ भी मिली है। उत्पत्ति : इसकी उत्पत्ति के बारे में कुछ निश्चित नहीं कहा जा सकता। कुछ लोग इसकी उत्पत्ति ईरान से, तो कुछ चीन से और कुछ अन्य पश्चिम एशिया से मानते हैं।
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Class 11th History Chapter 1 : अति लघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर
Q.1. पृथ्वी पर मानव के समान प्राणी प्रथम कब प्रकट हुए ?
Ans. 5.6 मिलियन वर्ष पहले पृथ्वी पर मानव के समान प्राणी प्रथम बार प्रकट हुए।
Q.2. आज के मनुष्य से मिलते-जुलते मानव-प्राणी कब आये ?
Ans. आज के मनुष्य से मिलते-जुलते मानव-प्राणी करीब 160,000 वर्ष पूर्व आये।
Q.3. आरम्भ में मनुष्य ने अपना भोजन किस प्रकार प्राप्त किया ?
Ans. आरम्भ में मनुष्य ने अपना भोजन जानवरों का शिकार करके, भोजन की तलाश करके या वृक्षों से प्राप्त कन्दमूल से प्राप्त किया।
Q.4. जीवाश्म किसे कहते हैं ?
Ans. जीवाश्म बहुत पुराने वृक्ष, मानव तथा जानवरों के अवशेष हैं।
Q.5. जाति किसे कहते हैं ?
Ans. जाति जीवधारी रचनाओं का एक समूह है जिसे उपजाऊ संतान पैदा करने के लिए उत्पन्न किया जा सकता है।
Q.6. मानव जीवाश्मों से मानव उद्विकास के बारे में कैसे पता चलता है?
Ans. एक बार जीवाश्मों का काल निर्धारण होने के बाद मानव उद्विकास के बारे में पता लगाया जा सकता है।
Q.7 होमोनिड्स के उप-विभाग बताइए।
Ans. होमोनिड्स के उप-विभाग हैं- (i) आस्ट्रेलोपिथिकस और (ii) होमो।
Q.8. होमो क्या है ?
Ans. होमो एक लैटिन शब्द है, जिसका मतलब है पुरुष (Man) वैज्ञानिकों ने होमा के विभिन्न प्रकारों में अंतर किया है। होमो 2.5 से 2.0 Mg के बीच थे।
Q.9. होमो सेपियंस क्या है ?
Ans. होमो सेपियंस को बुद्धिमान अथवा चिंतनशील मानव कहा गया है।
Q.10. आधुनिक मानव की उत्पत्ति के स्थान के विषय में दो विभिन्न मत क्या हैं?
Ans. आधुनिक मानव की उत्पत्ति के स्थान के विषय में दो विभिन्न मत हैं क्षेत्रीय अविच्छिन्न प्रतिरूप उत्पति बहुल क्षेत्रों के साथ और प्रतिस्थापन प्रतिरूप अफ्रीका में उत्पत्ति।
Q.11. प्रारम्भिक मानव किस प्रकार अपना भोजन प्राप्त करते होंगे ?
Ans. प्रारम्भिक मानव खाद्य संग्रह, शिकार, भोजन की तलाश और मछली पकड़कर भोजन प्राप्त करते होंगे।
Q.12. बोलचाल की भाषा का उदय कब हुआ ?
Ans. बोलचाल की भाषा का उदय तीस हजार वर्ष पहले हुआ।
Q.13. मानवशास्त्र किसे कहते हैं ?
Ans. मानवशास्त्र में संस्कृति और मानव जीव विज्ञान में उद्विकासीय पहलुओं का अध्ययन किया जाता है।
Q.14. नृवंश शास्त्र किसे कहते हैं?
Ans. नृवंश शास्त्र सामयिक नृवंश समूहों का अध्ययन है।
Q.15. मानव कितने वर्षों तक जंगली जानवर का आखेटक (शिकारी) और पौधों के संग्रहकर्ता रहा?
Ans. मानव कई मिलियन वर्षों तक जंगली जानवरों का आखेटक और जंगली पौधों का संग्रहकर्ता रहा।
Q.16. मानव इतिहास में प्रमुख निर्णायक अवस्था कब आयी ?
Ans. मानव इतिहास में प्रमुख निर्णायक अवस्था उस समय आयी जब मानव भोजन की में तलाश से खेती (farming) करना सीखा।
Q.17. जीवाश्म (fossil) क्या है?
Ans. जीवाश्म एक अत्यन्त पुराने पौधे, जानवर या मानव के अवशेषों को कहते हैं जो एक पत्थर के रूप में बदलकर किसी चट्टान में समा जाते हैं और लाखों साल तक उसी रूप में पड़े रहते हैं।
Q.18. प्रजाति (specie) किसे कहते हैं ?
Ans. जीवों का एक ऐसा समूह जिसके नर और मादा मिलकर बच्चे पैदा कर सकते हैं और उनके बच्चे भी संतानोत्पति कर सकते हैं, प्रजाति कहलाता है।
Q.19. प्राइमेट से क्या आशय है ?
Ans. प्राइमेट स्तनपायी प्राणियों के एक बड़े समूह के अन्तर्गत उपसमूह है, जैसे-वानर,लंगूर, मानव। प्राइमेट के शरीर पर बाल होते हैं। जन्म से पूर्व ये लम्बे समय तक माता के गर्भ में रहते हैं। ये माता का दूध पीते हैं। इनके दाँत भिन्न किस्म के होते हैं।
Q.20. होमोनाइड किसे कहते हैं ?
Ans. ये बन्दरों से भिन्न होते हैं। इनके पूँछ नहीं होती औरइनका शरीर बन्दरों से बड़ा होता है। इनके विकास और निर्भरता की अवधि भी लम्बी होती है।
Q.21. शिल्पकृतियाँ क्या हैं ?
Ans. ये अनेक प्रकार की मानव-निर्मित वस्तुएँ होती हैं जैसे--औजार, चित्रकारियाँ, मूर्तियाँ आदि।
Q.22. आल्टामीरा क्या है ?
Ans. यह स्पेन की एक गुफा है। इसकी छत पर चित्रकारियाँ बनी हुई हैं।
Q.23. मानव-विज्ञान का क्या अर्थ है ?
Ans. यह समाजिक विज्ञानों का एक विषय है जिसमें मानव संस्कृति और मानव जीव विज्ञान के उद्विकासीय पहलुओं का अध्ययन किया जाता है।
Q.24. संजाति वृत्त (Enthnography) क्या है ?
Ans. इसमें समकालीन नृजातीय समूहों का विश्लेषणात्मक अध्ययन होता है। इसमें उन ,समूहों के रहन-सहन, खान-पान, आजीविका के साधन, प्रौद्योगिकी, कर्मकांड, रीति-रिवाज राजनीतिक तथ्य सामाजिक संस्थाओं का अध्ययन किया जाता है।
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Class 11th History Chapter 1 : वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
1. मानव संस्कृति और मानव जीव-विज्ञान के उद्विकास का अध्ययन कहलाता है
(क) मानव विज्ञान
(ख) पुरातत्व विज्ञान
(ग) होमो विज्ञान जीव विज्ञान
(घ) जीव विज्ञान
2. होमो सेपियंस की प्रमुख विशेषता है
(क) औजार बनाने वाले मनुष्य
(ख) कृषि करने वाले मनुष्य
(ग) चिंतनशील मनुष्य
(घ) सीधे खड़े होकर पैरों के बल चलने वाले मनुष्य
3. होमो एरेक्टस का क्या अर्थ है
(क) चिंतनशील मनुष्य
(ख) सीधे खड़े होकर पैरों के बल चलने वाले मनुष्य
(ग) औजार बनाने वाले मनुष्य
(घ) खेती करने वाले मनुष्य उत्तर-(ख)
4. होमो हैबिलिस का अर्थ है
(क) चिंतनशील मनुष्य
(ख) सीधे खडे होकर पैरों के बल चलने वाले मनुष्य
(ग) चिंतनशील मनुष्य (
(घ) औजार बनाने वाले मनुष्य
5. होमिनिड्ज का उदय कहाँ हुआ था
(क) आस्ट्रेलिया
(ख) अफ्रीका
(ग) अमरीका
(घ) रूस
6. होमिनिड्ज की विशेषता है
(क) सीधे खडे होना
(ख) मस्तिष्क का बड़ा आकार
(ग) दो पाँवों पर चलना
(घ) उपरोक्त सभी
7. वैज्ञानिकों ने विभिन्न मानव प्रजातियों को नाम देने के लिए जिन दो भाषाओं के शब्दों
का प्रयोग किया है, वे हैं
(क) यूनानी और लैटिन
(ख) यूनानी और फ्रेंच
(ग) यूनानी और अंग्रेजी
(घ) लैटिन और फ्रेंच
8. होमिनिड्ज एशिया और यूरोप में पहुँचे
(क) उत्तरी ध्रुव से
(ख) दक्षिणी अमरीका से
(ग) पूर्वी अफ्रीका से
(घ) आस्ट्रेलिया से
9, आदिकालीन मानव की संग्रहण-क्रिया में सम्मिलित था
(क) गुफाओं में मिलने वाले खाद्य पदार्थ
(ख) पेड़-पौधों से मिलने वाले खाद्य पदार्थ
(ग) शिकार से मिलने वाला भोजन
(घ) उपरोक्त सभी
10. पत्थर के औजार बनाने तथा उनके प्रयोग का प्राचीनतम साक्ष्य मिला है
(क) दक्षिणी इंग्लैंड में पुरास्थल
(ख) इथियोपिया का पुरास्थल
(ग) आस्ट्रेलिया का पुरास्थल
(घ) दक्षिणी अमेरिका का पुरास्थल )
11. आस्ट्रेलोपिथिकस की विशेषता है
(क) भारी जबड़ा
(ख) लंबे दाँत
(ग) मस्तिष्क का छोटा आकार
(घ) उपरोक्त सभी
12. जीवाश्म प्रायः कहाँ दबे रहते हैं
(क) जल स्रोतों में
(ग) गुफाओं में
(घ) चट्टानों में
13. होमिनॉयड्ज किसका एक उपवर्ग था
(क) प्राइमेट
(ख) आस्ट्रेलोपिथिकस
(ग) होमो सैपियंस
(घ) होमो हैविलस
14. आस्ट्रेलोपिथिकस का वह शारीरिक लक्षण जो उसे वृक्षों पर रहने के अनुकूल बनाता है
(क) हाथों-पैरों की मुड़ी हुई हड्डियाँ
(ख) टखनों के घुमावदार जोड़
(ग) आगे के अवयवों का लंबा होना
(घ) उपरोक्त सभी
15. यूरोप में पाए जाने वाले सबसे पुराने ‘होमो' जीवाश्म किस प्रजाति का हिस्सा है
(क) होमो एरेक्टस
(ख) होमो हैबिलिस
(ग) होमो सैपियंस
(घ) होमोनिड
16. होमो' शब्द का अर्थ है
(क) जानवर
(ख) घर
17. 'होमो' शब्द किस भाषा का है
(क) अफ्रीकी
(ख) अरबी
(ग) लैटिन
घ) ग्रीक
18. होमोनिडों की कई शाखाएँ हैं जो कहलाती हैं
(क) प्राइमेट
(ख) जीवाश्म
(ग) जीनस
(घ) मंगोलाइड
19. होमिनिड प्राणी
(क) रेंगे-रेंग कर चलते थे
(ख) सरक कर चलते थे
(ग) सीधे खड़े होकर पिछले दो पैरों पर चलते थे
(घ) सीधे खड़े होकर अगले दो पैरों पर चलते थे
20. जीवों का ऐसा समूह जिसके नर और मादा मिलकर बच्चे पैदा कर सकते हैं,कहलाता है
(क) होमो सैपियंस
(ख) आस्ट्रेलोपिथिकस
(ग) प्रजाति या स्पीशीज
(घ) प्राइमेट
21. 'आन द ओरिजिन ऑफ स्पीशीज' नामक पुस्तक का लेखक कौन था
(क) चार्ल्स डार्विन
(ख) जेम्स प्रिंसेप
(ग) जेम्स ग्रांड
(घ) जेम्स टॉड
22. प्राइमेट से उत्पन्न एक उपसमूह (जिसमें वानर शामिल थे) कहलाता था |
(क) होमिनॉइड
(ख) होमिनिड
(ग) होमो सेपियंस ,
(घ) आस्ट्रेलोपिथिकस
23. स्तनपायी प्राणियों का एक उपसमूह, जिसमें वानर, लंगूर एवं मानव शामिल हैं कहलाता है
(क) होमोनॉइड
(ग) प्राइमेट
(ख) होमोनिड
(घ) होमो सैपियंस
24. 'ऑन द ओरिजिन ऑफ स्पीशीज' पुस्तक का संबंध है -
(क) लेखन कला एवं शहरी जीवन से
(ख) मनुष्य की उत्पति से
(ग) जीवाश्मों के अध्ययन से
(घ) भाषाओं के अध्ययन से
25. अपमार्जन का अर्थ है -
(क) भोजन की तलाश करना
(ख) भोजन एकत्रित करना
(ग) पेड़ों पर लटकना
(घ) त्यागी हुई वस्तुओं की सफाई करना
26. शिल्पकृतियों में क्या शामिल नहीं है -
(क) औजार
(ख) उत्कीर्ण चित्र
(ग) जीवाश्म
(घ) मूर्तियाँ और चित्रकारियाँ
27. प्रतिस्थापन मॉडल के अनुसार मानव के पूर्वज उत्पन्न हुए थे -
(क) यूरोप में
(ख) एशिया में
(ग) आस्ट्रेलिया में
(घ) अफ्रीका में
28. स्पेन में स्थित किस गुफा में जानवरों की चित्रकारियाँ मिली हैं-
(क) बाक्सग्रोव
(ख) लैसकॉक्स
(ग) चाउवेट
(घ) आल्टामीरा
29. लैसकॉक्स और चाउवेट की गुफाएँ कहाँ पर हैं
(क) पुर्तगाल में
(ख) दक्षिण अफ्रीका में
(ग) फ्रांस में
(घ) आस्ट्रेलिया में
30. होमिनॉइड किस दृष्टि से बंदरों से भिन्न होते हैं
(क) उनके विकास तथा निर्भरता की अवधि लंबी होती है
(ख) उनके पूँछ नहीं होती
(ग) उनका शरीर बंदरों से बड़ा होता है
(घ) उपरोक्त सभी
31. सिले हुए कपड़ों का सबसे पहला साक्ष्य लगभग कितना पुराना
(क) 45,000 वर्ष
(ख) 29,000 वर्ष
(ग) 26,000 वर्ष
(घ) 21,000 वर्ष
32. अंतिम हिमयुग का अंत लगभग कब हुआ
(क) 23,000 वर्ष पहले
(ख) 19,000 वर्ष पहले
(ग) 17,000 वर्ष पहले
(घ) 13,000 वर्ष पहले
33. हिमयुग के अंत का क्या प्रभाव हुआ
(क) अधिक गर्म तथा नम मौसम की शुरुआत
(ख) वर्षा में कमी
(ग) ठंडे मौसम की शुरुआत
(घ) भीषण गर्मी की शुरुआत
34. आदिकालीन मानव का भोजन प्राप्त करने का तरीका था
(क) संग्रहण
(ख) शिकार
(ग) अपमार्जन
(घ) उपरोक्त सभी
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